January 04, 2011

ब्रेक के बाद

यद्यपि ब्‍लॉगिंग कोई भारतीय क्रिकेट टीम नहीं है जिससे एक बार बाहर होने के बाद वापसी आसान न हो। ना ही ब्‍लागरी के क‍ाबिल लोगों को चुनने के लिए कोई चयन समिति बैठी हुई है। ना ही ब्‍लागिंग में योग्‍यता-अयोग्‍यता जैसी ईजाद मानवीय अवधारणा है। फिर भी एक लम्‍बे ब्रेक के बाद किसी ब्‍लॉगर के वापस आने की संभाव्‍यता क्‍या है? टंकी कंपनी को मैं इसमें शामिल नहीं कर रहा जो बाकायदा छोडने की घोषणा करके जमे रहते हैं या छोड भी देते हैं। मैं ऐसे ब्‍लॉगरों की बात कर रहा हूँ जो न तो ब्‍लॉग डिलीट करते न ही आजकल के फिल्‍म-प्रमोशन की तरह ब्‍लॉगिंग त्‍याग प्रमोशन कृत्‍य करते। बल्कि चुपचाप लिखना बंद कर देते हैं। इस पर शायद अभी तक हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में कोई शोध नहीं हुआ है (हालॉंकि हमें यह नहीं पता है कि शोध हुआ किन बातों पर है) ब्‍लॉगिंग कोई ऐसा/ऐसी रुठा/रुठी दोस्‍त नहीं है जिसके रुठने की वजह आपकी कोई अक्षम्‍य भूल हो।

इन सब भयानक बाधाओं की गैरहाजिरी के बावजूद एक लम्‍बे अंतराल तक न लिखने के बाद ब्‍लॉगिंग में वापसी आसान नहीं होती। मजे की बात है कि हम कैसा भी लिखें कोई पोस्‍ट प्रकाशित करने से रोक नहीं सकता। चाहे एक-दो लाइन लिखकर भी पोस्‍ट कर दें। फिर भी जब लिखना नहीं होता तो नहीं होता।

आज कई बहुत अच्‍छा लिखने वाले ब्‍लॉगर महीनों साल से पोस्‍ट लिखना बंद किए हुए हैं। ऐसे अनेकों नाम हैं। लिखने में गत्‍यावरोध की एक समय सीमा के बाद एक तरह से जडत्‍व का नियम काम करने लगता है। जो न लिखने की स्थिति को बनाए रखना चाहता है।

दूसरी बात जो न लिखने के लिए जिम्‍मेवार होती है वह है अपनी छवि के अनुरुप बेहतरीन पोस्‍ट न लिख पाने की समस्‍या। शुरुआत में ब्‍लॉगर के पास खोने के लिए कुछ नहीं होता। वह लगातार पोस्‍ट लिखता जाता है। ज्‍यादातर के पास अंत तक भी यही हाल रहता है।

यह तो पक्‍की बात है कि कृत्‍य अपने आप में साध्‍य नहीं होता। जैसे खाना खाया जाता है पेट भरने के लिए स्‍वाद के लिए न कि खाने के लिए। ऐसे ही ब्‍लॉगिंग की भी अपनी वजह होती है। कोई भी लिखने के लिए नहीं लिखता। कुछ लोग सामाजिक कारणों से लिखने का दावा करते हैं, तो कुछ स्‍वांत: सुखाय। स्‍वांत: सुखाय में पर दुखाय वाला सुख भी आ जाता है। हालॉंकि यह कोई नहीं जानता कि वह क्‍यों लिखता है। लिखने का अभ्‍यास करने के लिए भी ब्‍लॉग लेखन किया जा सकता है।

क्‍योंकि ब्‍लॉग लेखन में लिखने वाले पर लिखने का किसी तरह का दबाव नहीं होता इसलिए औसत लिखने वाले तब तक कुछ भी लिखते रहेंगे जब तक हमें ऐसा करने में मजा आता रहेगा।

विषयगत लेखन, कविता, कहानी, लेख, व्‍यंग लिखने वालों के साथ, जिन्‍हें उन्‍हीं की तरह के कई अच्‍छा लिखने वाले लोग यह मानते हैं कि वे अच्‍छा लिखते हैं, 
ऐसे ब्‍लॉगरों को अपना मानक बनाए रखना होता है।

हम जुलाई के बाद आज अपने ब्‍लॉग पर नमूदार हुए हैं। हमारे ऊपर सनक सवार हुई अपने ब्‍लॉग में कई परिवर्तन करने की। इसलिए हमने सबसे पहले अपने ब्‍लॉग का नाम 'अनौपचारिक' से बदलकर 'ब्रेक के बाद' कर दिया। क्‍योंकि हम काफी लम्‍बे ब्रेक के बाद लिख रहे हैं। ब्‍लॉग का नाम बदलना सबसे आसान कामों में से है, सिर्फ तब जब आपको कोई नाम सूझ गया हो जिसे पहले वाले से बदला जा सके। इसके बाद खूब अच्‍छी तरह से कस्‍टमाइज की हुई टेम्‍पलेट को हटाकर ब्‍लॉगर की टेम्‍पलेट डाल दी। जिसमें कि अभी कस्‍टमाइजेशन के कई काम बाकी हैं। ब्‍लॉगर ने अब काफी सुविधा कर दी है खासकर टेम्‍पलेट के साइड बार में हेर फेर करने के लिए। यूआरएल भी बदलना चाहते थे लेकिन वह बिना अपने खुद के डोमेने में गए बहुत घाटे का काम है। और ब्‍लॉगर को छोडने का फिलहाल हमारा कोई इरादा है नहीं।

टिप्‍पणी विकल्‍प रखने और न रखने पर भी हमने सोचा। पता चला कि टिप्‍पणी विकल्‍प न रखना सही नहीं है। पुन‍िर्विचार करने की वजह यह थी कि प्रतिटिप्‍पण‍ी के लिए हम हर जगह हमेशा पहुँच नहीं पाते। यह बात ब्‍लॉगाचार के खिलाफ जाती है। दूसरी बात हम उस सामग्री पर टिप्‍पणी करना पसंद करते हैं जिस पर हम अपना कोई विचार व्‍यक्‍त कर सकें।

पर इसमें धोखे जैसी कोई बात नहीं है क्‍योकि हमने प्रतिटिप्‍पणी करने का वादा नहीं किया हुआ है। कर भी सकते हैं और नहीं भी। इसलिए हमारे ब्‍लॉग पर टिप्‍पणी खुद की रिस्‍‍क पर करें।

अंत में फुरसतिया जी की बात जरुर याद आती है कि यदि आप को लगता है कि आपकी ब्‍लॉगिंग के बिना दुनिया का खाना हजम नहीं होगा तो अगली सांस आने के पहले आप ब्‍लॉगिंग करना बंद कर दें। जिसे इस बात का भान शुरु से ही होगा वह इस क्षेत्र में चिरकाल तक बना रहेगा। 

ब्‍लॉगिंग के गत्‍यावरोध को तोडने का सबसे बढिया तरीका है कि ब्‍लॉगिंग के बारे में ही पोस्‍ट लिखिए। जैसा आज हमने किया। यदि फिर भी काम न बने तो हर पोस्‍ट में बताते रहिए कि कौन क्‍या गलत कर रहा है। ऐसे में लोग भले कहने लगें कि जवानी में ही सठिया गया है या सठियाने की सही उम्र में ही सठिया गया है। पर एक आइटम पोस्‍ट तो निकल ही आया करेगी।

11 comments:

  1. स्वागत है, आपके लेखन की प्रतीक्षा में ही बैठे हैं।

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  2. शुक्र है अल्लाह का कि तुम वापस तो आए ,ख़ुश आमदीद !

    ब्‍लॉगिंग के गत्‍यावरोध को तोडने का सबसे बढिया तरीका है कि ब्‍लॉगिंग के बारे में ही पोस्‍ट लिखिए

    तुम्हारे नुस्ख़ों पर अमल किया जाएगा जब ब्लॉगिंग से ब्रेक लेंगे
    तुम्हारी ये शैली इतने दिन बाद पढ़ कर मज़ा आया ,बधाई और नव वर्ष की शुभ कामनाएं

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  3. पोस्ट भी आइटम होती है !!
    :)

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  4. आप वापस आये अच्छा लगा देखके , नव वर्ष की बहुत-बहुत बधाई आपको ।

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  5. ''टिप्‍पणी खुद की रिस्‍‍क पर करें।'' और आपका ''नेकी कर दरिया में डाल'' देख कर ही टिप्‍पणी का मन बना. वैसे पोस्‍ट में ब्रेक के बाद की प्रौढता, लेकिन नयी जैसी ताजगी भी है.

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  6. केवल एक असहमति दर्ज कराने आया हूँ ....कि बार बार ब्लॉग का नाम बदलना आसान तो है ...पर एक समय स्थापित होने के बाद यह आसान काम ना ही किया जाए तो ही अच्छा !


    बकिया सब से है अपनी सहमति !

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  7. ब्‍लॉग पर आने और टिप्‍पणी करने के लिए सभी स्‍नेही मित्रों का शुक्रिया।

    @ इस्‍मत जी, नुस्‍खे आजमाने की नौबत ना ही आए तो अच्‍छा है।

    @डिम्‍पल, जी हॉं जैसे आइटम सांग आइटम डांस इत्‍यादि होते हैं वैसे ही। आइटम ठीक ठीक किन अर्थों में प्रयोग होता है यह नहीं पता।

    @प्रवीण त्रिवेदी, आपकी बात से हमारी भी सहमति है। इसीलिए हम दो ढाई साल से नहीं बदल रहे थे :-)

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  8. "स्‍वांत: सुखाय में पर दुखाय वाला सुख भी आ जाता है।" Had a good laugh!! When I came to your blog via google, i thought you had one more blog of which I had been unaware. Then came through Blogger and Facebook and landed at the same blog...then I decided to read and found out about the change.
    Ok दरिया में डाल दिया!

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  9. @ Giribala, मुझे आपकी असुविधा के लिए खेद है कि मेरे ब्‍लॉग तक पहुँचने के लिए आपको इतनी गाडियां बदलनी पडीं और अंतत: वायुयान के द्वारा ब्‍लॉग पर अवरोहण करना पडा। फिर भी अंतत: आप पहुँच ही गईं । आपने पढा और कमेंट भी किया। इतनी मेहनत करने के बाद भी आपने सबकुछ दरिया में डाल दिया।

    इसीलिए आप धन्‍यवाद की पात्र हैं। धन्‍यवाद।

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  10. टंकी कंपनी को मैं इसमें शामिल नहीं कर रहा जो बाकायदा छोडने की घोषणा करके जमे रहते हैं....

    haaN yah maine bhi dekhaa aur thoda ajib lagaa..

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नेकी कर दरिया में डाल