इलाहाबाद ब्लॉगर गोष्ठी से एक बात तो जाहिरा तौर पर हालिया हजामत/फ़ेसिअल प्राप्त मुंह की तरह साफ़ हो गई है कि एक ब्लॉगर और कुछ बर्दाश्त करे या नहीं इ बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई उसे ब्लॉगिंग की तमीज सिखाने की कोशिश करता नजर आए । चाहे वह ब्लॉगिंग का महारथी हो या साहित्य का । उपदेशक की यहां कोई जगह नहीं है, जगह मिल सकती है लेकिन जब वह उपदेश कम चेतावनी की तरह ना दिया जाए।
ब्लॉगिंग संबंधी तकनीकी ज्ञान या ब्लॉगिंग टिप्स स्वीकार्य है । वो भी तब जब विषय की कुछ नई जानकारी मिल रही हो । बाकी, ब्लॉगपुरियों का कहना है कि विभिन्न विधाओं से आने वाले सुधारातुर लोग पहले अपनी-अपनी शकलों और घरों को साफ़ करें और वहां आधुनिक पुनर्जागरण की शुरुआत करें तो ब्लॉगिंग में तदनुसार सुधार अपने आप हो लेगा । भारत में अभी .06 प्रतिशत लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं । और हिन्दी ब्लॉगिंग ? लेकिन यहां के अतिरिक्त सतर्क लोग इंटरनेट से होने वाली हानि का रुदन शुरु कर चुके हैं, बजाय इसके कि यह सोचें कि कैसे यह अधिक से अधिक लोगों को उपलब्ध हो सके । यही हाल हिन्दी ब्लॉगिंग का है । एक देशी कहावत है कि तालाब खुदा नहीं और मंगर (मगर) पहले ही उतराय पडे । सरकारी खर्चे पर एक ठो गोष्ठी का हो ली । लोगन की कल्पनाएं मामला फ़ि़क्स होने तक पहुंच गईं । गोष्ठी से ये तो पता चल ही गया कि मधुमक्खी के छ्त्ते में पत्थर फ़ेंकने से क्या हाल होता है ।
ब्लॉगिंग के यदि अंतिम सदस्य को देखा जाय तो यह अनगढ की मासूम अभिव्यक्ति है । इसकी शुरुआत भी यहीं से हुई थी । तो ब्लॉगिंग एक साथ अपने आदिम और विकसित-सभ्य दोनों ही रूपों में दिखाई देगी । ब्लॉगर एक ऐसा बच्चा है जो पैदा होते ही चलने और बोलने लगता है ।
हिन्दी ब्लॉगिंग अभी भी कुछ एग्रीग्रेटरों मुख्यतः ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत के सहारे चल रही है । और भी हैं लेकिन उनका न तो हम प्रयोग करते और न ही हमारा ब्लॉग उनमें पाया जाता । यदि पा भी लिया गया तो अपडेट होने की बाद, ब्लॉग पोस्ट तुरन्त नहीं दिखाता । मतलब उनकी अपनी कमियां हैं । कुछ एग्रीग्रेटर मोबाइल नं. मांगते हैं । हम मानते हैं कि यदि ये दो संकलक हट जायें तो हिन्दी ब्लॉगर की स्थिति कुंभ के मेले में बिछडे लोगों की तरह हो जायेगी ।
नए बनने वाले ब्लॉगों तक पहुंचने का तो सवाल ही नहीं उठेगा । इसी वजह से हमने अपने ब्लॉग में छोटा संकलक लगा रखा है | अभी कुछ समय पहले ब्लॉगवाणी थोडे समय के लिए बन्द हो गई थी, तो निराशा व्याप्त थी | यह बात अलग है कि हम निराशा जाहिर करने का मन बना ही रहे थे कि यह फ़िर से शुरू हो गई । आखिर आलस्य के भी कुछ फ़ायदे तो होते ही हैं । कहने का मतलब अभी भी हिन्दी ब्लॉगिंग को ब्लॉगवाणी-चिट्ठाजगत की तरह दो-चार और संकलकों की जरूरत है । और सबसे बडी जरूरत है गूगल सर्च में हिन्दी के की वर्ड्स की ।
इलाहाबाद ब्लॉगर गोष्ठी/स्म्मेलन में ब्लॉगिंग के बारे में बहुत तरह के विचार व्यक्त किए गए । जैसे ब्लॉगिंग क्या है ? यह काम लोग क्यों करते हैं ?
ब्लॉगर कहां पाया जाता है ? क्या बुर्का ओढकर ब्लॉगिंग और टिप्पणी करना उचित है ? क्या एक ब्लॉगर में, "लिखी हुई चीज" को प्रकाशित करने की वांछित तमीज पायी जाती है आने वाले समय में समाज मे यह किस तरह का और कितने ग्राम प्रभाव डाल सकती है ?
इस तरह के बहुत से मुद्दों पर पर्चे पढे गए । यह भी कि मीडिया और प्रेस पर तो पूंजीपतियों या सत्ताधारियों का कब्जा है और उनका काम तो टीआरपी उन्मुख होता है तो क्या ब्लॉगरों का लेखन भी इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है या किया जाना चाहिये ?
क्योंकि यह सम्मेलन काफ़ी चर्चित रहा । कहा जा रहा है कि कोई भी ब्लॉगिंग घटना इससे पहले इतनी चर्चित नहीं भई थी । इसलिये इसकी रिपोर्टिंग भी ज्यादातर \ ब्लॉगरों ने पढी । फ़िर भी हम कुछ प्रमुख लिंक यहां पर इकट्ठे कर रहे हैं । इस पोस्ट के अंत में । यह सम्मेलन उपरांत चर्चा भी विभिन्न पक्षों को समझने के लिए काफ़ी काम की है । साथ ही ब्लॉगिंग पर शोध करने वालों के लिए भी यह सहयोगी रहेगी ।
सम्मेलन के बाद एक हास्य-क्रूर-व्यंग लेख टिप्पणी प्रतियोगिता अपने आप शुरू हो गई । एक से बढकर एक विचारोत्तेजक और बुद्धिवर्धक/भ्रामक लेख और टिप्पणियां लिखी गईं । उनका प्रभाव ऐसा था कि कुंजी पटल की आवाजें तक उन लेखों और टिप्पणियों से सुनी जा सकती थीं और लेखों में कुंजीपटल और चूहे से सज्जित ब्लॉगर कुंजियों को भांति-भांति से साधते नजर आते थे । उनमें तर्कों की जगह जुमलों की प्रधानता थी । क्योंकि ब्लॉगर उसी बात की नोटिस लेता है जिसे पढने में मजा आये । टी.वी. के दर्शक की तरह । स्नायुओं को उत्तेजना मिलनी चाहिए । अरे हम मनोरंजन करने बैठे हैं कोई हरिश्चंद्र बनने नहीं ।
यह बहस सैद्धांतिक मुद्दों पर शुरू हुई और क्रमशः विकसित होती हुई व्यक्तिगत आक्षेपों को प्राप्त हुई । आदमी जब गुस्से में बोलता है तो कई ऐसी बातें प्रकट करता है जो सामान्यतः नहीं कर सकता था ।
इस वाद-विवाद में हमने एक नए शब्द टंकेषणा का प्रयोग किया । क्योंकि सारे घटनाक्रम में कुछ जगहों पर इसके अस्तित्व के चिन्ह मिले । मनुष्य में मुख्यतः दो तरह की अस्तित्वगत एषणाएं(इच्छाएं) पायी जाती हैं -जीवेषणा और मृत्येषणा । जीवन की इच्छा और मृत्यु की इच्छा । एक तीसरी तरह की एषणा होती है टंकेषणा । अर्थात टंकी पर चढने की इच्छा । यह एषणा बाल्यकाल से ही बच्चे के रूठने के रूप में देखाई देने लगती हैं । हर मानव टंकेषणा नहीं कर सकता । कुछ सौभाग्यशाली मानवश्रेष्ठ ही टंकेषणा को प्राप्त होते हैं क्योंकि उन्हें यकीन रहता है कि उन्हें टंकी से हरगिज उतार लिया जायेगा और उन्हें टंकी पर चढा देख लोग कूदना मत की गुहार मचा देंगे । ऐसे नाचीज, टंकेषणा को प्राप्त नहीं होते जिन्हें टंकारूढ देखकर लोग समझते हैं कि टंकी की मरम्मत करने गया होगा ।
रहस्यात्मक लेख नस्त्रेदम की भविष्य्वाणियों की तरह लिखे गए । उन लेखों पर समझने और न समझने वालों ने समान रूप से प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं । माहौल कुछ ऐसा हो रहा था कि कुछ भी इधर-उधर बोलना गुट विचलन/चिन्हण कर सकता था । इसलिये समझदार टिप्पणीकारों द्वारा मौन या नरो-कुंजरो की नीति अख्तियार कर ली गई थी । कुछ लोगों को यही नही समझ में आ रहा था कि आखिर सम्मेलन हो जाने से कौन सा ऐसा पहाड टूट पडा ।
ऐसे तो एक ब्लॉगर सम्मेलन इस ब्लॉगिंग मंच पर भी हो सकता है । एक दिन नियत कर लिया जाय और सभी ब्लॉगर जन उस दिन ब्लॉगिंग पर ही पोस्ट लिखें । ब्लॉगिंग पर अपने-अपने विचार व्यक्त करे । इसके लिए कई बिन्दु निर्धारित किए जा सकते हैं । एक मोटी रूपरेखा निर्धारित की जा सकती है कि इन बिन्दुओं पर लिखना है । यदि एक ही दिन सब को न पोस्ट करना हो तो दो दिन में बांटा जा सकता है । बाद में ब्लॉग विमर्श संबंधी उन सारी लिंक को एक जगह रखा जा सकता है ।
इस गोष्ठी में एक अच्छी बात यह सुनने में आयी कि हर ब्लॉगर चाहे वह गोष्ठी में बोला हो या अपने ब्लॉग पर लिखा हो उतना ही बोला/लिखा जितनी उसके पास बुद्धि का स्टॉक था । हमने भी इसी चलन को फ़ॉलो करते हुए यह पोस्ट लिख मारी ।
तो नीचे दे रहे हैं उन बातों के लिंक जिनकी बातें हम अभी कर रहे थे । जो कुछ लिंक छूट भी गए हों तो संज्ञान में आते ही यहां प्रस्तुत कर दिए जाएंगे । जो छूटे हुए लिंक पेश किए जाएंगे उसके लिए अग्रिम धन्यवाद !
क्या कहा ? अभी अन्त नहीं हुआ ? कोई बात नहीं हम आने वाली पोस्टें उनके आने पर चेंप देंगे ।
तो ये रही आद्योपान्त कहानी :
October 22, 2009
इलाहाबाद से भेजी गयी ब्लॉगर्स सूची।
22 October 2009
पड़ चुके हैं संतों के चरण प्रयाग में ...
October 23, 2009
ब्लागर समारोह का उद्घाटन और सत्यार्थ मित्र का विमोचन
२२-१०-२००९
एक चर्चा इलाहाबाद से
October 23, 2009
इलाहाबाद में ब्लॉग मंथन शुरु
२३ अक्तूबर २००९
तहाँ तहाँ ते आ दाते हैं
२३-१०-२००९
हिन्दुस्तानी एकेडमी से लाइव ब्लॉगिंग...
२३-१०-२००९
फुरसतिया प्रयागराज में परिचय देवत अपन
२३-१०-२००९
हिन्दी चिट्ठाकारी में मीनू खरे की प्रस्तुति…
२३-१०-२००९
ब्लॉगिंग – कानाफ़ूसी को सार्वजनिक करने का माध्यम है : अविनाश
२३-१०-२००९
हिंदी चिट्ठाकारी की दुनिया : सेमिनार के कुछ वक्ता
२४-१०-२००९
इलाहाबाद ब्लॉग मंथन की विस्तृत रपट…
२४-१०-२००९
लोटपोट पर सुबह -सुबह की चर्चा
इलाहाबाद से गैर-रपटाना....एकदम ब्लागराना
२४ अक्तूबर २००९
सबसे पहले मैंने ही
२४-१०-२००९
दूसरे दिन का पहला सत्र शुरू
24 October 2009
इलाहाबाद से लौट कर :कुछ खरी कुछ खोटी और कुछ खटकती बातें !
October 25, २००९
उन दोनों के साथ इलाहाबाद मीट मे एक ही मंच पर बैठ कर वार्तालाप करने से ----- इत्यादि को कोई आपत्ति नही हुई क्यों ?
25 October 2009
ब्लागर उवाच -प्रयाग की चिट्ठाकारिता संगोष्ठी
October 2009
......और अब बची खुची भी ! चिट्ठाकारी की दुनिया की एक अर्ध दिवसीय रिपोर्ट !
इलाहाबाद...कुर्सियॉं औंधा दी गई हैं, पोडियम दबे पड़े हैं
२५-१०-२००९
इलाहाबादी सम्मेलन की चित्रमय चर्चा
25 October 2009
हिन्दुत्ववादी ब्लॉगरों से परहेज, नामवर सिंह का आतंक और सैर-सपाटा यानी इलाहाबाद ब्लॉगर सम्मेलन…
रविवार, २५ अक्तूबर २००९
इलाहाबाद से 'इ' गायब, भाग -1
मंगलवार, २७ अक्तूबर २००९
इलाहाबाद से 'इ' गायब - अंतिम भाग
October 26, 2009
…इलाहाबाद के कुछ लफ़्फ़ाज किस्से
October 26, 2009
इलाहबाद चिट्ठाकार संगोष्ठी: बधाईयां! शर्म तो बेच खाई, ये तो लफ़्फ़ाजियों का समय है!
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कायलियत के कायल- कैसे कैसे घायल?!!
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बहस कम , चर्चे ज्यादा प्रश्न कम , पर्चे ज्यादा
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चिट्ठाकारी (हिंदी?) में निहित ख़तरे…
October 28, 2009
हे भीष्म पितामह, हम ब्लॉगर नहीं, पर वहां थे…
October 29, 2009
इलाहाबाद चिट्ठाकार सम्मेलन के कुछ हा हा ही ही , हाय हैलो के ऑडियो - वीडियो
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पुल के उस पार से: इलाहाबाद दर्शन
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इलाहाबादी चिक्-चिक् का मतलब !
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जिन्हें हमारा मुल्क चुभता है
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.इति श्री इलाहाबाद ब्लागर संगोष्ठी कथा
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नए बनने वाले ब्लॉगों तक पहुंचने का तो सवाल ही नहीं उठेगा । इसी वजह से हमने अपने ब्लॉग में छोटा संकलक लगा रखा है | अभी कुछ समय पहले ब्लॉगवाणी थोडे समय के लिए बन्द हो गई थी, तो निराशा व्याप्त थी | यह बात अलग है कि हम निराशा जाहिर करने का मन बना ही रहे थे कि यह फ़िर से शुरू हो गई । आखिर आलस्य के भी कुछ फ़ायदे तो होते ही हैं । कहने का मतलब अभी भी हिन्दी ब्लॉगिंग को ब्लॉगवाणी-चिट्ठाजगत की तरह दो-चार और संकलकों की जरूरत है । और सबसे बडी जरूरत है गूगल सर्च में हिन्दी के की वर्ड्स की ।
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ब्लॉगर कहां पाया जाता है ? क्या बुर्का ओढकर ब्लॉगिंग और टिप्पणी करना उचित है ? क्या एक ब्लॉगर में, "लिखी हुई चीज" को प्रकाशित करने की वांछित तमीज पायी जाती है आने वाले समय में समाज मे यह किस तरह का और कितने ग्राम प्रभाव डाल सकती है ?
इस तरह के बहुत से मुद्दों पर पर्चे पढे गए । यह भी कि मीडिया और प्रेस पर तो पूंजीपतियों या सत्ताधारियों का कब्जा है और उनका काम तो टीआरपी उन्मुख होता है तो क्या ब्लॉगरों का लेखन भी इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है या किया जाना चाहिये ?
क्योंकि यह सम्मेलन काफ़ी चर्चित रहा । कहा जा रहा है कि कोई भी ब्लॉगिंग घटना इससे पहले इतनी चर्चित नहीं भई थी । इसलिये इसकी रिपोर्टिंग भी ज्यादातर \ ब्लॉगरों ने पढी । फ़िर भी हम कुछ प्रमुख लिंक यहां पर इकट्ठे कर रहे हैं । इस पोस्ट के अंत में । यह सम्मेलन उपरांत चर्चा भी विभिन्न पक्षों को समझने के लिए काफ़ी काम की है । साथ ही ब्लॉगिंग पर शोध करने वालों के लिए भी यह सहयोगी रहेगी ।
सम्मेलन के बाद एक हास्य-क्रूर-व्यंग लेख टिप्पणी प्रतियोगिता अपने आप शुरू हो गई । एक से बढकर एक विचारोत्तेजक और बुद्धिवर्धक/भ्रामक लेख और टिप्पणियां लिखी गईं । उनका प्रभाव ऐसा था कि कुंजी पटल की आवाजें तक उन लेखों और टिप्पणियों से सुनी जा सकती थीं और लेखों में कुंजीपटल और चूहे से सज्जित ब्लॉगर कुंजियों को भांति-भांति से साधते नजर आते थे । उनमें तर्कों की जगह जुमलों की प्रधानता थी । क्योंकि ब्लॉगर उसी बात की नोटिस लेता है जिसे पढने में मजा आये । टी.वी. के दर्शक की तरह । स्नायुओं को उत्तेजना मिलनी चाहिए । अरे हम मनोरंजन करने बैठे हैं कोई हरिश्चंद्र बनने नहीं ।
यह बहस सैद्धांतिक मुद्दों पर शुरू हुई और क्रमशः विकसित होती हुई व्यक्तिगत आक्षेपों को प्राप्त हुई । आदमी जब गुस्से में बोलता है तो कई ऐसी बातें प्रकट करता है जो सामान्यतः नहीं कर सकता था ।
इस वाद-विवाद में हमने एक नए शब्द टंकेषणा का प्रयोग किया । क्योंकि सारे घटनाक्रम में कुछ जगहों पर इसके अस्तित्व के चिन्ह मिले । मनुष्य में मुख्यतः दो तरह की अस्तित्वगत एषणाएं(इच्छाएं) पायी जाती हैं -जीवेषणा और मृत्येषणा । जीवन की इच्छा और मृत्यु की इच्छा । एक तीसरी तरह की एषणा होती है टंकेषणा । अर्थात टंकी पर चढने की इच्छा । यह एषणा बाल्यकाल से ही बच्चे के रूठने के रूप में देखाई देने लगती हैं । हर मानव टंकेषणा नहीं कर सकता । कुछ सौभाग्यशाली मानवश्रेष्ठ ही टंकेषणा को प्राप्त होते हैं क्योंकि उन्हें यकीन रहता है कि उन्हें टंकी से हरगिज उतार लिया जायेगा और उन्हें टंकी पर चढा देख लोग कूदना मत की गुहार मचा देंगे । ऐसे नाचीज, टंकेषणा को प्राप्त नहीं होते जिन्हें टंकारूढ देखकर लोग समझते हैं कि टंकी की मरम्मत करने गया होगा ।
रहस्यात्मक लेख नस्त्रेदम की भविष्य्वाणियों की तरह लिखे गए । उन लेखों पर समझने और न समझने वालों ने समान रूप से प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं । माहौल कुछ ऐसा हो रहा था कि कुछ भी इधर-उधर बोलना गुट विचलन/चिन्हण कर सकता था । इसलिये समझदार टिप्पणीकारों द्वारा मौन या नरो-कुंजरो की नीति अख्तियार कर ली गई थी । कुछ लोगों को यही नही समझ में आ रहा था कि आखिर सम्मेलन हो जाने से कौन सा ऐसा पहाड टूट पडा ।
ऐसे तो एक ब्लॉगर सम्मेलन इस ब्लॉगिंग मंच पर भी हो सकता है । एक दिन नियत कर लिया जाय और सभी ब्लॉगर जन उस दिन ब्लॉगिंग पर ही पोस्ट लिखें । ब्लॉगिंग पर अपने-अपने विचार व्यक्त करे । इसके लिए कई बिन्दु निर्धारित किए जा सकते हैं । एक मोटी रूपरेखा निर्धारित की जा सकती है कि इन बिन्दुओं पर लिखना है । यदि एक ही दिन सब को न पोस्ट करना हो तो दो दिन में बांटा जा सकता है । बाद में ब्लॉग विमर्श संबंधी उन सारी लिंक को एक जगह रखा जा सकता है ।
इस गोष्ठी में एक अच्छी बात यह सुनने में आयी कि हर ब्लॉगर चाहे वह गोष्ठी में बोला हो या अपने ब्लॉग पर लिखा हो उतना ही बोला/लिखा जितनी उसके पास बुद्धि का स्टॉक था । हमने भी इसी चलन को फ़ॉलो करते हुए यह पोस्ट लिख मारी ।
तो नीचे दे रहे हैं उन बातों के लिंक जिनकी बातें हम अभी कर रहे थे । जो कुछ लिंक छूट भी गए हों तो संज्ञान में आते ही यहां प्रस्तुत कर दिए जाएंगे । जो छूटे हुए लिंक पेश किए जाएंगे उसके लिए अग्रिम धन्यवाद !
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