September 09, 2009

दसवीं की बोर्ड परीक्षा का 2011 से वैकल्पिक किया जाना शिक्षा प्राणाली में परिवर्तन का प्रस्थान बिन्दु है ?

जबसे दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा का 2011 से वैकल्पिक होने की ख़बर आयी है नौवीं कक्षा के छात्र बहुत खुश नजर रहे हैं | अगले शिक्षा सत्र से हाई स्कूल की परीक्षा वैकल्पिक हो जायेगी यह निर्णय शिक्षा नीति में किये जाने वाले एक बडे परिवर्तन की दिश में पहला कदम है

इस तरह छात्र-छात्राओं और अभिभावकों को एक बार ही बोर्ड परीक्षा के तनाव से गुजरना पडेगा इस नियम से सबसे अधिक खुशी हुई छात्र/छात्रों को और राहत उनके अभिभावकों को मिली 10 वीं बोर्ड परीक्षा के नाम से साल भर पहले से चलने वाले कोचिंग क्लासेस बन्द हो जायेंगे, जो बोर्ड परीक्षा की तैयारी की एक मोटी फ़ीस वसूलते थे कहीं-कहीं एक ही बार में पूरे साल भर की फ़ीस वसूल कर ली जाती है और कहीं यह दो या तीन किश्तों में ली जाती है

इस निर्णय से नुकसान यह हो सकता है कि छात्र उतनी गम्भीरता से पढाई नहीं करेंगे जितनी कि वे बोर्ड परीक्षा होने पर करते थे

अब प्रश्न उठता है कि छात्रों द्वारा 11 वीं कक्षा विषय के चुनाव किस आधार पर किये जायेंगे अभी तक दसवीं में प्राप्त अंकों के आधार पर छात्र विषयों का चुनाव करते हैं सबसे अच्छे अंक प्राप्त करने वाले छात्र गणित, विज्ञान, कामर्स जैसे विषय लेकर आगे बढते हैं स्थान कम होने पर अंकों के आधार पर प्रावीण्यता सूची भी बनाई जाती है
लेकिन दसवीं बोर्ड की परीक्षा समाप्त होने पर अगली में विषय चयन का आधार क्या होगा ? क्या हमारे देश में इतनी पर्याप्त संख्या में विद्यालय और उनमें रिक्तियां हैं कि हर छात्र को बिना छंटनी प्रक्रिया से गुजरे उसका मनचाहा विषय पढने को मिल सके या फ़िर यह निर्णय उस योजना का पहल कदम है जिसमें 11 वीं कक्षा के विषय चयन में गणित और जीवविग्यान को साथ-साथ अनिवार्य करने की योजना है विज्ञान संकाय के विद्यार्थियों के लिये उच्च गणित और जीवविज्ञान अनिवार्य कर दिया जायेगा रसायन और भौतिकी तो दोनों के साथ अभी भी है ही

क्या बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंक ला पाना वास्तविक समस्या है ? नहीं वास्तविक समस्या उच्च में प्रवेश के लिये पर्याप्त स्थान होने की है इस गला काट प्रतियोगिता में दशमलव के बाद के कुछ अंक चयन के परिणाम को निर्धारित करते हैं अच्छे अंक क्यों चाहिये ? जाहिर है अपना मनचाहा विषय लेकर आगे की कक्षा में प्रवेश के लिये लेकिन क्या बोर्ड की परीक्षा को समाप्त कर देने से इस समस्या का हल हो जायेगा

सबसे बडी जरूरत उच्च शिक्षा में और अधिक स्तरीय संस्थान स्थापित किये जाने की है जिनकी कमी की वजह से यहां प्रवेश पा सकने वाले छात्रों की बडी संख्या अमेरिका, आस्ट्रेलिआ और रसिया भागती है या फ़िर पत्राचार पाठ्यक्रम से काम चलाती है यह भी प्रतिभा पलायन का एक कारण है

तो जब तक छात्र/छात्राओं की संख्या के अनुपात में पर्याप्त सीटें नहीं होंगीं परीक्षा का हौवा तो बना ही रहेगा मूल्यांकन चाहे ग्रेड के आधार पर हो या प्रतिशत के आधार पर

इसीलिये कहा जाता है कि भारतीय युवा वर्ग डाक्टर, इन्जीनिअर, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक इत्यादि बनने के लिये मजबूर होता है बहुत कम ऐसे लोग होंगे जिन्होंने प्राप्त अंकों के दबाव से स्वतन्त्र अपना कैरियर चुना होगा जाहिर है ऐसे में जिसे जो होना चाहिये वह नहीं हो पाता और कैरियर का मतलब रोजी-रोटी हो जाता है कि वह कार्य जो हम अपनी पसन्द से करना चाहते हैं

हमारे शिक्षाविदों के लिये यह एक चुनौती भरा कार्य है कि अब वह ऐसी शिक्षाप्रणाली विकसित करें की दिशा में कार्य करे जो एक छात्र/छात्रा को उनकी पसन्द को विकसित कर उसी को अपना कैरियर बनाने के लिए तैयार कर सके |
अन्ततः शिक्षा का अर्थ व्यक्ति के अन्दर छिपी श्रेष्ठतम प्रतिभा को उभारना ही है यह स्वयम की खोज है

मैने यहां कुछ बातें लिखीं हैं कृपया इस विषय पर अपनी सहमति या असहमति प्रकट करें जिससे यह समझने में सहयोग मिल सके कि अधिकांश मित्र इस बारे में किस तरह के विचार रखते हैं यदि आपकी टिप्पणी के माध्यम से पर्याप्त सहयोग मिला तो अगली पोस्ट नाम सहित उन सारे विचारों को एक साथ रखा जायेगा
धन्यवाद
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3 comments:

  1. आपकी बात सही है. पर मेरा अनुभव कुछ और ही रहा है. जब मैं स्कूल में था तो मैं हमेशा चाहता था कि हर साल बोर्ड परीक्षायें हों. यानि कि स्कूल वाले परीक्षा ना लें. ऐसा इसलिये क्योंकि बोर्ड परीक्षाओं में आने वाले प्रश्न पत्रों के पैटर्न का पता पहले ही चल जाता है. किस अध्याय से कितने नंबर के प्रश्न आयेंगें यह भी फ़िक्स होता है. टीचर ट्यूशन के लिये दबाव नही बना पाते कि ट्यूशन नही आओगे तो कम नंबर दूंगा. आदि आदि. वहीं बिना बोर्ड वाली परीक्षा में टीचर अपने मन मुताबिक पेपर्स बनाते हैं(सीबीएसई के मानकों के अनुसार नही) और उसकी जानकारी केवल उन्ही लड़कों तक रहती है जो उस टीचर से ट्यूशन पढ़ते हैं. बोर्ड परीक्षाओं में कापियां भी ईमानदारी से जंचती हैं.

    मैंने यह तक महसूस किया है कि बोर्ड परीक्षाओं के पेपरों का पैटर्न कुछ ऐसा होता है कि एक औसत बच्चा भी आसानी से पासिंग मार्क्स पा सकता है. हां ९० प्रतिशत की आकांक्षा तो मेहनत लगेगी पर आपको पास होने में दिक्कत नही होगी.

    और हां ये सब मैं सीबीएसई के हिसाब से लिख रहा हूं ना कि स्टेट बोर्ड के हिसाब से. स्टेट बोर्ड की चर्चा फ़िर कभी.

    मैं प्राइवेट स्कूल में पढ़ा हूं अत: वहां होने वाले भ्रष्टाचार से वाकिफ़ हूं. और जो कुछ भी मैने ऊपर लिखा है वो मेरे स्कूल में घटित हुआ था.

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  2. @Ankur Gupta You are right the Demon of tuition has been ruining the children. In my state Orissa a school teacher cannot tuition as it is illegal here. this opens an opportunity for educated unemployed people to take to tuition.

    When A student of CBSE or ICSE medium comes out successful with more than 90 percent marks, i agitate. Student from state board just cannot secure such high marks. But all compete for seats in colleges or other institutions. This anomolly should be done away with. Either change the pattern of question in state Board and bring it at par with the CBSE or ICSE or unify all such boards.

    The recent decision of phasing out or making optional the 10th class board seems to be a good decision. Now onward grades will be given as per marks. The details of such grading is still to creep in.

    This i think in a way changing the system of education and our approaches. This will certainly discourage average students to crowd in colleges or pursue higher education.

    One more thing should be done as Kapil sibbal has expressed his concern on the Arjun Singh quota. That is phasing out the affirmative action in higher education. Recently, an IIT expelled some students of OBC who were pushed through the Arjun Singh quota as they failed to clear their terms papers. If our education system is so to push some average students then the day is not far when those parents who have got money will send their wards to foreign countries to pursue some degrees and settle there. Banks have come forward to fund their foreign study. And India will be managed by those average students.

    This attitude is creating a division in our society. Give ample opportunities to come to terms with the reality and allow only excellent or genius to pursue higher education to foster higher research in science, technologies.

    The current decision is a part of a larger scheme and more such decisions are about to hit headlines and change our system.

    If state board fails to change accordingly then there will be again inequalities in our society as some will go forward and some will lag behind for lack of farsightedness.

    Arkjesh, thanks to you that you have started a discussion on this.

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  3. अंकुर जी ने बिलकुल सच कहा .ऐसी दुविधाये अक्सर खड़ी हो जाती है .इसलिए मेरे विचार में इस परीक्षा का होना जरूरी है .जहाँ दवाब से राहत मिलती है .बिषय उत्तम है साथ ही लिखा भी शानदार है .

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नेकी कर दरिया में डाल