खबर : हिन्दी में शपथ लेते हुए विधायक अबू आजिमी की मनसे विधायकों द्वारा पिटाई ।
तो इसमें कौन सी नई बात है भाई
हिन्दी की वजह से
तो होती ही रहती है पिटाई
अभी विधायक की हो गई
इसके पहले मजदूरों, कामवालों,
और छात्रों की हूई थी
ऐसी ही पिटाई
ये तो दो-चार हाथ ही पाये
लेकिन सब इतने लकी थे नाय
कुछ हाथ-पैर तुडवाकर निपटे
कुछ अपनी जान से हाथ धो बैठे
कुछ पक्को है कांय
के अपने दोस्त, बहन और भाय की
कब हिन्दी माई के नाम से
देश के कुछ जगहों में जान चली जाय
ये तो भई यारा स्थूल पिटाई
सूक्ष्म पिटाई तो हो ही रही है लगातार
हर जगह अपनों और गैरों से बार-बार
हर हिन्दी भाषी महसूस कर सकता है इसे
खुद हिन्दी का बडा आदमी नहीं बोलता जिसे
हिन्दी माध्यम में पढे विद्यार्थी से पूछिए
गॉंव कस्बे के आदमी से पूछिये
कितनी पिटाई होती है उसकी
उच्च शिक्षा में , नौकरी में , नौकरी के निर्वहन में
औरों को तो छोडिये अपने फिल्मी सितारो को ही देखिये
हिन्दी के नाम से करोडों का वारा-न्यारा करते हैं
पर कभी फिल्मों से बाहर उनके मुखारबिन्द से
हिन्दी नहीं निकसते हैं
सबके दुलारे है , बडे प्यारे हैं, पर
जिसका खाते हैं , उसी में पलीता लगारिये हैं
आप ही बताइये अपने लोगां को ही देख लीजिये
अपने नौकरशाहों और खिलाडियों को ही देख लीजिए
हिन्दी बुलवाकर इनकी तौहीन मत कीजिए
भारत देश में हिन्दी भी जीती है
गरीब आदमी भी जीता है
दोनों से नाता रखना पडता है
पैसे, वोट और व्यवसाय के लिए
सितारों , नेताओं और व्यापारियों को
हिन्दी नही बोलना है तो मत बोलो
लेकिन जो बोलता है उसका मुँह तो मत तोडो
क्योंकि हिन्दी गॉंधी है तो सुभाष भी है
तिलक है और आजाद भी है
यह सबमें घुल जाती है
हर भाषा में मिल जाती है
यह समन्वय की कृति है
बिल्कुल भारतीय प्रकृति है
इसका किसी भाषा से विराध नाय है
कांय के सब भारतीय भाषा तो
बूढी दादी संस्कृत से ही आयं हैं
लोगां तो बिला वजह हो हल्ला मचायं हैं
हिन्दी नहीं है किसी की मोहताज
वह हमेशा रही है बादशाह बेताज
लोकतंत्र है हल्ला मचाते रहो
अंतिम आजादी का लुत्फ उठाते रहो
गीत एक फिल्मी गुनगुनाते रहो
गम को धूऍं में उडाते रहो
वायु प्रदूषण फैलाते रहो
वरना गम तुम्हें उडा देगा
बिना डोर के पतंग की तरह
सच कडवा है कुरुप है तो हम क्या करें
तुझे मिर्ची लगी तो हम क्या करें
हमें मिर्ची लगी तो तुम क्या करे
भाई से चारा छुडाते रहो
भाईचारा निभाते रहो
"यहाँ बात सिर्फ़ हिन्दी की नहीं है असल बात ये भी है की आप कैसे किसी को उसकी भाषा में बात करने से रोक सकते हैं , आपको ये हक़ किसने दिया है ?"
इस पर कुछ खास ढूढ़ रहा था। मिल गया।
ReplyDeleteखरी खरी सुनाई आप ने।
वैसे दक्षिण भारतीय भाषाएँ संस्कृत से नहीं आयं हैं।
..न न .. हम राव हैं लेकिन दक्षिण भारत से नहीं आयं हैं :)
क्योंकि हिन्दी गॉंधी है तो सुभाष भी है
ReplyDeleteतिलक है और आजाद भी है
यह सबमें घुल जाती है
हर भाषा में मिल जाती है
यह समन्वय की कृति है
बिल्कुल भारतीय प्रकृति है
बिलकुल सेही कहा । सटीक अभिव्यक्ति के लिये बधाई
बहुत सुन्दर ढंग से धुनाई की आपने, एक छोटा सा सजेसन है कि शीर्षक में से और सुरु की लाइनों में से सांसद की जगह पर विधायक कर दे, तो शायद और प्रखर व्यंग्य होगा !
ReplyDeleteसारी हकीकत बयान कर गी और धुलाई भी कर दी!
ReplyDeleteयह सबमें घुल जाती है
ReplyDeleteहर भाषा में मिल जाती है
यह समन्वय की कृति है
बिल्कुल भारतीय प्रकृति है.........
AUR TABHI TO HAR JAGAH PIT BHI JATI HAI AASAANI SE .....
RAAJNETA TO ISKO ROZ PEET TE HAIN APNE SWAARTH KE LIYA ..... BAHOOT HI KARAARA VYANG HAI AAPKA ... ACHHA LAGA ..
jarurat thi is rachna ki.. aur ye baat isse behtar tarike se nahi boli ja sakti thi...
ReplyDeletejai hind...
भाई से चारा छुडाते रहो
ReplyDeleteभाईचारा निभाते रहो
खूब घसीटा है.
अच्छा लगा पढ़ कर ..सहमत हूँ.
ReplyDeleteअर्जकेशजी,
ReplyDeleteये भाषाई विवाद कई बार गरम होकर नरम पड़ चुका है, लेकिन ये जो नया ड्रामा शुरू हुआ है महाराष्ट्र में, उस पर आपने बड़ी गहराई से कटाक्ष किया है, कान खींचे हैं और डांट पिलाई है ! कविता में सच्चा व्यंग तो है ही, व्यथार्थ बोध भी है और अनीति को अनीति और अन्याय को अन्याय कहने का सहस भी !
अच्छी समसामयिक रचना ! प्रेरक भी... बधाई !!
सप्रीत--आ.
त्वरित व्यंग्य.... वाह वाह.. बधाई..
ReplyDeleteHindi ko lekar bahut hi sateek vyang kiya hai......... bahut achcha laga padh kar....
ReplyDeleteअर्जकेश जी,
ReplyDeleteहम पहली बार आये हैं आपके ब्लॉग पर...
बहुत ही सार्थक आलेख पढ़ा है और ख़ुशी हुई है..
धन्यवाद..