पूर्णिमा की रात थी । शुभ्र ज्योत्सना में सारी पॄथ्वी डूबी हुई थी । शंकर और पार्वती अपने प्यारे नन्दी पर सवार होकर भ्रमण को निकले थे । किन्तु वे जैसे ही थोडा आगे गये थे कि कुछ लोग उन्हें मार्ग में मिले ।
उन्हें नन्दी पर बैठे देखकर उन लोगों ने कहा : "देखो बेशर्मों को । बैल की जान में जान नहीं है और दो-दो उस पर चढकर बैठे हैं ।"
उनकी यह बात सुनी तो पार्वती नीचे उतर गईं और पैदल चलने लगीं । किन्तु थोडे ही दूर जाने पर फ़िर कुछ लोग मिले ।
वे बोले : "अरे मजा तो देखो, सुकुमार अबला को पैदल चलाकर यह कौन बैल पर बैठा चला जा रहा है भाई! बेशर्मी की भी हद है!" यह सुनकर शंकर नीचे उतर आये और पार्वती को नन्दी पर बैठा दिया । लेकिन कुछ ही कदम गये होंगे कि फ़िर कुछ लोगों ने कहा :
"कैसी बेहया औरत है, पति को पैदल चलाकर खुद बैल पर बैठी है । मित्रों, कलियुग आ गया है।"
ऐसी स्थिति देख आखिर दोनों ही नन्दी के साथ चलने लगे।
किन्तु थोडी ही दूर न जा पाए होंगे कि कुछ लोगों ने कहा: "देखो, मूर्खो को । इतना तगडा बैल साथ में है और ये पैदल चल रहे है।" अब तो बडी कठिनाई हो गई ।
शंकर और पार्वती को कुछ भी करने को शेष न रहा । नन्दी को एक वॄक्ष के नीचे रोक वे विचार करने लगे । अब तक नन्दी चुप था । अब वह हंसा और बोला :"एक रास्त मैं बताऊं ? अब आप दोनों मुझे सिर पर उठा लीजिये।" यह सुनते ही शंकर और पार्वती को होश आया और दोनों फ़िर से नन्दी पर सवार हो गए । लोग फ़िर भी कुछ न कुछ कहते निकलते रहे ।असल में लोग बिना कुछ कहे निकल भी कैसे सकते हैं ? अब शंकर और पार्वती चांदनी की सैर का आनन्द लूट रहे थे और भूल गये थे कि मार्ग पर कोई भी निकल रहा है ।
जीवन में यदि कहीं पहुंचना हो तो राह में मिलनेवाले प्रत्येक व्यक्ति की बात पर ध्यान देना आत्मघातक है |
ओशो द्वारा कही गई बोध कथाओं का संकलन 'मिट्टी के दिए' से
उन्हें नन्दी पर बैठे देखकर उन लोगों ने कहा : "देखो बेशर्मों को । बैल की जान में जान नहीं है और दो-दो उस पर चढकर बैठे हैं ।"
उनकी यह बात सुनी तो पार्वती नीचे उतर गईं और पैदल चलने लगीं । किन्तु थोडे ही दूर जाने पर फ़िर कुछ लोग मिले ।
वे बोले : "अरे मजा तो देखो, सुकुमार अबला को पैदल चलाकर यह कौन बैल पर बैठा चला जा रहा है भाई! बेशर्मी की भी हद है!" यह सुनकर शंकर नीचे उतर आये और पार्वती को नन्दी पर बैठा दिया । लेकिन कुछ ही कदम गये होंगे कि फ़िर कुछ लोगों ने कहा :
"कैसी बेहया औरत है, पति को पैदल चलाकर खुद बैल पर बैठी है । मित्रों, कलियुग आ गया है।"
ऐसी स्थिति देख आखिर दोनों ही नन्दी के साथ चलने लगे।
किन्तु थोडी ही दूर न जा पाए होंगे कि कुछ लोगों ने कहा: "देखो, मूर्खो को । इतना तगडा बैल साथ में है और ये पैदल चल रहे है।" अब तो बडी कठिनाई हो गई ।
शंकर और पार्वती को कुछ भी करने को शेष न रहा । नन्दी को एक वॄक्ष के नीचे रोक वे विचार करने लगे । अब तक नन्दी चुप था । अब वह हंसा और बोला :"एक रास्त मैं बताऊं ? अब आप दोनों मुझे सिर पर उठा लीजिये।" यह सुनते ही शंकर और पार्वती को होश आया और दोनों फ़िर से नन्दी पर सवार हो गए । लोग फ़िर भी कुछ न कुछ कहते निकलते रहे ।असल में लोग बिना कुछ कहे निकल भी कैसे सकते हैं ? अब शंकर और पार्वती चांदनी की सैर का आनन्द लूट रहे थे और भूल गये थे कि मार्ग पर कोई भी निकल रहा है ।
जीवन में यदि कहीं पहुंचना हो तो राह में मिलनेवाले प्रत्येक व्यक्ति की बात पर ध्यान देना आत्मघातक है |
ओशो द्वारा कही गई बोध कथाओं का संकलन 'मिट्टी के दिए' से
बहुत ही बढ़िया कथा है . आभार.
ReplyDeleteबचपन में पढी कहानी में गधा या घोड़े का जिक्र था। जिस पर बाप-बेटा बैठते उतरते रहते हैं। देवी- देवता होते हैं कि नहीं पता नहीं पर यदि ऐसी शक्ति है तो वह इतनी बेवकूफ तो नहीं ही हो सकती। इस तरह उनको घसीटने से शायद कुछ देर के लिये लोग मुस्कुरायें या वह-वाही मिल जाय पर यह किसी भी हाल में लेखनी को शोभा नहीं देता।
ReplyDeleteअच्छी प्रेरक कथा.बधाई
ReplyDeleteमैं शर्मा जी से सहमत नहीं हूं.एक तो यह लेखक द्वारा किया गया अशोभनीय प्रयास नहीं है, बल्कि ओशो की बोध कथाओं के संकलन से ली गई है. दूसरे, हमारी तमाम लोक कथाएं ईश्वर पर आधारित हैं, जिनमें ईश्वर का मानवीकरण किया गया है.इस कथा में भी ईश्वर के मानवी रूप का ही ज़िक्र है.और संदेश ये भी है, कि जब बातें बनाने वालों ने भगवान को नहीं छोडा तो इन्सान क्या चीज़ है?
आनन्द आ गया. यही जीवन का फलसफा होना चाहिये.
ReplyDelete@गगन शर्मा जी, बोध कथायें प्रतीकों के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं से हमें परिचित कराती हैं । और इस कहानी में न तो कोई अशोभनीय बात कही गई है और ना ही किसी का अपमान करने की कोशिश । केवल समझ समझ की बात है ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कथा धन्यवाद .
ReplyDeleteHow do i write in hindi here
ReplyDeleteNice blog.
My vote goes to you for posting in hindi.
Hope you win.