June 30, 2010

अराजक लेखन -1 उमस से उदभूत

उमस का मौसम है। तेज गर्मी और नाम भर की बारिश के बाद ऐसा होता है। बारिश के बाद तेज धूप निकलने पर भी। जब हवा न बह रही हो तब उमस का प्रभाव सार्वाधिक होता है। चिपचिपा पसीना निकलता रहता है। उमस में एक बेचैनी होती है। ओशो की एक कविता पढी थी कभी केवल शीर्षक याद है 'उमस बहुत है, चलो आँधियॉं लाऍं'। कविता अच्‍छी थी। कविता के निहितार्थ व्‍यापक थे। वहॉं उमस यथास्थिति और ऑंधियॉं परिवर्तन की प्रतीक थीं।

जब बात करने के लिए कुछ नहीं होता तो लोग मौसम की चर्चा करने लगते हैं। तब ऋतु चाहे जैसी हो उनके बीच उमस का मौसम होता है। ऐसे में यह कहना मुश्किल हो जाता है कि हम उमस होने की वजह से मौसम की चर्चा कर रहे हैं या बात करने के लिए कुछ न होने की वजह से उमस की चर्चा कर रहे हैं।



मेरा यह भी मानना है कि यदि किसी को टेबल कुर्सी में बैठकर लिखने की आदत है और आप उसे लेटकर लिखने को कहें तो वह उतनी अच्‍छी पोस्‍ट नहीं लिख सकता जितनी की ब‍ैठकर लिख सकता था ज‍ब तक कि लेटकर लिखने की आदत ही न पड जाए। कोई अच्‍छा लिख सकता है कोई खराब लिख सकता है। लेकिन पोस्‍ट पोस्‍ट होती है, अच्‍छी या खराब नहीं होती।

मानने में क्‍या है कुछ भी मान लीजिए। जब अरस्‍तु मान सकता है कि औरतों के अट्ठाइस दॉंत ही होते हैं तो आप क्‍यों नहीं मान सकते कि जातीय बिरुदावलियों के गानों की सीडी और आरक्रेस्‍ट्रा का सिलसिला शुरु हो जाने से सामाजिक क्रांति जातीय गौरव की स्‍थापना से होने वाली हैं। सामाजिक अरस्‍तु भी था अपनी ही दी गई परिभाषा की वजह से। सामाजिक आप भी हैं। खाप पंचायतें भी हैं। विरोध और समर्थन तो मौके की बात है। एक तरफ गाने हैं दूसरी तरफ खाप हैं। तीसरी तरफ हमारा नजरिया है। हम प्रगतिशील भी हैं। वंचितों के हमदर्द भी हैं। घाव को ही मरहम बनाने में उस्‍ताद भी हैं। कमजोर होने वाली चीजें मजबूत हो रही हैं। कॉंटे से कॉंटा निकालने के चक्‍कर में पहले वाले तो नहीं निकले और दो चार टूट गए उसी में। बिना कुछ मिले ही यूरेका यूरेका चिल्‍लाने लगते हैं।

छोटी पोस्‍ट लिखना एक कला है, लम्‍बी पोस्‍ट लिखने वाले के लिए। लेकिन छोटी पोस्‍ट लिखने वाला जब लम्‍बी पोस्‍ट लिखता है तो उसे कला नहीं कहा जा सकता। यह उसके लिए बेकार की मेहनत और समय की बर्बादी है।

अगली पोस्‍ट में, जो कि जल्‍द ही आएगी, अन्‍य बातों के अलावा इस विषय पर चर्चा की जाएगी कि मनुष्‍य की सामाजिकता और व्‍यक्तिगतता अन्‍योन्‍याश्रित है। किसी एक पक्ष की पूँछ पकडकर झटकारते रहने से शोषण का जन्‍म होता है।

अब हमने तय किया है कि लम्‍बी पोस्‍टों की जगह छोटी और जल्‍दी पोस्‍टें लिखीं जाऍं।

9 comments:

  1. अब हमने तय किया है कि लम्‍बी पोस्‍टों की जगह छोटी और जल्‍दी पोस्‍टें लिखीं जाऍं।...ये अच्छा निर्णय लिया. :D

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  2. बिल्कुल सही फ़ैसला है आप का छोटी पोस्ट पाठक पूरी और मन लगा कर पढ़ता है,जब्कि लंबी पोस्ट पढ़ने में ऊब जाता है
    अगली पोस्ट का इंतेज़ार है

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  3. वाह!! हर वाक्य से ज्ञान ऐसे टपक रहा है जैसे उमस के मौसम में चिपचिपा पसीना :))

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  4. पता नहीं कहां का ज्ञान प्राप्त हो गया है...जब देखो तब दार्शनिकों की, दार्शनिकों जैसी बातें करते रहते हैं...अरे आपकी उम्र तो अभी खेलने-खाने की है :D
    वैसे ये बात बहुत सही है, कि जब बातें चुक जाती हैं तो लोग मौसम की बात करने लगते हैं :(
    नये फ़ैसले का स्वागत है. वैसे जब विषय की मांग लम्बी पोस्ट हो, तो लिखने में गुरेज न करें. ;;)

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  5. मनुष्‍य की सामाजिकता और व्‍यक्तिगतता अन्‍योन्‍याश्रित है। किसी एक पक्ष की पूँछ पकडकर झटकारते रहने से शोषण का जन्‍म होता है।

    इन पंक्तियों ने मजबूर किया, औपचारिक उपस्थिति दर्ज़ करने के लिए।

    शुक्रिया।

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  6. are yaar post to likhiye kahe Eureka Eureka chilla rahe hai. Lol

    waise jaise vandana ji boli hai aap ki umar ke baare mein, kya aap ko nahin lagta ye umar khelne kudne ki hai? Ye guthi nahin suljhe gi aur do pahela kanta nikalne ki chakkar mein do char todna taya hai.

    Thanks

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  7. भाई हमे तो छोटी पोस्ट बेहद पसन्द आयी.. बस वो ’अराजक लेखन’ वाले लेबल ने दुबारा पूरा आलेख पढवा दिया कि कही कुछ अराजकता का तत्व था जो मिस हो गया हो.. और फ़िर भी ऎसा कुछ मिला तो नही.. हा आने वाली पोस्टो मे ऎसे तत्वो की प्रतीक्षा रहेगी.. :)

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  8. अराजक तत्‍व न मिलने का हमें खेद है :))

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  9. वाह गुरु... मौसम से जातियता से दार्शनिकता से छोटी पोस्ट का बड़ी खूबसूरती से वर्णन किया है.

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नेकी कर दरिया में डाल