December 18, 2012

रेप कैपिटल

दिल्‍ली क्राइम कैपिटल से और विशेषीकृत होकर रेप कैपिटल बन गई है। इस शहर में महिलाओं से होने वाले दुर्व्‍यवहार के ऑंकडे देश के अन्‍य शहरों से बहुत ऊपर हैं।

रेप एक घिनौना शब्‍द है। यह शब्‍द हमें शर्मसार करता है। एक सभ्‍य समाज में इस शब्‍द के प्रयोग करने की आवश्‍यकता नहीं पडनी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्‍यवश इस घटना से संबंधित छोभ और आक्रोश व्‍यक्‍त करने के लिए भी शब्‍द का प्रयोग करना पडता है। हर घटना के बाद टीवी चैनलों पर वही-वही बातें, तर्क, दलींलें देखकर घिन होने लगती है। 

हर तबके, आयोग के प्रतिनिधि बयान देते हैं। नौकरशाह, नेता बयान देते हैं। एक घटना पुरानी नहीं पडती कि दूसरी घटना सुनाई पड जाती है। 
अपराधी यदि पकडे भी गए तो कितनों को सजा होती है। इसका आंकडा भी इन्‍हें हर घटना के बाद दिए जाने वाले बयानों में देना चाहिए।

एक बस में बस का ही स्‍टॉफ एक लडकी के साथ उसके पुरुष मित्र को घायल करके लडकी के साथ सामूहिक जबर्दस्‍ती करता है और बस पूरे शहर में घूम रही है। इसके बाद लडकी को चलती से बस से बाहर फेंक दिया जाता है। अब लडकी अस्‍पताल में जीवन और मृत्‍यु से संघर्ष कर रही है।

अपने बयानों में यह कोई नहीं बताता कि पिछली घटना के बाद कौन से नए कदम उठाए गए हैं। इसे रोकने के लिए क्‍या नियम बनाए हैं। सामान्‍यत: यह देखा जाता है कि सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटी जाती है। जब कोई घटना हो जाती है तो पीडित को स्‍थाई नुकसान हो चुका होता है। उसकी भरपाई दोषी को दंड देने से भी नहीं होती।

घटना हो ही न इस दृष्टि से ही सारे प्रयास किए जाने चाहिए। लेकिन इस तरह की घटनाओं के संबंध में दिल्‍ली सरकार के नीति निर्धारकों और उसका पालन कराने वालों ने कोई दूरदर्शिता नहीं दिखाई है।

दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री एक महिला हैं। उत्‍तरप्रदेश की मुख्‍यमंत्री भी एक महिला थीं। ऐसा लगता है कि बडे पदों पर पहुँच जाने पर महिलाओं को महिलाओं के लिए कुछ विशेष करने की इच्‍छा मर जा‍ती है। वह संवेदनशीलता कहॉं चली जाती है जो एक महिला को एक महिला के लिए महिला होने की वजह से होनी चाहिए। क्‍या सत्‍ता महिला-पुरुष सबको एक जैसा ही कर देती है।

दिल्‍ली शहर में इस दिसंबर महीने में यह चौथी घटना है। यह बताता है कि लोगों में कानून का खौफ नहीं है। आजकल मोबाइल और जीपीआरएस के जमाने में दिल्‍ली पुलिस खासतौर पर महिलाओं के लिए ऐसा कोई नंबर क्‍यों नहीं देती जिसे मात्र मोबाइल के एक बटन दबाने से ही नियंत्रण कक्ष में पुलिस को यह पता चल सके कि इस क्षेत्र में किसी महिला के साथ दुर्व्‍यवहार हो रहा है। यह नंबर केवल महिलाओं के प्रयोग के लिए ही हो। इस नंबर के साथ पुलिस को स्‍थाई जीपीआरएस ट्रैकर लगाकर रखना चाहिए जिससे उसे तुरंत पता चल सके कि किस इलाके से कॉल हुई है। साथ ही इस नंबर का प्रयोग करने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षित भी किया जाना चाहिए।

बलात्‍कार के सामाजिक कारणों का हवाला भी दिया जाता है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। इसमें प्रमुख कारण यह है कि हमारे समाज की बाहरी चीजें तो बदल गई हैं लेकिन औसत मानसिकता जस की तस मध्‍ययुगीन है। खासकर इस मामले में। उसके लिए आपको ऐसी नीतियॉं बनानी होंगी जिससे उन कारणों को दूर किया जा सके जो ऐसी घटनाओं के लिए जिम्‍मेदार हैं। लेकिन तात्‍कालिक रुप से आप क्‍या कर रहे हैं। यह आपको दिखाना होगा।

3 comments:

  1. तुम्हारी बातों से पूर्णतया सहमत हूँ
    फ़िलहाल मन इन घटनाओं से बहुत उद्विग्न है ये रोज़ ब रोज़ बढ़ते हुए हादसात हमें कहाँ ले जा रहे हैं पता नहीं

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  2. अब हमें यह कहना छोड़ देना चाहिए कि मेरा भारत महान।

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  3. निश्चय ही कठोरता से निपटना होगा इन मूढ़ों से।

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नेकी कर दरिया में डाल