एक बार किसी गांव में रामचरिमानस पाठ का आयोजन किया गया । जोर-शोर से लय में उतार-चढाव के साथ रामायण गायी गयी । सभी संबंधित भगवान जी लोगों की जै और भक्त समाज की जै जयकार करने के बाद कार्यक्रम समाप्त हुआ । बातचीत के दौरान एक पन्डित जी भाव विभोर होकर कहने लगे -
"वाह रे तुलसी बाबा तुमने सब लिख दिया"
सभा में कुमतिया भी बैठा था, जो अपने अक्ख्डपन और उटपटांग प्रश्नों के लिये जाना जाता था । वैसे उसका नाम सुमति था लेकिन प्यार से लोग उसे कुमतिया कहते थे।
जब सुमति ने यह बात सुनी तो उसे बडा अचम्भा हुआ । उसने झट से प्रशन किया ।
"महराज, क्या तुलसी बाबा ने सब लिख दिया ?"
पंडितजी बोले हां हां क्यों नहीं ? ऐसा कौन सा विषय है जो मानस में नहीं है । धर्म, नीति, समाज, राजनीति, दर्शन के सारे प्रकार हैं । वाह वाह करते हुए पंडित जी गदगद हुए ।
लेकिन सुमति उर्फ़ कुमतिया संतुष्ट नहीं था । उसने प्रतिजिज्ञासा की -
"महराज यदि ये बात तो मुझे बडी अटपटी मालूम पडती है कि सब लिख दिया । फ़िर कुछ सोचकर बोला कि अच्छा जब सब ही लिख दिया तो क्या मेरे नाना के बारे में भी कुछ लिखा है ? अगर लिखा होगा तो मैं मान लूंगा कि सब लिख दिया है ।"
अब पन्डित जी जरा घबराये कि किस मूर्ख चक्कर में पड गये आज । ये तो बात ही पकड के बैठ गया । गांव वाले ठीक ही इसको कुमतिया कहते हैं ।
लेकिन पंडित जी भी पके हुए जीव थे ऐसे कुतर्कियों को भी कुछ ना कुछ पकडा ही देते थे ।
बोले "अच्छा बता तेरे नाना का क्या नाम था"
"मेरे नाना का नाम सम्पति था"
इतना सुनते ही पन्डित जी की आंखों में चमक आ गई । उन्होने कहा "हां, हां बिल्कुल लिखा है"
तेरे और तेरे नाना दोनों के बारे में लिखा है - "जहां सुमति तहं संपति नाना, जहां कुमति तहां विपति निदाना"
इतना सुनते ही कुमतिया तुलसी बाबा के प्रति श्रद्धानवत होते हुए कहने लगा कि मान गये जब मेरे नाना के बारे में लिख दिया तो सब लिख दिया ।
यह तो थी एक कहानी । जिस कलाकार ने भी बनायी बढिया बनाई ।
अब एक कविता पढिये । कविता के रचयिता कवि का हमें पता नहीं है । यदि आपको मालूम हो तो बता दीजियेगा|
टूटे फ़ूटे हैं हम लोग
बडे अनूठे हैं हम लोग
सत्य चुराता नजरें हमसे
इतने झूठें हैं हम लोग
इसे साथ लें उसे बांध लें
सचमुच खूंटें हैं हम लोग
क्या कर लेंगी वे तलवारें
जिनकी मूठे हैं हम लोग
मयखारों की हर महफ़िल में
खाली घूंटें हैं हम लोग
हमें अजायबघर में रख दो
बडे अनूठे हैं हम लोग
हस्ताक्षर तो बन ना सकेंगे
सिर्फ़ अंगूठे हैं हम लोग
हस्ताक्षर तो हम बन न सकेंगे सिर्फ अंगूठे है हम लोग !
ReplyDeleteजिस किसी ने भी लिखी हो ,लेकिन कवी बहुत उच्च कोटी के रहे होंगे, बहुत सुन्दर ! कविता को थोडा स्पेस देकर लिखते तो मजा आ जाता!
अच्छी कहानी लिखी है, जिसने भी लिखी है
ReplyDeletehttp://dunalee.blogspot.com/
आनंद आ गया
ReplyDeleteबहुत खुब कहानी और कविता दोनो बहुत ही उम्दा लगीं।
ReplyDeletewah! kahani padh kar maza aa gaya........ aur kavita bhi achchi hai........... behtareen.......
ReplyDeleteकहानी अच्छी है. और कविता? क्या कहने!!!
ReplyDeleteवैसे किसी ने सच ही कहा है,अगर कुछ सीखना या पाना ही हो तो कहीं से भी पा सकते है......
ReplyDeleteहमें अजायब घर में रख दो
ReplyDeleteबड़े अनूठे हैं हम लोग
हस्ताक्षर तो बन न सकेंगे
सिर्फ अंगूठे हैं हम लोग
कहानी जहाँ तुलसी बाबा और हम सब को वहीँ पंडित जी का ज्ञान सुमति उर्फ़ कुमातिया को भी नतमस्तक कर गया.
बिना हस्ताक्षर की यह कविता भी हमें बड़ी चतुराई से आइना दिखा ही गयी.
अपनी वास्तविक पहचान जान कर लुमतिया माफिक हम भी नतमस्तक हैं जी.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
पैसा स्विस बैंक में जमा है, सब जानते और समझते हैं,
ReplyDeleteसरकार भी जानती और समझती है.
सरकार को कानून बनाने और आर्थिक अपराधों को रोकने की स्वायत्तता और अधिकार भी है.
शायद यह भी जानकारी है की स्विस बैंक में पैसे कैसे जमा होते हैं, और किस-किस के हैं,
सब कुछ जान कर भी हाथ पर हाथ धर कर यूँ बैठे रहना साफ इंगित करता है की सब कुछ सरकार की सहमति से है, वरना हर नेता, अभिनेता, उद्योगपतियों, दलाल जो बमुश्किल से एक अरब की आबादी में कुछ लाख होंगे सबका नार्को टेस्ट करवा कर सरकार अपने ही देश में सच उगलवाकर उनके ऊपर कानूनी कार्यवाही के रूप में स्विस बैंक में उनके जामा धन का १२५% जुर्माना लगा कर सारा धन स्वतः उनसे अपने देश में मंगा सकती है, आवश्यकता तो बस इच्छा-शक्ति की है, वो तब तक नहीं आती जब तक अपना दामन, कर्म और मन साफ न हो...............
हर समस्या का समाधान है, पर समाधान करने की इच्छा-शक्ति चाहिए, दिखावा नहीं, मजबुरिया नहीं सुनानी, ठोस और समय बद्ध कदम चाहिए, ज़वाबदेही चाहिए.............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com