September 27, 2009

जैसे देह नारी हो !

देह
वर्षों से सहती हुई
सभ्यता के थपेडॊं को
होती रही है शिकार
धर्म और नैतिकता की
बनती रही खिलौना
अमानवीय ताकतों की
स्वर्ग और मोक्ष के नाम पर
निन्दित होती रही
धर्मगुरुओं के द्वारा
उद्दात्तता के नाम पर
समेटती रही अपने अन्दर विष
सभ्यताओं का
देह
बनती रही प्रयोगशाला
अहंकार के सारे पाखंडों की

देह
जो है सबसे प्रामाणिक
इनकार की गई है
सदियों से खुद देह के ही खिलाफ़

देह
जो कहीं ताकतवर है मन से
नैतिकता और सभ्यता से
करती है विद्रोह
हर निषेधों से और
लेती है बदला अपने
दुरुपयोगों का
बिना पक्षपात के
और दिखा देती है उनकी औकात
उस पर प्रश्न चिन्ह लगाने वालों को

देह,
जो स्वीकरती और जानती है
जीवन के सत्य को
बदलती है प्रतिपल
मिट जाती है
बिना शिकायत किये हुए
अमरत्व की
चली जाती है
बनाकर अपनी ही तरह की
कोई अन्य देह
देह
नहीं करती भेद
स्त्री और पुरुष में
पालती है समान रूप से
सब देहों को

देह
एक है प्रकृति के साथ
या
देह प्रकृति ही है
जो निर्दोष है
एक शिशु की भांति

देह
जो है सम्पूर्ण अस्तित्व
देह
जिस पर प्रश्नचिन्ह नहीं
लगाया जा सकता
क्योंकि देह ही है
प्रश्नकर्ता का आदि कारण

देह
है निर्भय और
प्रश्नकर्ता डरा हुआ
खुद की मौजूदगी
साबित करने को बेचैन
कमजोर होने की कुन्ठा को
छिपाने के लिये
बन जाता है तानाशाह
और साबित करता है खुद को
ताकतवर

देह
समझती है भाषा
प्रेम, वासना, क्रोध और घृणा की
देह
नहीं बनना चाहती
राजनीति का हिस्सा
देह को बनाया गया है
बाज़ार और
विमर्शों का शिकार


ऐसे जैसे देह नारी हो !


रचना अधूरी है

September 24, 2009

क्लासिकल गप्पी

क्लासिकल गप्पी जब बोलना शुरू करता है तो ऐसा लगता है जैसे कोई भारी दरवाजा धीरे से खुल गया हो ।

हर क्लासिकल वस्तु की तरह क्लासिकल गप्पी भी एक दुर्लभ घटना है । इस तेजी और यूज ऐन्ड थ्रो के जमाने में वैसे भी अब क्लासिकल या कालजयी रचनाओं की संख्या कम होती जा रही है । उसी तरह बतियाने की शैली भी बदलती जा रही हैं । यह समय का प्रभाव है ।

कोई भी छोटी से छोटी या बडी से बडी चीज "समय" की एक "घटना" है क्योंकि वह अपने समय का पूरा प्रभाव लिये हुए होती है । जैसे पुराने लोगों से मिलिये वे हर चीज को बडे विस्तार से बतायेंगे । शॉर्ट कट में उन्हें विश्वास नहीं । यदि आप उनसे पूछेंगे की कहां गये थे आप, तो वे आपको पूरा विवरण देंगे । कैसे गये, क्यों गये, रास्ते में कौन-कौन मिला, मिलने वालों का विवरण इत्यादि भी मिल सकता है । यह ढंग सूचना क्रांति से पहले पैदा हुई पीढी में ज्यादा प्रचलित था | लेकिन अभी भी दुर्लभ प्रजाति के रूप में ऐसे लोग पाये जाते हैं |

बात करने के ढंग के आधार मनुष्य को कई वर्गों में बांटा जा सकता है । जैसे कम बोलने वाले, ज्यादा बोलने वाले, बहुत ज्यादा बोलने वाले, औसत बोलने वाले । सबकी अपनी अपनी विशेषता होती है , लेकिन मैं यहां बात क्लासिकल गप्पी की कर रहा हूं । क्लासिकल गप्पी कभी उपदेशात्मक नहीं होता । वह घटनाओं के प्रति बिल्कुल तटस्थ रहता है । सभी क्लासिकल गप्पी जन्मजात किस्सागो होते हैं । उन्हें प्रयास करके या पूर्व योजना से नहीं बोलना होता । बस एक बार किताब खुली कि उपन्यास की तरह कल्पना और यथार्थ का घाल-मेल उत्पाद आपके सामने प्रस्तुत । हां, क्लासिकल गप्पी की बातें उपन्यास की तरह ही होती हैं । उपन्यास में एक मुख्य कहानी के साथ-साथ कई सहायक कहानियां चलती रहती हैं जैसे पेड का एक मुख्य तना और उसकी शाखायें । ठीक उसी तरह क्लासिकल गप्पी का भी एक मुख्य विषय होता है, जिसकी वजह से उसने बोलना शुरू किया था । आपने पूछा कि क्या हाल चाल है तो वह सीधे नहीं कह देगा कि अच्छा या बुरा है । उसकी तो नौबत ही नहीं आयेगी क्योंकि शायद ही कभी कोई क्लासिकल गप्पी के क्लाइमेक्स तक रुक पाता हो । क्लासिकल गप्पी का जीवन घटना प्रधान होता है . साधारण आदमी बड़े-बड़े काम कर लेगा, दूर-दूर की यात्राएं कर लेगा लेकिन उसके जीवन में मुश्किल से तीस मार खां बताने लायक घटना घटेगी . क्लास्सिकल गप्पी बाजार भी गया तो कुछ न कुछ विशेष घट जाएगा . जैसे यदि मेरा क्लासिकल गप्पी दोस्त कॉलेज गया तो उसको या तो कोई विदेशी पर्यटक रास्ता पूछने वाला मिल जाएगा या तो कोई बेल स्मार्ट लड़की टकरा जायेगी । फ़िर शुरू हो गयी कहानी । हम तो समझ रहे हैं लेकिन अगला पूरे गंभीरता से सुन रहा है । उनके हर यात्रा में एक बेल स्मार्ट लड़की और कुछ खलनायक होते हैं ।जब वे कुछ लोगों के बीच में बोलते थे तो हम इन्तजार करते थे कि अब कोई बेल स्मार्ट आने वाली है । एक बार उन्होंने हम जैसे कुछ मित्रों से कहा कि वे एक उपन्यास लिख रहे हैं । उसकी कहानी का सारांश भी उन्होंने बताया । कहानी हम लोगों को बहुत पसंद आयी । तब तक हम ने दिलीप कुमार और राजकुमार की सौदागर फ़िल्म नहीं देखी थी । कुछ दिनों के बाद जब हमने वह पिक्चर देखी तो उनकी बताई हुए कहानी की याद आ गयी । जब उपन्यास के बारे में पूछा गया तो भाई ने बताया कि उनकी मम्मी ने धोखे से उसे रद्दी वाले को बेच दिया । अब कोई क्या कहे ।

क्लासिकल गप्पी कभी जल्दी में नहीं बोलता । इत्मीनान से अपनी बात कहता है । ना ही चार लोगों की महफ़िल में बीच बीच में उचक उचक कर बोलता रहता है । लेकिन एक बार बोलना शुरू कर दिया तो अगले को बोलने की संधि नहीं देता । उसकी बात में ऐसे कोई प्वॉइट भी नहीं रहते की कोई बीच में तर्क कर सके । क्योंकि उसकी बात चाहिये के अन्दाज में कभी नहीं होती ।

क्लसिकल गप्पी की याददाश्त बहुत तेज होती है । जीवन की हर छोटी बडी घटना उसे बकायदा याद रह्ती हैं । तेज याददाश्त की सबसे बडी वजह उन्ही घटनाओं को बार-बार दुहराते रहना भी है । एक ही बात को अलग-अलग ढंग से कई लोगों को बता चुके होते हैं । सुनने वाले को आश्चर्य होता है की इन्हें कितना याद रहता है ।

क्लासिकल गप्पी नये और पुराने परिचितों को समान रूप से शिकार बनाता है ।
क्लासिकल इसीलिये कहा गया है कि शिकार को पता नहीं चल पाता कि वह शिकार बन चुका है । हम क्लासिकल नहीं हैं इसीलिये बन्द करते हैं ।

September 18, 2009

भारत में शिक्षा - 10 तथ्य

प्रस्तुत है भारत में शिक्षा से सम्बंधित कुछ संक्षिप्त और महत्वपूर्ण तथ्य :

1. भारत में 26 करोड़ 80 लाख निरक्षर लोग रहते हैं, जो लिखने, पढ़ने में बिल्कुल असमर्थ हैं | यह विश्व की कुलनिरक्षर जनसंख्या का तीसरा हिस्सा है |

2. भारत शिक्षा के ऊपर अपने सकल घरेलू उत्पाद (डीजीपी) उत्पाद का केवल 3.3प्रतिशत ही खर्च करता है, जबकि विकसित देश इसकी तुलना में 5.8 प्रतिशत खर्च करते हैं |

3. भारत के अधिकतर राज्यों में शिक्षा के कुल बजट का 95 प्रतिशत शिक्षकों के वेतन पर खर्च होता है, जबकि विद्यालय और अध्ययन सामग्री पर कभी-कभी 1 प्रतिशत से भी कम राशि खर्च होती है |

4 . विद्यालय जाने वाली 4 लड़कियों में से सिर्फ़ 1 ही दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी कर पाती है | बाकी 3 बीच में ही पढाई छोड़ देती हैं |


5. भारत में महिलायें औसतन 1.8 वर्ष की विद्यालयीन शिक्षा पातीं हैं |

6. सन् 2004 में स्कूल में भर्ती होने वाले 3 करोड़ 20 लाख बच्चों में से आधे भी 8 साल तक विद्यालय नहीं गए |

7. भारत में 1 करोड़ 30 लाख बालश्रमिक हैं | जिनके जीवन की कहानी उसी दिन लिख गयी थी जब वे पैदा हुए थे |

8. अनुशासन में कमी, अव्यवस्था और बदतर परिस्थितियों का आलम यह है कि 4 में से 1 अर्थात 25 प्रतिशत शिक्षक हमेशा कक्षा से अनुपस्थित रहते हैं |

9. भारत में कक्षाओं का औसत आकार 40 विद्यार्थी प्रति कक्षा है | जबकि बिहार और उत्तर भारत में औसत एक कक्षा में 83 छात्र/छात्रा तक पहुंचता है |

10. भारत के 75 प्रतिशत विद्यालयों में कई कक्षाओं के लिए सिर्फ़ एक ही शिक्षक होता है |

शिक्षा से सम्बंधित अन्य लेख :
दसवीं की बोर्ड परीक्षा का 2011 से वैकल्पिक किया जाना शिक्षा प्राणाली में परिवर्तन का प्रस्थान बिन्दु है ? मास्टर हों त दुई जन खांय ...से कोचिंग गुरुओं तक

Education in Bharat: Resuscitation is the need of the Hour

September 11, 2009

हिन्दी ब्लॉगिंग में चर्चा चकल्लस - प्रस्तावित चर्चाएँ

पहले हम भूमिका बांधेंगे, इसके बाद मुद्दे पर आयेंगे क्योंकि हर चर्चा भूमिका की मांग करती है बिना भूमिका के चर्चा, बिना पते की चिट्ठी की तरह होती है जो श्रोता डाकिया को परेशान कर देती है

वैसे भी हमारे यहां की परम्परागत चर्चा का शिष्टाचार भी यही है कि पहले जो बात कहनी है उसका माहौल बनाया जाता है । इसी को कहते हैं भूमिका बांधना । भूमिका बांधकर ता पीछे मुद्दे की बात करने पर वह ज्यादा असरदार बन जाती है । कभी-कभी इतनी असरदार हो जाती है कि बिसर जाता है कि भूमिका बांधी किसलिये जा रही थी ।


जैसे कवि सम्मेलन में जब गम्भीर रस के कवि के बाद कोई हास्य रस का कवि आता है तो पहले वह अपनी भाव-भंगिमाओं और चुटकुलों के द्वारा हास्य रस का माहौल बनाता है । यह एक इशारा भी होता है कि वह हास्य रस का कवि है और वह जो भी सुनाये उसे हास्य रस की कविता समझा जाय । माहौल का असर यह होता है कि कविता सुनने से ज्यादा कवि को देखकर हंसी आती है । इससे श्रोताओं को इशारा भी मिल जाता है कि प्रतिक्रिया किस तरह करनी है । इस तरह माहौल मुद्दे में ऐसे घुस जाता है जैसे होमियोपैथी की मीठी गोली में खुशबूदार दवाई घुस जाती है |


ब्लॉगिंग एक चर्चा विधा है । क्योंकि इसमें प्रस्तुतीकरण अकसर चर्चा मोड में होती है । यही ब्लॉगिंग की सबसे लोकप्रिय शैली है । इसकी वजह यह भी है कि इसमें चर्चा की तरह तुरंत प्रतिक्रिया भी मिलती है, टिप्पणी के रूप में । इसलिये भी ब्लॉगिंग एक चर्चा विधा है । जैसे लोक में चर्चाएँ होती हैं । फ़िर उनमें से कुछ चर्चाओं की चर्चाएँ होती हैं ।
"आज वहां पर ऐसी चर्चा थी"
"आजकल तो आपकी भौत चर्चा है" इत्यादि ।

इसी तरह हर ब्लॉगर एक चर्चाकार है(असहमति रखने वाले अपने को शामिल न समझें) |

इसी तरह हिन्दी ब्लॉगिंग में भी चर्चाओं की कई रूपों में चर्चाएँ होती हैं । जैसे चिट्ठा चर्चा, चिट्ठी चर्चा, टिप्पणी चर्चा ,जन्मदिन चर्चा इत्यादि । हमारी जानकारी में अभी इतनी ही विशेष चर्चाएं हैं ।

चर्चा ब्लॉग देखते हुए हर ब्लॉगर के मन के किसी कोने में अपने ब्लॉग की तलाश रह्ती है । जैसे अपनी उपस्थिति दर्ज समारोह की फोटो दिखाये जाने पर हम अपनी फोटो ढूंढते रह्ते हैं । चर्चा ब्लॉग में चर्चित ब्लॉगों को पढें चाहें नहीं पर एक बार उधर झांक जरूर आते हैं कि कहीं आ ही गया हो नाम, इस बार । और हम धन्यवाद भी न दे पायें । वैसे भी चर्चाकारों के ऊपर गुटबन्दी के आरोप लगते रह्ते हैं । पर यह गलत है । क्योंकि चर्चा ब्लॉग कोई भारत का संविधान तो है नहीं कि आप उससे अवसर की समान उपलब्धता की मांग करें । संविधान कम से कम किताबी रूप में यह देता है । मिले न मिले वो बाद की बात है । फ़िर आरक्षण तो हर जगह ही होता है । अलग-अलग आधारों पर । दुनिया गोल है और कोई उससे बाहर तो है नहीं ।

लेकिन चर्चाकार इसे अन्यथा नहीं लेते क्योंकि उन्हें पता है कि यह तो सिर्फ़ एक बहाना था उनकी चर्चा करने का । बदले में वे भी असंतुष्ट भाई/बहन/मित्र की चर्चा कर देते हैं । किसी ब्लॉगर को उसकी चर्चा न होने की शिकायत हुई नहीं कि उसकी चर्चा हुई नहीं ।

इस तरह चर्चा होने और चर्चा न होने की चर्चा होने से भी चर्चा होती है ।

हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रचार के लिये ब्लॉग चर्चा बहुत उपयोगी काम है । इससे ब्लॉगिंग में हलचल बनी रहती है ।

हिन्दी ब्लॉगिंग में अभी और तरह की चर्चाएँ चलाने की पूरी गुन्जाइश है । मैं कुछ विषय सुझा रह हूं जिन पर चर्चा ब्लॉग शुरू किए जा सकते हैं ।

&&& लफ़डा चर्चा : इसमें में एक निश्चित अवधि में जैसे एक सप्ताह या पन्द्रह दिन के दौरान ब्लॉगिंग में हुए गम्भीर किस्म के लफ़डो की चर्चा की जाय ।

)))) नोकझोंक चर्चा : इसमें हल्की फ़ुल्की नोकझोकों की चर्चा की जाय ।

???? गुट चर्चा : इसमें इस बात की चर्चा की जाय कौन ब्लोगर किस गुट में है | पहले किसमें था और भविष्य में किधर मिल सकता है |

@@@ चर्चाकर चर्चा : इसमें ब्लॉग चर्चा करने वाले ब्लोगरों की चर्चा की जाय |

/////‌‌‌ सप्ताह के अधिकतम दस टिप्पणीधारक धारक चिट्ठे : .....

**** सप्ताह की दस उम्दा ब्लॉग पोस्ट : .....


*** कविता चर्चा : सप्ताह की उम्दा कवितायें : ....

ऽऽऽऽ सप्ताह के उम्दा लेख :

++++ सप्ताह की उम्दा कहानियां :

---- सप्ताह की नकल पोस्टें :

और भी बहुत से बढिया-बढिया विषय ढूंढे जा सकते हैं । नकरात्मक विषयों पर चर्चायें न हों जैसे - सप्ताह की 10 घटिया पोस्टें ।

चर्चा के विषय में विविधता आने से बहुत से ब्लॉग चर्चाओं के दायरे में आ जायेंगे । किसी न किसी की कहीं न कहीं चर्चा हो ही जाया करेगी ।

इस तरह कुछ ब्लॉगों की चर्चा के साथ-साथ चर्चाकारों की चर्चाएं भी होती रहेंगी ।

तो कैसी लगी हमारी चर्चा !

September 09, 2009

दसवीं की बोर्ड परीक्षा का 2011 से वैकल्पिक किया जाना शिक्षा प्राणाली में परिवर्तन का प्रस्थान बिन्दु है ?

जबसे दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा का 2011 से वैकल्पिक होने की ख़बर आयी है नौवीं कक्षा के छात्र बहुत खुश नजर रहे हैं | अगले शिक्षा सत्र से हाई स्कूल की परीक्षा वैकल्पिक हो जायेगी यह निर्णय शिक्षा नीति में किये जाने वाले एक बडे परिवर्तन की दिश में पहला कदम है

इस तरह छात्र-छात्राओं और अभिभावकों को एक बार ही बोर्ड परीक्षा के तनाव से गुजरना पडेगा इस नियम से सबसे अधिक खुशी हुई छात्र/छात्रों को और राहत उनके अभिभावकों को मिली 10 वीं बोर्ड परीक्षा के नाम से साल भर पहले से चलने वाले कोचिंग क्लासेस बन्द हो जायेंगे, जो बोर्ड परीक्षा की तैयारी की एक मोटी फ़ीस वसूलते थे कहीं-कहीं एक ही बार में पूरे साल भर की फ़ीस वसूल कर ली जाती है और कहीं यह दो या तीन किश्तों में ली जाती है

इस निर्णय से नुकसान यह हो सकता है कि छात्र उतनी गम्भीरता से पढाई नहीं करेंगे जितनी कि वे बोर्ड परीक्षा होने पर करते थे

अब प्रश्न उठता है कि छात्रों द्वारा 11 वीं कक्षा विषय के चुनाव किस आधार पर किये जायेंगे अभी तक दसवीं में प्राप्त अंकों के आधार पर छात्र विषयों का चुनाव करते हैं सबसे अच्छे अंक प्राप्त करने वाले छात्र गणित, विज्ञान, कामर्स जैसे विषय लेकर आगे बढते हैं स्थान कम होने पर अंकों के आधार पर प्रावीण्यता सूची भी बनाई जाती है
लेकिन दसवीं बोर्ड की परीक्षा समाप्त होने पर अगली में विषय चयन का आधार क्या होगा ? क्या हमारे देश में इतनी पर्याप्त संख्या में विद्यालय और उनमें रिक्तियां हैं कि हर छात्र को बिना छंटनी प्रक्रिया से गुजरे उसका मनचाहा विषय पढने को मिल सके या फ़िर यह निर्णय उस योजना का पहल कदम है जिसमें 11 वीं कक्षा के विषय चयन में गणित और जीवविग्यान को साथ-साथ अनिवार्य करने की योजना है विज्ञान संकाय के विद्यार्थियों के लिये उच्च गणित और जीवविज्ञान अनिवार्य कर दिया जायेगा रसायन और भौतिकी तो दोनों के साथ अभी भी है ही

क्या बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंक ला पाना वास्तविक समस्या है ? नहीं वास्तविक समस्या उच्च में प्रवेश के लिये पर्याप्त स्थान होने की है इस गला काट प्रतियोगिता में दशमलव के बाद के कुछ अंक चयन के परिणाम को निर्धारित करते हैं अच्छे अंक क्यों चाहिये ? जाहिर है अपना मनचाहा विषय लेकर आगे की कक्षा में प्रवेश के लिये लेकिन क्या बोर्ड की परीक्षा को समाप्त कर देने से इस समस्या का हल हो जायेगा

सबसे बडी जरूरत उच्च शिक्षा में और अधिक स्तरीय संस्थान स्थापित किये जाने की है जिनकी कमी की वजह से यहां प्रवेश पा सकने वाले छात्रों की बडी संख्या अमेरिका, आस्ट्रेलिआ और रसिया भागती है या फ़िर पत्राचार पाठ्यक्रम से काम चलाती है यह भी प्रतिभा पलायन का एक कारण है

तो जब तक छात्र/छात्राओं की संख्या के अनुपात में पर्याप्त सीटें नहीं होंगीं परीक्षा का हौवा तो बना ही रहेगा मूल्यांकन चाहे ग्रेड के आधार पर हो या प्रतिशत के आधार पर

इसीलिये कहा जाता है कि भारतीय युवा वर्ग डाक्टर, इन्जीनिअर, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक इत्यादि बनने के लिये मजबूर होता है बहुत कम ऐसे लोग होंगे जिन्होंने प्राप्त अंकों के दबाव से स्वतन्त्र अपना कैरियर चुना होगा जाहिर है ऐसे में जिसे जो होना चाहिये वह नहीं हो पाता और कैरियर का मतलब रोजी-रोटी हो जाता है कि वह कार्य जो हम अपनी पसन्द से करना चाहते हैं

हमारे शिक्षाविदों के लिये यह एक चुनौती भरा कार्य है कि अब वह ऐसी शिक्षाप्रणाली विकसित करें की दिशा में कार्य करे जो एक छात्र/छात्रा को उनकी पसन्द को विकसित कर उसी को अपना कैरियर बनाने के लिए तैयार कर सके |
अन्ततः शिक्षा का अर्थ व्यक्ति के अन्दर छिपी श्रेष्ठतम प्रतिभा को उभारना ही है यह स्वयम की खोज है

मैने यहां कुछ बातें लिखीं हैं कृपया इस विषय पर अपनी सहमति या असहमति प्रकट करें जिससे यह समझने में सहयोग मिल सके कि अधिकांश मित्र इस बारे में किस तरह के विचार रखते हैं यदि आपकी टिप्पणी के माध्यम से पर्याप्त सहयोग मिला तो अगली पोस्ट नाम सहित उन सारे विचारों को एक साथ रखा जायेगा
धन्यवाद
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