वैसे भी हमारे यहां की परम्परागत चर्चा का शिष्टाचार भी यही है कि पहले जो बात कहनी है उसका माहौल बनाया जाता है । इसी को कहते हैं भूमिका बांधना । भूमिका बांधकर ता पीछे मुद्दे की बात करने पर वह ज्यादा असरदार बन जाती है । कभी-कभी इतनी असरदार हो जाती है कि बिसर जाता है कि भूमिका बांधी किसलिये जा रही थी ।
जैसे कवि सम्मेलन में जब गम्भीर रस के कवि के बाद कोई हास्य रस का कवि आता है तो पहले वह अपनी भाव-भंगिमाओं और चुटकुलों के द्वारा हास्य रस का माहौल बनाता है । यह एक इशारा भी होता है कि वह हास्य रस का कवि है और वह जो भी सुनाये उसे हास्य रस की कविता समझा जाय । माहौल का असर यह होता है कि कविता सुनने से ज्यादा कवि को देखकर हंसी आती है । इससे श्रोताओं को इशारा भी मिल जाता है कि प्रतिक्रिया किस तरह करनी है । इस तरह माहौल मुद्दे में ऐसे घुस जाता है जैसे होमियोपैथी की मीठी गोली में खुशबूदार दवाई घुस जाती है |
ब्लॉगिंग एक चर्चा विधा है । क्योंकि इसमें प्रस्तुतीकरण अकसर चर्चा मोड में होती है । यही ब्लॉगिंग की सबसे लोकप्रिय शैली है । इसकी वजह यह भी है कि इसमें चर्चा की तरह तुरंत प्रतिक्रिया भी मिलती है, टिप्पणी के रूप में । इसलिये भी ब्लॉगिंग एक चर्चा विधा है । जैसे लोक में चर्चाएँ होती हैं । फ़िर उनमें से कुछ चर्चाओं की चर्चाएँ होती हैं ।
"आज वहां पर ऐसी चर्चा थी"
"आजकल तो आपकी भौत चर्चा है" इत्यादि ।
इसी तरह हर ब्लॉगर एक चर्चाकार है(असहमति रखने वाले अपने को शामिल न समझें) |
इसी तरह हिन्दी ब्लॉगिंग में भी चर्चाओं की कई रूपों में चर्चाएँ होती हैं । जैसे चिट्ठा चर्चा, चिट्ठी चर्चा, टिप्पणी चर्चा ,जन्मदिन चर्चा इत्यादि । हमारी जानकारी में अभी इतनी ही विशेष चर्चाएं हैं ।
चर्चा ब्लॉग देखते हुए हर ब्लॉगर के मन के किसी कोने में अपने ब्लॉग की तलाश रह्ती है । जैसे अपनी उपस्थिति दर्ज समारोह की फोटो दिखाये जाने पर हम अपनी फोटो ढूंढते रह्ते हैं । चर्चा ब्लॉग में चर्चित ब्लॉगों को पढें चाहें नहीं पर एक बार उधर झांक जरूर आते हैं कि कहीं आ ही गया हो नाम, इस बार । और हम धन्यवाद भी न दे पायें । वैसे भी चर्चाकारों के ऊपर गुटबन्दी के आरोप लगते रह्ते हैं । पर यह गलत है । क्योंकि चर्चा ब्लॉग कोई भारत का संविधान तो है नहीं कि आप उससे अवसर की समान उपलब्धता की मांग करें । संविधान कम से कम किताबी रूप में यह देता है । मिले न मिले वो बाद की बात है । फ़िर आरक्षण तो हर जगह ही होता है । अलग-अलग आधारों पर । दुनिया गोल है और कोई उससे बाहर तो है नहीं ।
लेकिन चर्चाकार इसे अन्यथा नहीं लेते क्योंकि उन्हें पता है कि यह तो सिर्फ़ एक बहाना था उनकी चर्चा करने का । बदले में वे भी असंतुष्ट भाई/बहन/मित्र की चर्चा कर देते हैं । किसी ब्लॉगर को उसकी चर्चा न होने की शिकायत हुई नहीं कि उसकी चर्चा हुई नहीं ।
इस तरह चर्चा होने और चर्चा न होने की चर्चा होने से भी चर्चा होती है ।
हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रचार के लिये ब्लॉग चर्चा बहुत उपयोगी काम है । इससे ब्लॉगिंग में हलचल बनी रहती है ।
हिन्दी ब्लॉगिंग में अभी और तरह की चर्चाएँ चलाने की पूरी गुन्जाइश है । मैं कुछ विषय सुझा रह हूं जिन पर चर्चा ब्लॉग शुरू किए जा सकते हैं ।
&&& लफ़डा चर्चा : इसमें में एक निश्चित अवधि में जैसे एक सप्ताह या पन्द्रह दिन के दौरान ब्लॉगिंग में हुए गम्भीर किस्म के लफ़डो की चर्चा की जाय ।
)))) नोकझोंक चर्चा : इसमें हल्की फ़ुल्की नोकझोकों की चर्चा की जाय ।
???? गुट चर्चा : इसमें इस बात की चर्चा की जाय कौन ब्लोगर किस गुट में है | पहले किसमें था और भविष्य में किधर मिल सकता है |
@@@ चर्चाकर चर्चा : इसमें ब्लॉग चर्चा करने वाले ब्लोगरों की चर्चा की जाय |
///// सप्ताह के अधिकतम दस टिप्पणीधारक धारक चिट्ठे : .....
**** सप्ताह की दस उम्दा ब्लॉग पोस्ट : .....
*** कविता चर्चा : सप्ताह की उम्दा कवितायें : ....
ऽऽऽऽ सप्ताह के उम्दा लेख :
++++ सप्ताह की उम्दा कहानियां :
---- सप्ताह की नकल पोस्टें :
और भी बहुत से बढिया-बढिया विषय ढूंढे जा सकते हैं । नकरात्मक विषयों पर चर्चायें न हों जैसे - सप्ताह की 10 घटिया पोस्टें ।
चर्चा के विषय में विविधता आने से बहुत से ब्लॉग चर्चाओं के दायरे में आ जायेंगे । किसी न किसी की कहीं न कहीं चर्चा हो ही जाया करेगी ।
इस तरह कुछ ब्लॉगों की चर्चा के साथ-साथ चर्चाकारों की चर्चाएं भी होती रहेंगी ।
तो कैसी लगी हमारी चर्चा !
और यह चर्चित होने की कगार पर है -बढियां कचारा ,फेटा और धोया है -सूखने के लिए छोडा है मगर उजलेपन से डर है की कहीं कुछ छीटें फिर भी न पड़ जाएँ !
ReplyDeleteसलाह के बदले मॉडल प्रस्तुत करें.
ReplyDeleteआप अपने ब्लॉग पर इस फॉर्मेट में चर्चा शुरु करें, देखते देखते चिट्ठा चर्चाकार, चठ्ठी चर्चाकार और टिप्पणी चर्चाकार सीख ही जायेंगे.
जल्दी शुरु करिये, हम आयेंगे पढ़ने और हमारे गुट वाले भी.
यहाँ तक कि माठाधीष भी पधारेंगे.
आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.
ReplyDelete@समीर जी,
ReplyDeleteये तो वही बात हुई कि समीक्षक या आलोचक से कोई कहे कि आप वैसा लिख कर दिखाइये ।
या आम आदमी से कोई कहे कि तुम सरकार चला कर दिखाओ ।
हम न सिखाने के काबिल हैँ न ही वैसी खतरनाक सोच रखते हैँ।
हमारी चर्चा का फार्मैट यही है, जो हमने ऊपर की।
आपने अपने गुट के साथ आने का आश्वासन दिया इसके लिए धन्यवाद :) ।
@अरविँद जी,
ReplyDeleteछीँटोँ से तो कोई नहीँ बच सकता । न सडक पर चलने वाला और न ही महल मेँ बैठने वाला। न बोलने वाला न ही चुप रहने वाला।
शुक्रिया :) ।
@संजय तिवारी जी,
प्रशंसा के लिए धन्यवाद ।
सही लिखा है । जो लिखा है वह हो जाए तो कहना ही क्या ?
ReplyDeleteशानदार चकल्लस. प्रस्ताव भी बढिया हैं. इन पर कार्यवाही कब होगी? एकाध चर्चा हमें भी लिखने को मिलेगी न? तकनीकी ग्डबडी के कारण आपकी पिछली पोस्ट पर टिप्पणी नहीं दे सकी जबकि उस पोस्ट पर टिप्पणी करना चाहती हूं. समय मिलते ही करूंगी ज़रूर.
ReplyDeleteवन्दना जी,
ReplyDeleteशुक्रिया ! फ़िलहाल तो मैं ऐसी कोई चर्चा शुरू करने नहीं जा रहा, लेकिन यदि कभी शुरी हुई तो आपका सहर्ष स्वागत है ।
ब्लॉग और ब्लोगरो से जुडी सभी पहलुओ की चर्चाये शानदार एवं सत्य है .वंदना जी की बातों से भी सहमत हूँ .मैं लगभग एक महीने से बाहर रही आज वापस आई हुई .इसलिए आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी .
ReplyDeleteचर्चा पर एक चर्चित शेर
ReplyDelete" हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता "
@शरद जी,
ReplyDeleteशेर को जरा दूसरे साइड से देखते हैं :
"हम कत्ल भी करते हैं तो होते नहीं बदनाम |
वो आह भी भरते हैं तो आ जाता है तूफ़ान || :)
@ज्योति जी,
ReplyDeleteधन्यवाद !