April 30, 2012

नया खिलौना

नया खिलौना मैंने पाया
मेरे मन को है यह भाया

खेलूं मैं इससे सारा दिन
रहूं नहीं पल भर इसके बिन

बच्‍चों को जब इसे दिखाया
सबके मन में लालच आया 

April 16, 2012

अवांछित पंक्तियां

प्रेम में प्रेम भी है
कविता में अब भी कुछ कविता बची हुई है
ऐसा लगता है
शब्‍दों का सम्‍मान हमारी दगाबाजी का
निहायत जरुरी हिस्‍सा है 
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निराशावादी होना मुझे पसंद नहीं है 
दिखना और भी ज्‍यादा नापसंद
इसलिए मस्‍कुरा देता हूँ, परिचित को देखकर
मुस्‍कुराहट में खुशी भी है या नहीं
इसकी परवाह न मुझे है न उन्‍हें
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लाइनों को तोड देता हूँ
बीच से
ताकि पढने में हो आसानी और
समझने में मुश्किल
पर शब्‍द खुद घुस जाते हैं
अपने-अपने हिस्‍से तक
अर्थ की परवाह किए बिना
शायद वे समझ गए हैं कि
हमारा अर्थ हमारे होने में ही है
किसी और के सलीके में नहीं
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मैं वह सब नहीं कहूँगा
जो देखता हूँ रोज रोज
और सवाल ही नहीं उठता
वह सब देखने का जिसे
मैं रोज करता हूँ
मनोरंजन ही है वह चीज जिसे
मैं पसंद करता हूँ
क्‍योंकि यही सबसे सुरक्षित काम है
जिसे रोजी रोटी के बाद मैं करना चाहता हूँ