जब मैं वहॉं पहुँचा तो चेन स्मोकर की उँगलियों में सुलगती हुई आखिरी सिगरेट बुझ चुकी थी । मुझे देखते ही उसने दो उँगलियों में फंसे हुए सिगरेट के समाप्त प्राय छोटे से टुकडे को मुँह में लगाते हुए एक अाखिरी कश लेने की कोशिश की , इस बात से बेखबर कि वहॉं अब खींचने के लिए कुछ नहीं बचा है ।
उसे अफसोस हुआ कि वह आखिरी कश नहीं खींच सका । एक उलाहना भरी मुस्कराहट से उसने मेरी ओर देखते हुए सिगरेट फेंक दी । फिर उसने सोचा कि अच्छा हुआ कि यहॉं उसके कमरे में भूकम्प नहीं आया वरना वह हैती के दो लाख लोगों की तरह लाशों की ढेर में से एक होता । इससे उसे पहले कुछ राहत फिर बेचैनी महसूस हुई । बेचैनी उन अनुमानों को याद करके जिसमें कहा गया था कि हैती का भूकम्प मानव जनित है । खैर ।
उसने मुझसे पूछा कि ज्यादा अफसोस जनक क्या है । भूकम्प में लाखों लोगों का मारा जाना , भूकम्प आना या सिगरेट का आखिरी कश न खींच पाना या बच्चों का आत्महत्या करना या चुनावों में लोकतंत्र का हश्र देखना या आमरण अनशन करना या तुम्हारा लम्बे समय तक कोई ब्लॉग पोस्ट न लिख पाना .... या कुछ और .... वह कई अफसोसनाक चीजें गिनाना चाहता था , लेकिन उसकी याददाश्त ने उसका साथ छोड दिया मैंने कोई जवाब न देते हुए उसे बोलने दिया ।
फिर उसने कहा कि अभी चंद दिनों तक उसके चैट बॉक्स में कभी कभार अचानक थोडी देर के प्रकट हो जाने वाले उस 21-22 वर्ष के लडके ने आत्महत्या क्यों कर की । क्या वह लडका बेचैन था । लेकिन वह तो हमेशा हँसमुख रहता था । फिर उसने कहा कि अखबारों में पढना और अपनी जिंदगी में देखने में काफी फर्क होता है । उतना ही जितना तुम नहीं समझ सकते कि मुझे सिर्फ एक आखिरी कश न खींच पाने का कितना अफसोस हो सकता है ।
मैं उसकी बातों को संजीदगी से सुनता रहा । बल्कि वह ऐसे बोल रहा था जैसे इन सारी अफसोनाक घटनाओं में मेरा भी कुछ हाथ है ।
फिर उसने कहा कि अभी चंद दिनों तक उसके चैट बॉक्स में कभी कभार अचानक थोडी देर के प्रकट हो जाने वाले उस 21-22 वर्ष के लडके ने आत्महत्या क्यों कर की । क्या वह लडका बेचैन था । लेकिन वह तो हमेशा हँसमुख रहता था । फिर उसने कहा कि अखबारों में पढना और अपनी जिंदगी में देखने में काफी फर्क होता है । उतना ही जितना तुम नहीं समझ सकते कि मुझे सिर्फ एक आखिरी कश न खींच पाने का कितना अफसोस हो सकता है ।
मैं उसकी बातों को संजीदगी से सुनता रहा । बल्कि वह ऐसे बोल रहा था जैसे इन सारी अफसोनाक घटनाओं में मेरा भी कुछ हाथ है ।
उसका वक्तव्य जारी था "वह लडका खुश दिखता था । दुखी होना अच्छी बात नहीं है । बेचैन होना अच्छा नहीं माना जाता इसीलिए शायद वह दुखी और बेचैन नहीं बल्कि मुस्कुराता हुआ दिखता था । इससे आत्महत्या करने में मदद मिलती है । बेचारा कविता भी नहीं लिख सका । किसी ने कहा था कि कायर होते हैं आत्महत्या करने वाले । "
यह कहते हुए उसे गुस्सा आया ।
"जब उसकी बॉडी पडी हुई थी । कई लोग बातचीत और काम धंधे की बात कर रहे थे । तब उसे लगा कि मरना कोई इतनी महत्वपूर्ण बात नहीं है, इन लोगों के लिए । कई लोग कह रहे थे कि खुद मर गया लेकिन परिवार को जीते जी मार गया । फाइनली तो अपनी ही चिंता होती है । तब उसे खयाल आया कि आखिरी कश से पहले सिगरेट बुझ जाना उतनी बुरी बात नहीं है जितनी कि मरकर दूसरों को दुख देना । "
"लोग ऐसा सोचते होंगे या वैसा सोचते होंगे । लेकिन उसे संदेह है , कि लोग सोचते हैं । वह भी लोगों में ही आता है । क्योंकि वह बुझी हुई सिगरेट से कश लेने की कोशिश करता है । लेकिन उसे पता है कि वही लोग उसके कातिल हैं, जो जार-जार रो रहे हैं क्योंकि वे उसी समाज के हिस्से हैं , जिसने मजबूर किया उसे विदा होने के लिए ।"
"दुखी होना बुरी बात है । अंधेरे को प्रकट करना भी अच्छी बात नहीं है । आदमी को हमेशा प्रसन्न रहना चाहिए । क्योंकि एक तो अफसोस उससे भी अफसोसनाक एक बुरी बात होने का अफसोस । आखिर मेकअप किसलिए बनाया गया है । इसे सम्हालकर चलना चाहिए । इससे आत्महत्या करने में सहायता मिलती है । एक व्यक्ति और समाज को । अलग-अलग तरह से । सब कुछ अच्छा है । आल इज वेल । आल इज वेल । लगता है वह फिल्म नहीं देख पाया था ।"
उसे ब्लॉग लिखना चाहिए था । आखिर ब्लॉग होता किसलिए है ।
उसे ब्लॉग लिखना चाहिए था । आखिर ब्लॉग होता किसलिए है ।
"गणतंत्र दिवस में खुश होने के लिए बच्चा होना या स्कूली विद्यार्थी होना जरूरी है क्या । यदि नहीं तो मुझे आज खुशी क्यों नहीं हो रही । क्या इसलिए कि कोहरे का असर दिल्ली की परेड पर पडा ।" या वह असंतुष्ट था किसी झांकी से । मैंने उसे याद दिलाया कि अपने यहॉं की परेड पाकिस्तान से बहुत अच्छी होती है । ओर वहॉं लोकतंत्र की फजीहत भी बहुत है । हम पाकिस्तान से हर मामले में आगे हैं ।
उसने कहा कि तुम सिर्फ तब तक ही बोल सकते हो जब तक मैं चीन का नाम नहीं लेता । मैं उससे बहस नहीं करना चाहता था । इसलिए चुप रहा । फिर वह महाराष्ट्र का राग अलापना चाहता था । मुझे देर हो रही थी मैने उसे टोकते हुए कहा कि ऐसे तो कोई अंत ही नहीं है ।
तुम अपने आखिरी कश न ले पाने की खीज को कहॉं तक लपेटोगे । चलो उठो बाहर घूम कर आते हैं ।
उसने कहा, "लेकिन तुमने बताया नहीं कि ज्यादा अफसोसनाक क्या है , आखिरी कश न ले पाना या कुछ और ।"
मैनें कहा कि तुम गलती पर हो मेरे दोस्त ! आखिरी कश हमेशा लिया जा चुका होता है जिंदगी का , जब तुम पहला ले रहे होते हो । इसीलिए कहता हूँ कि जिंदगी की सिगरेट का हर एक कश ऐसे लो जैसे वह आखिरी हो ।
यह तुम्हारी खाम्हख्याली ही है कि तुम आखिरी कश को तय करोगे । और इससे पहले कि कभी तुम्हारे ऊपर दौ सौ रुपये या उससे ज्यादा का जुर्माना हो तुम्हे यह आदत छोड देनी चाहिए । इससे तुम्हे अफसोस भी नहीं होगा ।
उसने मुस्कुरा कर उठते हुए कहा कि चलो तुम्हारे एक ब्लॉग पोस्ट का जुगाड तो हो ही गया । बहरहाल मुझे अफसोस तो सिर्फ इस बात का है कि मैं तुम्हे बहका नहीं सका अपनी चूक पर सहानुभूति जताने के लिए और अंतत: मुझे तुम्हारे उपदेश का शिकार बनना पडा ।
उसने कहा कि तुम सिर्फ तब तक ही बोल सकते हो जब तक मैं चीन का नाम नहीं लेता । मैं उससे बहस नहीं करना चाहता था । इसलिए चुप रहा । फिर वह महाराष्ट्र का राग अलापना चाहता था । मुझे देर हो रही थी मैने उसे टोकते हुए कहा कि ऐसे तो कोई अंत ही नहीं है ।
तुम अपने आखिरी कश न ले पाने की खीज को कहॉं तक लपेटोगे । चलो उठो बाहर घूम कर आते हैं ।
उसने कहा, "लेकिन तुमने बताया नहीं कि ज्यादा अफसोसनाक क्या है , आखिरी कश न ले पाना या कुछ और ।"
मैनें कहा कि तुम गलती पर हो मेरे दोस्त ! आखिरी कश हमेशा लिया जा चुका होता है जिंदगी का , जब तुम पहला ले रहे होते हो । इसीलिए कहता हूँ कि जिंदगी की सिगरेट का हर एक कश ऐसे लो जैसे वह आखिरी हो ।
यह तुम्हारी खाम्हख्याली ही है कि तुम आखिरी कश को तय करोगे । और इससे पहले कि कभी तुम्हारे ऊपर दौ सौ रुपये या उससे ज्यादा का जुर्माना हो तुम्हे यह आदत छोड देनी चाहिए । इससे तुम्हे अफसोस भी नहीं होगा ।
उसने मुस्कुरा कर उठते हुए कहा कि चलो तुम्हारे एक ब्लॉग पोस्ट का जुगाड तो हो ही गया । बहरहाल मुझे अफसोस तो सिर्फ इस बात का है कि मैं तुम्हे बहका नहीं सका अपनी चूक पर सहानुभूति जताने के लिए और अंतत: मुझे तुम्हारे उपदेश का शिकार बनना पडा ।
आखिरी काश को बहुत खूबसूरती से चित्रित किया.... बहुत सुंदर पोस्ट.... अच्छी लगी........
ReplyDeleteअर्कजेश. कितना बढ़िया लिखते हो यार... आखिरी कश से ही तुमने कितनी गंभीर बात कह दी.. बहुत ही खूबसूरत.. मेरे पास अल्फाज़ नहीं हैं..
ReplyDeleteजिंदगी की सिगरेट का हर एक कश ऐसे लो जैसे वह आखिरी हो ।
ReplyDelete-बहुत सही..बेहतरीन लेखन!
आखिरी कश हमेशा लिया जा चुका होता है जिंदगी का , जब तुम पहला ले रहे होते हो । सही बात है बस इसे ज़िन्दगी के लिये समझ लो शुभकामनायें
ReplyDeleteबन्धु,
ReplyDeleteकहना चाहूंगा कि जीवन-जगत के मंच पर घटित मर्म-विद्ध करने वाली घटनाएं और आसपास के परिदृश्य में घुलते ज़हर की बहुत तीक्ष्ण दृष्टि से पड़ताल की है आपने, एक परिसंवाद के बहाने ! इस पोस्ट में बहुत कुछ समाया हुआ है... अच्छी पोस्ट ! साधुवाद !
आप बहुत दिनों से नदारत क्यों हैं भाई ? क्या कहीं और मसरूफ हैं ?
सप्रीत--आ.
सेंटीयाना एक अच्छी वर्जिश है इससे दिल की रिपेयरिंग होती है ओर रूह को सनद मिलती है के आप जिंदा है .....जो इससे महरूम है वे अभागे है .....
ReplyDelete@
ReplyDeleteमहफूज़ अली,
अबयज़ ख़ान,
समीर जी,
मनोज कुमार,
निर्मला कपिला,
आप सभी का शुक्रिया । ;;)
@आनन्द वर्धन ओझा जी ,
ReplyDeleteअपनापे से भरी आपकी टिप्पणियों के लिए आभारी हूँ । सच मानिए अपनी पोस्ट से अच्छी मुझे आपकी टिप्पणी लगती हैं ।
@ डॉ . साहब ,
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी सुकून देने वाली औषधि की तरह लग रही है । शुक्रिया ।
मैं तो स्तब्ध रह गया. एक मामूली से वाक्य से आरम्भ हुए इस लेख ने सारी जमाने की नंगी-कडवी सच्चाइयां किस तरह समेट रखी हैं, हैरानी है.
ReplyDeleteबातें, सिर्फ बातें ही तो कर रहे हैं, हम सभी.
मैं इस पोस्ट पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं रह गया.
arkjesh ,bahut badhiya likha hai ,akhri kash aur itni sachchaiyan zindagi ki ,sirf baten karke hi ,keval badi badi samasyaon ki charcha karke hi kya hamare kartavyon ki itishri ho sakti hai ,lekin ham hal nikalne ki zimmedari lene ko taiyar nahin hain,
ReplyDeletebadhai ho ,hamesha khush raho aur isi tarah khoob achchha likhte raho .
सुन्दर प्रस्तुती
ReplyDeleteसिगरेट के कस से स्टार्ट हुयी बात
कहाँ तक पहुंची
आभार
फिर उसने कहा कि अखबारों में पढना और अपनी जिंदगी में देखने में काफी फर्क होता है । उतना ही जितना तुम नहीं समझ सकते कि मुझे सिर्फ एक आखिरी कश न खींच पाने का कितना अफसोस हो सकता है ।
ReplyDeletesach hi hai iske liye alfaaj nahi mile ,man ko chhoo gayi ,jawab nahi ,aagaz aur anjaam behtrin rahe .kai baar padhne ko jee chah raha hai or iski taslli ke liye aana hi padega dobara .
आखरी काश ......... बहुत अच्छा लिखा है .......... बहुत गुबार समेटे है जिंदगी .........
ReplyDeleteआप कहना क्या चाहते हैं अर्कजेश ! कि अब आप ऐसा-ऐसा गद्य भी लिखेंगे ! हमारे लिए कुछ छोड़ेंगे कि नहीं ? हम क्या कश लिए बगैर गश खाकर गिर जाएं:)
ReplyDelete@
ReplyDeleteसर्वत एम .
इस्मत जैदी
psingh,
ज्योति सिंह,
दिगम्बर नासवा,
संजय ग्रोवर ,
हौसलाअफजाई के लिए आप सभी का बहुत आभार ।
Kitna kuch samet liya is post me aapne!shukamnayen.
ReplyDeleteयह आखरी कश बहुत मोहक बिम्ब है ।
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