आठवीं कक्षा में पढने वाले अपने पोते नीशू को बल्ला लेकर जाते हुए देखकर दादाजी ने मजाक में पूछा -
"कहाँ चल दिए यह गदा लेकर शहजादे?"
"क्रिकेट खेलने" नीशू ने जवाब दिया ।
" क्रिकेट खेलकर लगता है सब सचिन तेंदुलकर ही बन जाऍंगे। यह नहीं कि अपनी पढाई - लिखाई में ध्यान दें" दादाजी ने व्यंग मारते हुए कहा।
" तो पढ-लिखकर ही कौन सा सब के सब आइंस्टीन बन जाऍंगे" नीशू ने जाते- जाते जवाब दिया।
दादाजी पहले तो चुप रह गए। फिर हँसकर कहने लगे आजकल के बच्चे भी न, तर्क बहुत करने लगे हैं !
"कहाँ चल दिए यह गदा लेकर शहजादे?"
"क्रिकेट खेलने" नीशू ने जवाब दिया ।
" क्रिकेट खेलकर लगता है सब सचिन तेंदुलकर ही बन जाऍंगे। यह नहीं कि अपनी पढाई - लिखाई में ध्यान दें" दादाजी ने व्यंग मारते हुए कहा।
" तो पढ-लिखकर ही कौन सा सब के सब आइंस्टीन बन जाऍंगे" नीशू ने जाते- जाते जवाब दिया।
दादाजी पहले तो चुप रह गए। फिर हँसकर कहने लगे आजकल के बच्चे भी न, तर्क बहुत करने लगे हैं !
गनीमत है दादाजी ने हंस कर कहा, कुढ़ कर नहीं.
ReplyDeleteतर्क दोनों ही
ReplyDeleteअपनी जगह सही हैं ...
और कथा
अपना तर्क अच्छी तरह समझा पाने में
कामयाब रही है.....
अभिवादन .
अब बहुत गलत भी तो नहीं कहा, किसने कहा था उन्हे उकसाने के लिये।
ReplyDeleteसमाज की सच्ची तस्वीर खींची है बहुत कम शब्दों में
ReplyDeleteऔर अपनी बात कहने में सफल भी हो
बहुत बढ़िया
ये दादा लोग किसी भी पीढ़ी को हों हमेशा एक ही डायलोग क्यों मरते हैं...? आजकल के बच्चे भी न, तर्क बहुत करने लगे हैं
ReplyDeleteआपका पोता आठवीं में पढता है क्या?
ReplyDeletebahut sundar tark
ReplyDeleteVery nice sir ji
ReplyDelete:)
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