समय की एक इकाई 'वर्ष' !
महसूस होता है
सशरीर पूरी पूर्णता में
जब, बीतना शुरू होता है उसका
आखिरी महीना
और महीने का आखिरी दिन |
अनायास ही मन
लगाता है
हिसाब पूरे साल का
साल के आखिरी दिन
साल में हैं महीने
और वह भी पूरे बारह
महीने भी दिखाई पड़ते हैं
विदा के समय
महीने के आख़िरी दिन
पूरी प्रगाढ़ता से अपनी
उपस्थिति दर्ज कराते हुए
कुछ कुछ जीवन के आखिरी
दिनों की तरह
बीतते है थोड़ा धीरे
गुड बाई कहते हुए
समय के तीन स्पस्ट विभाजन
हमारी सुविधा के लिए
दिन महीने वर्ष और पूरा जीवन
प्रारम्भ, उत्कर्ष और अंत
इनकी लघुतम इकाई क्षण , पल या निमिष,
जो महसू करते ही
खो जाती हैं
और
रखती हैं अस्तित्व
लगभग नहीं होने की तरह
हम बनाते हैं एक
काल्पनिक जोड़
और कहते हैं उसे
समय
अपनी सुविधा के लिए
समय की एक ईकाई 'दिन'
सुबह का सूरज
प्रवेश करता है
छितिज से
असीम उर्जा लिए हुए
अनंत प्राणों में उडेलने को
बीतता हुआ समय बीत जाता है, ऐसे
जैसे भर जाते हैं
बही खातों के पन्ने ,
जैसे चुक जाती हैं
कैलेंडर की तारीखें
फ़िर से लिखने के लिए नए पन्नो पर
पुराने हिसाब
थोड़े फेर बदल के साथ
साल भर पुराने दोस्त से पल भर में
जुदाई है
बीतता हुआ वर्ष !
समय की एक ईकाई दिन
ReplyDeleteसुबह का सूरज
प्रवेश करता है
छितिज से
असीम उर्जा लिए हुए
अनंत प्राणों में उडेलने को
बीतता हुआ समय बीत जाता है, ऐसे
जैसे भर जाते हैं
बही खातों के पन्ने ,....
बहुत अच्छी लगीं यह पंक्तियाँ.... पूरी कविता सच से सामना करा रही है,,,,,
बहुत सुंदर कविता....
वक्त के दरवाजे पर नये साल से गले मिलने से पहले पिछले साल के ३६५ पन्ने दोबारा पलटने का यह अलहदा अंदाज लगा...कुछ-कुछ फ़लसफ़ाना सा..
ReplyDeleteबहुत उम्दा लगी रचना.
ReplyDeleteसाल भर पुराने दोस्त से पल भर में
ReplyDeleteजुदाई है
बीतता हुआ वर्ष !-
यह पल भर की जुदाई फिर गहन मिलन की नई चाह भी तो उत्पन्न कर जाता है !
उम्दा रचना !
बीतता हुआ वर्ष, सपने संजोता है. संकल्प को दृढ़ता प्रदान करता है.
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो
- सुलभ
प्रारम्भ...उत्कर्ष...अंत- और इन तीनों को समेटती ये कविता सिसकते 2009 के इन आखिरी क्षणों में...सामयिक, सुंदर, सटीक।
ReplyDeleteवाह .. बहुत अच्छी रचना। बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
समय की एक ईकाई 'दिन'
ReplyDeleteसुबह का सूरज
प्रवेश करता है
छितिज से
असीम उर्जा लिए हुए
अनंत प्राणों में उडेलने को
बीतता हुआ समय बीत जाता है, ऐसे
जैसे भर जाते हैं
बही खातों के पन्ने ,
जैसे चुक जाती हैं
कैलेंडर की तारीखें
फ़िर से लिखने के लिए नए पन्नो पर
पुराने हिसाब
थोड़े फेर बदल के साथ
साल भर पुराने दोस्त से पल भर में
जुदाई है
बीतता हुआ वर्ष !
itni behtrin rachna ke saamne kuchh kahne laayak nahi rahe ,poore varsh ka vivran de dala ,ati sundar
समय के सत्य का दर्शन.
ReplyDeleteधन्यवाद.
बीतता हुआ समय बीत जाता है, ऐसे
ReplyDeleteजैसे भर जाते हैं
बही खातों के पन्ने ,
जैसे चुक जाती हैं
कैलेंडर की तारीखें
फ़िर से लिखने के लिए नए पन्नो पर
पुराने हिसाब
सोच रही हूँ क्या कहूँ .....आपने इतना सही जोड़ घटाव किया है वर्षों का कि विदा होते इस वर्ष को अलविदा कहते भी डर सा लगता है ....!!
अर्कजेश.. बड़ा मुश्किल है साल का हिसाब किताब रखना... और उससे भी ज्यादा मुश्किल अगले साल का हिसाब रखना... बेहतरीन लगी आपकी रचना...
ReplyDeleteपुराने वर्ष का मूल्यांकन---और नये वर्ष का स्वागत करती हुयी कविता--बेहतरीन कविता।
ReplyDeleteहेमन्त कुमार
Ek pure saal ko kuch panktiyo me samet dia ha aapne...
ReplyDeletebohot acche....