देह
वर्षों से सहती हुई
सभ्यता के थपेडॊं को
होती रही है शिकार
धर्म और नैतिकता की
बनती रही खिलौना
अमानवीय ताकतों की
स्वर्ग और मोक्ष के नाम पर
निन्दित होती रही
धर्मगुरुओं के द्वारा
उद्दात्तता के नाम पर
समेटती रही अपने अन्दर विष
सभ्यताओं का
देह
बनती रही प्रयोगशाला
अहंकार के सारे पाखंडों की
देह
जो है सबसे प्रामाणिक
इनकार की गई है
सदियों से खुद देह के ही खिलाफ़
देह
जो कहीं ताकतवर है मन से
नैतिकता और सभ्यता से
करती है विद्रोह
हर निषेधों से और
लेती है बदला अपने
दुरुपयोगों का
बिना पक्षपात के
और दिखा देती है उनकी औकात
उस पर प्रश्न चिन्ह लगाने वालों को
देह,
जो स्वीकरती और जानती है
जीवन के सत्य को
बदलती है प्रतिपल
मिट जाती है
बिना शिकायत किये हुए
अमरत्व की
चली जाती है
बनाकर अपनी ही तरह की
कोई अन्य देह
देह
नहीं करती भेद
स्त्री और पुरुष में
पालती है समान रूप से
सब देहों को
देह
एक है प्रकृति के साथ
या
देह प्रकृति ही है
जो निर्दोष है
एक शिशु की भांति
देह
जो है सम्पूर्ण अस्तित्व
देह
जिस पर प्रश्नचिन्ह नहीं
लगाया जा सकता
क्योंकि देह ही है
प्रश्नकर्ता का आदि कारण
देह
है निर्भय और
प्रश्नकर्ता डरा हुआ
खुद की मौजूदगी
साबित करने को बेचैन
कमजोर होने की कुन्ठा को
छिपाने के लिये
बन जाता है तानाशाह
और साबित करता है खुद को
ताकतवर
देह
समझती है भाषा
प्रेम, वासना, क्रोध और घृणा की
देह
नहीं बनना चाहती
राजनीति का हिस्सा
देह को बनाया गया है
बाज़ार और
विमर्शों का शिकार
ऐसे जैसे देह नारी हो !
रचना अधूरी है
bahut sunder aur bhaavpurn rachanaa.
ReplyDeleteदेह का शानदार दार्शनिक विश्लेषण. बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteaapka blog dekha...... bahut hi achcha laga........... yeh kavita aapne bahut hi sunder aur chintaniya andaz mein likhi hai......... bahut achcha laga....... apke blog pe aa kar.........
ReplyDeleteitihaas se related sawaal ka jawaab maine ded diya hai.....plz blog dekhen..... aur apna view den...
विजयादशमी की बहुत-बहुत शुभकामनायें
ReplyDeleteइतना जबरदस्त विश्लेषण-फिर भी अधूरी...देह की व्या्प्कता तो देखें. बहुत खूब लिखा है आपने.
ReplyDeleteदेह जैसे नारी हो..देह की दैहिक और विस्तृत चीर फाड़ ..
ReplyDeleteरचना शीघ्र पूरी हो ...शुभकामनायें ...!!
aapne bahut umda likha hai, iske liye badhai... or aapne mere blog http://manodasha.blogspot.com par jo tippni di, uske liye bahut bahut shukriya...
ReplyDeleteaapka mitr
Ravi
aapne bahut umda likha hai, iske liye badhai... or aapne mere blog http://manodasha.blogspot.com par jo tippni di, uske liye bahut bahut shukriya...
ReplyDeleteaapka mitr
Ravi
जैसे ज्ञान कितना भी पा लो, वास्तविक जिज्ञासु को प्राप्त हुए ज्ञान से संतोष नहीं होता, उसे तो लगता है, अभी तो ज्ञान का एक अंश भी नहीं पाया, कुछ वैसे ही आपका रहा देह पर ये विश्लेषण, इतना कुछ कह गए फिर भी आपको ये पूरा नहीं लग रहा............आपको सादर नमन.
ReplyDeleteहार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
shayad aapaki baat sahi hai | deh aur naaree kee niyati men kaafee samaanataayen dikhati hain |
ReplyDeleteताजी सोच की प्रौढ़ रचना. देह को 'सर्वांगीण' परिभाषित करती अभिव्यक्ति.
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