मेरे इस लेख का मूल विचार यह है कि आप ब्लॉग पोस्ट तो लिखने के लिये स्वतन्त्र हैं, क्योंकि गूगल का ब्लॉग स्पॉट इस मामले में निष्पक्ष है, किन्तु किसी ब्लॉग पर आप टिप्पणी छापने के लिये स्वतन्त्र नहीं हैं ।
हाल ही में हिन्दी ब्लॉगिन्ग में कमेंट्स की काफ़ी चर्चा चली। जैसे कमेन्ट कितने प्रकार के होते हैं, किस-किस वजह से किये जाते हैं, क्यों किये जाते हैं, कमेन्ट नहीं करेंगे तो क्या नुकसान अथवा फ़ायदा होगा ? मतलब इस विषय में बहुत खोजपूर्ण चिट्ठे चिपकाये जा चुके हैं और टिप्पणियों का नैनो विश्लेषण कर डाला गया ।
हाल ही में यह चर्चा भी हो चुकी है कि आप पोस्ट पर कमेंट करते हैं कि पोस्टर पर अर्थात ब्लॉगिन्ग के नाम से प्रभावित होकर | आपका कमेंन्ट ब्लागी की साख से प्रभवित होता है कि नहीं |
इन विषयों पर तरह-तरह के विचार व्यक्त किये जा चुके हैं । लेकिन यहां पर मेरा मूल विषय टिप्पणी नहीं बल्कि जिस पर टिप्पणी की गयी अर्थात टिप्पी धारक व्यक्ति है। ब्लोगिन्ग में ब्लोग पढ्ना आपका अधिकार है, टिप्पणी करना भी आपका अधिकार है, लेकिन टिप्पणी को प्रकाशित करना या ना करना सिर्फ़ ब्लोगर का अधिकार है । गीता की तर्ज पर कि सिर्फ़ कर्म पर ही आपका अधिकार है, उसके फ़ल पर नहीं ।
यहीं से कमेन्ट किलर या टिप्पणी हन्ता का जन्म होता है । आपने लेडी किलर, सीरिअल किलर शब्द सुने होंगे । पतियों को भी सीरिअल किलर कहा जाता है । इसी तरह कमेट किलर भी होते हैं, यद्यपि यह शब्द अभी प्रचलित नहीं है ।
कमेन्ट रिसीव करने के ढंग से ब्लॉगर दो तरह के होते हैं ।
एक - वे जो कमेन्ट को सम्पादित नहीं करते अर्थात आपकी टिप्पणी को ब्लाग पर प्रकाशित होने के लिये पहले उनकी अनुमति की जरूरत नहीं पडती । दूसरे प्रकार के ब्लागर ठीक इसके विपरीत रुख अपनाते हैं अर्थात सम्पादन का सेन्सर लगाये रहते हैं, ताकि इज्जत मर्यादा बनी रहे और बाह्य तत्व आकर मनमानी छेडछाड न कर सकें । ऐसे ब्लागर जो टिप्पणी सम्पादन का प्रयोग नहीं करते उनमें से कुछ नये ब्लागर होते हैं, जिन्हें इसका पता नहीं रहता । शेष ब्लागर जानबूझकर पूरे होशो हवाश में ऐसा करते हैं । उनमें भी कई प्रकार के होते हैं । कुछ टिप्पणीहीन या टिप्पणी न्यून होते हैं । उन्हे लगता है कि कमेन्ट सम्पादन रखने से कहीं टिप्पक पर विपरीत प्रभाव न पड जाये और वह टिप्पणी करने से बिचक जाये । कुछ ब्लागर आरोप-प्रत्यारोपों को झेलने के लिये मानसिक रूप से तैयार रहते हैं । स्थिति ज्यादा बिगडने पर इनके पास भी बाद में कमेन्ट को लुप्त करने का विकल्प तो रहता ही है । ज्यादतर युवा ब्लागर (उम्र और सोच दोनों से ) कमेन्ट को सम्पादित नहीं करते चाहे वे कहानी, कविता, गज़ल, शेरो-शायरी या सामाजिक-राजनैतिक मुद्दों पर लिख रहे हों । इस तरह के ब्लागर कमेन्ट को बर्दाश्त करने और जरूरत पडने पर सतर्क प्रत्युतर के लिये भी तैयार रहते हैं । ऐसे ब्लाग जो खुले होते हैं, जीवन्त होते हैं, क्योंकि वहां असहमति के लिये जगह होती है । समर्थन और विरोध दोनों के स्वर वहां सुनाई देते हैं अर्थात अपनी समालोचना के लिये वे प्रस्तुत रहते हैं । वे टिप्पणी छपने देते हैं और सिर्फ़ ऐसी टिप्पणियों को छोड़ कर जो ब्लॉग के विषय से सम्बंधित नहीं होतीं, डिलीट नहीं करते |
दूसरे प्रकार के टिप्पणी हन्ता ब्लॉगर महोदय/महोदया कुछ इस तरह के विचार रखते हैं - "यह हमारा ब्लॉग है, शहर की किसी सार्वजनिक धर्मशाला की दीवार नहीं, जो कोई भी ऐरा-गैरा आकर अपना इश्तिहार चिपका जायेगा। यह कोई वाद-विवाद का मंच नहीं (प्रशस्ति गायन मंच है)। यह हमारा चिठ्ठा है यहां आप वही लिख सकते हैं, जो हमारे विचारों के अनुकूल हो, सवाल हमारी पसंद का है, आपकी नहीं । हमने जो सिध्दांत अपनी पोस्ट में खींचा , वही वास्तविक तस्वीर है, बाकी सब कार्टून ।आपको कमेंट करना है तो आप हमसे अभिभूत हो जाइये । यही हमारे ब्लाग पर कमेन्ट करने कि आवश्यक योग्यता है । यदि ऐसा ना कर सकें तो इसे ठीक-ठाक बताकर निपट लीजिये ।"
दिमाग में ज्यादा घन्टी बज रही हो तो ब्याजस्तुति अलंकार का प्रयोग करिये मतलब करिए आलोचना और हो प्रशंसा । लेकिन इससे ज्यादा की इजाजत
माँ बदौलत के दरबार में नही है । नहीं तो सर कलम कर दिया जायेगा - आपकी टिप्पी का | आप यदि उनके सिध्दांत की कमियों को उजागर करने की खतरनाक तमन्ना रखते हैं तो आप अपना वक्त बर्बाद कर रहे हैं । इस तरह के ब्लागों में वही लोग टिप्पणी कर पाने में सफ़ल हो पाते हैं, जो कहते हैं -"दिन को अगर रात कहो रात कहेंगें लेकिन कमेन्ट जरूर करेंगे ।"
कमेन्ट किल्लर ब्लागर ज्यादतर पके हुए काइयां टाइप के लोग होते हैं, जो अपनी सामाजिक छवि को लेकर अति सावधान रहते हैं | असुरक्षा की भावना ही वह प्रमुख कारण है, जो एक ब्लॉगर को टिप्पणी हन्ता बनने पर मजबूर करती है |महिला ब्लागरों में भी कमेन्ट किलर प्रवृत्ति बेहूदा टिप्पणियों से बचने के लिये पायी जाती है।
उपर्युक्त लक्षण सामुदायिक ब्लोगों के लिये भी काफ़ी दूर तक सही हैं ।
चित्र - गूगल |
ह्म्म्म्म....आप की बात में दम है...
ReplyDeleteनीरज
मैं हमेशा से ब्लॉग में टिप्पणी मॉडरेशन का विरोधी रहा हूँ और इस पर बहुत पहले मैंने एक लम्बी पोस्ट भी लिखी थी, जिस पर कईयों की त्योरियाँ चढ़ गई थीं… लेकिन मैंने अपने ब्लॉग का दरवाजा सभी के लिये खुला रखा है (बेनामी के अलावा), मैं जातिवाद को खत्म करना चाहता हूँ… :)
ReplyDeleteअच्छा आलेख है ... मैने टिप्पणी माडरेशन तो लगा रखी है ... पर अभी तक किसी टिप्पणी को रोकने की जरूरत नहीं पडी ।
ReplyDeleteटिप्पणी का अधिकार वोट डालने के अधिकार के जैसा है - सभी को मिलना चाहिये!
ReplyDeleteअनिल जी की बात से सहमति
ReplyDeleteटिप्पणी एक पाठक का अधिकार है
पर टिप्पणिकर्ता का फर्ज है कि वह एनोनिमस भी न हो
खुलकर अपना नाम पता लिखे
आपकी बात से सहमत हैं.. आभार
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