August 09, 2009

भारत छोडो आन्दोलन : अगस्त क्रांति

जब मैं भारतीय इतिहास के सबसे बड़े आन्दोलन भारत छोडो आन्दोलन के विषय में विचार करता हूँ तो मुझे बडा आशचर्य होता है, क्योंकि जिस भारत छोडो आन्दोलन या अगस्त क्रांति को भारतीय स्वतन्त्रता की अन्तिम महान लड़ाई कहा जाता है, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव इस हद तक हिलाकर रख दी थी कि अंततः वह उखड गयी, उसके शुरुआत का विरोध उस समय के लगभग सभी प्रमुख संगठनों ने किया था | यहाँ तक कि कांग्रेस भी धर्म संकट में थी और उसे मजबूरन गांधी जी कि इच्छा शक्ति के आगे झुककर 7 अगस्त 1942 को मुंबई के 'ग्वालिया टैंक' मैदान में, 'अखिल भारतीय कांग्रेस आन्दोलन' के दौरान हुई बैठक में गांधीजी के ऐतिहासिक 'भारत छोडो' आन्दोलन के प्रस्ताव को थोड़े-बहुत संशोधनों के बाद 8 अगस्त 1942 को स्वीकार कर लिया |

गाँधी जी ने कांग्रेस को अपने प्रस्ताव को स्वीकार करने की स्थिति में चुनौती देते हुए कहा - "मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आन्दोलन खडा कर दूँगा |"

14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति की वर्धा बैठक में गांधीजी के इस विचार को पूर्ण समर्थन मिला कि भारत में संवैधानिक गतिरोध तभी दूर हो सकता है, जब अंग्रेज भारत से चले जाएँ |

जवाहर लाल नेहरू ने कहा - " हम आग से खेलने जा रहे हैं | हम दुधारी तलवार का प्रयोग करने जा रहे हैं, जिसकी चोट उल्टे हमारे ऊपर भी पड़ सकती है |"

स्पष्ट है कि अगस्त 1942 के भारत छोडो आन्दोलन के मास्टर माइंड महात्मा गांधी थे | वही एक व्यक्ति थे जिनके मन में आन्दोलन शुरू करने के प्रति कोई संदेह नहीं था | बेझिझक | निस्संकोच | उन्होंने ही अगस्त क्रान्ति की मशाल में आग जलाई थी |

भारती राजनैतिक-धार्मिक संगठन उस समय भी भयानक रूप से बँटे हुए थे | अपने निहित स्वार्थों की वजह से उनमें असुरक्शा की भावना घर की हुई थी | वे अंग्रेजों के जाने से पहले सत्ता में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे |

"अंग्रेज तो चले जायेंगे लेकिन हमें क्या मिलेगा" ठीक वही सोच विद्यमान थी जो १८५७ के विद्रोह और उससे पहले भारतीय सामंतों की थी | यहाँ मैं जानबूझकर सामंत शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ, क्योंकि सभी भारतीय राजे-राजवाडे अंग्रेजों के सामंत ही थे | 1857 से पहले कंपनी को और उसके बाद बितानिया हुकूमत को कर देकर प्रजा का शोषण करके अपनी विलासिता का साधन जुटाने वाले सामंत | भारतीय सामंत राजाओं की सोच वैसी ही थी जैसी वर्तमान राजनैतिक नेताओं की है - "हमारा राज (कुर्सी) बना रहे, बाकी सब चलता है | हमारा अस्तित्व सिर्फ़ कुर्सी में है|"

7 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक में हुए सम्मेंलन में गांधी जी ने लगभग 70 मिनट तक भाषण किया, उन्होंने कहा कि "मैं आपको एक मन्त्र देता हूँ - "करो या मरो" | बस इस बात का ध्यान रहे कि आन्दोलन गुप्त एवं हिंसात्मक न हो |

9 अगस्त को सुबह तड़के में ही कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेता गिरफ्तार कर लिए गए | जनता ने स्वयं ही अपना नेतृत्व संभाल कर जुलूस निकाले, सभाएँ कीं | स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान यह पहला आन्दोलन था जो नेतृत्व विहीनता के बाद भी उत्कर्ष पर पहुंचा | मुम्बई, अहमदाबाद एवं जमशेदपुर में मजदूरों ने संयुक्त रूप से विशाल हड़ताल की | संयुक्त प्रांत में बलिया एवं बस्ती, मुम्बई में सतारा, बंगाल में मिदनापुर एवं भार में कुछ भागों में भारत छोडो आन्दोलन के समय अस्थायी सरकार की स्थापना कर दी गईयूँ तो यह आन्दोलन सारे देश कमोबेश फ़ैल गया था लेकिन लेकिन सर्वाधिक प्रभावित क्शेत्र थे बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश , मद्रास एवं मुम्बई |

जय प्रकाश नारायण , राम मनोहर लोहिया एवं अरुणा आसफ अली जैसे नेताओं ने भूमिगत रहकर इस आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया | गांधीजी को पूना के आगा खान महल में तथा कांग्रेस कार्यकारिणी के एनी सदस्यों को अहमदनगर के दुर्ग में रखा गया | कांग्रेस को ब्रिटिश सरकार ने असंवैधानिक संस्था घोषित कर इसकी सम्पति जब्त कर ली और साथ में जुलूसों को प्रतिबंधित कर दिया | सरकार ने जब आन्दोलन को निर्ममता पूर्वक लाठी एवं बन्दूक से दमन किया तो आन्दोलन हिंसात्मक हो गया |

तत्कालीन भारतीय राजनीतिक दलों में साम्यवादी दल ने इस आन्दोलन की आलोचना की | मुस्लिम लीग ने भी भारत छोडो आन्दोलन की आलोचना करते हुए कहा कि "आन्दोलन का लक्ष्य भारतीय स्वतन्त्रता नहीं, वरण भारत में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करना है, इस कारण यह आन्दोलन मुसलमानों के लिए घातक है | इस तरह मुस्लिम लीग अंग्रेजों की स्वामिभक्त बनी रही और हर तरह से उनकी सहायता की |
यही रवैया कट्टर हिंदूवादी संगठन "हिन्दू महासभा" एवं अकाली आन्दोलन का भी था | इन्होने इस आन्दोलन की आलोचना की | कांग्रेस के उदारवादियों को भी यह आन्दोलन रास नहीं आया | सर तेजबहादुर सप्र ने इस प्रस्ताव को 'अविचारित तथा असामाजिक' बताया | अम्बेडकर ने इसे 'अनुत्तार्दायित्व्पूर्ण और पागलपन भरा कार्य' बताया |

यह आन्दोलन भारत को स्वतन्त्रता तो नहीं दिला पाया , किन्तु इसके दूरगामी परिणाम निर्णायक हुए | इसीलिये इसे "भारत की स्वाधीनता के लिए किया जाने वाला अन्तिम महान प्रयास" कहा गया | इस आन्दोलन ने विश्व के देशों को भारतीय जनमानस के साथ खड़ा कर दिया |

इस तरह गाँधी जी ने अपनी दूरदृष्टि का परिचय देते हुए तमाम आतंरिक गतिरोधों और विरोधों के बावजूद इस महान आन्दोलन को वास्तविक किया | क्योंकि महात्मा गाँधी को अंग्रेजों की मक्कारी और अपने देश के राजनैतिक धार्मिक संगठनों की पद लोलुपता का एहसास हो गया था | उन्हें डर था कि कहीं ये संगठन स्वार्थ लोलुपता के चलते, स्वतन्त्रता की मांग को विलंबित न कर दें या कौन जानता है कि लालच में आकर अंग्रेजों से अलग-अलग खतरनाक समझौते ही कर लें | उधर द्वितीय विश युद्ध भी अपने चरम पर था | जर्मनी और जापान पूरी दुनिया को अचंभित किए हुए थे | गाधी जी नहीं चाहते थे कि भारत एक गुलामी से मुक्त होकर दूसरी गुलामी की जंजीर पहन ले अर्थात देश नाजियों की हाथ पड़ जाए |

जो भी हो 'भारत छोडो आन्दोलन' या 'अगस्त क्रांति ' महात्मा गाँधी के द्वारा लाई हुई आंधी थी, जिसने सारे अवारोधों को उखाड़ फेंका था | एक ऐसी आंधी जिसके साथ सबको चलना ही पडा था खुशी से या मजबूरन और जो इसके साथ न उड़ पाये वे सुरक्षित पनाहगाहों में छिपे हुए थे |

अगस्त क्रांति के परवानों को कोटि - कोटि नमन |

9 comments:

  1. Friend i have got a dissenting view though i dont want to pressurise you to subscribe to that. But i wanted to write for what reason even i also dunno.

    Dont be in the belief that it was due to the Quit India Movement India got freedom. It was the frustration of Gandhi that was clearly speaking in his call of Do or Die. Everyone was critical but Gandhi persuaded all rather all wanted to keep mum. And this is one of the features of the Indian National Congress right from Gandhi, Neheru, Indira, Rajiv and now Sonia or her son Rahul or daughter Priyanka. Please try to see the reality. What we got in return nothing. It was the passivity and sycophancy many leftist like Subhash Bose left congress. Gandhi did not supported the INA. But the mobilization in foreign land was really remarkable.

    Be firm in your belief and view point. The other day you talked of revolutionaries like Tilak and Bhagat Singh. When January will come you will talk about Subhash Bose. And now Gandhi. Which ideal do you champion?

    It was the passivity of Gandhi and excessive reliance on Satyagraha and non violence, India was granted independence late. It was for his passivity India was partitioned. Kashmir is still burning. Still there are communal riots in the country. Strikes, hartals, hunger strikes are but methods used by Gandhi that no one like now.

    Clearly, after the second WW it was but clear that India was to get independence as Uk was not in a position to maintain India with her devastating economy. Public opinion was against continuing the rule in India. It was the pressure of the allies that led Britain to grant Independence the sooner the better. We should have pressurized Uk to build our economy, communication, infrastructure like School, hospital, industries, banks, ports. What we got was moth eaten and limbs cut off.

    Where was the morale and strength of the congress and Gandhi when India was partitioned and Jinha called Direct Action Day? Clearly, violence was the need of the hour but Indian populace was made an eunuch thanks to Gandhi.


    What was the contribution of Gandhi in the QIM as it was a leaderless struggle? Nothing other than the impotent slogan of "Do or Die."


    You have done a good job to write the pages of history as they wanted us to read. it is regrettable that they prescribed history but history when seen in the light of the present, tend to change.

    Anyway, you have revisited the time and thanks for that.

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  2. pratham bar yahan aaya hoon . wakai behtarin hai blog . layout aur content emin kaafi balance kar rakha hai . kaafi saargarbhit aitihasik jankari hai is aalekh mein . ............................

    jai hind .

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  3. @सुदाम,
    मित्र सर्वप्रथम मैं आपको मेरे ब्लॉग पर इतने विस्तार से टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद देता हूँ |
    आपने जो मुद्दे उठाएं हैं वे एक अलग ब्लॉग पोस्ट की मांग करते हैं, किन्तु मैं संक्षेप में कुछ बातें स्पष्ट कहना चाहता हूँ |

    आपने भारत छोडो आन्दोलन और स्वतन्त्रता प्राप्ति में गाँधी की भूमिका पर सवाल उठाये हैं |मैंने सिर्फ यह रेखांकित करने की कोशिश की है की 'भारत छोडो आन्दोलन' के पीछे गाँधी जी की ताक़त थी और उस वक्त किसी माई के लाल में उनको रोकने की हिम्मत नहीं थी | स्वतन्त्रता में उसकी क्या प्रासंगिकता रही इस पर आप बहस कर सकते हैं |

    जहां तक ताकत से भारत को स्वतंत्र कराने की बात थी | वह या तो देश के अन्दर सशत्र क्रांति से होती या विदेशी समर्थन से जैसा की सुभाष बाबू करना चाहते थे | खुद के बूते पर सश्र्त्र क्रांति करके इस देश को स्वतंत्र कराना एक दूर की कौडी थी | इस देश में सशत्र क्रांति संभव ही नहीं थी | दूसरे की सहायता से आजादी मिलती,जैसाकी सुभाष बाबू चाहते थे, तो जाहिर है आपकी मदद करने वाला उसकी कीमत भी चाहेगा | यह गांधी का डर था की देश नाजियों के हाथ में न पड़ जाए | और हम स्वतंत्र होकर एक तानाशाह को अपने सिर पर सवार पायें | भगत सिंह का भी "बहरों को सुनाने के लिए धमाका करना" भी इसी भावना से प्रेरित था की जब तक जन क्रांति नहीं होती आजादी सिर्फ हथियारों से संभव नहीं है |

    आपने कहा की द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेज भारत देश को आजादी खुद ब खुद उपहार स्वरुप देकर चले जाते, तो मैं यह कह दूं की भारत को स्वतंत्रा जल्दी इसलिए मिल सकी क्योंकि चर्चिल अपने पद से हट चुका था और एटली प्रधानमंत्री थे | वरना उसका सिद्धांत था की "हमने भारत को हथियारों के बल पर जीता है और हथियारों के बल पर ही उस पर शासन करेंगे "

    अगस्त क्रांति की महती भुमिका से तो कोई इनकार कर ही नहीं सकता | यह भारत का अब तक का पहला और आख़िरी स्वतः स्फूर्त जनांदोलन था |

    "मैं कभी भगत सिंह पर लिखता हूँ और कभी गांधी पर, हो सकता है में कल नेताजी सुभाष पर लिखूं | " तो आपने कहा की मैं अपने विचारों पर दृढ रहूँ और मेरा आदर्श क्या है ? मेरा विश्वास क्या है ?

    मेरा जवाब है की मैं किसी का अनुयायी नहीं हूँ | मेरा विशास सिर्फ इसानियत में है | मैं पूछता हूँ की यह दुनिया अनुयायियों से मुक्त कब होगी | कब लोग व्यक्तियोंके पीछे चलना बंद करेंगे | मुझे किसी वाद पर यकीन नहीं | क्योंकि वाद या आदर्श एक जड़ अवाधारना है और जिन्दगी रोज बदलती जाती है |
    हमारा आदर्श मानवता के अलावा कुछ नहीं होना चाहिए | जहां भी अच्छाई मिले उसे स्वीकार और अंगीकार करने की प्रवृत्ति और बुराइयों को इनकार करने की क्षमता | यही दृष्टि मेरा आदर्श है | क्योंकि व्यक्ति को आदर्श मानना घातक है | सारे सम्प्रदाय इन्ही वजहों से बने हैं | और कोई भी व्यक्ति अपने आप में सिर्फ अच्छाई का पुतला नहीं होता, उसमें बुराइयां भी अवश्य होती हैं |

    और जहां तक योगदान की बात है तो यह गाँधी और नेहरु का ही चरित्र था की आजादी के बाद भारत की वृहत्तर चेतना धर्मनिरपेक्ष रह सकी | नेहरु के बाद तो इस देश में कोई विजनरी पैदा ही नहीं हुआ |

    विभाजन की अपनी कहानी है | उस पर मैं अभी बात नहीं कर रहा |

    नेतृत्व रहित जनांदोलन यही "leaderless struggle" की खासियत थी |
    जनता जाग गई थी |
    यही गांधी का उद्देश्य भी था | आदोलन तो एक युक्ति थी |

    गाँधी का सबसे बड़ा योगदान था जनता को निर्भय कर देना |
    उन्होंने कहा "डरो मत" |

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  4. आप आवाज़ लगायें, चीखें--आपके आसपास भीड़ खड़ी हो जायेगी--तमाशबीनों की भीड़; लेकिन अपने हितसाधन के लिए यदि आप उनसे विनती करें, तो देखते-देखते भीड़ हवा हो जायेगी. एक व्यक्ति भी आपको अपने पास खडा न मिलेगा ! ये दस्तूर आज भी है, कल भी था ! आपने जिस अगस्त क्रांति की बात कही है, उसमे लाखों-लाख लोग एकजुट हुए थे--ये गाँधी का करिश्मा नहीं तो और क्या था ?
    प्रियवर, गाँधी जी की आलोचना करनेवालों की आज देश में कमी नहीं, लेकिन गाँधी-जीवन-चरित का एक अंश भी जीवन में उतरना बड़ा कठिन है. मैं आपकी बात से सहमत हूँ कि वाद-विवाद से अलग रहकर जहाँ भी अच्छाई हो, मानवीय मूल्य हों, उसे स्वीकार और ग्रहण करना चाहिए ! आपके इस प्रश्न से आनंदित हुआ कि 'यह दुनिया अनुयायियों से कब मुक्त होगी ?' क्रांति के जनक, अगुआ और सिपहसालारों को मेरा भी नमन ! आपको साधुवाद भी !

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  5. aapke lekh ke saath sabki baate bhi dilchsp lagi .is vishya ke sampark me rahana jaroori hai .main kal dukhi bhi thi ki bachapan me hamaare yaha hamesha 9aug ko sahid dvas manate the aaj inhe koi yaad karane wala nahi par aapke ke blog par pahunchkar raahat mili .shat-2naman sabhi shahido ko .jiski wazah se aazad hai .

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  6. Bahut Barhia... isi tarah likhte rahiye...

    http://hellomithilaa.blogspot.com
    Mithilak Gap...Maithili Me

    http://muskuraahat.blogspot.com
    Aapke Bheje Photo

    http://mastgaane.blogspot.com
    Manpasand Gaane

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  7. अगस्त क्रान्ति की सामयिक चर्चा कर आपने बहुत अच्छा काम किया है. सच कहूं तो ऐसे सामयिक अवसरों के सटीक जानकारीपरक आलेख आप के ब्लौग पर ही मिलते हैं मुझे.अफ़सोस तो इस बात का है, कि अखबार जैसे सर्वव्यापी साधन इन तिथियों को भूलते ही जा रहे हैं. बधाई.

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  8. मेरा जवाब है की मैं किसी का अनुयायी नहीं हूँ | मेरा विशास सिर्फ इसानियत में है | मैं पूछता हूँ की यह दुनिया अनुयायियों से मुक्त कब होगी | कब लोग व्यक्तियोंके पीछे चलना बंद करेंगे | मुझे किसी वाद पर यकीन नहीं | क्योंकि वाद या आदर्श एक जड़ अवाधारना है और जिन्दगी रोज बदलती जाती है |
    हमारा आदर्श मानवता के अलावा कुछ नहीं होना चाहिए |

    आपके विचार एक दिन आपको बुलंदियों तक ले जाये ....यही कामना है .....!!

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  9. i m aish n i ve to do my hin project on gandhiji:p

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नेकी कर दरिया में डाल