नया खिलौना मैंने पाया
मेरे मन को है यह भाया
खेलूं मैं इससे सारा दिन
रहूं नहीं पल भर इसके बिन
बच्चों को जब इसे दिखाया
सबके मन में लालच आया
मेरे मन को है यह भाया
खेलूं मैं इससे सारा दिन
रहूं नहीं पल भर इसके बिन
बच्चों को जब इसे दिखाया
सबके मन में लालच आया
पक्का साथी हमें बना लो
हमको अपनी ओर मिला लो
देखो तुम हो कितने अच्छे
तुम ही मेरे दोस्त हो सच्चे
खेलेंगे हम तुम मिलजुलकर
देखूं जरा हाथ में लेकर
सब के सब मेरे पीछे भागें
पर मैं रहता सबसे आगे
अपनी चीजें मुझे खिलाते
वे ही थोडी देर को पाते
रात को जब मैं सोने जाता
साथ खिलौने को ले जाता
सुबह सुबह जब ऑंखें खुलतीं
नजर खिलौने पर ही टिकतीं
मम्मी पापा शोर मचाते
खा लो खाना मुझे बुलाते
जल्दी जल्दी खाना खाता
और खेलने में लग जाता
पर यह थी कुछ दिन की बात
वह थी नई नई सौगात
अब इसमें है मन नहीं भरता
उठा पटक कर इसे खेलता
इक दिन गया खिलौना रुठ
इसकी गई टॉंग एक टूट
पापा मुझको सैर करा दो
नया खिलौना मुझको ला दो
इसकी गई टॉंग एक टूट
पापा मुझको सैर करा दो
नया खिलौना मुझको ला दो
बहुत ही सुन्दर बाल कविता।
ReplyDeleteसुन्दर बाल कविता !!!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर बाल गीत।
ReplyDeleteबच्चों को जब इसे दिखाया
ReplyDeleteसबके मन में लालच आया
पक्का साथी हमें बना लो
हमको अपनी ओर मिला लो
देखो तुम हो कितने अच्छे
तुम ही मेरे दोस्त हो सच्चे
खेलेंगे हम तुम मिलजुलकर
देखूं जरा हाथ में लेकर
वाह!! बहुत सुन्दर बाल मनोविज्ञान का चित्रण.
पापा खिलौना भी लाकर देते हैं और फिर उस पर कविता भी लिख देते हैं :-)
ReplyDeleteसुन्दर !
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