November 04, 2009

फ़ूल में भी मगरूरी रही होगी


फूलों में मगरूरी रही होगी
पत्थर की भी मजबूरी रही होगी

पछता सके
लडकर भी जब
रिश्तों में बहुत दूरी रही होगी

बात की है अब तक तो क्या
दिमागी कुछ कमजोरी रही होगी

पूछा नहीं हम कहां थे अब तक
फ़िक्र ये गैर-जरूरी रही होगी

समझ आई तो क्या आई उनको
ये किस्मत ही छिछोरी रही होगी

ताके बैठे थे जिसे चातक की तरह
और चन्दा की वो चकोरी रही होगी

भूल जा मीठी बातें हकीकत में
सब उनकी दुनियादारी रही होगी

बुरा मानें हम क्यों किसी बात का
उनकी भी कुछ मजबूरी रही होगी

18 comments:

  1. पूछा नही हम कहाँ थे अब तक
    फ़िक्र ये गैर-जरूरी रही होगी
    बेहतरीन गज़ल, हर शेर वाह

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  2. पूरी गज़ल बेहतरीन!!

    एक एक शेर मजा दे गया...

    पूछा नही हम कहाँ थे अब तक
    फ़िक्र ये गैर-जरूरी रही होगी

    वाह!!

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  3. एक से बढ़ कर एक शेर और सवा शेर .....शिल्प , कथ्य ,अनुभूति और अभिव्यक्ति सभी में बेजोड़ ! बड़ी आशाएं हैं आपसे !

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  4. Why should i complain about his/er action,
    know i well, s/he must have his/er compulsions.

    Impressive!

    thanks

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  5. समझ आई तो क्या आई उनको
    ये किस्मत ही छिछोरी रही होगी !
    बहुत सुन्दर !

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  6. बहुत ही बेहतरीन रचना , दिल को छु गयी।

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  7. majboori ho pathero ki ya magroor ho phool beshq..toota hmesha dil hai....phoole si nazuk gazal.....

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  8. पूछा नही हम कहाँ थे अब तक
    फ़िक्र ये गैर-जरूरी रही होगी
    क्या बात है अर्कजेश जी..........इतनी शानदार गज़लें लिख रहे हैं आप इन दिनों.....आप इतने अच्छे शायर हैं पता ही नहीं था. एक-एक शे’र दाद के काबिल....

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  9. kamal के sher हैं ........ bahoor achhee लगे .......

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  10. ek behatrin rachnaa
    jyotishkishore.blogspot.com

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  11. बुरा मानें हम क्यों किसी बात का
    उनकी भी कुछ मजबूरी रही होगी

    पूछा नही हम कहाँ थे अब तक
    फ़िक्र ये गैर-जरूरी रही होगी
    waah waah waah ,hum to fida ho gaye har sher par ,zabardast laazwaab tariif behisaab ,yahi rang raha to hamare pasandida rachnakaro ki list me jaldi hi shamil ho jaayega .andaje byan kya kahne .kahi- kahi mere sawalo ka jawab jhalak raha tha .

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  12. Sach! koi na koi to majboori rahi hi hogi...........


    bahut hi behtareen ghazal.......

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  13. मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा कि किस किस शेर की तारीफ करूँ एक से बढ कर एकहै फिर भी पूछा नही हम कहाँ थे अब तक
    फ़िक्र ये गैर-जरूरी रही होगी

    बुरा मानें हम क्यों किसी बात का
    उनकी भी कुछ मजबूरी रही होगी
    लाजवाब शुभकामनायें

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  14. शुरुआत बहुत बेहतरीन है ... चिठ्ठाचर्चा से होता हुआ आया... लिखते रहिये...

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  15. सभी शे'र कुछ अलग हट के लगे अर्कजेश जी ....कुछ नयापन लिए ....नायाब......!!

    ये वाला बहुत गहरा लगा.....

    पछता सके न लड़कर भी जब
    रिश्तों में बहुत दूरी रही होगी .

    बहुत खूब....!!

    ये भी ....

    पूछा नहीं हम कहाँ थे अब तक
    फ़िक्र ये गैर जरुरी रही होगी

    वाह .....बहुत गहरा लिखते हैं.....!!

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