कट्टरता एक बंद कमरे की तरह होती है, जिसमें कोई दरवाजा खिड़की या रोशनदान नहीं होता स्वाभाविक है कि ऐसे कमरे में सिर्फ़ घुटन होगी और सृजन का कोई भी बीज वहां अंकुरित नही हो सकता कट्टरता का मतलब होता है कि सिर्फ़ यही विचार सही है और बाकी सब ग़लत - "तुम मेरे शत्रु हो क्योंकि तुम मुझसे भिन्न मत रखते हो"
"मैं तुम्हे बर्दास्त नही कर सकता क्योंकि तुम्हारे ढंग मुझसे भिन्न हैं" यह कट्टरता का मूल स्वर है इस तरह कट्टरता सोच विचार, संदेह और विमर्श के सभी रास्ते बंद कर देती है कट्टर दिमाग कभी सृजनात्मक नही हो सकता यह कहा जा सकता है कि कट्टर व्यक्ति कूप मंडूक के समान होता है
यह एक विरोधाभास है कि अपने सैद्धांतिक रूप में कट्टरता स्वयं की भी दुश्मन अर्थात आत्मघाती है, क्योंकि "यह दूसरे को बर्दास्त न कर सकने कि प्रवृत्ति है" |
कट्टरता के कई प्रमुख ठिकाने हैं, जिनमें धर्म सबसे महत्वपूर्ण है सबको पता है कि धार्मिक और जातीय कट्टरता के कारण मनुष्य को कितनी यातना सहनी पड़ी है वर्तमान कि घटनाओं को देखकर मैं सोच में पड़ जाता हूँ कि हम आगे जा रहे हैं या पीछे जा रहें हैं |
कट्टरता एक आदिम प्रवृत्ति है आज विज्ञान के उत्तर आधुनिक काल में इसकी कोई आवश्यकता नही है |
आज के युवाओं और किशोरों का यह कर्त्तव्य है कि सहिष्णुता और भाईचारे के विचारों को अधिक से अधिक प्रचारित करें हम इस पृथ्वी पर अकेले जीवित नहीं रह सकते, हमें साथ साथ ही रहना होगा
हमें इतिहास से सबक लेना होगा और अपने तथाकथित बुद्धिमानो (जिनके प्रेम के सिद्धांत का परिणाम घृणा के अलावा और कुछ नही हुआ) के उपदेशों पर आँख खोलनी होगी
कट्टरता को रुढिवादिता भी कहते हैं, पोंगापंथ और कठमुल्लापन इससे मिलते जुलते शब्द हैं लेकिन यहाँ मैं एक विशेष बात की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ की कट्टरता पर किसी विशेष विचार का पेटेंट नहीं है मेरा मतलब धर्मं या भगवान को न मानने वाले अर्थात जो अपने को नास्तिक कहते हैं, जो अपने को अडवांस या अग्रिम मानते हैं, भी उतने ही कट्टर हो सकते हैं जितने की धर्मभीरु और पुरातनपंथी |
मेरे विचार से, किसी एक मत को सबके लिए स्थापित करने की सोच ऐसे ही है जैसे सबको एक ही नाप के कपडे या जूते पहनाने की कोशिश करना जो की हास्यास्पद और तकलीफदेह है विविधता को समस्या मानना और उसे ख़त्म करने की कोशिश करना, दुनिया को उबाऊ बनाने की कवायद के अतिरिक्त और कुछ नहीं है |
लकीर के फकीर दो तरह के होते हैं - कुछ नए लोग जो सभी पुराने को कूड़ा मानते हैं, दूसरे वे पुराने जो कुछ नया (खासकर विचार) देखकर आक्रामक हो जाते हैं दोनों तरह की सोच खतरनाक है और समाज के लिए घातक है |
कट्टरता की सबसे बड़ी खराबी यह है कि इसमें समय के साथ अपडेट होते रहने की प्रवृत्ति और क्षमता का नितांत अभाव होता है | यदि युवा यह सीख सकें कि कोई भी विचार अन्तिम नहीं है, क्योंकि बेहतरी की गुंजाईश हमेशा रहती है तो हम समाज को अधिक समझदार और उदार बना सकते हैं एवं सतत विकासोन्मुख बने रह सकते हैं |
"मैं तुम्हे बर्दास्त नही कर सकता क्योंकि तुम्हारे ढंग मुझसे भिन्न हैं" यह कट्टरता का मूल स्वर है इस तरह कट्टरता सोच विचार, संदेह और विमर्श के सभी रास्ते बंद कर देती है कट्टर दिमाग कभी सृजनात्मक नही हो सकता यह कहा जा सकता है कि कट्टर व्यक्ति कूप मंडूक के समान होता है
यह एक विरोधाभास है कि अपने सैद्धांतिक रूप में कट्टरता स्वयं की भी दुश्मन अर्थात आत्मघाती है, क्योंकि "यह दूसरे को बर्दास्त न कर सकने कि प्रवृत्ति है" |
कट्टरता के कई प्रमुख ठिकाने हैं, जिनमें धर्म सबसे महत्वपूर्ण है सबको पता है कि धार्मिक और जातीय कट्टरता के कारण मनुष्य को कितनी यातना सहनी पड़ी है वर्तमान कि घटनाओं को देखकर मैं सोच में पड़ जाता हूँ कि हम आगे जा रहे हैं या पीछे जा रहें हैं |
कट्टरता एक आदिम प्रवृत्ति है आज विज्ञान के उत्तर आधुनिक काल में इसकी कोई आवश्यकता नही है |
आज के युवाओं और किशोरों का यह कर्त्तव्य है कि सहिष्णुता और भाईचारे के विचारों को अधिक से अधिक प्रचारित करें हम इस पृथ्वी पर अकेले जीवित नहीं रह सकते, हमें साथ साथ ही रहना होगा
हमें इतिहास से सबक लेना होगा और अपने तथाकथित बुद्धिमानो (जिनके प्रेम के सिद्धांत का परिणाम घृणा के अलावा और कुछ नही हुआ) के उपदेशों पर आँख खोलनी होगी
कट्टरता को रुढिवादिता भी कहते हैं, पोंगापंथ और कठमुल्लापन इससे मिलते जुलते शब्द हैं लेकिन यहाँ मैं एक विशेष बात की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ की कट्टरता पर किसी विशेष विचार का पेटेंट नहीं है मेरा मतलब धर्मं या भगवान को न मानने वाले अर्थात जो अपने को नास्तिक कहते हैं, जो अपने को अडवांस या अग्रिम मानते हैं, भी उतने ही कट्टर हो सकते हैं जितने की धर्मभीरु और पुरातनपंथी |
मेरे विचार से, किसी एक मत को सबके लिए स्थापित करने की सोच ऐसे ही है जैसे सबको एक ही नाप के कपडे या जूते पहनाने की कोशिश करना जो की हास्यास्पद और तकलीफदेह है विविधता को समस्या मानना और उसे ख़त्म करने की कोशिश करना, दुनिया को उबाऊ बनाने की कवायद के अतिरिक्त और कुछ नहीं है |
लकीर के फकीर दो तरह के होते हैं - कुछ नए लोग जो सभी पुराने को कूड़ा मानते हैं, दूसरे वे पुराने जो कुछ नया (खासकर विचार) देखकर आक्रामक हो जाते हैं दोनों तरह की सोच खतरनाक है और समाज के लिए घातक है |
कट्टरता की सबसे बड़ी खराबी यह है कि इसमें समय के साथ अपडेट होते रहने की प्रवृत्ति और क्षमता का नितांत अभाव होता है | यदि युवा यह सीख सकें कि कोई भी विचार अन्तिम नहीं है, क्योंकि बेहतरी की गुंजाईश हमेशा रहती है तो हम समाज को अधिक समझदार और उदार बना सकते हैं एवं सतत विकासोन्मुख बने रह सकते हैं |
प्रियवर, अति उत्तम विचार--प्रभाव छोडनेवाला ! किन्तु आज की दुनिया में ग्रहणशील लोगों की कमी होती जा रही है; ऐसे में गिनती के लोग भी आपके आलेख से तत्व ग्रहण कर सकें तो अपना लिखना सार्थक समझिये. साधुवाद !
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा कट्टरता के बारे में
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
गम्भीर चिन्तन!!! खुद को नास्तिक कहने वाला झूठ बोलता है, क्योंकि हर इन्सान की आस्था कहीं ना कहीं अवश्य जुडी होती है. ऐसे लोग कुछ ज़्यादा ही कट्टर भी होते हैं. बधाई.
ReplyDeleteबहुत ही सही कहा आपने.....कट्टरता विचारने की शक्ति का नाश कर देती है.....
ReplyDeleteकट्टरता का आपने सही रूप से चित्रण किया है
ReplyDeleteकट्टरता किसी भी विषय के अन्य पहलु को नकारती है..अतः सही विश्लेषण में बाधक हो जाती है.
ReplyDeleteएक सार्थक चिन्तन.