हे ब्लॉग्गिंग को प्यारे ब्लोगावीरों !
(आपको पता नहीं क्या हुआ ? नहीं ? माफ़ करियेगा मुझे भी पता नहीं)
साहित्यकारों से यह खुन्नस क्यों ? क्या किसी प्योर ब्लॉगर ने साहित्यिक समाज में सेंध द्बारा घुसने की कोशिश की ?
या किसी पोपुलर ब्लॉगर को किसी साहित्यकार ने कमतर आकने की जुर्रत की ?
या किसी साहित्यकार ने ब्लॉग्गिंग की और ख़ुद को साहित्यिक ब्लॉगर कहने की कुटिलता दिखाई |
ब्लॉगर को प्यारी ब्लोगिंग - ब्लोगिंग को प्यारे ब्लॉगर |
दोनों हैं एक दूसरे पर निछावर |
छपे हुए साहित्य में भी हर स्वाद और स्तर मौजूद हैं, ऐसे ही ब्लॉग्गिंग में | आज साहित्य की भाषा में भी नए प्रयोग हो रहे हैं | ब्लॉगर भी कुछ एकदम शुद्ध लिख रहे हैं, कुछ भोले भोले लोग भोली भाली भाषा लिख रहे हैं | कुछ अतिरिक्त प्रभाब पैदा करने के लिए तोड़-फोड़ -जोड़ करके भाषिक इंजीनियरिंग ईजाद कर रहे हैं, इसकी मदद से प्रतियोगी ब्लॉगर के छक्के छुडा रहे हैं | कुछ ब्लॉगर ऐसे छेडू होते हैं की बडाई भी करेंगे तो लगेगा की खिचाई कर रहे हैं | कुछ विज्ञान विषय के नाम पर विज्ञान का इतिहास लिख रहे हैं |
अच्छा ही है न हिन्दी भाषा समृद्ध हो रही है | इसमे किसी को परेशानी नही होनी चाहिए | परिवेश बदलने से बोलचाल की भाषा भी बदल जाती है | अभिव्यक्ति का मंच बदलने से भी भाषा बदल जाती है | ब्लॉग्गिंग की कोईआचार संहिता नहीं है, स्वतंत्रता ही इस विधा का सौंदर्य और गरिमा है | ब्लॉगर ने किसी भाषा मर्यादा का ठेका नहीं ले रखा है | यह व्यक्ति की आभिव्यक्तिक स्वतंत्रता की क्रांति है | यह बनी रहे | आमीन |
ब्लॉगर भी वही किताबें पढ़ते हैं, उसी समाज में रहते हैं और उन्ही घटनाओं से प्रभावित होते हैं, जिनसे साहित्यकार | हिन्दी के ब्लॉगर की कमाई अभी तक सिर्फ़ लिखना और दिखना ही है | यह भी कम नही है अभी हिन्दी ब्लागरों पर लक्ष्मी देवी की कृपा नहीं हुई है | इसके अलावा सब शुभ ही शुभ है |
क्या पता कभी पेड रीडिंग भी होने लगे | थोड़ा ललचाकर बोले की पूरा पढ़ने के लिए इतना रूपया पे करो |
ब्लागरों को साहित्यकारों की तरह सम्पादकों और प्रकाशकों के सेंसर का जरा भी भय नहीं रहता | ब्लॉगर जैसी आजादी साहित्यकार को बहुत दुधारू होने के बाद मिलती है, पूरी तरह वैचारिक वह भी नहीं | ब्लॉगर एकदम बिंदास बंदा है | अपने रिस्क पर कुछ भी झोंकते रहो | बल भर गरियाओ, मुह फाड़कर किसी की आरती गाओ | नो प्रॉब्लम |
पंगा लो, अड़ंगा लगाओ, ज्ञान बघारो, टांग अडाओ या खींचो , झाडास या भडास निकालो , चाहे मुफ्त में कबाड़ बेचो या उपदेश दो , दुक्ख दो, सुक्ख लो , समाज सेवा करो , हवा में उडो या जमीन से जुडो, फुर्सत में रहो या
चिहूँटी की तरह व्यस्त रहो , भावनाओं के अंधड़ लाओ | मतलब जितना करेजा में दम हो, बोतल में रम हो और शर्मो हया कम हो , पीटे रहो | क्या ? की बोर्ड और क्या ? यह सब काम नाम/लिंग बदलकर और सरेआम होकर भी कर सकते हैं |
अब बताइये साहित्यकार कहाँ ठहरते हैं | और भइया क्या काबुल में गधे नहीं पाये जाते | मतलब गधे घोडे हर जगह अवैलेबल हैं |
प्योर ब्लॉगर (साहित्य संकर ब्लॉगर नहीं ) यदि अपने को साहित्यकार शो करने की कोशिश करेगा और इसमें गर्व का अनुभव करेगा तो वह ब्लॉगर कौम के दिल से निकल जायेगा | यही हाल साहित्यकार का भी होगा |
यदि यह मान लिया जाय की हर ब्लोग्ग लिखने वाले को ब्लॉगर कहा जा सकता है, तो मैं भी ब्लॉगर हूँ और इसलिए ब्लॉगर साथियों को एक ब्लॉगर की बात उतनी बुरी नहीं लगेगी जितनी की एक साहित्यकार की |
ब्लॉग्गिंग के ब्लॉगर की जय हो !
भावों के सागर की जय हो !
ब्लोगिंग के लफडे की जय हो !
प्रेम सिक्त झगडे की जय हो !
(आपको पता नहीं क्या हुआ ? नहीं ? माफ़ करियेगा मुझे भी पता नहीं)
साहित्यकारों से यह खुन्नस क्यों ? क्या किसी प्योर ब्लॉगर ने साहित्यिक समाज में सेंध द्बारा घुसने की कोशिश की ?
या किसी पोपुलर ब्लॉगर को किसी साहित्यकार ने कमतर आकने की जुर्रत की ?
या किसी साहित्यकार ने ब्लॉग्गिंग की और ख़ुद को साहित्यिक ब्लॉगर कहने की कुटिलता दिखाई |
ब्लॉगर को प्यारी ब्लोगिंग - ब्लोगिंग को प्यारे ब्लॉगर |
दोनों हैं एक दूसरे पर निछावर |
छपे हुए साहित्य में भी हर स्वाद और स्तर मौजूद हैं, ऐसे ही ब्लॉग्गिंग में | आज साहित्य की भाषा में भी नए प्रयोग हो रहे हैं | ब्लॉगर भी कुछ एकदम शुद्ध लिख रहे हैं, कुछ भोले भोले लोग भोली भाली भाषा लिख रहे हैं | कुछ अतिरिक्त प्रभाब पैदा करने के लिए तोड़-फोड़ -जोड़ करके भाषिक इंजीनियरिंग ईजाद कर रहे हैं, इसकी मदद से प्रतियोगी ब्लॉगर के छक्के छुडा रहे हैं | कुछ ब्लॉगर ऐसे छेडू होते हैं की बडाई भी करेंगे तो लगेगा की खिचाई कर रहे हैं | कुछ विज्ञान विषय के नाम पर विज्ञान का इतिहास लिख रहे हैं |
अच्छा ही है न हिन्दी भाषा समृद्ध हो रही है | इसमे किसी को परेशानी नही होनी चाहिए | परिवेश बदलने से बोलचाल की भाषा भी बदल जाती है | अभिव्यक्ति का मंच बदलने से भी भाषा बदल जाती है | ब्लॉग्गिंग की कोईआचार संहिता नहीं है, स्वतंत्रता ही इस विधा का सौंदर्य और गरिमा है | ब्लॉगर ने किसी भाषा मर्यादा का ठेका नहीं ले रखा है | यह व्यक्ति की आभिव्यक्तिक स्वतंत्रता की क्रांति है | यह बनी रहे | आमीन |
ब्लॉगर भी वही किताबें पढ़ते हैं, उसी समाज में रहते हैं और उन्ही घटनाओं से प्रभावित होते हैं, जिनसे साहित्यकार | हिन्दी के ब्लॉगर की कमाई अभी तक सिर्फ़ लिखना और दिखना ही है | यह भी कम नही है अभी हिन्दी ब्लागरों पर लक्ष्मी देवी की कृपा नहीं हुई है | इसके अलावा सब शुभ ही शुभ है |
क्या पता कभी पेड रीडिंग भी होने लगे | थोड़ा ललचाकर बोले की पूरा पढ़ने के लिए इतना रूपया पे करो |
ब्लागरों को साहित्यकारों की तरह सम्पादकों और प्रकाशकों के सेंसर का जरा भी भय नहीं रहता | ब्लॉगर जैसी आजादी साहित्यकार को बहुत दुधारू होने के बाद मिलती है, पूरी तरह वैचारिक वह भी नहीं | ब्लॉगर एकदम बिंदास बंदा है | अपने रिस्क पर कुछ भी झोंकते रहो | बल भर गरियाओ, मुह फाड़कर किसी की आरती गाओ | नो प्रॉब्लम |
पंगा लो, अड़ंगा लगाओ, ज्ञान बघारो, टांग अडाओ या खींचो , झाडास या भडास निकालो , चाहे मुफ्त में कबाड़ बेचो या उपदेश दो , दुक्ख दो, सुक्ख लो , समाज सेवा करो , हवा में उडो या जमीन से जुडो, फुर्सत में रहो या
चिहूँटी की तरह व्यस्त रहो , भावनाओं के अंधड़ लाओ | मतलब जितना करेजा में दम हो, बोतल में रम हो और शर्मो हया कम हो , पीटे रहो | क्या ? की बोर्ड और क्या ? यह सब काम नाम/लिंग बदलकर और सरेआम होकर भी कर सकते हैं |
अब बताइये साहित्यकार कहाँ ठहरते हैं | और भइया क्या काबुल में गधे नहीं पाये जाते | मतलब गधे घोडे हर जगह अवैलेबल हैं |
प्योर ब्लॉगर (साहित्य संकर ब्लॉगर नहीं ) यदि अपने को साहित्यकार शो करने की कोशिश करेगा और इसमें गर्व का अनुभव करेगा तो वह ब्लॉगर कौम के दिल से निकल जायेगा | यही हाल साहित्यकार का भी होगा |
यदि यह मान लिया जाय की हर ब्लोग्ग लिखने वाले को ब्लॉगर कहा जा सकता है, तो मैं भी ब्लॉगर हूँ और इसलिए ब्लॉगर साथियों को एक ब्लॉगर की बात उतनी बुरी नहीं लगेगी जितनी की एक साहित्यकार की |
ब्लॉग्गिंग के ब्लॉगर की जय हो !
भावों के सागर की जय हो !
ब्लोगिंग के लफडे की जय हो !
प्रेम सिक्त झगडे की जय हो !