हर अच्छाई के साथ एक बुराई जुड़ी होती है, जैसे खाना खाने के साथ संडास जाना जुडा है | इत्यादि | इस बात को संक्षेप में कहने के लिए जो सबसे प्रचलित और उपयुक्त शब्द है, वह है "साइड इफेक्ट" अर्थात बगल प्रभाव | ज्यादातर हर्बल दवाओं में लिखा रहता है - 'कोई साइड इफेक्ट नहीं' |
इस दुनिया में हर चीज का बगल प्रभाव होता है, इस विषय में एक फ़िल्म भी बन चुकी है - 'प्यार के साइड इफेक्ट' , जो 14 फरबरी के दिन सबसे ज्यादा होते हैं | इस दिन प्यार के बगल प्रभाव कभी कभी इतने प्रबल हो जाते हैं कि अगल बगल से डंडे पड़ने के रूप में सामने आते हैं और मुख्य प्रभाव कि तरह लगते हैं, जैसे किसी किसी फ़िल्म में बगल हीरो मुख्य हीरो को दबा देता है | लेकिन यहाँ मेरा मुख्य विषय न तो 14 फरबरी है न ही प्यार मोहब्बत जो मुख्य विषय है वह आगे चलने पर मिलेगा | ये तो केवल छोटे-छोटे कुछ बगल विषय हैं |
बगल प्रभाव शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसके पहले कोई मुख्य प्रभाव होता है, जिसके लिए कोई प्रयास किया जाता है| लेकिन यह बगल प्रभाव चाय कि पत्ती के पैकेट के साथ मिलने वाले कप या सोने के सिक्के कि तरह फ्री गिफ्ट नहीं है, बल्कि यह बिना बुलाये मेहमान या उस अनचाहे गर्भ कि तरह होता है जो ब्रह्मानंद सहोदरम कि चाह में गले पड़ जाता है |
न्यूटन के अति प्रसिद्द नियम के अनुसार हर क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिकिया होती है, लेकिन उन्होंने किसी बगल क्रिया या प्रभाव का उल्लेख नहीं किया है , शायद वह प्रतिक्रिया दो भागों में विभाजित हो जाती होगी - मुख्य क्रिया और बगल क्रिया |
मेरा विषय भारत देश के विकसित हो जाने पर पड़ने वाले बगल प्रभाव के बारे में चर्चा करना है |
हमारे प्यारे भारत देश में एक वैज्ञानिक राष्ट्रपति हुआ करते थे | उन्होंने पहले मिसाइलें वगैरह बनाई, फ़िर संयोग से राष्ट्रपति बन गए | लोग उन्हें मिसाइल मैन भी कहते हैं | पूर्व राष्ट्रपति महोदय का नाम है - ए.पी.जे. अब्दुल कलाम | राष्ट्रपति काल में उन्होंने एक अभियान सा छेड़ रखा था की भारत देश को सन फलां-फलां मतलब 2020 तक विकसित देश बना देना है | इसके लिए उन्होंने बाकायदा योजना बना रखी थी | उस समय राष्ट्रपति थे सो सबको उनके अभियान का पता चलता था | अखबार, टीवी इत्यादी में आते रहते थे | इधर सेवानिवृत्त होने के बाद दिखाई नहीं पड़ते (अखबार, टी वी आदि में)
अब कलाम साहब ठहरे वैज्ञानिक बुद्धि के आदमी उन्होंने जैसे मिसाइल वगैरह विकसित की वैसे ही सोचा की देश को भी विकसित कर देंगे,लेकिन देश कोई मिसाइल की तरह जड़ पदार्थ तो है नहीं की जैसी चाहें आप उसके साथ मनमानी कर लेंगे | देश बनता है देशवासियों से और देशवासी होते हैं - इन्सान अथवा मनुष्य नामक जीव | वह भी भारत जैसे दुनिया के सबसे महान लोकतंत्र के |
तो मैं बात कर रहा था, विकसित होने के खतरों की| इसके पहले की आप मुझे कुछ का कुछ समझे और मुझे कहना पड़े "कि मेरा यह मतलब नहीं था" मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं देश के विकसित होने के खिलाफ बिल्कुल नहीं हूँ और मेरी बातों को तोड़ मरोड़ कर न पेश किया जाए | मैं तो भारतीय लोकतंत्र का एक जिम्मेवार नागरिक होने के नाते सिर्फ़ आपका ध्यान उन बगल प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) कि और दिलाना चाहता हूँ जो विकसित हो जाने के बाद भारत देश के ऊपर तारी हो सकते हैं |
विकसित देशों के कुछ मोटे-मोटे लक्षण जो मैंने सुन रखे हैं, उनमें से कुछ यूँ हैं कि विकसित देशों में जीवन स्तर ऊंचा होता है, प्रति व्यक्ति आय बहुत ज्यादा होती हैं, स्वाथ्य और शिक्षा पर खर्च बहुत ज्यादा होता है, आधारभूत ढांचा मजबूत होता है, इत्यादि |
दुनिया में जो भी विकसित देश हैं उनमें राजनीतिक दल 3-4 से ज्यादा नहीं हैं | मुख्यतया 2 या 3 राजनीतिक दल ही हैं | हमारे यहां भी शायद 8-10 दर्जन ही होंगे एकाध दर्जन ज्यादा भी हो गए तो कौन सा गजब हो जायेगा 1अरब का देश है | सबको फलने फूलने दीजिये | देश यदि विकसित हो गया तो इन 4 दर्जन राजनीतिक दलों के 4 हजार दर्जन नेताओं का क्या होगा (डाटा में सुधार कर सकते हैं ) | इन सबको बेरोजगार कराने का इरादा है क्या ? वैसे भारत देश में बेरोज़गारी कम है ? जो आप और बेरोजगारी बढ़ाना चाहते हैं | यह बात अलग है कि बेरोज़गारी भारत देश में कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाती | मुद्दे कि बात से मुझे याद आया कि विकसित देशों के चुनावी मुद्दे भी अलग टाइप के होते हैं, जैसे शिक्षा, शोध, रोजगार, स्वास्थ्य, पर्यारण इत्यादि | देश को विकसित करके आप हमारे प्यारे (? ) नेताओं से मुद्दे भी छीन लीजियेगा | यहाँ तो ये सब नहीं चलेगा न भाई ! ये भी कोई मुद्दे हैं जी शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण | भारत देश में धर्म, जाति, आरक्षण, भाषा विवाद आदि आदि मुद्दे बनते हैं और मुद्दे कम पड़ें तो एक-दो भड़काऊ वक्तव्य दे दीजिये या इतिहास का कोई गदा मुर्दा उखाड़ लीजिये और उसे जीवित कर दीजिये या कोई काल्पनिक संकट पैदा कर दीजिये | आप छा गए अखबारों और टीवी में |
बाढ़ -सूखे वगैरह भी कोई मुद्दे हैं, वो तो यहाँ हर साल आते हैं और जाते हैं | कम से कम उसी बहाने कुछ फंड तो आ जाता है नहीं तो चुनाव कैसे लडेंगे और चुनाव नहीं लड़े तो लोकतंत्र को खतरा ! भारत देश के नेता को बद्बुक समझाते हैं का ! की आपके विकसित होने के चक्कर में अपने मुद्दे और ख़ुद को गवां दे | वैज्ञानिकों के साथ यही दिक्कत है एक सुर पकड़ लेते हैं, अरे कुछ समझिये साहब |
सिर्फ़ नेता की ही बात होती तो चलो मान भी लेते | आप क्या समझते हैं की आम आदमी क्या कम झंझट में पड़ेगा ?
अरे हमको पहले तैयार तो होने दीजिये | देखिये अभी हमको अभ्यास नहीं है | जब तक पुलिस वाला चौराहे पर डंडा लेकर नहीं खड़ा होता हमारे हाथ पैर ब्रेक ही नहीं लगाते तो इसमें हमारी क्या गलती है | लाल हरी बत्ती अपनी जगह लगी है लगी रहे | हमारे लिए तो पुलिस का डंडा ही सबसे बड़ा सिग्नल है | आप कहते हैं की विकसित देश में लोग लाल बत्ती पर रुक जाते हैं, चाहे कोई ट्रैफिक न हो और न कोई पुलिस वाला खड़ा हो | यह भी सुनाने में आया हैं की विकसित देशों में लोग इधर-उधर थूकते नहीं, रेलगाडी और सार्वजनिक स्थानों पर कचरा नहीं फेकते | देखिये हमें तो ये सब बातें सोचकर ही सकरेत होने लगता है | इन सब बातों पर हमे यकीन तो नहीं होता कि किसी देश में ऐसा भी होता होगा और वह भी तब जब लोग कहते हैं कि वहां गैर पढ़े-लिखे भी इन सब बातों को जानते और मानते हैं, क्योंकि यहाँ तो जो अनपढ़ हैं वो कह देते हैं कि हम क्या जाने (अपना घर साफ़ रखना बखूबी जानते हैं) हम तो बिना पढ़े लिखे अज्ञानी हैं | और पढों लिखों को यह कहते भी सुना है कि यह तो हमारे कोर्स में नहीं था |
मित्रों, हमारे भारत देश के विकसित होने के अनन्त खतरे हैं, जिनमें से मैंने सिर्फ़ कुछ का ही उल्लेख किया है | सबसे बड़ा खतरा हमारे भारत देश कि संस्कृत और सभ्यता को है, जिसे लोग इतनी छुई-मुई समझते हैं कि पहनने -ओढ़ने और उठाने-बैठने से नष्ट होने लगती है | हमारी लम्बी गुलामी का कारण भीं यही सोच थी |
हम सोचेंगे, विचारेंगे आराम से हमे विकसित होने दीजिये | होंगे तो होंगे, नहीं तो देखेंगे | ऐसा आन्दोलन जैसा चलाकर उतावलापन मत दिखलाइये | शुभ काम हम सबसे देरी से करते हैं | आप मिसाइल वगैरह विकसित कीजिये, चाँद पर घूमिये हमे कोई आपत्ति नहीं है | हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के घोर लोकतांत्रिक नागरिक हैं, आप हमें ऐसे बहला-फुसला नहीं सकते |
हम सिर्फ़ उन्ही बातों में विकसित देशों की नक़ल करते हैं जिन्हें करना आसान हो और जिन्हें करने से हम विकसित न कहाने लगे, नहीं तो हम हम कहाँ रह जायेंगे भाई, अपनी पहचान कायम रखना जरूरी हैं न |
पोस्ट कुछ ज्यादा ही विकसित होता जा रहा हैं, इससे पहले कि कोई बुरा मान जाए , मैं बंद |
सूचना : इस लेख के कोई बगल प्रभाव नहीं हैं |
इस दुनिया में हर चीज का बगल प्रभाव होता है, इस विषय में एक फ़िल्म भी बन चुकी है - 'प्यार के साइड इफेक्ट' , जो 14 फरबरी के दिन सबसे ज्यादा होते हैं | इस दिन प्यार के बगल प्रभाव कभी कभी इतने प्रबल हो जाते हैं कि अगल बगल से डंडे पड़ने के रूप में सामने आते हैं और मुख्य प्रभाव कि तरह लगते हैं, जैसे किसी किसी फ़िल्म में बगल हीरो मुख्य हीरो को दबा देता है | लेकिन यहाँ मेरा मुख्य विषय न तो 14 फरबरी है न ही प्यार मोहब्बत जो मुख्य विषय है वह आगे चलने पर मिलेगा | ये तो केवल छोटे-छोटे कुछ बगल विषय हैं |
बगल प्रभाव शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसके पहले कोई मुख्य प्रभाव होता है, जिसके लिए कोई प्रयास किया जाता है| लेकिन यह बगल प्रभाव चाय कि पत्ती के पैकेट के साथ मिलने वाले कप या सोने के सिक्के कि तरह फ्री गिफ्ट नहीं है, बल्कि यह बिना बुलाये मेहमान या उस अनचाहे गर्भ कि तरह होता है जो ब्रह्मानंद सहोदरम कि चाह में गले पड़ जाता है |
न्यूटन के अति प्रसिद्द नियम के अनुसार हर क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिकिया होती है, लेकिन उन्होंने किसी बगल क्रिया या प्रभाव का उल्लेख नहीं किया है , शायद वह प्रतिक्रिया दो भागों में विभाजित हो जाती होगी - मुख्य क्रिया और बगल क्रिया |
मेरा विषय भारत देश के विकसित हो जाने पर पड़ने वाले बगल प्रभाव के बारे में चर्चा करना है |
हमारे प्यारे भारत देश में एक वैज्ञानिक राष्ट्रपति हुआ करते थे | उन्होंने पहले मिसाइलें वगैरह बनाई, फ़िर संयोग से राष्ट्रपति बन गए | लोग उन्हें मिसाइल मैन भी कहते हैं | पूर्व राष्ट्रपति महोदय का नाम है - ए.पी.जे. अब्दुल कलाम | राष्ट्रपति काल में उन्होंने एक अभियान सा छेड़ रखा था की भारत देश को सन फलां-फलां मतलब 2020 तक विकसित देश बना देना है | इसके लिए उन्होंने बाकायदा योजना बना रखी थी | उस समय राष्ट्रपति थे सो सबको उनके अभियान का पता चलता था | अखबार, टीवी इत्यादी में आते रहते थे | इधर सेवानिवृत्त होने के बाद दिखाई नहीं पड़ते (अखबार, टी वी आदि में)
अब कलाम साहब ठहरे वैज्ञानिक बुद्धि के आदमी उन्होंने जैसे मिसाइल वगैरह विकसित की वैसे ही सोचा की देश को भी विकसित कर देंगे,लेकिन देश कोई मिसाइल की तरह जड़ पदार्थ तो है नहीं की जैसी चाहें आप उसके साथ मनमानी कर लेंगे | देश बनता है देशवासियों से और देशवासी होते हैं - इन्सान अथवा मनुष्य नामक जीव | वह भी भारत जैसे दुनिया के सबसे महान लोकतंत्र के |
तो मैं बात कर रहा था, विकसित होने के खतरों की| इसके पहले की आप मुझे कुछ का कुछ समझे और मुझे कहना पड़े "कि मेरा यह मतलब नहीं था" मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं देश के विकसित होने के खिलाफ बिल्कुल नहीं हूँ और मेरी बातों को तोड़ मरोड़ कर न पेश किया जाए | मैं तो भारतीय लोकतंत्र का एक जिम्मेवार नागरिक होने के नाते सिर्फ़ आपका ध्यान उन बगल प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) कि और दिलाना चाहता हूँ जो विकसित हो जाने के बाद भारत देश के ऊपर तारी हो सकते हैं |
विकसित देशों के कुछ मोटे-मोटे लक्षण जो मैंने सुन रखे हैं, उनमें से कुछ यूँ हैं कि विकसित देशों में जीवन स्तर ऊंचा होता है, प्रति व्यक्ति आय बहुत ज्यादा होती हैं, स्वाथ्य और शिक्षा पर खर्च बहुत ज्यादा होता है, आधारभूत ढांचा मजबूत होता है, इत्यादि |
दुनिया में जो भी विकसित देश हैं उनमें राजनीतिक दल 3-4 से ज्यादा नहीं हैं | मुख्यतया 2 या 3 राजनीतिक दल ही हैं | हमारे यहां भी शायद 8-10 दर्जन ही होंगे एकाध दर्जन ज्यादा भी हो गए तो कौन सा गजब हो जायेगा 1अरब का देश है | सबको फलने फूलने दीजिये | देश यदि विकसित हो गया तो इन 4 दर्जन राजनीतिक दलों के 4 हजार दर्जन नेताओं का क्या होगा (डाटा में सुधार कर सकते हैं ) | इन सबको बेरोजगार कराने का इरादा है क्या ? वैसे भारत देश में बेरोज़गारी कम है ? जो आप और बेरोजगारी बढ़ाना चाहते हैं | यह बात अलग है कि बेरोज़गारी भारत देश में कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाती | मुद्दे कि बात से मुझे याद आया कि विकसित देशों के चुनावी मुद्दे भी अलग टाइप के होते हैं, जैसे शिक्षा, शोध, रोजगार, स्वास्थ्य, पर्यारण इत्यादि | देश को विकसित करके आप हमारे प्यारे (? ) नेताओं से मुद्दे भी छीन लीजियेगा | यहाँ तो ये सब नहीं चलेगा न भाई ! ये भी कोई मुद्दे हैं जी शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण | भारत देश में धर्म, जाति, आरक्षण, भाषा विवाद आदि आदि मुद्दे बनते हैं और मुद्दे कम पड़ें तो एक-दो भड़काऊ वक्तव्य दे दीजिये या इतिहास का कोई गदा मुर्दा उखाड़ लीजिये और उसे जीवित कर दीजिये या कोई काल्पनिक संकट पैदा कर दीजिये | आप छा गए अखबारों और टीवी में |
बाढ़ -सूखे वगैरह भी कोई मुद्दे हैं, वो तो यहाँ हर साल आते हैं और जाते हैं | कम से कम उसी बहाने कुछ फंड तो आ जाता है नहीं तो चुनाव कैसे लडेंगे और चुनाव नहीं लड़े तो लोकतंत्र को खतरा ! भारत देश के नेता को बद्बुक समझाते हैं का ! की आपके विकसित होने के चक्कर में अपने मुद्दे और ख़ुद को गवां दे | वैज्ञानिकों के साथ यही दिक्कत है एक सुर पकड़ लेते हैं, अरे कुछ समझिये साहब |
सिर्फ़ नेता की ही बात होती तो चलो मान भी लेते | आप क्या समझते हैं की आम आदमी क्या कम झंझट में पड़ेगा ?
अरे हमको पहले तैयार तो होने दीजिये | देखिये अभी हमको अभ्यास नहीं है | जब तक पुलिस वाला चौराहे पर डंडा लेकर नहीं खड़ा होता हमारे हाथ पैर ब्रेक ही नहीं लगाते तो इसमें हमारी क्या गलती है | लाल हरी बत्ती अपनी जगह लगी है लगी रहे | हमारे लिए तो पुलिस का डंडा ही सबसे बड़ा सिग्नल है | आप कहते हैं की विकसित देश में लोग लाल बत्ती पर रुक जाते हैं, चाहे कोई ट्रैफिक न हो और न कोई पुलिस वाला खड़ा हो | यह भी सुनाने में आया हैं की विकसित देशों में लोग इधर-उधर थूकते नहीं, रेलगाडी और सार्वजनिक स्थानों पर कचरा नहीं फेकते | देखिये हमें तो ये सब बातें सोचकर ही सकरेत होने लगता है | इन सब बातों पर हमे यकीन तो नहीं होता कि किसी देश में ऐसा भी होता होगा और वह भी तब जब लोग कहते हैं कि वहां गैर पढ़े-लिखे भी इन सब बातों को जानते और मानते हैं, क्योंकि यहाँ तो जो अनपढ़ हैं वो कह देते हैं कि हम क्या जाने (अपना घर साफ़ रखना बखूबी जानते हैं) हम तो बिना पढ़े लिखे अज्ञानी हैं | और पढों लिखों को यह कहते भी सुना है कि यह तो हमारे कोर्स में नहीं था |
मित्रों, हमारे भारत देश के विकसित होने के अनन्त खतरे हैं, जिनमें से मैंने सिर्फ़ कुछ का ही उल्लेख किया है | सबसे बड़ा खतरा हमारे भारत देश कि संस्कृत और सभ्यता को है, जिसे लोग इतनी छुई-मुई समझते हैं कि पहनने -ओढ़ने और उठाने-बैठने से नष्ट होने लगती है | हमारी लम्बी गुलामी का कारण भीं यही सोच थी |
हम सोचेंगे, विचारेंगे आराम से हमे विकसित होने दीजिये | होंगे तो होंगे, नहीं तो देखेंगे | ऐसा आन्दोलन जैसा चलाकर उतावलापन मत दिखलाइये | शुभ काम हम सबसे देरी से करते हैं | आप मिसाइल वगैरह विकसित कीजिये, चाँद पर घूमिये हमे कोई आपत्ति नहीं है | हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के घोर लोकतांत्रिक नागरिक हैं, आप हमें ऐसे बहला-फुसला नहीं सकते |
हम सिर्फ़ उन्ही बातों में विकसित देशों की नक़ल करते हैं जिन्हें करना आसान हो और जिन्हें करने से हम विकसित न कहाने लगे, नहीं तो हम हम कहाँ रह जायेंगे भाई, अपनी पहचान कायम रखना जरूरी हैं न |
पोस्ट कुछ ज्यादा ही विकसित होता जा रहा हैं, इससे पहले कि कोई बुरा मान जाए , मैं बंद |
सूचना : इस लेख के कोई बगल प्रभाव नहीं हैं |
" देश को विकसित करके आप हमारे प्यारे (? ) नेताओं से मुद्दे भी छीन लीजियेगा "
ReplyDeleteवाह!!!!!!!!
"जब तक पुलिस वाला चौराहे पर डंडा लेकर नहीं खड़ा होता हमारे हाथ पैर ब्रेक ही नहीं लगाते तो इसमें हमारी क्या गलती है |"
बहुत बढिया.....एकदम सच है ये,बत्ती के लाल-पीले होने से किसी को कोई फर्क नहीं पडता.