May 28, 2012

सडक-रेल छाप नोट्स

सडक किनारे पंजाबी, चाइनीज, दक्षिण भारतीय खाने की दुकानों, आइसक्रीम, सोडा के ठेलों के ठीक बगल में, पडे रहते हैं तम्‍बू ताने लोग, अपनी रोटी खाते भात पकाते, इतने करीब की हमारी कुर्सी और उनकी टूटी खटिया में दो-चार हाथ की ही दूरी रहती है। जमीन में उनके बच्‍चे, महिलाऍं सोते रहते हैं। कभी-कभी हाथ में रोटी लेकर खाते बच्‍चे। पता नहीं किस चीज से खाते रहते हैं रोटी। गंदे-गंदे से दीखते उनके बूढे-बूढियां बाल उलझाए। अपनी हड्डियां दिखाते, बीडी फूंकते बैठे रहते हैं। गर्मी से बेहाल। रात बढने, रात के साथ मौसम ठंडा होने के इंतजार में।


ऐसे दृश्‍य हमेशा ध्‍यान खींचते हैं। गरीबी और बीमारी निराश करती हैं। इसलिए हम इनसे बचकर निकलना चाहते हैं। नोटिस सब करते हैं। निराश इसलिए करती हैं कि मन में कहीं न कहीं यह बात होती है कि किसी भी इंसान की स्थिति वैसी हो सकती है। किसी भी इंसान में हम खुद भी शामिल हैं।