
रेलवे प्रबंधन के जिन महानुभाव ने यह लालबुझक्कड़ी सुझाव दिया है उन्हें मैं साइड मिडिल बर्थ में यात्रा करने का बुलौआ देता हूँ | एक बार यात्रा करके देखें | तब उन्हें पता चलेगा की उन्होंने क्या किया है | कभी तो हकीकत से रूबरू होना चाहिए | टिकेट किराया मेरी तरफ से मुफ्त | अव्वल तो वह साइड मिडिल में घुस ही नहीं पायेंगे क्योंकि इसमें तो घुसने के लिए भी सर्कस वाली लचक चाहिएयदि किसी तरह घुस भी गए तो निकलने में फिसलने का रिस्क बराबर है |
पहले भी साइड अपर बर्थ का हाल यह था की "पैर फैलाओ तो दीवार से सर लगता है " मुझे यकीन है कि यहपंक्ति शायर ने साइड अपर बर्थ में बैठकर लिखी होगी | अब एक लाइन और जुड़ गई है "सर उठाओ तो से दीवारछत लगती है" | |अब वे दिन भूल जाइए जब पालथी जमाते हुए सीधे बैठकर, इत्मीनान से घर से लाई हुई पूडीसब्जी खाते थे | इसके बात दार्शनिक भाव से थोडी देर इधर-उधर मुआयना करते थे |
(बगल वाली अपर बर्थ में एक भारी तोंदवाला आदमी हर 5 सेकंड में उठाकर डकार मार रहा है, ऐसा वह 2 मिनट तक करता है इसके बाद 5 मिनट का नॉन-कोमेर्सिअल ब्रेक लेता है)

यह सिर्फ़ किस्मत की बात है की आपको साइड मिली औरऔर आप साइड इफेक्ट में आ गए | इसलिए आप न तो अपनेसह-यात्रियों से ईर्ष्या से भरिये और न ही रेलवे के चालूमैनेजमेंट को कोसिये | बस इतना शुक्र मनाइए की आपकोगठिया वात (arthritis) नहीं है एवं आपका वजन कम है (यदिऐसा हो तो ) और चुपचाप हठयोग साधे रहिये | यदि हठयोगके बारे में जानकारी न हो तो सीज़न में जनरल बोगी में यात्राकरिए, वहां आपको सीधे व्यावहारिक शिक्षा मिलेगी | रामदेवजी से बहुत पहले से भारतीय रेलवे में हठयोग की मुद्राओं केप्रयोग बिना प्रचारित किए हुए चुपचाप चलते रहे हैं |
(सामान्य ज्ञान के लिए बता दूँ की रामदेव जी जो आसन करवाते हैं, वे सारे आसन हठयोग के आसन हैं | उनका महर्षि पतंजलि के योग विज्ञान से कुछ लेना-देना नहीं है, न पतंजलि ने कोई आसन प्रेसक्राइब किया था
जनरल डिब्बे में आपको हर तरह के आसन साधे हुए लोग मिल जायेंगे | शवासन से लेकर शीर्षासन तक | सिर्फ़ आसन ही नहीं प्राणायाम भी | यदि बचपन में दोस्तों के साथ साँस रोकने का खेल न खेला हो या नदीतालाब में गोताखोरी न की हो तो कभी जनरल बोगी के गेट में ठसने की कोशिश मत करियेगा | सिर्फ़अनुलोम-विलोम काम नहीं आएगा | कुम्भक और रेचन का दीर्घकालीन अभ्यास अनिवार्य वांछित योग्यता है
एक बार इसी तरह का दुस्साहस करके मैं गेट के अन्दर धंस गया | इसके बाद न मेरे पैर को जमीन मिल रहीथी, न सर को आसमान दिख रहा था | बस हठयोग की अभ्यास की वजह से अंगूठे के बल पर खड़ा रहा औरकुम्भक (साँस रोकना) की वजह से जीवित निकल आया और आज यह ब्लॉग लिख रहा हूँ |
| ) | रेल प्रबंधन के दिमाग का कोई मुकाबला नहीं | अमेरिका वालों को पता नहीं, वे इतने बड़े संकट से जूझ रहे हैं, कोई उन्हें साइड मिडिल के मास्टर माइंड से सलाह लेने की सलाह क्यों नहीं देता | फ़िर देखिये कैसे बिना किसी खास कवायद के लाभ भी हो जायेगा, सुविधा भी बढ़ जायेगी, नई गाडियाँ भी चल जायेंगी | अमीर भी खुश, गरीब भी खुश, जनता भी खुश जनार्दन भी खुश | भारतीय रेलवे में सिर्फ़ सुपर फास्ट नाम भर रख देने से ट्रेन सुपर फास्ट हो जाती हैं, लेकिन पहुँचने में समय उतना ही लेती हैं जितना पहले लगता था | अब कोई क्या करे जब ट्रैक ही सुपर फास्ट वाला तो इसमे कोई कर सकता है | यह सब तो जनता की भलाई के लिए ही किया जाता है | ट्रेनों का नाम सुपर फास्ट रख देते हैं, तत्काल आरक्षण में सीटें बढ़ा देते हैं | प्रतीक्षा सूची वालों को गलियारे में सुलाते हैं और इधर तत्काल में सैकडों सीटें खाली रखते हैं | साइड अपर और साइड लोअर के बीच में साइड मिडिल बर्थ घुसेड देते हैं | लेकिन क्या हुआ किराया तो कम कर देते हैं |
अभी भी जनरल बोगियों की पर्याप्त कमी है, उसमें लोग भेड़ बकरियों की तरह चलते हैं, हठयोग की मुद्राएँ साधेहुए | एक बार मैंने चप्पल ढूढने के लिए सीट से नीचे सिर घुसेड़ा तो वहां दो आदमी शवासन में पड़े मिले | हिलाने पर पता चला कि निद्रासन में हैं | इस नई खोज पर मुझे आश्चर्य मिश्रित खुशी हुई | गर्मी लगती है तोएसी में बैठिये | कौन कहता है कि जनरल में मरने जाइए | अरे रोटी नहीं है तो ब्रेड खाइए |
इस तरह भारतीय रेल हठयोग एवं प्राणायाम का व्यवहारिक विद्यालय है | जरूरत केवल इसके अहमियत कोपहचानने कि है |
नोट : चाय एवं इसके फार्मूले का जिक्र न कर पाने के लिए खेद है |
चर्चा है की साइड मिडिल बर्थ 1 महीने में हट जायेगी | आमीन |
यहाँ हिमाचल में तो रेल का चलन काफी कम है, इसलिए रेल की समस्याओं के बारे में अधिक कुछ नहीं पता। अर्कजेश भाई को होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहाँ एक बार हम भी फंस चुके है इस झमेले में वो तो शुक्र था उन दो महानुभावो का जो आपस में बातचीत करने के चक्कर में हमसे सीट बदल चुके |
ReplyDeleteरेलों की कथा-व्यथा की तो बात ही निराली है.
ReplyDeleteबहुत ही बुरा किया साइड मिडल बर्थ बनाकर. सुन्दर पोस्ट के लिए आभार. होली की शुभकामनायें.
ReplyDelete