ब्लॉगिंग की विधा आ जाने के बाद कमेंट या टिप्पणी शब्द अचानक बहुत हिट हो गया है । और इन्टरनेट पर, खासकर हिन्दी ब्लॉगिंग में इसका महत्व बहुत अधिक बढ गया है । कमेन्ट के विविध रूपों को देखते हुए यदि किसी के मन में यह दार्शनिक प्रश्न उत्पन्न हो जाए कि हिन्दी ब्लॉगिंग के में टिप्पणी की क्या भूमिका है तो मैं कहना चाहता हूं कि हिन्दी ब्लॉगिंग में टिप्पणी का महत्व बहुआयामी है | कृपया गौर करें :
टिप्पणी राम-राम है, नमस्कार है
कभी पैलगी तो कभी प्रणाम है
नये चिट्ठों से शिष्टाचार है
कभी परिचय और सत्कार है
'हम भी हैं' की गुहार है
कभी हेलो हाय तो कभी, बाय-बाय है
आदाब है, सत्श्री अकाल है
जिसको मिले वो बिना रुपये के मालामाल है
वरना चिट्ठा कंगाल है
यह बातों का प्रपन्च बनाती है
हिन्दी ब्लॉगिंग को टंच बनाती है
महंतों को सन्त बनाती है
माहौल को जीवंत बनाती है
यह ब्लॉगर का दर्पण भी है
टिप्पक(टिप्प्णीकार)का प्रेमार्पण भी है
कभी-कभी यह तर्पण भी है
पूरी तरह समर्पण भी है |
कभी यह गंभीर विमर्श है
कभी विनोदी परामर्श है
कभी यह नकाबपोश है
तब फैलाती आक्रोश है
यह ब्लोगर को मुद्दे देती है
कभी इक्के-दुक्के
कभी चौके-छक्के देती है
कौन नहीं इस पर फ़िदा है
यह एक लिमिटेड विधा है
इससे ज्यादा क्या कहें कि
यह ब्लोगिंग की जान है
क्योंकि बिना इसके
कोई हिन्दी चिट्ठा नहीं बन सका
महान है |
-जय चिट्ठाकर्म (हैप्पी ब्लॉग्गिंग)
कुछ लोग टिप्पणी को कमतर नजरों से देखते हैं और वे इसे सिर्फ़ ब्लॉगर की खुशामद या 'लाइन मारने' की वस्तु समझते हैं । इसमें 'जड चेतन गुण दोषमय’ की तरह सच्चाई है भी और नहीं भी क्योंकि 'लाइन मारना' निहायत ही शाकाहारी कर्म है | जब तक कि वह 'लाइन काटने' में न बदल जाए । इसका सीधा सा अर्थ होता है "प्रभावित करने की कोशिश करना" और यह मनुष्य की एक कुदरती कमजोरी है।
यदि कोई ब्लॉग्गिंग को खुशामद कहने वालों के ब्लॉग पर इस तरह की कमेन्ट करे - "एकदम बकवास", "ये सब पहले कहीं पढा हुआ लगता है", "यदि आप लिखना बन्द कर दें तो हिन्दी भाषा पर एहसान होगा" तो इसे कोई भी पसन्द नहीं करेगा और यह एक तरह से ब्लॉगर से सम्बंध बिगाडने जैसा होगा । लेकिन रास्ता भारत के आम बजट की तरह दो अतियों के बीच होता है ।
कमेन्ट ब्लॉगिंग को गति देते हैं । यह ब्लॉगर और पाठक के बीच एक संवाद है । साझा ब्लॉगों में यह एक तरह से परिचर्चा की तरह फ़ैलता है । इस मुद्दे पर अलग से एक ब्लॉग पोस्ट लिखा जाएगा |
यद्यपि ऐसे ब्लॉगरों का अस्तित्व काल्पनिक ही होगा जो टिप्पणी ना चाहते हों । बहरहाल हमारा प्रमुख उद्देश्य सिर्फ़ ब्लॉगिंग में टिप्पणी के महत्व को उभारकर सामने लाना है और कुछ नहीं । इसीलिये कोई कुछ का कुछ ना समझे | यदि कोई ऐसा समझना चाहता है तो इसके लिये वह स्वयं जिम्मेवार होगा । हमारी यह बात पूर्णतः काल्पनिक है और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति, वस्तु या घटना से कोई पास-पास का नाता भी नहीं है । यह बात अलग है कि ज्यादा टिप्पणी पाने वाले ब्लॉगर उस दुकानदार की तरह हो जाते हैं जिसकी दुकान पर भीड ज्यादा रहने के कारण वह टुटपुन्जिये ग्राहकों की तरफ़ देखकर मुस्कुराना जरूरी नहीं समझता, यह उसकी मजबूरी भी है, क्योंकि ऐसा करने पर एक परमानेंट स्माइली मुद्रा अख्तियार करनी पड़ेगी | चाहे कोई ब्लॉग पोस्ट पर सिर्फ़ 'बढिया' या 'बहुत अच्छा' या 'लगे रहो' जैसे कमेन्ट भी कर रहा है तो भी वह वहां पर अपना समय और श्रम लगा रहा है । आपको लिखने की वजह दे रहा है । यदि आप सोचते हैं कि उसकी नीयत अपना लिंक देने की थी तो भी कुछ गलत नहीं है । मैं हिन्दी के कई महत्व्पूर्ण चिट्ठों से कमेन्ट की वजह से परिचित हुआ । बडका ब्लोग्गरों के द्वारा की गई टिप्पणी से बेनामी (अनामी) ब्लोग्गर उसी तरह प्रसन्न होते हैं जैसे अप्रसिद्ध लेखक किसी बड़े साहित्यकार की प्रशंसा से गदगद होते हैं |
इन सब दलीलों से प्रतीत होता है कि हिन्दी ब्लोगिंग में टिप्पणी एक पुन्न-कम-समझदारी का काम है | कहने की जरूरत नहीं की नेक काम करने से नेकनीयती बढ़ती है |
और अंत में :
बापू बोले अगर कोई टिप्पणी न करे तो टेंशन मत लो, उसके ब्लॉग पर टिप्पणी करते रहो | बोले तो फुल विनम्रता के साथ | एक दिन उसका ह्रदय परिवर्तित होगा फ़िर वो सिर्फ़ तुम्हारा ब्लॉग ही नहीं पढेगा, बल्कि उस पर टिप्पणी भी करेगा |
टिप्पणी राम-राम है, नमस्कार है
कभी पैलगी तो कभी प्रणाम है
नये चिट्ठों से शिष्टाचार है
कभी परिचय और सत्कार है
'हम भी हैं' की गुहार है
कभी हेलो हाय तो कभी, बाय-बाय है
आदाब है, सत्श्री अकाल है
जिसको मिले वो बिना रुपये के मालामाल है
वरना चिट्ठा कंगाल है
यह बातों का प्रपन्च बनाती है
हिन्दी ब्लॉगिंग को टंच बनाती है
महंतों को सन्त बनाती है
माहौल को जीवंत बनाती है
यह ब्लॉगर का दर्पण भी है
टिप्पक(टिप्प्णीकार)का प्रेमार्पण भी है
कभी-कभी यह तर्पण भी है
पूरी तरह समर्पण भी है |
कभी यह गंभीर विमर्श है
कभी विनोदी परामर्श है
कभी यह नकाबपोश है
तब फैलाती आक्रोश है
यह ब्लोगर को मुद्दे देती है
कभी इक्के-दुक्के
कभी चौके-छक्के देती है
कौन नहीं इस पर फ़िदा है
यह एक लिमिटेड विधा है
इससे ज्यादा क्या कहें कि
यह ब्लोगिंग की जान है
क्योंकि बिना इसके
कोई हिन्दी चिट्ठा नहीं बन सका
महान है |
-जय चिट्ठाकर्म (हैप्पी ब्लॉग्गिंग)
कुछ लोग टिप्पणी को कमतर नजरों से देखते हैं और वे इसे सिर्फ़ ब्लॉगर की खुशामद या 'लाइन मारने' की वस्तु समझते हैं । इसमें 'जड चेतन गुण दोषमय’ की तरह सच्चाई है भी और नहीं भी क्योंकि 'लाइन मारना' निहायत ही शाकाहारी कर्म है | जब तक कि वह 'लाइन काटने' में न बदल जाए । इसका सीधा सा अर्थ होता है "प्रभावित करने की कोशिश करना" और यह मनुष्य की एक कुदरती कमजोरी है।
यदि कोई ब्लॉग्गिंग को खुशामद कहने वालों के ब्लॉग पर इस तरह की कमेन्ट करे - "एकदम बकवास", "ये सब पहले कहीं पढा हुआ लगता है", "यदि आप लिखना बन्द कर दें तो हिन्दी भाषा पर एहसान होगा" तो इसे कोई भी पसन्द नहीं करेगा और यह एक तरह से ब्लॉगर से सम्बंध बिगाडने जैसा होगा । लेकिन रास्ता भारत के आम बजट की तरह दो अतियों के बीच होता है ।
कमेन्ट ब्लॉगिंग को गति देते हैं । यह ब्लॉगर और पाठक के बीच एक संवाद है । साझा ब्लॉगों में यह एक तरह से परिचर्चा की तरह फ़ैलता है । इस मुद्दे पर अलग से एक ब्लॉग पोस्ट लिखा जाएगा |
यद्यपि ऐसे ब्लॉगरों का अस्तित्व काल्पनिक ही होगा जो टिप्पणी ना चाहते हों । बहरहाल हमारा प्रमुख उद्देश्य सिर्फ़ ब्लॉगिंग में टिप्पणी के महत्व को उभारकर सामने लाना है और कुछ नहीं । इसीलिये कोई कुछ का कुछ ना समझे | यदि कोई ऐसा समझना चाहता है तो इसके लिये वह स्वयं जिम्मेवार होगा । हमारी यह बात पूर्णतः काल्पनिक है और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति, वस्तु या घटना से कोई पास-पास का नाता भी नहीं है । यह बात अलग है कि ज्यादा टिप्पणी पाने वाले ब्लॉगर उस दुकानदार की तरह हो जाते हैं जिसकी दुकान पर भीड ज्यादा रहने के कारण वह टुटपुन्जिये ग्राहकों की तरफ़ देखकर मुस्कुराना जरूरी नहीं समझता, यह उसकी मजबूरी भी है, क्योंकि ऐसा करने पर एक परमानेंट स्माइली मुद्रा अख्तियार करनी पड़ेगी | चाहे कोई ब्लॉग पोस्ट पर सिर्फ़ 'बढिया' या 'बहुत अच्छा' या 'लगे रहो' जैसे कमेन्ट भी कर रहा है तो भी वह वहां पर अपना समय और श्रम लगा रहा है । आपको लिखने की वजह दे रहा है । यदि आप सोचते हैं कि उसकी नीयत अपना लिंक देने की थी तो भी कुछ गलत नहीं है । मैं हिन्दी के कई महत्व्पूर्ण चिट्ठों से कमेन्ट की वजह से परिचित हुआ । बडका ब्लोग्गरों के द्वारा की गई टिप्पणी से बेनामी (अनामी) ब्लोग्गर उसी तरह प्रसन्न होते हैं जैसे अप्रसिद्ध लेखक किसी बड़े साहित्यकार की प्रशंसा से गदगद होते हैं |
इन सब दलीलों से प्रतीत होता है कि हिन्दी ब्लोगिंग में टिप्पणी एक पुन्न-कम-समझदारी का काम है | कहने की जरूरत नहीं की नेक काम करने से नेकनीयती बढ़ती है |
और अंत में :
बापू बोले अगर कोई टिप्पणी न करे तो टेंशन मत लो, उसके ब्लॉग पर टिप्पणी करते रहो | बोले तो फुल विनम्रता के साथ | एक दिन उसका ह्रदय परिवर्तित होगा फ़िर वो सिर्फ़ तुम्हारा ब्लॉग ही नहीं पढेगा, बल्कि उस पर टिप्पणी भी करेगा |
बहुत बढिया लिखा .. सचमुच कमेंट ब्लागिंग को गति देते हैं .. यदि ब्लाग पे टिप्पणी करने की सुविधा न होती .. तो शायद हम सभी ब्लागर एक दूसरे से परिचित भी नहीं होते .. यह टिप्पणी का बाक्स ही है .. जो हमारे बीच संबंधों की शुरूआत करता है .. राम राम से लेकर शिष्टाचार तक और विभिन्न मुद्दो पर विचार विमर्श तक .. हमें ब्लाग पर टिप्पणी करने का पुण्य काम अवश्य करना चाहिए ।
ReplyDeleteकरे चलो-पुण्य कर्म है!! :) मस्त रचना रची!
ReplyDeleteअरे वाह! इतनी जल्दी दूसरी पोस्ट पढने को मिलेगी उम्मीद नहीं थी. लेकिन सचमुच है शानदार.. सभी ब्लौगर्स के दिल की बात....बिना टिप्पणी के तो ब्लौग भी बिना नाक के चेहरे जैसा है...
ReplyDeleteमुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी टिप्पणी के माध्यम से मेरे 5 साहित्यिक चिठ्ठों तक पहुंचने हेतु आपका मार्ग प्रशस्त होगा एवं आप वहाँ पहुंच कर मुझे अनुग्रहित करेंगे . अतएव प्रतीक्षा रहेगी धन्यवाद्
ReplyDeleteसुन्दर कविता पढ़वाई आपने
ReplyDeleteरही बात टिप्पडी की तो हम तो कमेन्ट करते हैं इ टिप्पडी का होती है ???
वीनस केसरी
@संगीता जी, आपने कुछ और बेहतर पंक्तियां जोडीं । धन्यवाद ।
ReplyDelete@समीर जी, मुझे समझ में आ गया है की आपने अपने ब्लॉग का नाम 'उडन तश्तरी' क्यों रखा है । "मस्त रचना रची के लिये" आभार ।
@वन्दना जी, आपने जैसी उपमा दी है उसे देखते हुए लगता है की एक भी कमेन्ट ना मिलने की हालत में मुझे खुद ही अपने ब्लॉग पोस्ट पर कमेन्ट करना पडेगा ।
@शरद कोकास जी, अरे हम 5 क्या आपके 50 चिट्ठे भी हों तो वहां भी आयेंगे ।
@वीनस केसरी जी, मित्र टिप्पणी को कमेन्ट की बहना समझिये । हिन्दी में कमेन्ट और टिप्पणी में अन्तर सिर्फ़ इतना है की ’कमेंट’ होता है और ’टिप्पणी’ होती है । काम दोनों का एक ही है ।
Wah maza a gayaa
ReplyDeleteटिप्पणी लिखने वाले का न केवल श्रम और समय जात है बल्कि लिख्नने वाले का पैसा भी खर्च होता है..और अगर कोई अपने ब्लोग का लिन्क देता है तो अच्छा ही है..मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती.
ReplyDeleteइस विषय पर अच्छा लिखा है आपने.
aapke ke blog pe kai dino se aane ki koshish kar rahi. magar khul hi nahi raha .vandana ji se bhi kahi .par aaj ki koshish safal rahi .aage aapki rachana vandana ji ke blog pe dekhi .aur aaj blog ke upar jo likha hua padha wo bhi bahut hi achchha laga .aap bahut umda likhate hai .
ReplyDeleteबहुत खूब.. बहुत पसंद आई आपकी ये टिप्पणी पुराण..आभार
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ ...आपकी टिपण्णी पुराण बहुत अच्छी लगी..
ReplyDeleteकुछ पंक्तियाँ मेरी तरफ से...:
दिनों दिन बहुरि टिपण्णी पावा
पोस्ट की संख्या खूब बढ़ावा..
हमहूँ आज एक टिपण्णी दै डारे
आपकी टिपण्णी देख भये सुखारे
आपने मेरे ब्लॉग पर आज पदार्पण किया...
आभारी हूँ..
धन्यवाद...
tippnee blog lekhak ke liye inaam hai .kai to likhne ke baad kamputar kholkar dekhate hai ki koi kament aayy athvaa nahee
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