November 17, 2009

बात सच है, पर चलन में है नहीं

बात सच है, पर चलन में है नहीं
आपकी बातें सहन में हैं नहीं

बात कैसे बोल दी तुमने यहॉं
बात जो अपने जेहन में है नहीं

बात करते ही रहो हर बात पर
आपात तो अपने वतन में है नहीं

बात हमसे ऑंकडों की न करो
एक भी संख्‍या फलन में है नहीं

बात पूछेगी तुम्‍ही से जान लो
ऐसे कैसे तन, वतन में है नही

बात करने के लिए ही बोलते हैं
ज्ञान की इच्‍छा जतन में है नहीं

अब कहॉं ले जाओगे बरसात में
एक भी गागर तपन में है नहीं

बात उनकी जब सुने ऐसा लगा
बात ऐसी सब मुखन में है नहीं

बोलते हैं सभी खुल जाने पर
नाम सबका बतकहन में है नहीं

मिल गए हो आज खुलकर बात कर लो
है बात में जीवन, मरण में है नहीं

गड्ढे खोदोगे तुम्ही पहले गिरोगे
कोई नागा इस नियम में है नहीं


दिल में अपने एक सागर
तुम बसा लो
फासला धरती गगन में है नहीं


15 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना और अभिव्यक्ति

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  2. गढ़्ढे खोदोगे पहले तुम गिरोगे....


    बहुत सही!!

    बेहतरीन रचना!

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  3. शानदार और मनमोहक।

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  4. बात क्या ...सच्चाई ही कहाँ है
    आजकल चलन में ..!!

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  5. बहुत सही कहा जो किसी के लिये गड्डे खोदता है वो खुद ही उस मे गिरता है पूरी रचना बहुत अच्छी है शुभकामनायें

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  6. दिल मे----गागर बसा लो
    फ़ासला धरती गगन मे है नही
    अच्छी रचना

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  7. बात करते ही रहो हर बात पर,
    आपात तो अपने वतन में है नहीं.
    सच है अब केवल बातें ही करते हैं हमारे कर्णधार और जनता भी.

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  8. बढ़िया रचना , शुभकामनाएं !

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  9. बात अच्छी है, तो उसकी हर जगह चर्चा करो,
    है बुरी तो दिल में रक्खो, फिर उसे अच्छा करो।
    ये जो ऊपर में मैंने लिखा है, वह अनौपचारिक बात है।

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  10. Shuru ke do sher khas taur par achchhe lage. sahi raste par ja rahe haiN aap. chalte rahiye.

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  11. हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति, बधाई ।

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  12. Roj marra ke jeevan se uthaaye lamhon ko sanjo kar likhi shaandaar gazal... har sher ghilte huve gulab ki tarah ...

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  13. बहुत सुन्दर रचना और अभिव्यक्ति.....

    पूरी रचना बहुत अच्छी है ,

    शुभकामनायें.....

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  14. kya baat hai ,mujhe to sabhi mukhre behtrin lage ,mithe raso se bhari laazwaab rachna ,

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नेकी कर दरिया में डाल