कई दिनों से कॉलोनी में ऑटोरिक्शा में कांग्रेस-भाजपा के प्रचार वाले भोंपू बजाते आते रहते हैं। उनमें कभी रिकार्डेड गाने लगे होतें हैं, कभी कोई माइक थामे बैठा रहता है। कभी-कभी तो मिडिल क्लास वाले स्कूली लडके भोंपू पर चिल्लाते बैठे रहते हैं। लेकिन इन भोंपुओं की आवाज इतनी भोंडी होती है कि कुछ समझ में नहीं आता कि चिल्ला क्या रहे हैं।
यहॉं भाजपा या नरेंद्र मोदी के समर्थक ज्यादा मुखर हैं। कांग्रेसी अपना पक्ष बेहतर और आक्रामक ढंग से नहीं रख पाते। विकास वगैरह की बात तो ऊपरी मुलम्मा है। जहॉं तक मैंने नोटिस किया है शहरों में हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण जबर्दस्त है। मेरा कहने का मतलब यह नहीं है कि ऐसा कुछ आपको दिखेगा। बाहर वाले को सब ठीक-ठाक लगेगा। ऊपर से सब अच्छा दिखता है पर मन में दरारें हैं। जब तक यह ध्रुवीकरण विकास या जातीय ध्रुवीकरण से ऊपर बना रहेगा, मोदी भी बने रहेंगे। गॉंवों में जातीय ध्रुवीकरण ज्यादा हो सकता है। गुजरात में भाजपा वन मैन आर्मी है। लोगों की बातों से भी यही पता चलता है। जैसे चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस नहीं मोदी बनाम कांग्रेस हो रहा हो। बहस में कांग्रेस के विपक्ष में भाजपा के समर्थन में तर्क नहीं रखे जाते बल्कि नरेंद्र मोदी के समर्थन में रखे जाते हैं। जैसे यदि कांग्रेस की खामियां गिनाऍंगे तो मोदी की विशेषताऍं बताई जाएंगी न कि भाजपा की, क्योंकि यह निर्विवाद है कि भाजापा के जीतने पर मोदी ही मुख्यमंत्री बनेंगे।
इसे इस उदाहरण से भी समझ सकते हैं कि अकसर भारतीय टीम इसलिए नहीं हारती कि विपक्षी टीम बहुत अच्छी है, बल्कि इसलिए कि भारतीय खिलाडी विपक्षी के थोडे से अच्छे प्रदर्शन के सामने ही हथियार डाल देते हैं या उनके पास विपक्षी के खिलाफ कोई ठोस रणनीति नहीं होती। कांग्रेस के पास दमदार क्षेत्रीय नेतृत्व की कमी है
सारे देश में ही राजनीति फूट डालो राज करो के महामंत्र से चल रही है। जनता भी चाहती है कि कोई उनमें फूट डाले ताकि उसे अपना पक्ष अपने लोग चुनने में सहूलियत रहे।
अंग्रेजी सीखी न सीखी, यह अवश्य सीख लिया।
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