मुझे,
पता नहीं है
कैसे, लिख देता हूँ
चंद पंक्तियां, कभी
अचानक ही,
उन पंक्तियों के समूह को
कह देता हूँ, कविता
ब्लॉग पोस्ट के लेबल पर
चिप्पियॉं या टैग में
जबकि,
मुझे पता है,
मैं नहीं लिख सकता
कोशिश करके भी,
वह सब
जो मैंने लिखी हैं,
अनायास ही किसी पल में,
किसी भाव दशा में
शायद,
इसीलिए, कह देता हूँ उसे
कविता,
क्योंकि वह,
आती है अपनी मर्जी से
मेरी कोशिशों से मुक्त, सर्वदा
जैसे,
प्रेम आता है किन्ही पलों में
अपनी स्वतंत्रता में,
मेरी गैर मौजूदगी में
फिर भी मैं श्रेय देता हूँ ,
खुद को
उस चीज के लिए ,
सिर्फ प्रतीकात्मक है यह .
यद्यपि,
मैं जानता हूँ, हर बार
कुछ पंक्तियॉं लिखने के संतोष
और
प्रेम के आनंदपूर्ण क्षणों के
पश्चात भी, कि मैं
नहीं पहुंच सका हूँ
अब भी ,
कविता और प्रेम तक
फिर से लेबल कविता.. :)
ReplyDeleteवैसे वाकई कविता ही तो है..
क्योंकि वह,
आती है अपनी मर्जी से
मेरी कोशिशों से मुक्त, सर्वदा
-सुन्दर अभिव्यक्ति!!
मैं कहीं कवि न बन जाऊं, तेरे प्यार में ए कविता...
ReplyDeleteजय हिंद...
सत्य वचन बन्धु !
ReplyDeleteइसकी लय अज्ञेय की 'नाच' से मिलती है।
ध्यान दीजिए मैंने कविता नहीं कहा - न इसे न 'नाच' को। बहुत खतरनाक है कविता कहना http://us.i1.yimg.com/us.yimg.com/i/mesg/emoticons7/3.gif
कुछ भी कह लें... रचना तो रचना होती है.... और अर्कजेश भाई.... बहुत शानदार रचना लिखी है....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, जो अपनी मर्जी से न आये वो कविता ही क्या ?
ReplyDeleteहां कविता ऐसे ही घुसपैठ करती है दिमाग में...विवश कर देती है लिखने पर. सुन्दर कविता रची है आपने एक बार फिर.
ReplyDeleteजैसे प्यार किया नहीं जाता
ReplyDeleteहो जाता है
वैसे ही
कविता रची नहीं जाती हो जाती है
आपके न चाहते हुए भी
ऊपर के
पंक्तियों के समूह
कविता हो गई है।
बहुत-बहुत बधाई।
mujhe to ise padhkar hansi aa gayi ,khyal yoon hi rach jate hai ,is tarah hi hum kuchh likh jaate hai .man ko bha gayi aapki ye na aane wali kavita .
ReplyDeleteकविता तक न भी पहुंचें तो गम नहीं पर ये प्रेम तक क्यों नहीं पहुँच पाए अभी तक .....???
ReplyDeleteहमें तो विश्वास नहीं ........!!
@गिरिजेश जी,
ReplyDeleteअब मैं 'नाच' ढूंढ रहा हूँ । पढने के लिए ;))
शुक्रिया ।
@ Udan Tashtari : जी हॉं समीर जी फिर से 'कविता' :))
ReplyDelete@खुशदीप जी कवि , कविता के प्यार में ही तो होता है :)
@महफूज़ : यकीनन ? :-o
@ पी.सी.गोदियाल, सही बात है :)
@ मनोज कुमार जी , धन्यवाद । :)
@ हरकीरत जी : आपको यकीन क्यों नहीं है । पता नहीं 8-}
@ ज्योति जी , हंसी आना यह बताता है कि इस कविता में हास्य रस मौजूद है और रसयुक्त वाक्य ही तो काव्य है :))
आप सभी का शुक्रिया ।
जिस पल यह एहसास हो जाए कि कविता खुद बखुद होती है, वही पल तो पूर्ण रचनाकार बनता है. आप भाग्यशाली हैं, आपने इस भेद को पा लिया है. कविता की इतनी उम्दा परिभाषा, वो भी कविता में, जितनी प्रशंसा की जाए, कम है. आप कविता को प्राप्त हो गए हैं. बधाई.
ReplyDeleteकविता के इसी भेद में मैं भी उलझा हुआ कब से अर्कजेश जी...
ReplyDeleteKavita to khud b khud hi hoti hai
ReplyDeletedekhiye ab kavita ab tak kaise likhi gayi hai aapne wo bataya to bhi kavita ho gayi
ise kahte hain kavi man
इस बार आप सफल रहे हैं ........ कविता और इतनी लाजवाब कविता के सृजन तक ........ बहुत खूब ........
ReplyDeletearkjesh ji ,
ReplyDeleteis bar man saraswati ka vardan prapt ho gaya apko , badhai ho ,
srishti ke rachayita se ab yahi dua hai ki ap kavita ki oonchaiyon ko chhoo len .
arkjesh ji ,
ReplyDeleteis bar man saraswati ka vardan prapt ho gaya apko , badhai ho ,
srishti ke rachayita se ab yahi dua hai ki ap kavita ki oonchaiyon ko chhoo len .
सुन्दर ब्लॉग... सुन्दर अपने ओरिजनल थोट... और इसी से उपजी एक ट्रैक पर आती कविता का इंजन...
ReplyDeleteदुबारा आ गया हूँ तो कुछ न कुछ करना या कहना ही है, लिहाज़ा,
ReplyDeleteजल्दी दूसरी पोस्ट लगाओ.