शहर में रहने वाली अपनी मौसी के घर में पंखे के नीचे बैठकर शरबत पीते हुए अमित बडे आश्चर्य से कह रहा था , "आज भी दुनिया में कैसे-कैसे मददगार लोग मिल जाते हैं। व्यस्त शहर में किसके पास इतना समय है कि कोई अपना काम छोडकर एक अजनबी लडके की मदद करे।" जबकि उसने सुन रखा था कि शहर में कोई किसी अजनबी की सहायता करने में इतनी रुचि नहीं लेता। यह गॉंव नही हैं कि किसी का पता पूछने पर आपको उसके घर तक भी पहुंचाने वाले मिल जाया करते हैं।
"और यहॉं अजनबी स्वयंसेवकों से बचकर ही रहना चाहिए। रोज ऐसे मददगारों के नापाक कारानामों से अखबार भरे रहते हैं। लेकिन क्योंकि तुम मेरे सामने सही सलामत बैठे हुए हो, तुम्हारे साथ क्या हुआ यह मजे से बता सकते हो।" मौसी ने रुचि लेते हुए कहा।
"मौसी, मैं कलेक्ट्रेट के सामने वाली रोड पर जा रहा था। तभी एक दरमियाने कद का सांवला सा आदमी मेरे बगल से चलकर आगे निकलते हुए दिखा। उम्र यही कोई 40-45 साल के लगभग रही होगी। उसके हाथ में सायकल मैकेनिकों की तरह ग्रीस और कालिख लगी हुई थी। एक हाथ में वह गंदा सा रुमाल भी पकडे हुए था।"
"मैंने उससे चलते-चलते ही पूछ लिया कि अंकल यूनियन बैंक किधर पडता है। वह ठहर गया। उसने मेरी तरफ देखा और बोला कि यूनियन बैंक यहॉं से थोडी दूरी पर ही है और वह उधर ही जा रहा है।"
"आप मेरे साथ चलो मैं आपको वहॉं तक छोड दूँगा।" अजनबी ने कहा।
"मैं उसके साथ साथ चलने लगा" अमित ने बताना जारी रखा।
"थोडी दूर चलने के बाद उसने कहा कि वह पास की गली में ही रहता है। इसलिए पहले उसने मुझे अपने कमरे में चलने का आग्रह किया ताकि वहॉं वह अपना हाथ साफ कर ले। कमरे में उसकी सायकल रखी हुई है। उसने कहा कि सायकल से वह मुझे आराम से पहुँचा देगा।"
"मई की दोपहर। धूप में चलना रेत में चलने की तरह कठिन मालूम पड रहा था। मैं काफी देर से चलते-चलते थक गया था। फिर भी मैंने उसे धन्यवाद देते हुए कहा कि आपको तकलीफ करने की जरूरत नहीं है मैं खुद चला जाऊंगा। लेकिन वह आग्रह करने लगा कि बस पांच ही मिनट लगेंगे और जब मैं उधर जा रहा हूं तो साथ ही चले चलते हैं।"
"तुमने यह कोई समझदारी का काम नहीं किया" मौसी ने टोंकते हुए कहा।
"हां, मैंने जानबूझकर रिस्क लिया था" अमित ने स्वीकार करते हुए कहा। लेकिन आप पहले पूरी बात तो सुन लीजिए फिर आराम से अपना मशविरा दीजिएगा।
"उसके घर जाने की बात से मुझे शक होने लगा कि यह आदमी कहीं मुझे अपने जाल में तो नहीं फंसा रहा। वैसे आदमी भला लग रहा था। न तो उसमें बदमाशों जैसा काइयांपन था और न ही उसके चेहरे से अपराधियों की तरह क्रूरता झलक रही थी। फिर भी मैंने सोचा कि क्यों न आजमा कर देख ही लिया जाए कि क्या करता है। एक एडवेंचर हो जाएगा। वैसे भी अकेला है और इसके जैसे कम से कम दो को तो मैं सम्हाल ही सकता हूं। नई उम्र का जोश था ही। और सुनसान जगह में मुझे इसके साथ जाना नहीं है रहना भीड-भाड वाली जगह में ही है।" अमित ने सफाई दी।
"इस तरह सोचता हुआ मैं उसके साथ चल दिया। वह एक गली में मुड गया।
मैं और सतर्क हो गया। मैं उससे थोडा पीछे ही चल रहा था। गली में थोडा अंदर जाकर वह एक कमरेनुमा मकान के सामन रुका और बोला कि यही उसका कमरा है। इसके बाद उसने जेब से एक बिना छल्ला लगी हुई गंदी सी चाबी निकाली। ताला खोला और अंदर चला गया। मैं सावधानीवश बाहर ही रह गया और बाहर से ही कमरे का मुआयना करने लगा। मुझे डब्बे की तरह दस बाइ दस का एक ही कमरा दिखा, जिसमें कोई दूसरा दरवाजा नहीं था। न ही कोई खिडकी थी। उसने मुझे अंदर बुलाया। एक नावनुमा खटिया पर बैठाया। जिसकी निवाड जमीन को छू रही थीं। कमरे में चीजें स्टोर रूम की तरह भरी हुई थीं। एक टेबल फैन, बोरियॉ, स्टोव, कैरोसिन का गैलन, कुछ गंदे चुचके बर्तन, कुछ खेती और सायकल बनाने के औजार, दीवार पर एक दो कपडे टँगे हुए थे। कुछ किताबें भी इधर पडी हुई थीं।"
"मुझे बैठाकर पहले उसने बाल्टी में से एक डिब्बा पानी निकालकर हाथ धोया। फिर खूब अच्छी तरह हाथ पोंछने के बाद बैठकर स्टोव जलाने का उपक्रम करने लगा। मैंने कहा कि आप यह क्या कर रहे हैं। उसने कहा कि चाय बनाता हूँ। पीकर चलते हैं। मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मैंने कहा आप चाय बनाइए मैं जा रहा हूं। मै उठकर खडा हो गया। उसने कहा कि आप बेकार में परेशान हो रहे हैं बैंक में काम तो चार बजे तक होता है। अभी काफी टाइम है। मैने कहा कि जो भी हो मुझे चाय नहीं पीनी। तब उसने कहा ठीक है फिर चलते हैं। उसने कमरे का ताला बंद किया। मुझे सायकल कहीं नजर नहीं आ रही थी। बाहर आकर उसने कहा कि आप दो मिनट रुकिए मैं अपनी सायकल लेकर आता हूं। शायद सायकल कोई मॉंगकर ले गया था। वह सायकल के साथ पम्प भी लेकर आया। उसने सायकल में हवा भ्ारी। उसने फिर से ताला खोलकर पम्प अंदर रखा। फिर हम साथ साथ चलने लगे।
"गली में सडक ठीक नहीं थी। इसलिए हम पैदल चल रहे थे। वह अपनी राम कहानी बताने लगा। वह भाइयों में सबसे छोटा है। उसकी पत्नी गॉंव में रहती है। उसका एक भाई बैंक मैनेजर है। वह कहीं चपरासी की नौकरी करता था। वह किसी से पैसे नहीं मांगता न किसी से मिलने जाता । क्योंकि वे लोग उसका उचित सम्मान नहीं करते। और पता नहीं कितनी बातें उसने अपने परिवार की महानता और उसके साथ किए गए अत्यचारों के बारे में बताईं। मुख्य सडक आने पर वह मुझे सायकल में बैठाकर खुद सायकल चला रहा था।"
"यूनियन बैंक की मुख्य शाखा आ जाने पर वह उसने सायकल रोकी। मेरे साथ अंदर गया। उसने कहा कि आप फार्म लीजिए मैं अभी आता हूं। यह कहकर वह चला गया। मैंने लाइन में लगकर फार्म लिया। इधर उधर देखने पर वह मुझे कहीं नहीं दिखा। मैंने राहत की सॉंस ली। लेकिन जैसे ही मैं बाहर निकला वह फिर हाजिर। मुझसे पूछने लगा कि जहॉं जाना हो वह मुझे छोड देगा। मैंने मन में सोचा कि ये तो हद्द हो गई। उसे दृढतापूर्वक मना करके, धन्यवाद देकर मैं आगे बढ गया। जाते जाते उसने कहा कि कभी इधर आइए तो उसके कमरे में जरूर आकर आराम कर सकते हैं। यदि वह न भी हो तो एक चाबी उसके पडोसी के पास रहती है। वहॉं से ले सकते हैं।
मैं हॉं हूं करके आगे बढ गया।"
अमित यह किस्सा बता ही रहा था कि इतने में उसके मौसी के लडके गुडडू दादा आ गए। गुड्डू दादा कालेज में पढते थे। वे लोग बचपन से ही उस शहर में पले बढे थे। उसके चप्पे चप्पे और लोग लोग से वाकिफ थे क्योंकि वह शहर ही था कोई महानगर नहीं था।
जब अमित ने गुड्डू दादा को सारा वाकया सुनाया और उस आदमी के हुलिए के बारे में बताया तो वे हँसने लगे बोले अरे वह श्रीवास्तव है। उसका दिमाग काफी दिनों से डिस्टर्ब है। समझ लो कि वह लगभग 'पागल' ही है।
"और यहॉं अजनबी स्वयंसेवकों से बचकर ही रहना चाहिए। रोज ऐसे मददगारों के नापाक कारानामों से अखबार भरे रहते हैं। लेकिन क्योंकि तुम मेरे सामने सही सलामत बैठे हुए हो, तुम्हारे साथ क्या हुआ यह मजे से बता सकते हो।" मौसी ने रुचि लेते हुए कहा।
"मौसी, मैं कलेक्ट्रेट के सामने वाली रोड पर जा रहा था। तभी एक दरमियाने कद का सांवला सा आदमी मेरे बगल से चलकर आगे निकलते हुए दिखा। उम्र यही कोई 40-45 साल के लगभग रही होगी। उसके हाथ में सायकल मैकेनिकों की तरह ग्रीस और कालिख लगी हुई थी। एक हाथ में वह गंदा सा रुमाल भी पकडे हुए था।"
"मैंने उससे चलते-चलते ही पूछ लिया कि अंकल यूनियन बैंक किधर पडता है। वह ठहर गया। उसने मेरी तरफ देखा और बोला कि यूनियन बैंक यहॉं से थोडी दूरी पर ही है और वह उधर ही जा रहा है।"
"आप मेरे साथ चलो मैं आपको वहॉं तक छोड दूँगा।" अजनबी ने कहा।
"मैं उसके साथ साथ चलने लगा" अमित ने बताना जारी रखा।
"थोडी दूर चलने के बाद उसने कहा कि वह पास की गली में ही रहता है। इसलिए पहले उसने मुझे अपने कमरे में चलने का आग्रह किया ताकि वहॉं वह अपना हाथ साफ कर ले। कमरे में उसकी सायकल रखी हुई है। उसने कहा कि सायकल से वह मुझे आराम से पहुँचा देगा।"
"मई की दोपहर। धूप में चलना रेत में चलने की तरह कठिन मालूम पड रहा था। मैं काफी देर से चलते-चलते थक गया था। फिर भी मैंने उसे धन्यवाद देते हुए कहा कि आपको तकलीफ करने की जरूरत नहीं है मैं खुद चला जाऊंगा। लेकिन वह आग्रह करने लगा कि बस पांच ही मिनट लगेंगे और जब मैं उधर जा रहा हूं तो साथ ही चले चलते हैं।"
"तुमने यह कोई समझदारी का काम नहीं किया" मौसी ने टोंकते हुए कहा।
"हां, मैंने जानबूझकर रिस्क लिया था" अमित ने स्वीकार करते हुए कहा। लेकिन आप पहले पूरी बात तो सुन लीजिए फिर आराम से अपना मशविरा दीजिएगा।
"उसके घर जाने की बात से मुझे शक होने लगा कि यह आदमी कहीं मुझे अपने जाल में तो नहीं फंसा रहा। वैसे आदमी भला लग रहा था। न तो उसमें बदमाशों जैसा काइयांपन था और न ही उसके चेहरे से अपराधियों की तरह क्रूरता झलक रही थी। फिर भी मैंने सोचा कि क्यों न आजमा कर देख ही लिया जाए कि क्या करता है। एक एडवेंचर हो जाएगा। वैसे भी अकेला है और इसके जैसे कम से कम दो को तो मैं सम्हाल ही सकता हूं। नई उम्र का जोश था ही। और सुनसान जगह में मुझे इसके साथ जाना नहीं है रहना भीड-भाड वाली जगह में ही है।" अमित ने सफाई दी।
"इस तरह सोचता हुआ मैं उसके साथ चल दिया। वह एक गली में मुड गया।
मैं और सतर्क हो गया। मैं उससे थोडा पीछे ही चल रहा था। गली में थोडा अंदर जाकर वह एक कमरेनुमा मकान के सामन रुका और बोला कि यही उसका कमरा है। इसके बाद उसने जेब से एक बिना छल्ला लगी हुई गंदी सी चाबी निकाली। ताला खोला और अंदर चला गया। मैं सावधानीवश बाहर ही रह गया और बाहर से ही कमरे का मुआयना करने लगा। मुझे डब्बे की तरह दस बाइ दस का एक ही कमरा दिखा, जिसमें कोई दूसरा दरवाजा नहीं था। न ही कोई खिडकी थी। उसने मुझे अंदर बुलाया। एक नावनुमा खटिया पर बैठाया। जिसकी निवाड जमीन को छू रही थीं। कमरे में चीजें स्टोर रूम की तरह भरी हुई थीं। एक टेबल फैन, बोरियॉ, स्टोव, कैरोसिन का गैलन, कुछ गंदे चुचके बर्तन, कुछ खेती और सायकल बनाने के औजार, दीवार पर एक दो कपडे टँगे हुए थे। कुछ किताबें भी इधर पडी हुई थीं।"
"मुझे बैठाकर पहले उसने बाल्टी में से एक डिब्बा पानी निकालकर हाथ धोया। फिर खूब अच्छी तरह हाथ पोंछने के बाद बैठकर स्टोव जलाने का उपक्रम करने लगा। मैंने कहा कि आप यह क्या कर रहे हैं। उसने कहा कि चाय बनाता हूँ। पीकर चलते हैं। मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मैंने कहा आप चाय बनाइए मैं जा रहा हूं। मै उठकर खडा हो गया। उसने कहा कि आप बेकार में परेशान हो रहे हैं बैंक में काम तो चार बजे तक होता है। अभी काफी टाइम है। मैने कहा कि जो भी हो मुझे चाय नहीं पीनी। तब उसने कहा ठीक है फिर चलते हैं। उसने कमरे का ताला बंद किया। मुझे सायकल कहीं नजर नहीं आ रही थी। बाहर आकर उसने कहा कि आप दो मिनट रुकिए मैं अपनी सायकल लेकर आता हूं। शायद सायकल कोई मॉंगकर ले गया था। वह सायकल के साथ पम्प भी लेकर आया। उसने सायकल में हवा भ्ारी। उसने फिर से ताला खोलकर पम्प अंदर रखा। फिर हम साथ साथ चलने लगे।
"गली में सडक ठीक नहीं थी। इसलिए हम पैदल चल रहे थे। वह अपनी राम कहानी बताने लगा। वह भाइयों में सबसे छोटा है। उसकी पत्नी गॉंव में रहती है। उसका एक भाई बैंक मैनेजर है। वह कहीं चपरासी की नौकरी करता था। वह किसी से पैसे नहीं मांगता न किसी से मिलने जाता । क्योंकि वे लोग उसका उचित सम्मान नहीं करते। और पता नहीं कितनी बातें उसने अपने परिवार की महानता और उसके साथ किए गए अत्यचारों के बारे में बताईं। मुख्य सडक आने पर वह मुझे सायकल में बैठाकर खुद सायकल चला रहा था।"
"यूनियन बैंक की मुख्य शाखा आ जाने पर वह उसने सायकल रोकी। मेरे साथ अंदर गया। उसने कहा कि आप फार्म लीजिए मैं अभी आता हूं। यह कहकर वह चला गया। मैंने लाइन में लगकर फार्म लिया। इधर उधर देखने पर वह मुझे कहीं नहीं दिखा। मैंने राहत की सॉंस ली। लेकिन जैसे ही मैं बाहर निकला वह फिर हाजिर। मुझसे पूछने लगा कि जहॉं जाना हो वह मुझे छोड देगा। मैंने मन में सोचा कि ये तो हद्द हो गई। उसे दृढतापूर्वक मना करके, धन्यवाद देकर मैं आगे बढ गया। जाते जाते उसने कहा कि कभी इधर आइए तो उसके कमरे में जरूर आकर आराम कर सकते हैं। यदि वह न भी हो तो एक चाबी उसके पडोसी के पास रहती है। वहॉं से ले सकते हैं।
मैं हॉं हूं करके आगे बढ गया।"
अमित यह किस्सा बता ही रहा था कि इतने में उसके मौसी के लडके गुडडू दादा आ गए। गुड्डू दादा कालेज में पढते थे। वे लोग बचपन से ही उस शहर में पले बढे थे। उसके चप्पे चप्पे और लोग लोग से वाकिफ थे क्योंकि वह शहर ही था कोई महानगर नहीं था।
जब अमित ने गुड्डू दादा को सारा वाकया सुनाया और उस आदमी के हुलिए के बारे में बताया तो वे हँसने लगे बोले अरे वह श्रीवास्तव है। उसका दिमाग काफी दिनों से डिस्टर्ब है। समझ लो कि वह लगभग 'पागल' ही है।
यह सुनकर अमित हक्का-बक्का रह गया। पूरा घटनाक्रम कई बार अमित के दिमाग में घूम गया।
समाज के सहृदय सदस्य.
ReplyDeleteयदि ऐसी सहृदयता आ जाये, तो पागल भी स्वीकार हैं, समाज में।
ReplyDeleteमुझे आसार कुछ अच्छे नज़र नहीं आ रहे....आपके उच्च श्रेणी के लेखक बनने की भारी सम्भावना प्रतीत हो रही है. कहानी बहुत अच्छी है.
ReplyDeleteसार्थक लघुकथा. आप तो कहानी भी बहुत बढिया लिखते हैं.
ReplyDeleteसही है, अजनबियों या किसी की भी मदद बिना किसी मक़सद से करने वालों को अब पागल ही कहा जाता है. बधाई.
mujhe to is blog ki khabar hi nahi hui ,vandana se pata chala ,sab kuchh naya naya ,katha bhi badhiya hai ,gantantra divas ki badhai ,jai hind .
ReplyDeleteसत्यता पर आधारित कहानी है ये ,वाक़ई ऐसे लोगों को पागल ही कहा जाता है
ReplyDeleteबहुत अच्छा कथानक है
बेहतर...
ReplyDeleteachhi lagi...aapka kissa sunane ka tarikaa bahut pyara hai
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