October 17, 2009

छोटा सा दीपक है बडा पैगाम है !



क्यों सूरज की राह तकें
चंदा से क्यों भरमायें
अन्धकार को क्यों कोसें
हम इक दीप जलायें ।

दीपक हमें सिखाता चलना
घटाटोप अंधियारे में
दीपक एक दिलासा भी है
जीवन दुख के गलियारे में,
खुद के दीपक बन जायें

छोटा सा दीपक है
बडा पैगाम है
रोशनी के लिये जलना ही
दीपक का काम है

मृण्मय के दीपक औ
तृण्मय की बाती में
चिन्मय की ज्योति
प्रज्वलित हो जाये,
कण-कण जगमगाये

प्रीति की थाली में
चांदी सी खुशियां हों
दीजिये सबको
मोती सी दुआएं,
फ़ुलझडियों बिखर जायें


साथ ही,
पिछले साल दीपावली पर तेज बम के धमाकों से उस दिन तहेदिल से मुझे अफ़सोस हुआ था जब मेरी साल भर की बिटिया, कान फ़ोडू बम के धमाकों से सहम सहमकर रोने लगती थी । देर रात तक कई बार सोते हुए से घबराकर बैठ जाती थी । खुशियों को मातम में तब्दील करने का तरीका आदमी से बेहतर कौन जानता है ? अफ़सोस होता है ऐसे अन्धेपन को देखकर । तेज पटाखों से पर्यावरण को नुकसान और आतिशबाजी के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं के बावजूद , प्रशासन इस दिशा में कोई
ठोस नियम नहीं बनाता ना ही उस पर कार्रवाई की जाती । ऐसे लोग त्योहारों के दुश्मन हैं क्योंकि वे गैरजिम्मेदाराना व्यवहार करके त्योहारों की प्रासंगिकता पर ही प्रश्न चिन्ह खडा करते हैं ।

इसीलिये कहते हैं शायर :
तुम शौक से मनाओं जश्ने बहार यारों
इस रोशनी में लेकिन कुछ घर भी जल रहे हैं

चिराग ऐसा जलाओ कि बेमिसाल रहे
किसी का घर न जले ये ख्याल रहे

********************************
दीप जलते रहें, जगमगाते रहें
हम आपको, आप हमें याद आते रहें

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ !

8 comments:

  1. बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करने वाली एवं प्रेरणात्मक पोस्ट ।
    दीपाली की बहुत बहुत मुबारकबाद --आप सब को और आप की बिटिया को आशीष।

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  2. बहुत बड़ा पैगाम:

    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    सादर

    -समीर लाल 'समीर'

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  3. सुन्दर रचना. सार्थक शिकायत.
    आप और आपके परिवार को मेरी अनन्त शुभकामनायें.

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  4. आपका हर दिन हो दीवाली
    रहे जीवन सुखाली
    सब ओर आपके
    रहे छायी खुशहाली ।

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  5. मुबारक हो जी। बिटिया को आशीष!

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  6. एक दीप ऐसा जला दो, रूह रौशन हो सके !
    अंधेरों को आये नींद गहरी, और उजाला हो सके !!
    --आनंद वर्धन ओझा.

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  7. ऐसे में यह शे‘र भी याद आता है:-
    समझते थे मगर फ़िर भी न रक्खी दूरियां हमने
    चराग़ों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने
    (वाली)

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  8. बहुत लाजवाब..।
    वाह!!!

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नेकी कर दरिया में डाल