तुम मेरी कविता में हो !
जैसे चाय में शक्कर,
आटे में नमक,
कंप्यूटर में इन्टरनेट,
इश्तिहारी पम्पलेट |
तुम मेरे जीवन में हो !
जैसे टायर में हवा,
कैप्सूल में दवा,
शेर एक सवा,
लफडा नित नवा,
इंजन में तेल
बातें बेमेल |
तुम मेरे एकांत में हो !
जैसे सीरिअल में विज्ञापन,
तूफ़ान का ज्ञापन,
सत्र का समापन |
तुम मेरे पर्स में हो !
जैसे गेहूं में घुन,
ख़राब सगुन,
खेत में इल्ली,
दूध में बिल्ली |
तुम मेरे विचारों में हो !
जैसे कमरे में महक,
अंगारे में दहक,
उगती हुई पत्ती,
सस्ती अगरबत्ती |
तुम मेरे लेखन में हो !
जैसे साहित्य में आलोचक,
पुस्तक का विमोचक,
परीक्षा में नक़ल,
पोती हुई शकल |
तुम मेरे जोश में हो !
जैसे खीसे में रूपया,
भाड़े का जपिया,
गाडी लकटकिया |
ब्लोगर नौसिखिया,
कहाँ-कहाँ बताएं !
तुम सब में हो,
जैसे कंप्युटर में वाइरस,
हवा में मच्छर,
बीमारी में डाक्टर,
विद्यालय में मास्टर
पानी में आक्सीजन,
परीक्षा में रिवीजन |
लेकिन तुम हो कौन ?
यह पता नहीं |आदि आदि इत्यादि | "और" बाद में जोड़ देंगे |
ब्लोगर साथियों का योगदान :
"समीर जी" :
तुम मेरे रोष में हो,
जैसे ईमेल में स्पैम
बाथरुम में स्पाई-कैम
टिप्पणी में अनाम
ब्लॉगर हो बदनाम..
तुम मेरी गज़ल में हो
जैसे शेर बे-बहर
श्रोताओं पर कहर
काफ़िया ने किया किनारा
जनता ने अंडा दे मारा..
कहाँ कहाँ हम तुम्हें बतायें
बेहतर हो,
आप खुद ही जान जायें.
____________________
वंदना जी :
तुम मेरी बात में हो,
तुम मेरी रात में हो,
तुम मेरे साथ में हो,
और मेरी औकात में हो.
तुम मेरे हालात में हो,
तुम मेरे दिन-रात में हो,
लगता है ऐसा जैसे-
तुम पूरी कायनात में हो.
तुम मेरी छांव में हो,
तुम चमकती धूप में हो,
बरस रहा हो पानी जब-
तो तुम मेरी बरसात में हो.
तुम्ही हो माता,
पिता तुम्हीं हो,
तुम्ही हो बन्धु......पता नहीं है!!
तुम मेरी अकल में हो,
तुम मेरी शकल में हो ,
आ रही दुर्गन्ध सी कुछ,
क्या तुम मेरी बगल में हो?
__________________
फौजिया रियाज़ जी:
तुम मेरी साँसों में हो ,
जैसे सड़कों पर गड्ढे
नित नए फंदे...
तुम मेरी आंखों में हो ,
जैसे चश्मे का पॉवर
अमिताभ के हाथ में डाबर
_________________
सूचना :
जो भी मित्र इसमें कुछ जोड़ना चाहें जोड़ सकते हैं, कमेंट के माध्यम से | उनके नाम और लिंक के साथ उनकी पंक्तियाँ दी जायेंगी |
सूचना समाप्त हुई |
धन्यवाद !
bahut hee sundar likha bhaai .....bahut bahut badhaai......atisundar
ReplyDeleteहा हा!! ब्लॉगर नौसिखिया..बहुत खूब!!
ReplyDeleteतुम मेरे रोष में हो,
ReplyDeleteजैसे ईमेल में स्पैम
बाथरुम में स्पाई-कैम
टिप्पणी में अनाम
ब्लॉगर हो बदनाम..
तुम मेरी गज़ल में हो
जैसे शेर बे-बहर
श्रोताओं पर कहर
काफ़िया ने किया किनारा
जनता ने अंडा दे मारा..
कहाँ कहाँ हम तुम्हें बतायें
बेहतर हो,
आप खुद ही जान जायें.
jaandar ,shaandar .bahut khoob likha hai .khabar hai kise ye pata nahi ,andaaz me shayad wo ho kahi .
ReplyDeleteबहुत ही मज़ेदार और शानदार कविता लिखा है आपने! बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत बढिया ! क्या क्या उपमान दिए हैं आपने ! कहां से लाए इन्हें ! और समीर जी की जवाबी कार्यवाही का तो कहना ही क्या !
ReplyDeleteवाह ये तो बडी मज़ेदार कविता है..मज़ा आ गया. मैं भी कुछ जोडूंगी ज़रूर. और जिसके लिये लिखा उसे ही नहीं जानते? आपकी श्रीमती जी से कहूं क्या ढूंढने के लिये?
ReplyDeleteलीजिये कुछ पंक्तियां हाजिर हैं-
ReplyDeleteतुम मेरी बात में हो,
तुम मेरी रात में हो,
तुम मेरे साथ में हो,
और मेरी औकात में हो.
तुम मेरे हालात में हो,
तुम मेरे दिन-रात में हो,
लगता है ऐसा जैसे-
तुम पूरी कायनात में हो.
तुम मेरी छांव में हो,
तुम चमकती धूप में हो,
बरस रहा हो पानी जब-
तो तुम मेरी बरसात में हो.
तुम्ही हो माता,
पिता तुम्हीं हो,
तुम्ही हो बन्धु......पता नहीं है!!
तुम मेरी अकल में हो,
तुम मेरी शकल में हो ,
आ रही दुर्गन्ध से कुछ,
क्या तुम मेरी बगल में हो?
उफ्फो !...क्या कहें ? हम कहाँ हैं ?कतार मे भी हैं या नही ?
ReplyDeleteVandnaji ka jawab bada mazedar laga!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
tum meri saanson mein ho,
ReplyDeletejaise sadkon par gaddhe
nit naye faddhe...
tum meri aankhon mein ho,
jaise chashme ka power
amitabh ke haath mein dabur
very vry nice itna sunder sopan
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