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जी नही, मैं इन दो महान व्यक्तितों में कोई तुलना नहीं करने जा रहा | तुलना ना की जा सकती है, ना ही करनी उचित है, क्योंकि वह असंगत होगी | बल्कि बात सिर्फ़ इतनी है कि आज 23 जुलाई है, और बाल गंगाधर तिलक (23 जुलाई, 1856 - १ अगस्त १९२०) और चंद्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931) का जन्म दिवस भी । मेरा यह ब्लॉग पोस्ट इन महान सपूतों को याद करने का एक बहाना है ।
तिलक के बारे में वेलेंटाइन शिरोल ने कहा था कि "वे भारत में अशांति के जन्मदाता थे ।" यह कथन उन पर पूर्णतः सही उतरता है क्योंकि 'तिलक' भारतीय असन्तोष के वास्तविक जनक थे । तिलक कांग्रेस के ’गरम दल’ के नेताओं में से थे और उनका मानना थ कि आजादी हमें मांगने से नहीं मिलेगी बल्कि इसे हमें लडकर हासिल करना पडेगा ।
"स्वतन्त्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा ।"
वे राज्द्रोह के सबसे खतरनाक अग्रदूतों में से थे । 'गीता रहस्य' तथा 'आर्कटिक होम ऑफ़ वेदाज' इनकी प्रसिद्ध पुस्तके हैं, जो लोकमान्य तिलक ने जेल में लिखी थीं | वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे | और पुस्तकें उन्होंने अंग्रेज सरकार द्वारा अपने ऊपर लगाए गए जुर्माने की भरपाई के लिए लिखी थीं |
तिलक के बचपन का प्रसंग है कि जब उनके शिक्षक ने उनसे उन मूंगफली के छिलकों को बीनने का आदेश दिया जो कक्षा में अन्य छात्रों ने फैलाये थे तो उन्होंने साफ़ इनकार कर दिया - "जब मैंने छिलके नहीं फैलाए तो मैं उन्हें क्यों बीनूं | " इस पर शिक्षक द्वारा दी गयी सजा भी उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर ली, लेकिन अपनी बात पर अडिग रहे | बाद में शिक्षक को असलियत का पता चला तो उन्हें अपने किए पर दुःख हुआ | इस तरह लोकमान्य तिलक में बचपन से ही अन्याय को किसी भी तरह बर्दाश्त न करने की अटल प्रवृत्ति थी |
नरमपंथी नेताओं के विपरीत तिलक का यह दृढ़ विश्वास था कि अंग्रज भारत को कभी भी अपनी स्वेच्छा से स्वतंत्र नहीं करेंगे | महाराष्ट में व्यापक स्तर पर मनाया जाने वाले गणेश उत्सव की शुरुआत तिलक ने ही जनता में राष्ट्रीय भावना जागृत करने के लिए की थी |
चंद्रशेखर आजाद अपने क्रांतिकारी साथियों के बीच पंडित जी के संबोधन से लोकप्रिय थे | भगत सिंह हमेशा उन्हें पंडिंत जी कहकर संबोधित करते थे | क्रांतिकारियों को संगठित करने, योजनाओं को अंजाम देने में उनका महत्वपूर्ण योगदान होता था | हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपुब्लिकन आर्मी के लगभग सभी षडयंत्रों जैसे काकोरी काण्ड, सांडर्स की ह्त्या आदि में उनकी महत्वपूर्ण भागीदारी थी |
आजाद को बचपन से ही अपने देश की गुलामी का एहसास था और वे देश को स्वतंत्र कराना चाहते थे | हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपुब्लिकन आर्मी में शामिल होने से पहले वे गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेते थे | लेकिन गांधी जी के द्वारा असहयोग आन्दोलन वापस लेने के बाद उनका अहिंसक आन्दोलन से मोहभंग हो गया और वे क्रांतिकारी तरीके से देश को आजाद कराने में जुट गए |
आजाद अपने नाम के अनुरूप हमेशा आजाद ही रहे और कभी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका |
चंद्रशेखर आजाद का उपनाम आजाद कैसे पडा इसकी भी एक कहानी है | हुआ यूँ कि असहयोग आन्दोलन के प्रदर्शन कारियों पर निर्ममता से डंडे बरसाने वाले दरोगा पर तेरह साल के दुस्साहसी बालक चंद्रशेखर ने पत्थर बरसा कर उसका सिर फोड़ दिया | इस अपराध में उन्हें अदालत में जब न्यायाधीश के सामने पेश किया गया | नाम पूछे जाने पर उन्होंने अपना नाम "आजाद", पिता का नाम "स्वतंत्र" और घर का पता जेल खाना बताया | इस पर जज ने उन्हें नंगी पीठ पर बीस कोडे मारने की सख्त सजा सुनाई | यह सजा उन्होंने वीरता पूर्वक "भारत माता की जय" बोलते हुए सहन कर ली | तब से "चंद्रशेखर" आजाद के नाम से प्रसिद्ध हो गए |
चद्रशेखर आजाद वेश बदलने में बहुत निपुण थे | एक बार तो वे उसी दरोगा के यहाँ घर में वेश बदलकर नौकर बनाकर रह रहे थे, जो उन्हें खोज रहा था |
आजाद के क्रांतिकारी जीवन से सम्बंधित एक और प्रसंग मैंने बहुत पहले पढ़ा था | आजाद और उनके साथी किराए से एक छोटा सा कमरा लेकर रह रहे थे | उनके घर के बगल में ही एक आदमी रहता था जो रोज रात को शराब पीकर आता और बेवजह अपनी पत्नी को मोहल्ले में घसीट-घसीट कर पीटता | आस-पड़ोस का कोई भी आदमी उसे रोकने का साहस नहीं कर पाता था | आजाद और उनके साथी प्रायः बाहर रहते और कमरे में देर रात तक जागते थे, साथ ही अपनी गोपनीयत भंग होने के डर से उसे नजरअंदाज कर रहे थे |
एक दिन सबेरे सबेर आजाद कमरे से बाहर निकलकर कहीं जा रहे थे, तभी सामने उनका पड़ोसी मिल गया | उसने आजाद से कहा आप लोग क्या देर रात तक कमरे में कुछ ठोंका-पीटी करते रहते हैं | आजाद ने कहा कि हम तो किसी मशीन के साथ ठोंका पेटी कर रहे थे और तुम तो अपनी गउ जैसी पत्नी को बेरहमी से पीटते हो | तुम्हे शर्म आनी चाहिए | इतना सुनते ही वह तैश में आ गया और चिल्लाते हुए बोला - तू कौन होता है साले मेरे मामले में दखल देने वाला | आजाद ने उसे एक भारी झापड़ रसीद किया तो वह धूल-चाटने लगा | साथ ही उन्होंने उसे चेतावनी देते हुए कहा कि तुमने मुझे साला कहा है, इस तरह तेरे पत्नी मेरी बहन हुई | आज के बाद यदि तूने मेरी बहन पर हाथ उठाया तो तेरी हड्डी-पसली तोड़कर रख दूँगा | उस दिन के बाद आजाद उसे मजाक में जीजा कहने लगे और वह उस आदमी को भी अपनी गलती का एहसास हो गया | फ़िर कभी वह अपनी पत्नी पर हाथ उठाते हुए नही देखा गया |
अपने ही एक साथी के विश्वासघात की वजह से वे इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस द्वारा घेर लिए गए और वीरता पूर्वक लड़ते हुए, अन्तिम गोली से ख़ुद को आजाद कर लिया | पुलिस में आजाद का खौफ इस कदर था की
उनके मृत शरीर पर भी उन्होंने गोलियाँ चलाईं कि कहीं वे जिंदा न हों | इस तरह थे चन्द्रशेखर आजाद |
स्वतंत्रता संग्राम के नायकों का प्रभाव और महत्व उनके द्वारा प्रत्यक्षतः पायी गयी सफलताओं से बढ़कर है | यद्यपि सक्रिय क्रांतिकारी गतिविधियाँ "आजाद" के बाद लगभग समाप्त हो गयी थीं, किंतु इन क्रांतिकारियों ने भारतीय युवकों के मन-मानस में साहस का जो संचार किया, उसीने आगे चलकर भारतीय ह्रदय में स्वतंत्रता की तड़प पैदा की |
व्यक्ति का आकलन हमेशा उसकी परिस्थितियों के संदर्भ में करना चाहिए |
(कृपया ध्यान दें कि नाम के ऊपर दी गयी लिन्क विकिपीडिया से हैं और यहाँ पर इनके जीवन से सम्बंधित समस्त जानकारी उपलब्ध हैं |)
तिलक के बारे में वेलेंटाइन शिरोल ने कहा था कि "वे भारत में अशांति के जन्मदाता थे ।" यह कथन उन पर पूर्णतः सही उतरता है क्योंकि 'तिलक' भारतीय असन्तोष के वास्तविक जनक थे । तिलक कांग्रेस के ’गरम दल’ के नेताओं में से थे और उनका मानना थ कि आजादी हमें मांगने से नहीं मिलेगी बल्कि इसे हमें लडकर हासिल करना पडेगा ।
"स्वतन्त्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा ।"
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वे राज्द्रोह के सबसे खतरनाक अग्रदूतों में से थे । 'गीता रहस्य' तथा 'आर्कटिक होम ऑफ़ वेदाज' इनकी प्रसिद्ध पुस्तके हैं, जो लोकमान्य तिलक ने जेल में लिखी थीं | वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे | और पुस्तकें उन्होंने अंग्रेज सरकार द्वारा अपने ऊपर लगाए गए जुर्माने की भरपाई के लिए लिखी थीं |
तिलक के बचपन का प्रसंग है कि जब उनके शिक्षक ने उनसे उन मूंगफली के छिलकों को बीनने का आदेश दिया जो कक्षा में अन्य छात्रों ने फैलाये थे तो उन्होंने साफ़ इनकार कर दिया - "जब मैंने छिलके नहीं फैलाए तो मैं उन्हें क्यों बीनूं | " इस पर शिक्षक द्वारा दी गयी सजा भी उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर ली, लेकिन अपनी बात पर अडिग रहे | बाद में शिक्षक को असलियत का पता चला तो उन्हें अपने किए पर दुःख हुआ | इस तरह लोकमान्य तिलक में बचपन से ही अन्याय को किसी भी तरह बर्दाश्त न करने की अटल प्रवृत्ति थी |
नरमपंथी नेताओं के विपरीत तिलक का यह दृढ़ विश्वास था कि अंग्रज भारत को कभी भी अपनी स्वेच्छा से स्वतंत्र नहीं करेंगे | महाराष्ट में व्यापक स्तर पर मनाया जाने वाले गणेश उत्सव की शुरुआत तिलक ने ही जनता में राष्ट्रीय भावना जागृत करने के लिए की थी |
चंद्रशेखर आजाद अपने क्रांतिकारी साथियों के बीच पंडित जी के संबोधन से लोकप्रिय थे | भगत सिंह हमेशा उन्हें पंडिंत जी कहकर संबोधित करते थे | क्रांतिकारियों को संगठित करने, योजनाओं को अंजाम देने में उनका महत्वपूर्ण योगदान होता था | हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपुब्लिकन आर्मी के लगभग सभी षडयंत्रों जैसे काकोरी काण्ड, सांडर्स की ह्त्या आदि में उनकी महत्वपूर्ण भागीदारी थी |
आजाद को बचपन से ही अपने देश की गुलामी का एहसास था और वे देश को स्वतंत्र कराना चाहते थे | हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपुब्लिकन आर्मी में शामिल होने से पहले वे गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेते थे | लेकिन गांधी जी के द्वारा असहयोग आन्दोलन वापस लेने के बाद उनका अहिंसक आन्दोलन से मोहभंग हो गया और वे क्रांतिकारी तरीके से देश को आजाद कराने में जुट गए |
आजाद अपने नाम के अनुरूप हमेशा आजाद ही रहे और कभी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका |
चंद्रशेखर आजाद का उपनाम आजाद कैसे पडा इसकी भी एक कहानी है | हुआ यूँ कि असहयोग आन्दोलन के प्रदर्शन कारियों पर निर्ममता से डंडे बरसाने वाले दरोगा पर तेरह साल के दुस्साहसी बालक चंद्रशेखर ने पत्थर बरसा कर उसका सिर फोड़ दिया | इस अपराध में उन्हें अदालत में जब न्यायाधीश के सामने पेश किया गया | नाम पूछे जाने पर उन्होंने अपना नाम "आजाद", पिता का नाम "स्वतंत्र" और घर का पता जेल खाना बताया | इस पर जज ने उन्हें नंगी पीठ पर बीस कोडे मारने की सख्त सजा सुनाई | यह सजा उन्होंने वीरता पूर्वक "भारत माता की जय" बोलते हुए सहन कर ली | तब से "चंद्रशेखर" आजाद के नाम से प्रसिद्ध हो गए |
चद्रशेखर आजाद वेश बदलने में बहुत निपुण थे | एक बार तो वे उसी दरोगा के यहाँ घर में वेश बदलकर नौकर बनाकर रह रहे थे, जो उन्हें खोज रहा था |
आजाद के क्रांतिकारी जीवन से सम्बंधित एक और प्रसंग मैंने बहुत पहले पढ़ा था | आजाद और उनके साथी किराए से एक छोटा सा कमरा लेकर रह रहे थे | उनके घर के बगल में ही एक आदमी रहता था जो रोज रात को शराब पीकर आता और बेवजह अपनी पत्नी को मोहल्ले में घसीट-घसीट कर पीटता | आस-पड़ोस का कोई भी आदमी उसे रोकने का साहस नहीं कर पाता था | आजाद और उनके साथी प्रायः बाहर रहते और कमरे में देर रात तक जागते थे, साथ ही अपनी गोपनीयत भंग होने के डर से उसे नजरअंदाज कर रहे थे |
एक दिन सबेरे सबेर आजाद कमरे से बाहर निकलकर कहीं जा रहे थे, तभी सामने उनका पड़ोसी मिल गया | उसने आजाद से कहा आप लोग क्या देर रात तक कमरे में कुछ ठोंका-पीटी करते रहते हैं | आजाद ने कहा कि हम तो किसी मशीन के साथ ठोंका पेटी कर रहे थे और तुम तो अपनी गउ जैसी पत्नी को बेरहमी से पीटते हो | तुम्हे शर्म आनी चाहिए | इतना सुनते ही वह तैश में आ गया और चिल्लाते हुए बोला - तू कौन होता है साले मेरे मामले में दखल देने वाला | आजाद ने उसे एक भारी झापड़ रसीद किया तो वह धूल-चाटने लगा | साथ ही उन्होंने उसे चेतावनी देते हुए कहा कि तुमने मुझे साला कहा है, इस तरह तेरे पत्नी मेरी बहन हुई | आज के बाद यदि तूने मेरी बहन पर हाथ उठाया तो तेरी हड्डी-पसली तोड़कर रख दूँगा | उस दिन के बाद आजाद उसे मजाक में जीजा कहने लगे और वह उस आदमी को भी अपनी गलती का एहसास हो गया | फ़िर कभी वह अपनी पत्नी पर हाथ उठाते हुए नही देखा गया |
अपने ही एक साथी के विश्वासघात की वजह से वे इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस द्वारा घेर लिए गए और वीरता पूर्वक लड़ते हुए, अन्तिम गोली से ख़ुद को आजाद कर लिया | पुलिस में आजाद का खौफ इस कदर था की
उनके मृत शरीर पर भी उन्होंने गोलियाँ चलाईं कि कहीं वे जिंदा न हों | इस तरह थे चन्द्रशेखर आजाद |
स्वतंत्रता संग्राम के नायकों का प्रभाव और महत्व उनके द्वारा प्रत्यक्षतः पायी गयी सफलताओं से बढ़कर है | यद्यपि सक्रिय क्रांतिकारी गतिविधियाँ "आजाद" के बाद लगभग समाप्त हो गयी थीं, किंतु इन क्रांतिकारियों ने भारतीय युवकों के मन-मानस में साहस का जो संचार किया, उसीने आगे चलकर भारतीय ह्रदय में स्वतंत्रता की तड़प पैदा की |
व्यक्ति का आकलन हमेशा उसकी परिस्थितियों के संदर्भ में करना चाहिए |
(कृपया ध्यान दें कि नाम के ऊपर दी गयी लिन्क विकिपीडिया से हैं और यहाँ पर इनके जीवन से सम्बंधित समस्त जानकारी उपलब्ध हैं |)
भाई,
ReplyDeleteतिलक और आजाद का पुण्य-स्मरण तथा नमन करके आपने स्तुत्य कार्य किया है. आपके आलेख से यह जानना भी सुखद है कि आज ही उन युग-पुरुषों की जयंती है. आपके याद दिलाने पर मैं भी उनकी स्मृति में नतग्रीव हूँ ! इस आलेख को पढ़कर २३ जुलाई का दिन तो मेरे लिए पुण्यश्लोक हो गया है... साधु ! साधु !!
चरण स्पर्श सर, प्रकाश ओझा, इलाहाबाद विश्विद्यालय
Deleteसुन्दर और सामयिक आलेख.अच्छा लगा कि चलो किसी ने तो इन महान आत्माओं को याद किया. वरना अखबारों ने तो एक छोटी सी खबर भी इस बारे में छापना ज़रूरी नहीं समझा.
ReplyDeleteमहान आत्माओं को याद करके आपने सचमुच बहुत ही अच्छा काम किया है .. मेरा भी नमन उन्हें !!
ReplyDeleteमहान सपूतों को याद करने का यह बहाना अच्छा लगा ...तिलक जी और चंद्रशेखर आजाद जी के बारे में बहुत सी उम्दा जानकारी भी मिली .....आभार .....!!
ReplyDeleteआपका लेख !!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत उम्दा !!
सर्वश्री बालगंगाधर तिलक और सर्वश्री चन्द्र शेखर आजाद ये दो नाम याद करने योग्य नहीं पूजने योग्य हैं, मैं तो विसे भी श्री आजाद की परम भक्त हूँ, आपकी ओज पूर्ण रचना ने और भी मस्तक ऊँचा कर दिया हमारा, जिन्हें सभी भूल चुके हैं, उन्हें याद दिला कर बहुत ही अच्छा किया आपने, वर्ना इन्हें याद ही कौन करता है अब :
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरनेवालों का यही बाकी निशान होगा...
बहुत बढ़िया पोस्ट |
ReplyDeleteभारत माता के इन दोनों लालो को मेरा शत शत नमन |
जय हिंद |
इन महान पुरूषों को मेरा सत सत नमन ।
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