January 27, 2010

अ‍ाखिरी कश की बकवास

जब मैं वहॉं पहुँचा तो चेन स्‍मोकर की उँगलियों में सुलगती हुई आखिरी सिगरेट बुझ चुकी थी । मुझे देखते ही उसने दो उँगलियों में फंसे हुए सिगरेट के समाप्‍त प्राय छोटे से टुकडे को मुँह में लगाते हुए एक अ‍ाखिरी कश लेने की कोशिश की , इस बात से बेखबर कि वहॉं अब खींचने के लिए कुछ नहीं बचा है

उसे अफसोस हुआ कि वह आखिरी कश नहीं खींच सका । एक उलाहना भरी मुस्‍कराहट से उसने मेरी ओर देखते हुए सिगरेट फेंक दी । फिर उसने सोचा कि अच्‍छा हुआ कि यहॉं उसके कमरे में भूकम्‍प नहीं आया वरना वह हैती के दो लाख लोगों की तरह लाशों की ढेर में से एक होता । इससे उसे पहले कुछ राहत फिर बेचैनी महसूस हुई । बेचैनी उन अनुमानों को याद करके जिसमें कहा गया था कि हैती का भूकम्‍प मानव जनित है । खैर ।

उसने मुझसे पूछा कि ज्‍यादा अफसोस जनक क्‍या है । भूकम्‍प में लाखों लोगों का मारा जाना , भूकम्‍प आना या सिगरेट का आखिरी कश न खींच पाना या बच्‍चों का आत्‍महत्‍या करना या चुनावों में लोकतंत्र का हश्र देखना या आमरण अनशन करना या तुम्‍हारा लम्‍बे समय तक कोई ब्‍लॉग पोस्‍ट न लिख पाना .... या कुछ और .... वह कई अफसोसनाक चीजें गिनाना चाहता था , लेकिन उसकी याददाश्‍त ने उसका साथ छोड दिया मैंने कोई जवाब न देते हुए उसे बोलने दिया ।

फिर उसने कहा कि अभी चंद दिनों तक उसके चैट बॉक्‍स में कभी कभार अचानक थोडी देर के प्रकट हो जाने वाले उस 21-22 वर्ष के लडके ने आत्‍महत्‍या क्‍यों कर की । क्‍या वह लडका बेचैन था । लेकिन वह तो हमेशा हँसमुख रहता था । फिर उसने कहा कि अखबारों में पढना और अपनी जिंदगी में देखने में काफी फर्क होता है । उतना ही जितना तुम नहीं समझ सकते कि मुझे सिर्फ एक आखिरी कश न खींच पाने का कितना अफसोस हो सकता है ।

मैं उसकी बातों को संजीदगी से सुनता रहा । बल्कि वह ऐसे बोल रहा था जैसे इन सारी अफसोनाक घटनाओं में मेरा भी कुछ हाथ है

उसका वक्‍तव्‍य जारी था "वह लडका खुश दिखता था । दुखी होना अच्‍छी बात नहीं है । बेचैन होना अच्‍छा नहीं माना जाता इसीलिए शायद वह दुखी और बेचैन नहीं बल्कि मुस्‍कुराता हुआ दिखता था । इससे आत्‍महत्‍या करने में मदद मिलती है । बेचारा कविता भी नहीं लिख सका । किसी ने कहा था कि कायर होते हैं आत्‍महत्‍या करने वाले । "

यह कहते हुए उसे गुस्‍सा आया ।

"जब उसकी बॉडी पडी हुई थी । कई लोग बातचीत और काम धंधे की बात कर रहे थे । तब उसे लगा कि मरना कोई इतनी महत्‍वपूर्ण बात नहीं है, इन लोगों के लिए । कई लोग कह रहे थे कि खुद मर गया लेकिन परिवार को जीते जी मार गया । फाइनली तो अपनी ही चिंता होती है । तब उसे खयाल आया कि आखिरी कश से पहले सिगरेट बुझ जाना उतनी बुरी बात नहीं है जितनी कि मरकर दूसरों को दुख देना । "

"लोग ऐसा सोचते होंगे या वैसा सोचते होंगे । लेकिन उसे संदेह है , कि लोग सोचते हैं । वह भी लोगों में ही आता है । क्‍योंकि वह बुझी हुई सिगरेट से कश लेने की कोशिश करता है । लेकिन उसे पता है कि वही लोग उसके कातिल हैं, जो जार-जार रो रहे हैं क्‍योंकि वे उसी समाज के हिस्‍से हैं , जिसने मजबूर किया उसे विदा होने के लिए ।"

"दुखी होना बुरी बात है । अंधेरे को प्रकट करना भी अच्‍छी बात नहीं है । आदमी को हमेशा प्रसन्‍न रहना चाहिए । क्‍योंकि एक तो अफसोस उससे भी अफसोसनाक एक बुरी बात होने का अफसोस । आखिर मेकअप किसलिए बनाया गया है । इसे सम्‍हालकर चलना चाहिए । इससे आत्‍महत्‍या करने में सहायता मिलती है । एक व्‍यक्ति और समाज को । अलग-अलग तरह से । सब कुछ अच्‍छा है । आल इज वेल । आल इज वेल । लगता है वह फिल्‍म नहीं देख पाया था ।"

उसे ब्‍लॉग लिखना चाहिए था । आखिर ब्‍लॉग होता किसलिए है

"गणतंत्र दिवस में खुश होने के लिए बच्‍चा होना या स्‍कूली विद्यार्थी होना जरूरी है क्‍या । यदि नहीं तो मुझे आज खुशी क्‍यों नहीं हो रही । क्‍या इसलिए कि कोहरे का असर दिल्‍ली की परेड पर पडा ।" या वह असंतुष्‍ट था किसी झांकी से । मैंने उसे याद दिलाया कि अपने यहॉं की परेड पाकिस्‍तान से बहुत अच्‍छी होती है । ओर वहॉं लोकतंत्र की फजीहत भी बहुत है । हम पाकिस्‍तान से हर मामले में आगे हैं ।

उसने कहा कि तुम सिर्फ तब
तक ही बोल सकते हो जब तक मैं चीन का नाम नहीं लेता । मैं उससे बहस नहीं करना चाहता था । इसलिए चुप रहा । फिर वह महाराष्‍ट्र का राग अलापना चाहता था । मुझे देर हो रही थी मैने उसे टोकते हुए कहा कि ऐसे तो कोई अंत ही नहीं है ।

तुम अपने आखिरी कश न ले पाने की खीज को कहॉं तक लपेटोगे । चलो उठो बाहर घूम कर आते हैं ।

उसने कहा, "लेकिन तुमने बताया नहीं कि ज्‍यादा अफसोसनाक क्‍या है , आखिरी कश न ले पाना या कुछ और ।"

मैनें कहा कि तुम गलती पर हो मेरे दोस्‍त ! आखिरी कश हमेशा लिया जा चुका होता है जिंदगी का , जब तुम पहला ले रहे होते हो । इसीलिए कहता हूँ कि जिंदगी की सिगरेट का हर एक कश ऐसे लो जैसे वह आखिरी हो ।

यह तुम्‍हारी खाम्‍हख्‍याली ही है कि तुम आखिरी कश को तय करोगे । और इससे पहले कि कभी तुम्‍हारे ऊपर दौ सौ रुपये या उससे ज्‍यादा का जुर्माना हो तुम्‍हे यह आदत छोड देनी चाहिए । इससे तुम्‍हे अफसोस भी नहीं होगा ।

उसने मुस्‍कुरा कर उठते हुए कहा कि चलो तुम्‍हारे एक ब्‍लॉग पोस्‍ट का जुगाड तो हो ही गया । बहरहाल मुझे अफसोस तो सिर्फ इस बात का है कि मैं तुम्‍हे बहका नहीं सका अपनी चूक पर सहानुभूति जताने के लिए और अंतत: मुझे तुम्‍हारे उपदेश का शिकार बनना पडा ।

January 13, 2010

पंक्तियों के समूह को कह देता हूँ, कविता

मुझे,
पता नहीं है
कैसे, लिख देता हूँ
चंद पंक्तियां, कभी
अचानक ही,
उन पंक्तियों के समूह को
कह देता हूँ, कविता
ब्‍लॉग पोस्‍ट के लेबल पर
चिप्पियॉं या टैग में

जबकि,
मुझे पता है,
मैं नहीं लिख सकता
कोशिश करके भी,
वह सब
जो मैंने लिखी हैं,
अनायास ही किसी पल में,
किसी भाव दशा में

शायद,
इसीलिए, कह देता हूँ उसे
कविता,
क्‍योंकि वह,
आती है अपनी मर्जी से
मेरी कोशिशों से मुक्‍त, सर्वदा


जैसे,
प्रेम आता है किन्‍ही पलों में
अपनी स्‍वतंत्रता में,
मेरी गैर मौजूदगी में
फिर भी मैं श्रेय देता हूँ ,
खुद को
उस चीज के लिए ,
सिर्फ प्रतीकात्‍मक है यह .

यद्यपि,
मैं जानता हूँ, हर बार
कुछ पंक्तियॉं लिखने के संतोष
और
प्रेम के आनंदपूर्ण क्षणों के
पश्‍चात भी, कि मैं
नहीं पहुंच सका हूँ
अब भी ,
कविता और प्रेम तक

January 11, 2010

संबंध - खुशियों की चाबी खुद की जेब में रखें

"मुझे याद आता है कि जब मैं एक छोटी सी लडकी थी , मेरी मॉं हमारे लिए नाश्ता और रात का खाना बनाया करती थी एक दिन की घटना मुझे खासतौर पर याद आती है जब मॉं ने एक पहाड जैसे दिन में कठोर थकाने वाला श्रम करने के बाद घर आकर हमारे लिए रात का खाना बनाया था कई वर्षों पहले की उस शाम को मेरी मॉं ने मेरे पिता के सामने खाने के लिए सब्जी , सलाद और जली हुई रोटियां परोसी थीं मैं इंतजार कर रही थी कि इस बात पर क्या कोई ध्यान दे रहा है, कि रोटियॉं जली हुई हैं लेकिन मेरे पिताजी अपने भोजन के लिए थाली के सामने बैठकर, खाने के लिए रोटी उठाते हुए मॉं को देखकर मुस्कुराये और मुझसे पूछने लगे कि आज मैंने स्कूल में क्या किया मुझे याद नहीं कि मैंने उस रात पापा से क्या कहा लेकिन पापा का जली हुई रोटी पर चटनी फैलाकर रोटी के कौर खाना मुझे अभी तक याद है

उस शाम खाना खाकर उठने के बाद मैंने मॉं को जली हुई रोटियों के लिए पापा से क्षमा मॉंगते हुए सुना । इस पर उन्‍होंने जो कहा वह मैं कभी नहीं भूल सकती - "प्रिय मुझे जली हुई रोटियॉं पसंद हैं "

दूसरे दिन मैंने जब पापा को रात में गुड नाइट बोलने गई और मैंने उनसे प्रश्‍न किया कि क्‍या आपको जली हुई रोटियाँ खाना सचमुच अच्‍छा लगता है ?

उन्‍होंने मुझे बाहों में भर लिया और कहने लगे "मेरी लाडली ! तुम्‍हारी मॉं आज पूरा दिन कडी मेहनत करने के बाद यकीनन काफी थकी हुई थीं । और एक जली हुई रोटी की ओर ध्‍यान देने की अपेक्षा किसी का दिल न दुखाना अधिक महत्‍वपूर्ण है । तुमको पता है बेटी ! यह दुनिया अपूर्ण वस्‍तुओं और अपूर्ण मनुष्‍यों से भरी पडी है । बल्कि यह अपूर्णताओं से ही बनी है ।"

मैं कोई बहुत अच्‍छी गृहिणी नही हूँ लेकिन वर्षों के अनुभव से मैंने सीखा है कि एक दूसरे के दोषों को स्‍वीकार करना और भिन्‍नताओं का आनंद लेना ही एक स्‍वस्‍थ और टिकाऊ संबंध का आधार है । जिससे कि एक जली हुई रोटी संबंधों के टूटने की वजह न बने । इस बात को हम किसी भी संबंध पति-प‍त्‍नी, माता-पिता दोस्‍त या रिश्‍तेदार पर लागू कर सकते हैं , क्‍योंकि एक दूसरे को समझना ही रिश्‍तों का मूल आधार होता है ।"

"कृपया अपनी खुशियों की चाबी , दूसरों की नहीं खुद की जेब में रखें । peace

यह एक दोस्‍त के द्वारा अग्रेषित की गई ईमेल का अँग्रेजी से हिन्‍दी अनुवाद है । मुझे अच्‍छी लगी इसलिए साझा किया ।

यह पोस्‍ट आपको उपदेशात्‍मक लगी या अच्‍छी लगी ?tepuktangan

January 03, 2010

3 ईडियट्स बनाम फाइव प्‍वाइंट समवन

कल मैंने फिल् 3 ईडियटस देखी इसके पहले हाल ही में चेतन भगत का उपन्यास फाइव प्वाइंट समवन पढा था

यह उपन्यास एक फुल टाइम पास है, वैसी ही फिल् भी है आप कहीं भी बोर नहीं होंगे फर्क इतना है कि किताब सच्चाई के ज्यादा करीब है चेतन भगत अद्भुत किस्सा गो हैं रेलवे स्टेशन पर प्रतीक्षा करते यात्रियों की तीन घंटे की समयावधि पर भी पूरा उपन्यास लिख सकते हैं

इसमें प्रेरणा देने की जो कोशिश की गई है, बहुत अच्छी है , कि हमारे यहॉ की शिक्षा पद्धति रट्टा आधारित है यह बात पहले भी अनंत बार कही जा चुकी है वैसे ही जैसे भ्रष्टाचार , जातिवाद , धार्मिक उन्माद इत्यादि खत् होने ही चाहिए , लेकिन होता नहीं है ऐसा लगता है कि इनके बिना हमारा काम नहीं चलेगा या अपनी पहचान लुप् हो जायेगी हर साल नए घोटाले पिछले साल के घोटालों के रिकार्ड तोडते जाते हैं इस क्षेत्र में क्रिकेट के खेल की तरह धडाधड कीर्तिमान बनते रहते हैं

फिल् रिलीज होने के बाद विवाद भी हो लिया लेकिन हम विवाद में काहे पडें हमने तो जो पढा और देखा वही बता रहे हैं वैसे भी विवाद से दोनों पक्षों को लाभ ही होने वाला है आज समाचार में था कि दिल्ली, अहमादाबाद , सूरत , वडोदरा इत्यादि में किताब की बिक्री पचास प्रतिशत तक बढ गई है फाइव प्वाइंट समवन बेस् सेलर पुस्तक रही है

चेतन भगत को फिल् के क्रेडिट हिस्से में वाजिब श्रेय मिला या नहीं यह तो फाइव प्वाइंट समवन देखने वाला और किताब पढने वाला मनुष् समझ ही जायेगा इसमें कोई आईआईटी बुद्धि या पटकथा लेखन के कौशल की कतई आवश्यकता नहीं है और यह भी कि सबको पहले से ही पता था कि यह फिल् चेतन भगत के उपन्यास पर बन रही है जिनको पता नहीं था अब पता हो गया है

यह बहस करना कि कितने प्रतिशत चेतन की कहानी है और कितने प्रतिशत शरमन जोशी, आर माधवन की जोड-तोड है , ज्यादा महत् नहीं रखता इसे इस तरह कहा जा सकता है कि कहानी का पूरा विचार दर्शन चेतन का है , भवन की नींव , पूरा ढॉंचा बाकी फिल् वालों ने उसमें अपने ढंग से डेकोरेशन किया है कहानी की कुछ घटनाओं को दूसरे ढंग से होते दिखाने भर से कोई कहानी का लेखक नहीं हो जाता उदाहरण के लिए डीन के कार्यालय से प्रश्नपत्र चुराने के लिए फिल् में प्रोफेसर की लडकी खुद लडकों को चाबी देती है जबकि किताब में हरि यह चाबी प्रोफेसर की लडकी , जिससे उसकी दोस्ती हो गई है , के यहॉं से चुराता है

फिल् और उपन्यास पर तुलनात्मक रूप से कुछ भी कहने से पहले मै यह बता दूँ कि मैंने किसी उपन्यास या कहानी पर बनी ऐसी कोई भी फिल् या टीवी धारावाहिक नहीं देखा जो मूल कृति से बेहतर हो शायद यह विधाओं में अंतर की वजहसे होता है पढते समय हम कल्पना करने के लिए स्वतंत्र होते हैं और हमारे मन में अपनी सुविधानुसार पात्रों की छवियॉं बन जाती हैं हमारे अनुभवों से मस्तिष् में काल्पनिक परिवेश बन जाता है फिर हम एक बेहतर कृति में डूबकर पढते जाते हैं लेखक जो विचार रख्ाता है, जो संदेश देना चाहता है उसे ग्रहण करते जाते हैं एक बेहतर रचना किसी काई लगी हुई ढलान की तरह होती है पैर रखते ही आप फिसलना शुरू हो जाते हैं और फिर फिसलते ही जाते हैं जब तक कि ढलान खत् नहीं हो जाती उसी तरह एक बेहतरीन रचना की एक लाइन पढने के बाद आप पूरी किताब पढने से खुद को नहीं रोक सकते यही उस पुस्तक के लोकप्रियता की वजह भी होती है क्‍योंकि साहित्‍य या कला कुछ भी होने से पहले मनोरंजन है चाहे वह किसी भी ढंग से हो दुखद या सुखद मन: स्थिति के अनुरूप

तो किसी पुस्तक को पढने के बाद उसके पिक्चराइज रूप को देखते समय स्वभावत: मन तुलना करने लगता है
तुलना इसलिए करता है क्योंकि कि हम अपने मन में पहले ही उस कहानी को पिक्चराइज कर चुके हैं कला फिल्में इस तरह के पिक्चराइजेशन में ज्यादा सफल होती हैं

जहॉं तक 3 इडियटस की बात है, इस कहानी का स्रोत चेतन भगत का उपन्यास फाइव प्‍वाइंट समवन ही है किताब पढकर और फिल् देखकर यह बात कोई भी आसानी से कह सकता है उपन्यास जो संदेश देना चाहता है फिल् भी वही कहती है , कि अपनी रुचि का काम करने से आदमी सफल होता है नौकरी के लिए पढाई और उच् शिक्षण संस्थान भी छात्रों में शोधपरक मनोवृत्ति विकसित करने की अपेक्षा उन्हें अच्छे अंक प्राप् करने की चूहा दौड में झोंक देते हैं शिक्षा का मकसद छात्र को यह समझने में मदद करना होना चाहिए कि वह क्या बनना चाहता है यह भी एक बडी उपलब्धि है कि स्टूडेंट समझ सकें कि उनकी रुचि क्या है और किस क्षेत्र का चुनाव उनके लिए सही रहेगा बच्चे अभिभावकों की महत्वाकांक्षा का शिकार हों और अपनी दिल की आवाज का अनुसरण कर सकें तभी एक खुशहाल समाज बन सकता है इसके लिए जरुरी है कि हर आदमी को वह करने का मौका मिल सके जिसके लिए वह पैदा हुआ है अन्यथा एक समाज में जहॉं लोग गलत जगहों पर बैठे हुए हैं कभी अमन चैन कायम नहीं हो सकता और ना ही वहॉं किसी सृजन की कोई सम्भावना है बस एक के बाद एक भारवाहक पीढियॉं पैदा होती रहेंगी यही भारत की समस्या है मेरे विचार से यह समस्या इसलिए है क्योंकि भारत जनसंख्या के बोझ से दबा हुआ एक गरीब देश है जिसके विकास में भारी असमानताऍं हैं ।

यह संदेश उपन्यास और फिल् दोनों में एकरूप है इसमें छात्रों पर पाठ्यक्रम के बोझ , सिस्टम या तंत्र के प्रति उनका असंतोष और उससे निपटने का 3 ईडियट्स का तरीका किताब और फिल् में एक ही है उपन्यास की तुलना में फिल् में कुछ घटनाओं को बदल दिया गया है जैसे किसी मकान में जाने से पहले आप उसमें अपनी सुविधानुसार फेरबदल करें उसी तरह फिल् में घटनाओं में फेरबदल किया गया है

3 ईडियट्स और फाइव प्वाइंट समवन की कहानी में तुलना :

- यह इंजीनियरिंग की मैकेनिकल शाखा से स्नातक करने वाले तीन छात्रों की कहानी है उपन्यास और फिल् दोनों की शुरुआत रैगिंग से होती है दोनों में छात्रो की रैगिंग होती है फिर रैंचो या रेहान उन्हें बचा लेता है जो कि दोनों में अलग-अलग ढंग से दिखाई गई हैं

- कालेज के पहले दिन कक्षा में मशीन के बारे में प्रश् किया जाना यह दिखाना कि किस तरह शिक्षा तंत्र में बदलाव की आवश्यकता है

- कालेज का प्रोफेसर डीन(बोमन ईरानी) बेहद सख् है , उसकी एक खूबसूरत लडकी है (करीना कपूर ) प्रोफेसर एक लडका भी था जोकि आत्महत्या कर चुका होता है, लेकिन सब समझते हैं कि वह ट्रेन दुर्घटना में मरा है यह बात केवल उसकी बहन को मालूम होती है , जिसे वह मरने से पहले एक पत्र लिखकर जाता है प्रोफेसर को पत्र और आत्महत्या के बारे में बाद में पता चलता है
उसकी बेटी अपने भाई की मृत्यु का जिम्मेवार प्रोफेसर को ठहराती है क्योंकि उसके भाई के बारबार आईआईटी प्रवेश परीक्षा में असफल होने के बाद भी प्रोफेसर उसे इंजीनयिरिंग करवाने का ही दबाव बढाता जाता है जबकि वह कला विषय लेकर पढना चाहता है प्रोफेसर की बेटी बहस के दौरान अंत में कहती है कि उसने आत्महत्या नहीं की बल्कि उसका मर्डर हुआ है

- तीन में से एक ईडियट आलोक (राजू रस्तोगी) के परिवार का वर्णन फिल् और किताब में एक समान है आलोक का परिवार मुसीबतों से घिरा हुआ है धनाभाव के कारण परिवार त्रस् है बहन की शादी करनी है , जिसके दहेज में लडके वाले मारुति 800 की मॉंग करते हैं बाप को लकवा मार गया है जिसकी वजह से वह हमेशा बिस्तर पर ही पडे रहते हैं आलोक किसी भी तरह एक जॉब चाहता है उसका इंजीनियरिंग करने का एकमात्र यही मकसद है यह घटना भी फिल् और किताब में समान है कि तीनों दोस् आलोक के घर खाना खाने जाते हैं और मटर पनीर की सब्जी खाते हैं अंत में खीर भी आलोक की मॉं खाने के दौरना अपनी समस्याओं का रोना रोती रहती है वस्तुओं के दाम बताती रहती है

- रट्टू छात्र वेंकट (किताब में) ( फिल् में ) की भूमिका ज्यादा अहम है किताब की अपेक्षा जिसके साथ आलोक , मित्रों से झगडा होने पर एक साल तक रहता है

आलोक के माता पिता फिल् में ज्यादा गरीब और दीन हीन दिखाए गए हैं उपन्यास में हरि के माता पिता का जिक्र नहीं है फिल् में हरि के माता पिता और उसका शौक फोटोग्राफी है यह बात उपन्यास की कहानी से अलग जोडी गई है इसी तरह करीना कपूर का रेहान से प्यार होता है जबकि उपन्यास में वह हरि से प्यार करती है उपन्यास में तीनों दोस्तो का ग्रेड फाइव प्वाइंट समथिंग होता है जबकि फिल् में रेहान (रैंचो) को प्रथम और बाकी दो दोस्तों आलोक और हरि को अंतिम स्थान में दिखाया गया है

इस तरह घटनाऍं ज्यादातर वही घटती हैं, जो उपन्यास में वर्णित हैं जैसे आलोक छत से कूदकर आत्महत्या करने की कोशिश करता है , लडके डीन के कार्यालय से प्रश् पत्र चोरी करते हैं , तीनों लडकों का डीन के घर में उसकी लडकी के कमरे में खिडकी के रास्ते चुपके से रात में जाना, कक्षा में प्रोफेसर को मशीन की परिभाषा पूछना आदि लेकिन फिल् में इन घटनाओं के घटित होने की वजह अलग है और इन्हें अलग ढंग से पेश किया गया है

फिल् की कहानी में उपन्यास की अपेक्षा जो एक बडा परिवर्तन किया गया है वह यह कि फिल् में दिखाया गया है कि कालेज से निकलने के बाद रणछोडदास (रेन्चो ) गायब हो जाता है और बाकी दोनों दोस् को उसका पता नहीं चलता पॉंच साल के बाद उन्हीं के कालेज के एक पढाकू छात्र साइलेन्सर(चतुर) का उन्हें फोन आता है जो कि अब किसी बढी कम्पनी में उच् पद पर है कि रैन्चों का पता मिल गया है इसके बाद फ्लैश बैक में होती हुई कहानी आगे बढती है जबकि उपन्यास की कहानी कालेज खत् होने और आलोक और हरि को नौकरी मिलने तथा रेहान (रेंचो) को उसी कालेज में सहायक शोधछात्र की छात्रवृत्ति मिलने के बाद खत् हो जाती है रेहान के पिता उसके रिसर्च से बनाए गए उत्पाद पर पैसा लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं और रेहान उसके व्यावसायिक उत्पादन संबंधी उद्योग की स्थापना में लग जाता है जोकि उसी शहर से लगे किसी गॉंव में लगाया जा रहा है

अंतत: 3 इडियटस एक बॉलीवुड मनोरंजक फिल् है जिसे देखकर पैसा डूबने का पछतावा नहीं होता आमिर खान का अभिनय अच्छा है, जैसा कि हमेशा होता है फिर भी फिल् उपन्यास की अपेक्षा यथार्थ के कम करीब लगती है

रही बात चेतन भगत को क्रेडिट्स की तो यह कहानी चेतन भगत की है मूल ढांचा तो उपन्यास का ही है फिर उसमें मनचाहे फेरबदल करना फिल् विधा के हिसाब से कोई बडी बात नहीं है जैसे रैगिंग करने के ढंग बहुत हैं तो उसमें आपने बदलाव कर दिया थोडा सा इससे यह साबित नहीं हो जाता कि यह आपकी मूल कहानी है

ठीक है अभिजात जोशी और राजकुमार हिरानी ने इस पर मेहनत की है लेकिन किसी भी मूलकृति पर कोई भी आसानी से अपनी इच्छानुसार छेडछाड कर सकता है, इससे आप यह नहीं कह सकते कि यह कृति उसकी हो गई मोनालिसा की प्रतिकृति बनाने से कोई लियो नार्दो विंसी नहीं हो जाता

फिर कांट्रैक् में क्या था या उनके बीच क्या डील हुई थी यह सब अभी पूरी तरह स्पष् नहीं है

अंत में यदि पूछा जाय कि फिल् देखने और उपन्यास पढने में ज्यादा मजेदार क्या है तो बेहिचक मैं यह कहूंगा कि फाइव प्वाइंट समवन के मुकाबले 3 इडियट्स बहुत कमजोर है वजह : फिल् हमें सिर्फ मनोरंजन देती है जबकि उपन्यामनोरंजन से आगे भी कुछ देता है उपन्यास का हिन्दी संस्करण भी उपलब् है प्रभात पेपर बैक् प्रकाशन, नई दिल्ली से , मूल् 95/-

चित्र : गूगल