August 12, 2009

जॉनी....ब्लॉगिंग की भावना को समझो ! !

जब से हमें फुरसतिया अड्डे पर ब्लोगिंग की मूल भावना का हिन्ट मिला है, हमें लगने लगा कि कुछ दिनों से हम इस भावना से तनिक दूर हो चले थे | चेत होते ही यह भावना हमारे अन्दर गुब्बारे में हवा की तरह समा गयी | और हमारा दिमाग ट्रेन के जनरल डिब्बा के माफिक हो गया | जिसमें सवारी विचार जबरदस्ती ठंसने लगे | जगह बनाने की हील हुज्जत करने लगे | मय साजो सामान | इसके पहले की धक्का-मुक्का की नौबत आए, हमने चूहे से हरी झंडी दिलवाई और कुंजी पट्टरी पर उँगलियों को सरपट दौडाने लगे | तब जाकर सब लोग कहीं न कहीं टिकते नजर आए | उस पर तुर्रा यह कि हमें ख़राब लिखने के फायदे भी जनवा दिए गए | यह पढ़ते ही पहली बार हमें आपने ब्लोगर होने पर गर्व का एहसास हुआ और अपने सहज ही ख़राब लिख सकने की 'ब्लॉगर क्षमता' पर हर्ष | चलो कहीं तो जगह मिली |

अरे ! यह ' ब्लॉगर क्षमता' शब्द बीच में कहाँ से घुस रहा है | पहले हम 'मूल भावना' से तो निपट लें' |

परिणाम स्वरुप इस भावना से अधिकाधिक ब्लॉगर को संक्रमित करने, इसका प्रचार करने और साथ ही इसकी खोज करने के वास्ते हम यह ब्लॉग पोस्ट पीटने बैठ गए | वजह : ब्लॉगिंग की मूल भावना से परिचित होना ब्लॉगर के लिए गैर जरूरी ही नहीं अनावश्यक भी है | जिससे न रोज रोज, कभी-कभी ही सही ब्लॉगर जन इस भावना से जरूर पीड़ित हो जाएँ और बात-बेबात पर पोस्ट दे मारने की विशेष ब्लॉगर क्षमता उनमें जागृत हो सके, जो कि एक कुशल ब्लॉगर की सबसे बड़ी विशेषता है |

अनूप जी द्वारा अपने ब्लॉग पर दी गयी विनीत जी की लिंक से हमें भान हुआ कि ब्लॉगिंग की मूल भावना सहजता और सरलता है | ज्यादा सजाने-संवारने बोले तो मेककरने से इसमें बनावटीपन आ जाता है अर्थात् स्वाभाविकता जाती रहती है | लेकिन यह बात ब्लोगिंग के प्रारम्भिक स्वरुप को देखकर कही गई है | क्योंकि शुरुआत में ब्लोगिंग डायरीनुमा और भावुकतापूर्ण थी | अब यह व्यावसायिकता तक पहुँच गई है | यही सब विधाओं के विकास में होता है | कविता और कहानियों का विकास भी कल्पना से यथार्थ की ओर होता गया | बच्चा पहले अपनी मूल भावना में रहता है | फ़िर जैसे-जैसे बड़ा होता है, मस्ती खोकर सलीकेदार बन जाता है | नफ़ा-नुकसान, दुनियादारी | सर्वाइवल या उत्तरजीविता के लिए | यह सब ब्लोगिंग पर भी लागू |

लेकिन हमारा व्यक्तिगत मत है कि ब्लोगिंग की एक ही पहली और आख़िरी मूल भावना है कि इसकी कोई मूल भावना नहीं है | हम ब्लोगिंग करते समय हमेशा इसी भावना से प्रकाशित रहते हैं | स्वतंत्रता ही इसकी गरिमा है, अराजकता ही इसका सौदर्य है | अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग | किसी प्रवृत्ति को हिट करने की कोशिश करना ब्लोगिंग की मूल भावना के ख़िलाफ़ है | यहाँ हम 'नानी के आगे ननिऔरे (ननिहाल) का हाल भी सुना सकते हैं' | क्योंकि, हे पार्थ ! ऐसा नहीं है कि ब्लोगर जन इस विषय पर तुमसे पहले नहीं लिखे हैं या तुम्हारे बाद नहीं लिखेंगे | फ़िर भी इन सब बातों की परवाह न करते हुए तुम लिखते रहो | फल की परवाह न करना वैसे भी हम भारतवासियों की मूल भावना है | इसी भावना के चलते भारत देश कुछ वर्षों में चीन को पछाड़ने वाला है |

बिना किसी प्रतिभा के पोस्ट पर पोस्ट दनदनाते रहना एक निरे ब्लोगर की क्षमता है, जीवट है | चाहे पोस्ट दो-चार लोग ही पढ़ें, पोस्ट पर पोस्ट दागते रहेंगे | अब यह 'निरा-ब्लॉगर' ख़ुद को हाईलाईट करने की कोशिश कर रहा है | लेकिन आप अभी लुप्प से जलकर बुत जाइए | शायद कभी नंबर आ जाए | बिना किसी प्रतिभा के शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया क्योंकि ब्लोगिंग का प्रतिभा से कोई लेना-देना नहीं है, वरना अनूप जी (ख़ुद उनके अनुसार) ब्लोगिंग करने की बजाय किसी अखबार या पत्रिका में फ़ुरसतिया कॉलम लिख रहे होते | लिखने से पहले जो ज्यादा सोच विचार करेगा वह चाहे जो बन जाए 'निरा ब्लोगर' नहीं बन सकता | पहले हमें लगा कि दूसरे ब्लोगरों की भावनाओं को चोट ना पहुंचाने की भावना को ब्लोगिंग की एक प्रमुख भावना के रूप में पेश करें | लेकिन बाद में हमने अपना यह विचार निरस्त कर दिया | क्योंकि यह बात ख़ुद ब्लोगिंग की मूल भावना के खिलाफ हो जाती |

एक बार अभिनेता राजकुमार के यहाँ एक नेर्देशक महोदय विज्ञापन में काम करने का ऑफ़र लेकर गए | अपने "जानी" राजकुमार ने साफ़ इंकार कर दिया - "जॉनी हम राजकुमार हैं | तुम्हारी कंपनी के सेल्समैन नहीं" | लेकिन नेर्देशक अपनी जिद पर अडा रहा | कुछ देर तक तो राजकुमार जी ने उसे समझाने कि कोशिश की | लेकिन जब वह फ़िर भी नहीं माना तो राजकुमार ने उसे कुछ देर तक घूर कर देखा, फ़िर अपने अंदाज में बोले - "जॉनी ...हमारी बात समझो |" इतना सुनते ही वह चुपचाप अपना सा मुंह लेकर खिसक लिया |

ब्लॉगिंग के ब्लॉगर की जय हो ! भावों के सागर की जय हो ! ब्लोगिंग के लफडे की जय हो ! प्रेम सिक्त झगडे की जय हो !

"जॉनी....ब्लॉगिंग की भावना को समझो ! ! "

12 comments:

  1. आप की एक-एक लाइन से आपका ज्ञान टप्प -टप्प चू रहा है। लेकिन कहीं से बोझिल नहीं है ये ज्ञान। जई तो असल ब्लागिंग हे जी। जय हो! :)

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  2. समझ गये अर्कजेश जी, खूब अच्छी तरह समझ गये. अब ब्लौगिंग भी आसान नज़र आ रही है.अनूप जी ठीक ही कह रहे हैं, आलेख बहुत उम्दा और दिलचस्प भी है. बोझिल होने का तो सवाल ही नहीं.

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  3. दिलचस्प अंदाज.है जी ....शहीदाना .....ओर अनौपचारिक इत्ता धांसू है तो ओपचारिक ...?

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  4. kya karun Sir ji apna upri maahla khali hai. pata nahin puncture bhi pata nahin chalta, khali pili ka tube khol ke pani mein dubana hota hai.


    Sare tippani padhne se mujhe bhi lagta hai kyon, aap purush hi nahin Ghabraiye nahin ji) Mahapurush hai.

    Waise sabdhon ko nachana aap sahi se jante hai, ye to taya hai. Lekin, Ye pata nahin chala Ye Bhabna kya hai. Majra kya hai huzoor?


    Fir bhi BADHAAI. Lol

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  5. Tiranga dekh ke lag raha ki Independence day ya Republic day Aas pas hai. Samaya ka sujh bujh. Hame to yaad hai, kuchh bhasanwaji aur angrejo ke khilaf kuchh nare waji tatpaschat Kuchh chocolates, ghush ke taur par, itna der tak dhairya chyut na hoke, sunne ke liye.

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  6. वाह, खूब मौज में लिखा है हमको भी ऐसा ही पढने में आनन्द मिलता है, और आज तो आनन्द टपक रहा है..टप टप टप टप टप टप....

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  7. वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने! मज़ा आ गया! ब्लॉग हेडर बहुत अच्छा बनाया आपने!

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  8. @sudam,
    महला खाली है तो किराये से दे दो यार
    वरना खाली महले में तो जानते हो कौए चमगादड वगैरह अड्डा जमा लेते हैं ।खाली महला शैतान का घर भी होता है ।

    दूसरी भावना की बात को सरे आम क्यों करवा रहे हो । तुमको अकेले में बता देंगे ।
    "ये दिल के टुकडे हैं इन्हें नीलाम नहीं करते,
    सीने में छुपाकर रखते हैं, सरेआम नहीं करते ।"

    "हमारी भावना को समझो" |

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  9. @Arkjesh

    Kiraidar to nahin mil rahe yaar. Kiray mein chahiye kya, kam se kam, chamgaddon se bache rahenge?

    Aaj ka jamana bigyapanon ka hai. Jo jada bigyapit oh utna bada celebrity. waise dhyan rahega aapka dohe ki baat.

    Sine se lagane ko bolte ho, sare aam na karne ko bolte ho, fir bhi, Bhabna ko samajhne ko bolte ho. Kuchh hazam nahin hua. Chalo goli khake so jate hai.

    Wase aap agar rahenge upri mahle par to hame khusi hogi, bina paise ke bhade pe chadha denge.

    Jawab achha laga, bij aur ped usi bij ka hai. Thanks yaar.

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  10. अर्कजेश जी,
    ब्लोगिंग की अंतर-कथा पढ़ी. आनंद हुआ. आपके इस आलेख से मेरे जेहन में ये बात आयी की परसाईजी की तरह के व्यंग्य-विधा के लालित्यपूर्ण आलेख आप बहुत शानदार लिख सकते हैं. अपनी इस प्रतिभा को खूब तराशिये-मान्जिये-- क्या जाने कौन-सा गुल खिले ! मेरी शुभ-कामनाएं आपके साथ हैं. सप्रीत...

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नेकी कर दरिया में डाल