March 06, 2011

एक गैर जिम्‍मेदाराना कविता

मैं जिम्‍मेदार नहीं हूँ
महँगाई के बढने का
कचडे के ढेर की तरह रोज
घोटालों के निकलने का
मैं जिम्‍मेदार नहीं हूं देश में
किसी भी तरह की गडबडियों का
सचिवों मंत्रियों नौकरशाहों की नि‍युक्तियों का
मैं बिल्‍कुल जिम्‍मेदार नहीं हूँ
किसी के मरने का

February 14, 2011

फिर वही दिल(न) लाया हूँ

आज एक‍ रि-पीट करने का मन है।
ब्‍लॉगिंग की भाषा में जिसे रिठेल कहा जाता है। यदि ब्‍लॉगिंग में पहली बार पोस्‍ट प्रकाशित करने के कृत्‍य को पोस्‍ट पीटना कहा जाए तो दुबारा उसी पोस्‍ट को उसी ब्‍लॉग पर प्रकाशित करने पर उसे रि-पीट कहा जा सकता है। इस तरह यह शब्‍द हिंदी और अँग्रेजी दोनों में समझने पर सही अर्थ प्रदान करता है।  उसी प्रकार ठेल और रिठेल शब्‍द का प्रयोग भी तदनुसार ब्‍लॉगर जन करते हुए पाए जाते हैं। ज्‍यादातर बलॉगर पोस्‍ट ठेलते हैं। जैसे किसी नदी में कुछ ठेल दो। ठेल दिए गंगा जी में। पहुँच गई पोस्‍ट इंटरनेट के महासागर में। अंतर बस इतना है कि इधर रिठेल भी कर सकते हैं। नदी में किसी चीज की सिर्फ ठेल हो सकती है, रिठेल नहीं।  यहॉं ठेल करने से रिठेल करने में सुविधा रहती है।

February 04, 2011

तर्क

आठवीं कक्षा में पढने वाले अपने पोते नीशू को बल्‍ला लेकर जाते हुए देखकर दादाजी ने मजाक में पूछा -

"कहाँ  चल दिए यह गदा लेकर शहजादे?"

"क्रिकेट खेलने"  नीशू ने जवाब दिया ।

January 29, 2011

नए साल में नया क्‍या है

 संवादघर पर की गई मेरी कविता रूपी टिप्‍पणी या टिप्‍प्‍णी रूपी कविता।  आज बहुत दिन बाद गूगल डाक्यूमेंट्स में सेव  एक पुराने नोट में मिल गई।   

नए साल में नया क्‍या है
अपने खुश होने का बहाना क्‍या है
हकीकत को रुबरू कैसे करें
इस जिंदगी में नया क्‍या है
मेरे होने में नया क्‍या है
मेरे मिटने में नया क्‍या है

कुछ भी लिखने में नया क्‍या है
हर नये में नया क्‍या है

सुबहो शाम में नया क्‍या है
सोने जगने में नया क्‍या है

हुस्‍न -ए-उल्‍फत में नया क्‍या है
एक चमडी की हकीकत क्‍या है
अपने इल्‍म का फायदा क्‍या है
काम यह कहीं आता क्‍या है

मत पूछो नया साल लाता क्‍या है
कहिए इंसा नया करता क्‍या है

सच नए साल में नया क्‍या है
नई नजर में कुछ नया क्‍या है ?

किसी ने पूछा जिंदगी क्‍या है
हमने पूछा जीने का बहाना क्‍या है

नई नजर हो तो सब कुछ नया है
नया साल भी नया है
पुराना यार भी नया है
करोडों साल का बूढा सूरज
रोज सबेरे नया नया है
रात में करते झिलमिल तारे
खरबों साल से नए नए हैं
इक बूढे की बूढी प्रियतम
प्रेम नयन से नई नई है

बच्‍चे की निश्‍छल ऑंखों में
बूढी दुनिया नई नई है

नई ऑंखें हों हर दिन नया है
नया साल को भी इंसा ही बनाता नया है
जीने के लिए कुछ झूठ भी चाहिए
इस काम में चहिए सिर्फ हकीकत कहॉ है

कविता अधूरी जैसी है । साल भी अभी बहुत बाकी है।

January 24, 2011

पागल

शहर में रहने वाली अपनी मौसी के घर में पंखे के नीचे बैठकर शरबत पीते हुए अमित बडे आश्‍चर्य से कह रहा था ,  "आज भी दुनिया में कैसे-कैसे मददगार लोग मिल जाते हैं। व्‍यस्‍त शहर में किसके पास इतना समय है कि कोई अपना काम छोडकर एक अजनबी लडके की मदद करे।" जबकि उसने सुन रखा था कि शहर में कोई किसी अजनबी की सहायता करने में इतनी रुचि नहीं लेता। यह गॉंव नही हैं कि किसी का पता पूछने पर आपको उसके घर तक भी पहुंचाने वाले मिल जाया करते हैं।

"और यहॉं अजनबी स्‍वयंसेवकों से बचकर ही रहना चाहिए। रोज ऐसे मददगारों के नापाक कारानामों से अखबार भरे रहते हैं। लेकिन क्‍योंकि तुम मेरे सामने सही सलामत बैठे हुए हो, तुम्‍हारे साथ क्‍या हुआ यह मजे से बता सकते हो।"  मौसी ने रुचि ले‍ते हुए कहा।  

"मौसी, मैं कलेक्‍ट्रेट के सामने वाली रोड पर जा रहा था। तभी एक दरमियाने कद का सांवला सा आदमी मेरे बगल से चलकर आगे निकलते हुए दिखा। उम्र यही कोई 40-45 साल के लगभग रही होगी। उसके हाथ में सायकल मैकेनिकों की तरह ग्रीस और कालिख लगी हुई थी। एक हाथ में वह गंदा सा रुमाल भी पकडे हुए था।"

"मैंने उससे चलते-चलते ही पूछ लिया कि अंकल यूनियन बैंक किधर पडता है। वह ठहर गया। उसने मेरी तरफ देखा और बोला कि यूनियन बैंक यहॉं से थोडी दूरी पर ही है और वह उधर ही जा रहा है।"

"आप मेरे साथ चलो मैं आपको वहॉं तक छोड दूँगा।" अजनबी ने कहा।

"मैं उसके साथ साथ चलने लगा" अमित ने बताना जारी रखा।

"थोडी दूर चलने के बाद उसने कहा कि वह पास की गली में ही रहता है। इसलिए पहले उसने मुझे अपने कमरे में चलने का आग्रह किया ताकि वहॉं वह अपना हाथ साफ कर ले। कमरे में उसकी सायकल रखी हुई है। उसने कहा कि सायकल से वह मुझे आराम से पहुँचा देगा।"

"मई की दोपहर। धूप में चलना रेत में चलने की तरह कठिन मालूम पड रहा था। मैं काफी देर से चलते-चलते थक गया था। फिर भी मैंने उसे धन्‍यवाद देते हुए कहा कि आपको तकलीफ करने की जरूरत नहीं है मैं खुद चला जाऊंगा। लेकिन वह आग्रह करने लगा कि बस पांच ही मिनट लगेंगे और जब मैं उधर जा रहा हूं तो साथ ही चले चलते हैं।"

"तुमने यह कोई समझदारी का काम नहीं किया" मौसी ने टोंकते हुए कहा।

"हां, मैंने जानबूझकर रिस्‍क लिया था" अमित ने स्‍वीकार करते हुए कहा। लेकिन आप पहले पूरी बात तो सुन लीजिए फिर आराम से अपना मशविरा दीजिएगा।

"उसके घर जाने की बात से मुझे शक होने लगा कि यह आदमी कहीं मुझे अपने जाल में तो नहीं फंसा रहा। वैसे आदमी भला लग रहा था। न तो उसमें बदमाशों जैसा काइयांपन था और न ही उसके चेहरे से अपराधियों की तरह क्रूरता झलक रही थी। फिर भी मैंने सोचा कि क्‍यों न आजमा कर देख ही लिया जाए कि क्‍या करता है। एक एडवेंचर हो जाएगा। वैसे भी अकेला है और इसके जैसे कम से कम दो को तो मैं सम्‍हाल ही सकता हूं। नई उम्र का जोश था ही। और सुनसान जगह में मुझे इसके साथ जाना नहीं है रहना भीड-भाड वाली जगह में ही है।" अमित ने सफाई दी।

"इस तरह सोचता हुआ मैं उसके साथ चल दिया। वह एक गली में मुड गया। 
मैं और सतर्क हो गया। मैं उससे थोडा पीछे ही चल रहा था। गली में थोडा अंदर जाकर वह एक कमरेनुमा मकान के सामन रुका और बोला कि यही उसका कमरा है। इसके बाद उसने जेब से एक बिना छल्‍ला लगी हुई गंदी सी चाबी निकाली। ताला खोला और अंदर चला गया। मैं सावधानीवश बाहर ही रह गया और बाहर से ही कमरे का मुआयना करने लगा। मुझे डब्‍बे की तरह दस बाइ दस का एक ही कमरा दिखा, जिसमें कोई दूसरा दरवाजा नहीं था। न ही कोई खिडकी थी।  उसने मुझे अंदर बुलाया। एक  नावनुमा  खटिया पर बैठाया। जिसकी  निवाड जमीन को छू रही थीं।  कमरे में चीजें स्‍टोर रूम की तरह भरी हुई थीं। एक टेबल फैन, बोरियॉ, स्‍टोव, कैरोसिन का गैलन, कुछ गंदे चुचके बर्तन, कुछ खेती और सायकल बनाने के औजार, दीवार पर एक दो कपडे टँगे हुए थे। कुछ किताबें भी इधर पडी हुई थीं।"

"मुझे बैठाकर पहले उसने बाल्‍टी में से एक डिब्‍बा पानी निकालकर हाथ धोया। फिर खूब अच्‍छी तरह हाथ पोंछने के बाद बैठकर स्‍टोव जलाने का उपक्रम करने लगा। मैंने कहा कि आप यह क्‍या कर रहे हैं। उसने कहा कि चाय बनाता हूँ। पीकर चलते हैं। मुझे गुस्‍सा तो बहुत आया लेकिन मैंने कहा आप चाय बनाइए मैं जा रहा हूं। मै उठकर खडा हो गया। उसने कहा कि आप बेकार में परेशान हो रहे हैं बैंक में काम तो चार बजे तक होता है। अभी काफी टाइम है। मैने कहा कि जो भी हो मुझे चाय नहीं पीनी। तब उसने कहा ठीक है फिर चलते हैं। उसने कमरे का ताला बंद किया। मुझे सायकल कहीं नजर नहीं आ रही थी। बाहर आकर उसने कहा कि आप दो मिनट रुकिए मैं अपनी सायकल लेकर आता हूं। शायद  सायकल  कोई मॉंगकर ले गया था। वह सायकल के साथ पम्‍प भी लेकर आया। उसने सायकल में हवा भ्‍ारी। उसने फिर से ताला खोलकर पम्‍प अंदर रखा। फिर हम साथ साथ चलने लगे।

"गली में सडक ठीक नहीं थी। इसलिए हम पैदल चल रहे थे। वह अपनी राम  कहानी बताने लगा। वह भाइयों में सबसे छोटा है। उसकी पत्‍नी गॉंव में रहती है। उसका एक भाई बैंक मैनेजर है। वह कहीं चपरासी की नौकरी करता था।  वह किसी से पैसे नहीं मांगता न किसी से मिलने जाता । क्‍योंकि वे लोग उसका उचित सम्‍मान नहीं करते। और पता नहीं कितनी बातें उसने अपने परिवार की महानता और उसके साथ किए गए अत्‍यचारों के बारे में बताईं। मुख्‍य सडक आने पर वह मुझे सायकल में बैठाकर खुद सायकल चला रहा था।"

"यूनियन बैंक की मुख्‍य शाखा आ जाने पर वह उसने सायकल रोकी। मेरे साथ अंदर गया। उसने कहा कि आप फार्म लीजिए मैं अभी आता हूं। यह कहकर वह चला गया। मैंने लाइन में लगकर फार्म लिया। इधर उधर देखने पर वह मुझे कहीं नहीं दिखा। मैंने राहत की सॉंस ली। लेकिन जैसे ही मैं बाहर निकला वह फिर हाजिर। मुझसे पूछने लगा कि जहॉं जाना हो वह मुझे छोड देगा। मैंने मन में सोचा कि ये तो हद्द हो गई। उसे दृढतापूर्वक मना करके, धन्‍यवाद देकर मैं आगे बढ गया। जाते जाते उसने कहा कि कभी इधर आइए तो उसके कमरे में जरूर आकर आराम कर सकते हैं। यदि वह न भी हो तो एक चाबी उसके पडोसी के पास रहती है। वहॉं से ले सकते हैं।
मैं हॉं हूं करके आगे बढ गया।"

अमित यह किस्‍सा बता ही रहा था कि इतने में उसके मौसी के लडके गुडडू दादा आ गए। गुड्डू दादा कालेज में पढते थे। वे लोग बचपन से ही उस शहर में पले बढे थे। उसके चप्‍पे चप्‍पे और लोग लोग से वाकिफ थे क्‍योंकि वह शहर ही था कोई महानगर नहीं था।

जब अमित ने गुड्डू दादा को सारा वाकया सुनाया और उस आदमी के हुलिए के बारे में बताया तो वे हँसने लगे बोले अरे वह श्रीवास्‍तव है। उसका दिमाग काफी दिनों से डिस्‍टर्ब है। समझ लो कि वह लगभग 'पागल' ही है। 

यह सुनकर अमित हक्‍का-बक्‍का रह गया। पूरा घटनाक्रम कई बार अमित के दिमाग में घूम गया।

January 09, 2011

जो बिक न सके उनकी हालत तो देखिए

 जो बिक न सके उनकी हालत तो देखिए
बिके लोगों पर पर खुशी की आमद तो देखिए

आज फेसबुक और ब्‍लॉग्‍स के कुछ स्‍टेटस-पोस्‍ट देखकर ऐसा लगता है कि खिलाडियों का आईपीएल में नीलाम होना भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को रास नहीं आता कि फलां इतने करोड में बिक गए ढिकां इतने में बिके। जैसे प्रशांत प्रियदर्शी का यह फेसबुकिया स्‍टेटस 
सुना कि क्रिकेटरों कि मंडी लगी है आज.. सोचते हैं कि कुछ क्रिकेटर खरीद कर उनसे झाडू-पोछा करवाया जाए.. ;-)
 यहॉं पर हमारी टिप्‍प्‍णी थी #वैसे बात मजेदार लगती है कभी 'बिक जाना' शर्म की बात है और कभी 'न बिकना' फिर भी बिकने की नेट प्रैक्टिस अच्‍छी हो रही है।

January 04, 2011

ब्रेक के बाद

यद्यपि ब्‍लॉगिंग कोई भारतीय क्रिकेट टीम नहीं है जिससे एक बार बाहर होने के बाद वापसी आसान न हो। ना ही ब्‍लागरी के क‍ाबिल लोगों को चुनने के लिए कोई चयन समिति बैठी हुई है। ना ही ब्‍लागिंग में योग्‍यता-अयोग्‍यता जैसी ईजाद मानवीय अवधारणा है। फिर भी एक लम्‍बे ब्रेक के बाद किसी ब्‍लॉगर के वापस आने की संभाव्‍यता क्‍या है? टंकी कंपनी को मैं इसमें शामिल नहीं कर रहा जो बाकायदा छोडने की घोषणा करके जमे रहते हैं या छोड भी देते हैं। मैं ऐसे ब्‍लॉगरों की बात कर रहा हूँ जो न तो ब्‍लॉग डिलीट करते न ही आजकल के फिल्‍म-प्रमोशन की तरह ब्‍लॉगिंग त्‍याग प्रमोशन कृत्‍य करते। बल्कि चुपचाप लिखना बंद कर देते हैं। इस पर शायद अभी तक हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में कोई शोध नहीं हुआ है (हालॉंकि हमें यह नहीं पता है कि शोध हुआ किन बातों पर है) ब्‍लॉगिंग कोई ऐसा/ऐसी रुठा/रुठी दोस्‍त नहीं है जिसके रुठने की वजह आपकी कोई अक्षम्‍य भूल हो।

इन सब भयानक बाधाओं की गैरहाजिरी के बावजूद एक लम्‍बे अंतराल तक न लिखने के बाद ब्‍लॉगिंग में वापसी आसान नहीं होती। मजे की बात है कि हम कैसा भी लिखें कोई पोस्‍ट प्रकाशित करने से रोक नहीं सकता। चाहे एक-दो लाइन लिखकर भी पोस्‍ट कर दें। फिर भी जब लिखना नहीं होता तो नहीं होता।

आज कई बहुत अच्‍छा लिखने वाले ब्‍लॉगर महीनों साल से पोस्‍ट लिखना बंद किए हुए हैं। ऐसे अनेकों नाम हैं। लिखने में गत्‍यावरोध की एक समय सीमा के बाद एक तरह से जडत्‍व का नियम काम करने लगता है। जो न लिखने की स्थिति को बनाए रखना चाहता है।

दूसरी बात जो न लिखने के लिए जिम्‍मेवार होती है वह है अपनी छवि के अनुरुप बेहतरीन पोस्‍ट न लिख पाने की समस्‍या। शुरुआत में ब्‍लॉगर के पास खोने के लिए कुछ नहीं होता। वह लगातार पोस्‍ट लिखता जाता है। ज्‍यादातर के पास अंत तक भी यही हाल रहता है।

यह तो पक्‍की बात है कि कृत्‍य अपने आप में साध्‍य नहीं होता। जैसे खाना खाया जाता है पेट भरने के लिए स्‍वाद के लिए न कि खाने के लिए। ऐसे ही ब्‍लॉगिंग की भी अपनी वजह होती है। कोई भी लिखने के लिए नहीं लिखता। कुछ लोग सामाजिक कारणों से लिखने का दावा करते हैं, तो कुछ स्‍वांत: सुखाय। स्‍वांत: सुखाय में पर दुखाय वाला सुख भी आ जाता है। हालॉंकि यह कोई नहीं जानता कि वह क्‍यों लिखता है। लिखने का अभ्‍यास करने के लिए भी ब्‍लॉग लेखन किया जा सकता है।

क्‍योंकि ब्‍लॉग लेखन में लिखने वाले पर लिखने का किसी तरह का दबाव नहीं होता इसलिए औसत लिखने वाले तब तक कुछ भी लिखते रहेंगे जब तक हमें ऐसा करने में मजा आता रहेगा।

विषयगत लेखन, कविता, कहानी, लेख, व्‍यंग लिखने वालों के साथ, जिन्‍हें उन्‍हीं की तरह के कई अच्‍छा लिखने वाले लोग यह मानते हैं कि वे अच्‍छा लिखते हैं, 
ऐसे ब्‍लॉगरों को अपना मानक बनाए रखना होता है।

हम जुलाई के बाद आज अपने ब्‍लॉग पर नमूदार हुए हैं। हमारे ऊपर सनक सवार हुई अपने ब्‍लॉग में कई परिवर्तन करने की। इसलिए हमने सबसे पहले अपने ब्‍लॉग का नाम 'अनौपचारिक' से बदलकर 'ब्रेक के बाद' कर दिया। क्‍योंकि हम काफी लम्‍बे ब्रेक के बाद लिख रहे हैं। ब्‍लॉग का नाम बदलना सबसे आसान कामों में से है, सिर्फ तब जब आपको कोई नाम सूझ गया हो जिसे पहले वाले से बदला जा सके। इसके बाद खूब अच्‍छी तरह से कस्‍टमाइज की हुई टेम्‍पलेट को हटाकर ब्‍लॉगर की टेम्‍पलेट डाल दी। जिसमें कि अभी कस्‍टमाइजेशन के कई काम बाकी हैं। ब्‍लॉगर ने अब काफी सुविधा कर दी है खासकर टेम्‍पलेट के साइड बार में हेर फेर करने के लिए। यूआरएल भी बदलना चाहते थे लेकिन वह बिना अपने खुद के डोमेने में गए बहुत घाटे का काम है। और ब्‍लॉगर को छोडने का फिलहाल हमारा कोई इरादा है नहीं।

टिप्‍पणी विकल्‍प रखने और न रखने पर भी हमने सोचा। पता चला कि टिप्‍पणी विकल्‍प न रखना सही नहीं है। पुन‍िर्विचार करने की वजह यह थी कि प्रतिटिप्‍पण‍ी के लिए हम हर जगह हमेशा पहुँच नहीं पाते। यह बात ब्‍लॉगाचार के खिलाफ जाती है। दूसरी बात हम उस सामग्री पर टिप्‍पणी करना पसंद करते हैं जिस पर हम अपना कोई विचार व्‍यक्‍त कर सकें।

पर इसमें धोखे जैसी कोई बात नहीं है क्‍योकि हमने प्रतिटिप्‍पणी करने का वादा नहीं किया हुआ है। कर भी सकते हैं और नहीं भी। इसलिए हमारे ब्‍लॉग पर टिप्‍पणी खुद की रिस्‍‍क पर करें।

अंत में फुरसतिया जी की बात जरुर याद आती है कि यदि आप को लगता है कि आपकी ब्‍लॉगिंग के बिना दुनिया का खाना हजम नहीं होगा तो अगली सांस आने के पहले आप ब्‍लॉगिंग करना बंद कर दें। जिसे इस बात का भान शुरु से ही होगा वह इस क्षेत्र में चिरकाल तक बना रहेगा। 

ब्‍लॉगिंग के गत्‍यावरोध को तोडने का सबसे बढिया तरीका है कि ब्‍लॉगिंग के बारे में ही पोस्‍ट लिखिए। जैसा आज हमने किया। यदि फिर भी काम न बने तो हर पोस्‍ट में बताते रहिए कि कौन क्‍या गलत कर रहा है। ऐसे में लोग भले कहने लगें कि जवानी में ही सठिया गया है या सठियाने की सही उम्र में ही सठिया गया है। पर एक आइटम पोस्‍ट तो निकल ही आया करेगी।