प्रश्न,
दो तरह के होते हैं,
एक - सिर्फ़ प्रश्न होते हैं,
सामान्य पूछ-ताछ के,
जैसे सब्जी के भाव पूछना, हालचाल,
गणित के इबारती सवाल
या बच्चों की जिज्ञासा
जिन्हें हम टरका देते हैं
सच्ची-झूठी कहानियों से,
बहला देते हैं बचपन को,
उत्तर पाने के लिए जीवन से
दो - प्रश्न जो लिए हुए होते हैं,
एक प्रश्न चिन्ह अपने पीछे,
स्थाई भाव की तरह,
अटल होते हैं
दुर्भाग्य रेखाओं,
या ध्रुव तारे की तरह
जैसे किसी बेरोजगार से पूछना
'क्या कर रहे हो आजकल'
किसी लाइलाज रोगी से
हाल चाल पूछना 'कैसी तबियत है' ?
या शादी के तय करने के बाद
माता -पिता द्वारा
पूछना -'लड़का पसंद हैं ना' ?
ऐसे अनगिनत प्रश्न हैं
जो निर्मित करते हैं,
प्रश्न चिन्ह इंसान के दामन पर
कभी-कभी इतने बेमानी होते हैं ये प्रश्न चिन्ह,
की भर देते हैं खीझ और उलझन दिलोदिमाग में
जैसे पैदा हो गए हों एकदम बेमानी,
सिर्फ़ अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए
प्रश्न चिन्ह,
अस्तित्व रखते हैं, प्रश्न के हट जाने पर भी
उपहास करते हुए
उत्तर देने वाले का
प्रश्न चिन्ह,
किसी प्रश्न के पीछे लगने वाला,
संकेतक मात्र नहीं है
एक अनुत्तरित प्रश्न,
देता है एक,
अवांछित प्रश्न चिन्ह,
जो
बना देता है एक प्रश्न,
अपने सामने पड़ने वाले
व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को,
जिसे न हटा पाने की सूरत में
वह रह जाता है,
सिर्फ़ एक प्रश्न चिन्ह ?
अरे वाह! आपने तो प्रश्नों की झडी ही लगा दी!! इतने प्रश्न कहां से पाये?? वैसे बहुत शानदार रचना है. इसकी प्रेरणा आपको कहां मिली? मेरे प्रश्नों का जवाब देंगे न?
ReplyDeleteबंधुवर,
ReplyDeleteठीक कहा आपने, किन्तु, बूढे वृक्ष को नवचेतना के छंद लिखने नहीं थे, वह तो उसकी शिथिल होती संरचना में भी उसका मानसलोक बुन रहा था; क्योंकि पत्तों में हरीतिमा, फूलों में लालिमा शेष थी, जीवन शेष था....इस काव्य-चित्र में परोक्षतः जो कहना चाह है मैंने, आप उससे ज्यादा आगे देखने की कोशिश कर रहे हैं!
एक बात बताऊँ, इस रचना का पुराना शीर्षक था--'बीमार बाबूजी'. ८६ वर्ष की उम्र में जब मेरे पिताजी पहली और अंतिम बार बीमार पड़े थे, तत्कालीन मनोदशा को मैंने इन पंकियों में व्यक्त किया है. मेरा अनुरोध है, अब एक बार फिर इस कविता को पढें, विश्वास है, उपरी लीपापोती की बात आप भूल जायेंगे. सप्रीत...
अग्रज आनंद वर्धन जी|
ReplyDeleteमै सन्दर्भ को समझ नहीं पाया था |
आपका आश्य मेरे लिए पूर्णतः स्पष्ट न होते हुए भी मैंने टिप्पणी की थी |
लेकिन अब शंका दूर हो गई है |
मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद |
aapki rachana vandana ke yaha main padh chuki thi .achchhi hai .
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा काव्य!
ReplyDeleteप्रश्न और प्रतिप्रश्न कवि-मन में मुखर है,
ReplyDeleteलघु-महत्तम प्रश्न की उलझन प्रखर है.
बात इतनी है कि कोई हल नहीं है,
अनुत्तरित का हल भी सरल नहीं है.
अंततः वह हल भी एक विराट प्रश्न में तब्दील हो जाता है--प्रियवर, अच्छा चिंतन है जो व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक की चिंता करता है. काव्य-भाषा में एक सार्थक प्रश्न खडा करने के लिए बधाई ! सप्रीत...