August 20, 2009

जिन्ना को जाने दो !

बचपन से ही जिन्न जी के बारे में हम काफी कुछ जानते हैं, क्योंकि की हमने अलादीन की कहानी सुनी, पढी और देखी है | हम जिन्न का पूरा हुलिया और हुनर आपको समझा सकते हैं | इसकी अपेक्षा जिन्ना जी के बारे में हमें बहुत बाद में पता चला | और उनकी ताकत का असली अंदाजा तो हमें अब जाकर चला है | "जिन्ना" के अलावा उनके समकालीन कौन सा ऐसा नेता है जो मृत्यु के साठ साल बाद भी इतना संवेदनशील-दमदार हो की किसी व्यक्ति और पार्टी के अस्तित्व के लिए ही आफत बन जाए | अडवानी जी तो किसी तरह बच निकले थे, जिन्ना जी के "धर्मनिरपेक्ष" स्वरुप का उदघाटन करके | उन्होंने महज बयानबाजी की थी | इसलिए "ये मतलब" "वो मतलब" करके सिर्फ़ पार्टी प्रमुख पद का चढावा देकर लीपपोत दिए| लेकिन जसवंत जी ने तो पोथी ही छपवा दी | इतने वरिष्ठ नेता | कम से कम अडवाणी जी को एक बार दिखा देते को क्या घट जाता | लेकिन होनी को कौन टाल सकता है |

अब जिन्ना जी के बारे में आप लोग ग़लत-सलत लिखेंगे, बयान देंगे तो उनका जिन्न तो आपको सताएगा ही | इस भूल में मत रहिये की जिन्ना जीवित नहीं हैं तो मनमानी फेंके जाओ | अब सोचिये भला जिन्ना जी ने कितने तिकड़म-इकडं भिडाकर पाकिस्तान बनवाया | प्रत्यक्ष कार्रवाई में यकीन करने वाले नेता | अरे खून-खराबा तो बहादुरों का शगल है | अब आप किसी की बनी बनाई छवि को पूरा मिट्टी में मिलाने की कोशिश करेंगे तो कोई सहेगा जी |

कह दिए कि "जिन्ना धर्मनिरपेक्ष थे" | "देश को नेहरू और पटेल ने मिलकर बांटा"| हद्द हो गई नाइंसाफी की | मेहनत जिन्ना साहब ने की और आप मिठाई नेहरू-पटेल के नाम की बाँट रहे हैं | इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिए कि अपने हित में मरहूमों को उनके हक़ से महरूम कर दिया जाए |

जिन्ना साहब अंग्रेजों के परम मित्र थे और आप कहते हैं हुकूमत ने उन्हें उपेक्षित किया | लेकिन अपना मकसद पूरा कराने के बाद | यह तो अंग्रेजों की आदि नीति थी |

जिन्ना नहीं तो क्या हुआ । जिन्ना को समझने वाले आपसे ज्यादा वरिष्ठबुद्धिमान लोग पार्टी और उसके बाहर बैठे हैं । जिन्ना को आप हीरो बना देंगे तो फ़िर आपकी जरूरत क्या रह जाएगी । आप कांटे से कांटा निकाल रहे थे । जिन्ना के कांटे से नेहरु-पटेल और कांग्रेस के कांटे को निकाल रहे थे । लेकिन एक तो निकला नहीं, दूसरा और धंस गया ।

लेकिन गौरतलब है कि मोहब्बत-ए-जिन्ना का दौरा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं पर ही वक्त बेवक्त क्यों पडता रहता है । क्योंकि इनका अस्तित्व निषेध पर टिका हुआ है । दोनों एक-दूसरे को परिभाषित करते हैं । एक की मृत्यु दूसरे की भी मृत्यु है । दोनों नफ़रत की बुनियाद पर खडे हुए अतीतजीवी हैं ।

स्पष्ट है कि इनकी मन्शा जिन्ना की महानता उजागर करना कम और नेहरु-पटेल-कांग्रेस को विभाजन का गुनाहगार साबित करना ज्यादा है । इस तरह स्थापना करके मुस्लिम समुदाय की सहानुभूति हासिल करना चाहते हैं । यह बात दीगर है की पांसा उलट पड़ गया |

अपनी किताब में जसवन्त सिंह ने यह भी कहा है "कि मुस्लिम समुदाय के प्रति विदेशियों जैसा व्यवहार किया गया ।"
अपनी किताब में जसवंत जी को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भी याद कर लेनी चाहिए थी जिन्होंने हिन्दू-मुस्लिम आधार पर पंजाब और बंगाल के विभाजन की मांग की थी | बांग्लादेश ने धर्म के आधार पर द्वि राष्ट्र सिद्धांत की हवा निकल दी है | सिंध और बलूचिस्तान भी उसी राह पर हैं | दो राष्ट्रों का सिद्धांत भी जिन्ना जी के पहले हिंदू राष्ट्रवादी सावरकर जी का दिया हुआ था |

अतीत को उखाकडकर उसका पोस्टमार्टम करना काफ़ी जोखिम भरा काम है, खास तौर पर एक राजनीतिज्ञ के लिये । इससे जनता का मनोरंजन हो यहां तक तो ठीक है । लेकिन यदि यही काम वर्तमान की चुनौतियों से जनता का ध्यान हटाकर एक और विनाशकारी विचार देने का है तो यह टुच्ची राजनीति है । वर्तमान की, रोजमर्रा की चुनौतियों को लेकर, विकास को लेकर किताब लिखिये । लेकिन उसके लिये तो एक पूरे विजन की जरूरत पडेगी । उस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगायेगा, उसकी वजह से कोई हंगामा भी नहीं खडा होगा । इसलिए लिखने का मजा नहीं आएगा |

यह सही है कि देश का विभाजन शीर्ष नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से भी जुडा हुआ है | गाँधी द्वारा अंत में जिन्ना को प्रधानमत्री बनाने के प्रस्ताव को नेहरू-पटेल कभी स्वीकार नहीं कर सकते थे | बहुमत भी उनके पक्ष में होता | गाँधी जी जैसे लोकप्रिय नेता की धर्म भीरुता और तुष्टीकरण भी इसकी एक बड़ी वजह थी | जब गाँधी को हिंदू होने पर गर्व था तो स्वाभाविक है कि जिन्ना असुरक्षित महसूस करेंगे ही |

मैं कहना यह चाहता हूँ कि विभाजन कि लिए किसी एक नेता को बढाचढाकर पेश करके अन्य नेताओं के साथ नाइंसाफी नहीं करनी चाहिए | इसमें सबका कम-ज्यादा हिस्सा है | वजह चाहे राजनैतिक हो या धार्मिक | इसलिए किसी एक को पकड़कर सर फोड़ने की जरूरत नहीं है |

जिन्ना को परेशान मत करिये । उन्हें पाकिस्तान बनाकर उसका शासक बनना था | वो सब उन्होने कर लिया । अब जिन्ना जी को आराम फ़रमाने दीजिये वरना वे आपके चैन की बन्शी छीन लेंगे ।

3 comments:

  1. Wah, Barvo friend. The tone really humorous. After a long time i have read such an article. You presented the fact in such way that, i was really overjoyed to go through at one go. This was what i emphasized during chat sessions last week and wanted from you.

    This is india. I am sure no one has read the book and Jashwant will earn a lot as this book will earn dollars. Jinnah, Jawahar Lal, Gandhi and all congress leaders were responsible for the partition and the current round of terrorism and circulation of fake currencies.

    The congressians had made all Indians impotent. Gandhi and co fought as they say, against the might British empire but they were imbecile against the tirade of Jinnah brigade. It was their weakness that led to the division.

    Sadly, the book must have something interesting but these BJP people will not like others to read the book.

    Friend, your effort to come up with a post summing up the current affairs is really praiseworthy. Full commendation to you. Do come up regularly, with such thought provoking post on contemporary and relevant theme.

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  2. वाह..बहुत ही सटीक सामयिक आलेख.सच है इन राजनेताओं या दलों को की मंशा किसी की भी महानता को उजागर करने की नहीं बल्कि अगले को गुनाहगार साबित करने की ही होती है.

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नेकी कर दरिया में डाल