June 30, 2010

अराजक लेखन -1 उमस से उदभूत

उमस का मौसम है। तेज गर्मी और नाम भर की बारिश के बाद ऐसा होता है। बारिश के बाद तेज धूप निकलने पर भी। जब हवा न बह रही हो तब उमस का प्रभाव सार्वाधिक होता है। चिपचिपा पसीना निकलता रहता है। उमस में एक बेचैनी होती है। ओशो की एक कविता पढी थी कभी केवल शीर्षक याद है 'उमस बहुत है, चलो आँधियॉं लाऍं'। कविता अच्‍छी थी। कविता के निहितार्थ व्‍यापक थे। वहॉं उमस यथास्थिति और ऑंधियॉं परिवर्तन की प्रतीक थीं।

जब बात करने के लिए कुछ नहीं होता तो लोग मौसम की चर्चा करने लगते हैं। तब ऋतु चाहे जैसी हो उनके बीच उमस का मौसम होता है। ऐसे में यह कहना मुश्किल हो जाता है कि हम उमस होने की वजह से मौसम की चर्चा कर रहे हैं या बात करने के लिए कुछ न होने की वजह से उमस की चर्चा कर रहे हैं।

June 16, 2010

बीते कुछ दिनों से लिए गए नोट्स

बादल हैं। धूप-छॉंह चल रही है। सुबह ज्‍यादा थे अब सघनता कम हो गई है । धूप निकल रही है । चार-पॉंच दिन की उमस भरी तेज गर्मी के बाद कल सुबह बारिश हो गई थी । तब से बादल छाए हुए हैं । शायद वे आसमान, चिलमिलाती धूप को सौंपकर फिर कुछ दिनों के लिए चले जाऍं ।

शीर्षक का नाम यही रखा। पाठकों को आकर्षित करने के लिए उत्‍सुकता जगाने वाला शीर्षक मुझे ठीक नहीं लगा। यह धोखा है। जैसे आम का लालच देकर कच्‍ची इमली थमा देना या प्रीति भोज का निमंत्रण देकर सिर्फ चाय पिलाकर विदा कर देना। बढिया पैकिंग में घटिया माल की तरह या लोकल माल में ब्रांडेड चिट की तरह। इस पोस्‍ट को शुरू करते-करते एक और पोस्‍ट कुलबुलाने लगी । सराहना या प्रशंसा के बारे में लिखने को। उसको अभी दिमाग में सेव कर लिए हैं। जो वाइरसों से बच गई तो रूप लेगी।