December 10, 2009

ब्‍लॉगिंग माहात्‍म्‍य - कुंडलियां , भाग- 1

पहली बार कुण्डलियाँ लिखे हैं ! यह काका 'हाथरसी' को समर्पित है ! काका हाथरसी को स्कूली दिनों में पढ़े थे ! पता नहीं कैसे अचानक याद आ गए !

रस्‍ते में कल मिल गए, ब्‍लॉगर बगलूचंद
नमस्‍कार तो कर लिए, और बोलती बंद
और बोलती बंद, तुम अपना हाल सुनाओ
ब्‍लागिंग में क्‍या नया, लिखे हो यह बतलाओ
बगलू ब्लॉगर बिफरे, मेरा सिर मत खाओ
ब्‍लागिंग ब्‍लागिंग करों नहीं, कुछ और सुनाओ

नखरे ज्‍यादा मत करो, करो ना टाइम नष्‍ट
जल्‍दी जल्‍दी बक डालो , तुमको जो हो कष्‍ट
तुमको जो हो कष्‍ट, कि कुछ तो बोलो यारा
ब्‍लागिंग का जो भी दुख हो, कह डालो सारा
कह चालू कविराय, कि अपनी राय बनाओ
बुद्धिमान ब्‍लॉगर के, कुछ लक्षण दिखलाओ

इतना सुनकर आ गया, बगलू जी को ताव
कहने लगे जि ब्‍लागिंग का, बडा बुरा है चाव
बडा बुरा है चाव, कि मेहनत लगती जितनी
इतना पढते तो, खुल जाती किस्‍मत अपनी
कह चालू कविराय, कि तुम मारो शेखी मत
असली कारण बको, तुरंतै जल्‍दी झटपट

असली कारण कुछ नहीं, तुम भी हो घनघोर
हम तो बस सुस्‍ताय रहे, करो न एतना शोर
करो न एतना शोर, कि तुम तो अपनी देखो
ब्‍लाग पोस्‍ट लिख सके नहीं, टिपणी ही चेंपो
फिर भी तुम उकसाय रहे हो, तो कहते हैं
ब्‍लागिंग के चक्‍कर में, हम क्‍या क्‍या सहते हैं

थाली खाने की लगी, पत्‍नी जी चिल्‍लायँ
बगलू जी हां हूं करें, पर उठ के न जायँ
पर उठ के ना जायँ, मिली अब तगडी घुडकी
बगलू तुम जो उठे नहीं, हो जाए कुडकी
कह चालू कविराय, कि ऐसे भी हैं ब्‍लॉगर
लिखते हैं जो चार बजे तक, पोस्‍ट जागकर

'महिला' ब्‍लॉगिंग भी करे, रखे भी घर का ख्‍याल
दिनचर्या में बढ गया, यह अतिरिक्‍त‍ कमाल
यह अतिरिक्‍त कमाल, चाय चहिए बगलू को
कपडा, खाना, होमवर्क, भी है डबलू को
बैठक में डबलू औ डबली चहक रहे हैं
मैडम के वाणी बम, बगलू पर टपक रहे हैं

इतनी मेहनत से लिखे, जूझ जाझकर पोस्‍ट
अब हैं देखन में लगे, कै ठो आए पढने दोस्‍त
आए पढने दोस्‍त, कि सब पोस्‍टन पर जाओ
एक टिप्‍पणी दे अपनी, आमद दर्शाओ
कह चालू ब्‍लॉगर को, ब्‍लॉगर ही जानेगा
नई पोस्‍ट लिख दी, बंदे ने पहचानेगा

नए नए मुददे गुरू, कहॉं पाऍं हम रोज
दिन भर यही दिमाग में, करते रहते खोज
करते रहते खोज, लिखें ऐसे मसले पर
पढवैया भी मिलें , मिलें टिपणियॉं बम्‍पर
कह चालू कविराय, कि एक मुददा है कौंधा
बगलू बैठा है पीसी पर, मुँह को औंधा

ब्‍लॉगिंग अब करने लगे, काफी स्‍टूडेंट
मुश्‍िकल होता है उन्‍हें, टाइम मैनेजमेंट
टाइम मैनेजमेंट, पडो न इसमें ज्‍यादा
पहले अपनी पोथी तुम, पलटाओ भ्राता
कह चालू कविराय, कि टाइम बहुत मिलेगा
इस टाइम को चूका, तो फिर दिल दहलेगा

ब्‍लॉगिंग में हम क्‍या लिखें, असमंजस है आज
टिपियाना भी बंद किए, लगता है इल्‍जाम
लगता है इल्‍जाम, करें हम कैसी ब्‍लॉगिंग
कुछ भी लिखना हुआ, कि होती है गुटबाजिंग
आ गई अब टिप्‍‍पनियां भी, जैसे फेक करेंसी
लफडा हो जायेगा, हो गर चूक जरा सी

ब्‍लॉगिंग को समझो नहीं, टाइम पास मकाम
हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग है बडी, जीवटता का काम
जीवटता का काम, कि मतलब को समझोगे
अभी नए बंदे हो, बातों में उलझोगे
कह चालू कविराय, हुए जो ज्‍यादा भाबुक
सह न सकोगे यहॉं पडे, शब्‍दों के चाबुक

अब तो ब्‍लॉगिंग का भया, बहुत बडा आकार
लेख, कहानी, कविता, रूपक, तकनीकी संसार
तकनीकी संसार, लिखो व्‍यंग औ' नाटक
पढते रहो नियम से, खुले अकल के फाटक
टिप्‍पणियों से तुमको हां, एक नजर मिलेगी
कैसा लिखते हो यह भी, कुछ खबर मिलेगी

हिंदी ब्‍लॉगर हो गए, हुआ न टंकी ज्ञान
ब्‍लागिंग करना आपका, व्‍यर्थ हुआ श्रीमान
व्‍यर्थ हुआ श्रीमान, कि टंकी नहीं दिखेगी
फिर भी टंकी पर चढने की, धमक मिलेगी
देखो चालू उधर कई, बलॉगर भागे हैं
बगलू टंकी से उतरो, मिन्‍नत मॉंगे हैं

हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में अब मित्रों, करिए स्‍वस्‍थ विमर्श
राजनीति, विज्ञान , नारी , साहित्यिक स्‍पर्श
साहित्यिक स्‍पर्श की करिए बहस खींचकर
टीवी, मीडिया , कृषि, न्‍याय है बहुत लाभकर
कह चालू कविराय कि, एक ठो बहस छिडी है
नारी मुक्ति किधर से आए, उलझ पड़ी है

ब्‍ला‍गिंग टिपणी करते करते, हो जाए मिस्‍टेक
माफीनामा पेश करो, खोलो दिल का गेट
खोलो दिल का गेट, कि टाइम नहीं गंवाओ
दरियादिल हैं ब्‍लॉगर मित्रो, लाभ उठाओ
बगलू चालू , ब्‍लॉगिंग ब्‍लॉगिंग खेल रहे हैं
ब्‍लाग पोस्‍ट नित रोज भयंकर ठेल रहे हैं

दिल गार्डेन गार्डेन जो भया, सुनकर यह अख्‍यान
एक टिप्‍पणी छोडकर, फिर करिए प्रस्‍थान
फिर करिए प्रस्‍थान, रहें पुलकित च किलकित
एक स्‍वस्‍थ संवाद बने, ब्‍लागों में उत इत
कह चालू कविराय, कि फिर से फरमायेंगे
जब ब्‍लागिंग माहात्‍म्‍य, भाग- दो लाएंगे


धन्‍यवाद ।

22 comments:

  1. अरे! अर्क्जेश भाई..... बहुत सही लिखा..... मज़ा आ गया ....पढ़ के.....

    --
    www.lekhnee.blogspot.com

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  2. कविता थोडी लंबी है पर सटीक है। कभी कभी हम भी खाने के लिये हां हूं करते रहते हैं और उधर लगी लगाई थाली ठंडी हो जाती है :)

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  3. बहुत अच्छी कविता। प्रेरक। बधाई स्वीकारें।

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  4. क्या तो कवि बसता है भैयाजी के मन में। मौका मिला और निकल कर बरास्ते की बोर्ड नेट पर पसर गया। वाह, वाह!

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  5. बढिया लिखा है!

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  6. शानदार रचा गया है मय अनुभव दिल से. हा हा!!

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  7. सच्‍चाई का देखें पीट दिया है ढोल
    जो सच सच है सब दिया है बोल
    थाली ठंडी होती नींद हो रही ठंडी
    सोने पर भूलता नहीं लगाता कुंडी
    वही ब्‍लॉगर तो असली है मानिए
    बाकी सब शिखंडी सच पहचानिए।

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  8. बातें सबकी कह गये,अपने अर्कूचंद,
    सजा दिये हैं ब्लॉग पे ये प्यारे से छंद.

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  9. ye pyare se chhand baat pate ki kah gaye bhaiya ,
    aur hamare man kar uthe ise padh ta-ta thaiya ,
    jaam se bhi gahara nasha ,har haal me bana raha ,apni hi khabar nahi rahi ,har baat ansuni rahi .
    bahut hi umda ,behtrin ,jabardast .....
    aapne purani yaad taza kar di ,jab humlog ashok ch.aur kaka ji ko khoob padha bhi aur suna bhi .aur saath me kai kaviyon ko bhi .

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  10. kya baat hai arkjesh maza aa gaya bahut dinon baad aisa kuchh padhne ko mila badhai ho .

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  11. thanks

    बहुत खूब ।
    दिल आज फ़िर फ़साद करने लगा है
    उस बेवफा को याद करने लगा है

    ये दिल भी पक्‍का फसादी होता है ।
    u will like this also
    एक टिप्पणी-हाय टिप्पणी
    एक टिप्पणी-हाय टिप्पणी

    बहुत सुन्दर, बहुत अच्छे, भईई वाह टिपणी कर
    बुरे अच्छे की मत कर यार तू परवाह टिपणी कर

    at http;//katha-kavita.blogspot.com/

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  12. काका हाथरसी की याद करा दी आपने ..........
    बहुत अच्छी KUNDLIYAAN हैं ........

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  13. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए....
    मन को छू गये आपके भाव।
    इससे ज्यादा और क्या कहूं।
    बहुत कुछ चन्‍द शब्‍दों में व्‍यक्‍त किया, आभार ।

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  14. मुझे लगता है मैं गलती पर था. मुझे तुमको गजलों की तरफ घसीटना नहीं चाहिए था. तुम्हारे भीतर एक बहुत प्रतिभावान व्यंगकार बैठा हुआ है, उसे जीवित रखो. तुम्हारी कुंडलियों ने तबीयत खुश कर दी.
    मैं इधर बीमारी और नौकरी की चपेट में था. लगभग सवा महीने बाद नेट पर वापसी हुई है. तुम्हें मेल किया था, जवाब नहीं मिला, शायद नाराज़ हो.

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  15. ब्लागिंग महात्म्य पर कुंडलियाँ धकेलने वाले
    धन्य-धन्य तुम लगते हो बड़े दिल वाले
    बड़े दिल वाले काका हाथरसी भी होते
    यूँ ही लिखते व्यर्थ न इक पल खोते
    काका जी की यादें हो गईं फिर से ताजी
    स्वर्ग लोक से काकी चीखें कौन ये पाजी
    --बधाई।

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  16. अरे वाह, ब्लॉगिंग महाकाव्य लिखने का इरादा ठान लिया है क्या?
    ------------------
    ये तो बहुत ही आसान पहेली है?
    धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।

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  17. अर्कजेश जी कमाल कर दिया आपने...काका हाथरसी अगर जिंदा होते तो आपको गले लगा लेते...क्या खूब लिखा है...आनंद आ गया... कालेज के दिनों में मैंने उनकी नक़ल कर के बहुत वाह वाही लूटी थी...आज आपने फिर से उनकी याद दिला दी...
    नीरज

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  18. काका हाथरसी के हम भी एक चेले हैं
    क्या लिखते हो भैया की पोस्ट ठेले हैं
    पोस्ट ठेले हैं एक और दस को टिपियायें
    पता नहीं पाठक फिर भी क्यूँ नहीं आयें
    पढो खूब पहले आप फिर नब्ज टटोलो
    टिप्पणी के बदले टिप्पणी मत मोलो

    - सुलभ

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  19. मज़ा आ गया ..बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..हर लाइन में हँसी की फुहार हो जाती है क्या मजेदार रचना है..बहुत बहुत धन्यवाद

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  20. अरे भैया बहुत गजब का लिखे हौ. काका अगर आज इस दुनिया में होते तो हास्य-काव्य में तुम्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिए होते. बिलकुल बही शैली और वही धार.

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  21. bahut hee dhansu hai...maza aa gaya...shuru se ant tak jabardast. .

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नेकी कर दरिया में डाल