May 28, 2010

लिखते-लिखते हमें कुत्‍ते की पूँछ क्‍यों याद आ जाया करती है

यह जो आप पढ रहे हैं यह लाइन सबसे अंत में लिखी गई है पहले हमें लगा इसे कोई श्रृंखला जैसा कोई नाम दे दें । फिर उसी चीज के एक दो तीन पढते पढते होने वाली ऊब के याद आने की वजह से एक शीर्षक दे दिया ।

शीर्षक पर न जाऍं क्‍योंकि आपको पता ही है कि शीर्षक और पोस्‍ट का संबंध होना ब्‍लॉगिंग के फैशन के खिलाफ है
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अब वह पढें जो हमने शुरु में लिखा :

सुबह-सुबह कोयल इसलिए नहीं कूक रही थी कि वह मुझे या आपको देखकर प्रसन्‍न हो रही थी। इसलिए भी नहीं कि वह पीछे के ब्‍लॉक में शराबी पति के ऊपर चीख-चीख कर चीखने, बर्तन फेंकने और चीख कर ही गाने वाली महिला को चिढा रही थी । किसी को कोयल का कूकना अच्‍छा लगे या खराब यह कोयल की समस्‍या नहीं है । कोयल आलसी नहीं है कि उसे तभी कोई काम करने की सूझे जब उस काम को करने की समय और सुविधा न हो । और ज‍ब समय और सुविधा हो तब वह आराम करे । कोयला का कूकना सुनना और उस पर सोचना किसी के लिए एक बकवास काम भी हो सकता है । क्‍योंकि इससे जीवन की कोई समस्‍या हल नहीं होती । फिर भी बकवास करने वालों, बकवास को बकवास समझने वालों या सौंदर्यबोध नाम की किसी चीज के होने का हवाला देने वालों को कोयल यह भी नहीं कहेगी कि वह इन्‍हें कौओं के घोंसले का तिनका भी नहीं समझती ।

May 12, 2010

हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग सबसे ज्‍यादा पढी जाने वाली पोस्‍टों के प्रकार

हम ब्‍लॉगिंगनामा टैग के अंतर्गत ब्‍लॉगिंग से संबंधित पोस्‍टें जैसे -

ब्लॉगिन्ग के कमेन्ट किलर या टिप्पणी हन्ता ! ( यह ब्‍लागिंग के शुरुआती दिनों की पोस्‍ट है )

हिन्दी ब्लॉग्गिंग में टिप्पणी का महत्व , जॉनी....ब्लॉगिंग की भावना को समझो ! !

हिन्दी ब्लॉगिंग में चर्चा चकल्लस - प्रस्तावित चर्चाएँ


ब्‍लॉगिंग माहात्‍म्‍य - कुंडलियां , भाग- 1



इत्‍यादि लिख चुके हैं । इसी क्रम में सबसे ज्‍यादा पढी जाने वाली पोस्‍टों के प्रकार हम प्रस्‍तुत कर रहे हैं ।
ऊपर की विजेट में आप अपनी पसंद के हिसाब से राय व्‍यक्‍त कर सकते हैं । जाहिर और भी कई प्रकार की पोस्‍टें होंगी जो मेरे ध्‍यान में नहीं आ सकी हैं । मेरा मतलब वर्गीकरण से है ।

इसके लिए आपके सहयोग की आवश्‍यकता है कि किस तरह की पोस्‍टें सबसे ज्‍यादा लो‍कप्रिय होती हैं । इससे हम सभी को हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की मुख्‍य प्रवृत्ति को समझने में सहायता मिलेगी ।

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वोटिंग विजेट अस्‍थाई होता है । इसलिए वही सारे विकल्‍प यहॉं लिख रहा हूँ ।


तमाशाई

टांग खिंचाई वाली

मनोरंजक

सनसनीखेज

आलोचनात्‍मक

कविता , गजल

ब्‍लॉगर द्वंद्व युद्ध

धर्म सम्‍प्रदाय ले दे वाली

तकनीकी विज्ञान

चर्चा

हास्‍यव्‍यंगात्‍मक

क्षेत्रीय लटकों झटकों से युक्‍त

भावुकतापूर्ण

शांत सौम्‍य मासूम पोस्‍टें

नारी विमर्श

चचर्ति राष्‍ट्रीय खबरें

टिप्‍पणी में मिले सुझावो से बाद में शामिल किए हुए :

ब्‍लॉगर मिलन से संबंधित पोस्‍टें

ब्‍लॉगिंग से संबंधित तटस्‍थ व वस्‍तुपरक विश्‍लेषण वाली पोस्‍टें

"बढ़िया लेखन, जो विवादों से दूर हो" (via PD)

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धन्‍यवाद ।
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वोटिंग का परिणाम
स्‍पष्‍ट देखने के लिए चित्र पर क्लिक करें



May 09, 2010

'मदर्स डे' का हल्‍ला

आज 'मदर्स डे' का हल्‍ला है । यह हल्‍ला हमें तब दिखाई पडा जब हम अपनी आदत के मुताबिक सुबह देर से सोकर जगे । अखबार में, एफएम रेडियो में, फिर जब इंटरनेट पर बैठे तो फेसबुक में ब्‍लॉग्‍स में, हर तरफ मदर्स डे से संबंधित बातें दिखाई पडीं । इससे हमें पक्‍का यकीन हो गया कि आज 'मदर्स डे' अर्थात अपनी अपनी मम्‍मी के प्रति भावुक होने , स्‍मरण करने और सबसे ऊपर इन बातों को प्रद‍िर्शित करने का दिन है । तो हमने सोचा कि क्‍यों न इसका फायदा उठाते हुए ब्‍लॉग पर एक ब्‍लॉग पोस्‍ट का इजाफा किया जाए । साथ ही अपने अमूल्‍य विचारों से हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत को लाभान्वित किया जाए । यदि कोई मित्र लाभान्वित महसूस न करें तो एक टिप्‍पणी छोड दें । हम प्रतिटिप्‍पणी करके लाभानिवत करके ही मानेंगे ।

मदर्स डे के बारे में और अधिक जानकारी के लिए हमने गूगल जी से अनुरोध किया तो उन्‍होंने
सर्वप्रथम विकीपीडिया कोष में जाने की सलाह दी । वहॉं पर बताया गया है कि "

The modern Mother's Day is celebrated on various days in many parts of the world, most commonly in May, though also celebrated in March in some countries, as a day to honour mothers and motherhood. In the UK and Ireland it follows the old traditions of Mothering Sunday, celebrated in March.
Father's Day is a corresponding day honoring fathers. It was thought up in 1910 by Sonora Smart Dodd, after listening to a Mother's Day sermon.[1] "

इन्‍होंने फादर्स डे के बारे में भी जानकारी दी है । हर डे का एक दिन होता है । लेकिन आज मदर्स डे इसलिए उसी की बात की जायेगी ।

हालॉंकि हमें प्रायाजित डे वगैरह मनाये जाने में कोई रुचि नहीं है । खासकर जब यह डे रिश्‍तों से संब‍ंधित हों । पर्यावरण दिवस , जनसंख्‍या दिवस या मद्य‍ निषेध दिवस वगैरह वगैरह से इन विषयों से संबंधित जागरुकता फैलायी जाती है । उसी तरह रिश्‍तों के महत्‍व को बताने के लिए अलग अलग डे निकाले गए हैं । तो हालात यहॉं तक आ पहुँचे हैं कि मदर्स डे भी मनाना पड रहा है । जिससे लोग मॉं के महत्‍व और उसके द्वारा परिवार और समाज के प्रति योगदानों से परिचित हों । सही हो या गलत लेकिन मुझे व्‍यक्तिगत रूप से यह सब बहुत औपचारिक और बनावटी लगता है । या शायद यह सोच मेरी गॉंव , कस्‍बों वाली पृष्‍ठभूमि और वहॉं पायी जाने वाली हिन्‍दी माध्‍यम सरकारी स्‍कूलों के प्रोडक्‍ट होने की वजह से हो । मॉं बाप भाई बहन को आप जितना भी प्‍यार करो लेकिन सीधे सीधे प्रेम प्रदर्शित करने वाले वाक्‍य नहीं बोले जा सकते भले ही कोई
अमेरिका में ही दस साल बिताकर आ रहा हो । आने वाली पीढी बोलेगी। अपनी अपनी सोच है । और हमारी सोच यह है कि इन सब रिश्‍तों की भावुकताओं को बाजारवादी ताकतें कैश कर रही हैं । एक एसएमएस पैक । कहने का मन करता है कि सब पैसों की चोचलेबाजी है । विडबंना यह है कि जो लोग स्त्रियों को औकात में रहने की नसीहत देते रहते हैं , वे भी मां का बहुत महिमामंडन करते रहते हैं । आधुनिक समय में एक और प्रवृत्ति पश्चिमी देशों में धीरे धीरे फैल रही है । इसके तहत औरतों को मॉं बनने में कोई फायदा नजर नहीं आता सिवाय झंझट के । इसलिए अब उधर की महिलाऍं बच्‍चे पैदा करने में ज्‍यादा उत्‍सुकता नहीं दिखा रही हैं । जापान की जनसंख्‍या कम होती जा रही है , इसलिए वहॉं की सरकार ने बच्‍चे पैदा करने के लिए प्रोत्‍साहन योजना शुरू की है ।


मुझे तो मदर्स डे मनाना मॉं के प्रति औपचारिक होने जैसा लगता है । वैसे भी यह अवधारणा पश्चिम की है , क्‍योंकि वहॉं के लोगों को मदर्स डे के मार्फत मदर्स को याद करना पडता है । खैर जो भी हो भारतीय लोगों में अभी भी मॉं के प्रति बेहद भावुकता दिखती है । व्‍यवहारिक धरातल पर सच्‍चा प्रेम करने वाली औलादें मॉं की परवाह और देखभाल के लिए एक दूसरे का मुँह नहीं ताकतीं ।

हमने मॉं के प्रेम से संबंधित जो सबसे प्रभावित करने वाली कहानी पढी थी , उसका सारांश हमें आज भी याद है । लेखक का नाम याद नहीं है और यह भी याद नहीं कि कब और कहॉं पढी थी ।

कहानी यूं थी कि एक मॉं का लाडला बेटा अपनी माशूका से बहु‍त ज्‍यादा प्‍यार करता था , जब उसने अपनी माशूका के सामने शादी का प्रस्‍ताव रखा तो उसकी माशूका ने एक शर्त रखी कि वह उससे शादी तभी कर सकती है जब उसका प्रेमी अपनी मॉं का दिल निकालकर लाए और उसके सामने प्रस्‍तुत करे । लडका प्रेम में इतना पागल था कि वह अपनी प्रे़मिका के लिए कुछ भी कर सकता था । वह भागा अपने घर की तरफ पहुचते ही मॉं की हत्‍या की और उसका दिल निकाल कर हाथ में लेकर दौडता हुआ अपनी प्रेमिका को भेंट देने के लिए उल्‍टे पॉव लौट पडा । हटबडाहट मे रास्‍ते में एक पत्‍थर से पैर टकरा जाने की वजह से वह लडखडाकर गिर पडा । तभी मॉं के दिल से आवाज आई - "बेटा तुझे कहीं चोट तो नहीं लगी" ! यह होता है मॉं का दिल इसीलिए कहा
गया है कि Mothers are all slightly insane. - J. D. Salinger

दुनिया में 'प्रेम' के बाद 'मॉं' ही ऐसा शब्‍द है , जो सबसे ज्‍यादा लोकप्रिय है । ऐसा हमने कहीं पढा था ।

May 04, 2010

यह कोई कविता नहीं है - 1 (आज भी )

आज भी,
खबरें बनती हैं
कुछ 'निरुपमा', 'आरुषी', 'सायमा'
और पता नहीं कितनी गुमनाम
जो नहीं बन पातीं 'खबर'

आज भी,
कहीं मार दिया जाता है या
आत्‍महत्‍या कर लेता है
कोई नौजवान, कभी
प्‍यार नाम की गलती करने पर

आज भी,
पढा - लिखा अधकचरा वर्ग
साधे हुए है, अपने दोगलेपन को
महानता का मुलम्‍मा चढाकर
धर्म , जाति , संस्‍कृति के बदले,
मानवता को सहजता से जिबह करने को तैयार

आज भी,
सभ्‍य सुसंस्‍कृत लोग बचते हैं
कुछ शब्‍दों से, जैसे नारीवादी बहस,
जात‍ि , धर्म, कट्टरता की अप्रासंगिकता ,
देखते हैं उपेक्षित मुस्‍कान से,
डरते हैं बच्‍चों के बहक जाने
और अपनी असलियत खुल जाने से ।

आज भी,
निरुपमा , आरुषी सोचती हैं कि
मां - बाप द्वारा 'सब कुछ तुम्‍हारी खुशी के लिए ही है'
जैसे वाक्‍यों के कहे जाने की
शर्तें क्‍या होती हैं

आज भी,
नौजवान ढोते , पीटते और बीनते दिखते हैं
पॉंच हजार साल पहले से अब तक के
बौद्धिक कचरे , कभी कभी
जिनसे निकलते हैं, भयानक रेडियेशन
गला देते हैं , मांस और हड्डी
उत्‍पन्‍न कर देते हैं विकृति
जेनेटिक कोड में भी

आज भी,
उनका उपयोग कर लेती है
एक बेईमान पीढी
जिसने 60 वर्षों में उन्‍हें बेरोजगारी ,
भूख और लाचारी दी - वह न बन सकने
की मजबूरी के साथ जो वह बनना चाहता था

आज भी,
एक युवक सफल होता है
इस एहसास के साथ जैसे
कि 'एक उम्र जी ली हो' तीस तक
पहुँचते पहुँचते

आज भी ,
नैतिकता को लालच तय करता है
कभी धर्म का तो कभी पैसे का

इस दुनिया में,
आज भी , अपने ही
धर्म , जाति , सम्‍प्रदाय की
खामियों का मुखर विरोध करने वाले
बहुत कम हैं

'आने वाली नवेली पीढियों ! '
हम आत्‍मघाती खतरनाक लोग हैं
हमसे बचो ।