आज भी,
खबरें बनती हैं
कुछ 'निरुपमा', 'आरुषी', 'सायमा'
और पता नहीं कितनी गुमनाम
जो नहीं बन पातीं 'खबर'
आज भी,
कहीं मार दिया जाता है या
आत्महत्या कर लेता है
कोई नौजवान, कभी
प्यार नाम की गलती करने पर
आज भी,
पढा - लिखा अधकचरा वर्ग
साधे हुए है, अपने दोगलेपन को
महानता का मुलम्मा चढाकर
धर्म , जाति , संस्कृति के बदले,
मानवता को सहजता से जिबह करने को तैयार
आज भी,
सभ्य सुसंस्कृत लोग बचते हैं
कुछ शब्दों से, जैसे नारीवादी बहस,
जाति , धर्म, कट्टरता की अप्रासंगिकता ,
देखते हैं उपेक्षित मुस्कान से,
डरते हैं बच्चों के बहक जाने
और अपनी असलियत खुल जाने से ।
आज भी,
निरुपमा , आरुषी सोचती हैं कि
मां - बाप द्वारा 'सब कुछ तुम्हारी खुशी के लिए ही है'
जैसे वाक्यों के कहे जाने की
शर्तें क्या होती हैं
आज भी,
नौजवान ढोते , पीटते और बीनते दिखते हैं
पॉंच हजार साल पहले से अब तक के
बौद्धिक कचरे , कभी कभी
जिनसे निकलते हैं, भयानक रेडियेशन
गला देते हैं , मांस और हड्डी
उत्पन्न कर देते हैं विकृति
जेनेटिक कोड में भी
आज भी,
उनका उपयोग कर लेती है
एक बेईमान पीढी
जिसने 60 वर्षों में उन्हें बेरोजगारी ,
भूख और लाचारी दी - वह न बन सकने
की मजबूरी के साथ जो वह बनना चाहता था
आज भी,
एक युवक सफल होता है
इस एहसास के साथ जैसे
कि 'एक उम्र जी ली हो' तीस तक
पहुँचते पहुँचते
आज भी ,
नैतिकता को लालच तय करता है
कभी धर्म का तो कभी पैसे का
इस दुनिया में,
आज भी , अपने ही
धर्म , जाति , सम्प्रदाय की
खामियों का मुखर विरोध करने वाले
बहुत कम हैं
'आने वाली नवेली पीढियों ! 'हम आत्मघाती खतरनाक लोग हैं हमसे बचो ।
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