जाह्न्वी बिस्तर पर सोने के लिए जा रही है. मैंने तकिया रजाई वगैरह व्यवस्थित कर
दी है. मैं अपने टेबल पर. लैपटॉप ऑन किया है. टेबल पर नाइट लैम्प का जीरो
वाट का पीला प्रकाश फैला है. जेनी के बिस्तर पर लेटने के बाद मैं लैपटॉप पर कुछ गाना लगा देता हूँ जिसे
सुनते-सुनते वह सो जाती
है. यह रोज का क्रम है. आज उसका कुछ बात करने का मूड था.
तरह तरह की बातें करने लगी. बातों का विषय कुछ इस तरह बदलती
रहती है कि उन्हें याद करके सिलसिलेवार लिखना
मुश्किल होता है. भूल जाता है कि उसने किस बात के बाद
कौन सी बात कही थी.
जैसे आज कहने लगी कि पापा आप हिन्दी में बात क्यों नहीं करते
हो. मैंने कहा कि मैं हिन्दी में ही तो बात करता हूँ. जो मैं बोलता हूँ
वह हिन्दी ही तो है. तब उसने कहा कि तो फिर आप दादी
से इस तरह क्यों बोलते हो
(उसने गांव की बघेली बोली का एक टोन
बोलकर बताया) मैंने कहा वो तो गाँव की बोली है.
उसने कि कहा कि "आप गांव के हैं?"
मैंने कहा "हां"
मैंने कहा "हां"
"और
मैं?"
"तुम भी गांव की हो"
"तुम भी गांव की हो"
"क्योंकि
मैं गांव में पैदा हुई थी?
"
"नहीं
तुम शहर की हो"
"क्योंकि
मैं हॉस्पिटल में पैदा हुई थी?"
फिर उसने बात बदल दी,
"पापा, आपको स्कूल में हिन्दी सिखाते थे?"
"पापा, आपको स्कूल में हिन्दी सिखाते थे?"
"हां"
"और
गुजराती?"
"नहीं"
"और
मराठी?"
"नहीं"
"और
कविता कौन सी सिखाते थे? ये वाली एक दो दस ऊपर से आई बस?"
मैं हां हूं कर रहा था.
उसने फिर बात बदली.
‘"पापा
आप कॉफी क्यूं नहीं पीते हो"
"क्योंकि
मैं चाय पीता हूँ"
"क्योंकि
कॉफी मूँछों वाले लोग पीते हैं?"
"तुमसे
यह किसने कहा कि कॉफी मूँछों वाले लोग पीते हैं"
"क्योंकि
कॉफी नत्तू वाले बब्बा पीते हैं मूँछे निकालकर गॉंव में"
उसे कहना चाहिए था मूँछे डुबोकर तो कह रही थी मूँछे निकालकर. मेरे पापा बड़ी मूँछे रखते हैं और चाय नहीं कॉफी पीते हैं. इसलिए कह रही थी कि कॉफी मूँछों वाले लोग पीते हैं.
"पापा
आपके भी मूँछें निकल रही है इसलिए आपको भी कॉफी पीनी चाहिए. आपको
कॉफी नहीं अच्छी लगती?"
मैंने यूं ही कह दिया, नहीं.
"मैं
भी काफी पिऊंगी"
मैंने कहा,
"बच्चों को कॉफी नहीं
पीनी चाहिए"
"तो
चाय पीनी चाहिए?"
"नहीं
चाय भी नहीं पीनी चाहिए. बच्चों को दूध पीना चाहिए. बोर्नविटा और हार्लिक्स
वगैरह डालकर. कॉफी बड़े लोग पीते हैं."
"बच्चों
को कॉफी नहीं पीनी चाहिए क्योंकि कॉफी पीने से खांसी आ जाती है?"
मुझे हँसी आई मैंने कहा, "हॉं"
"अब
सो जाओ मैं गाना लगा देता हूँ. तुम्हे जुकाम है और तुम्हारा गला पड़ रहा है बोलते-बोलते"
"पापा
आपको चक धूम-धूम वाला गाना पसंद है ना. सुनाऊँ उसको?" यह
कहकर वह स्कूल में सीखा हुआ गाना गाने को हुई.
मैंने कहा, जब मैं सुनाने को कहूँ तब सुनाया करो.
तभी मुझे पसंद आता है.
"लेकिन
पहले तो ये गाना आपको पसंद था."
मैंने कहा कि इसके अलावा मुझे और भी गाने पसंद हैं. यह तो तुम
दो साल से गा रही हो। मैं कहना चाहता था कि अभी जो तुमने दो-तीन दिन पहले
सीखा है,
"हाउस रे हाउस, नाइस नाइस हाउस.
हाउस माने केटला जना रहिए छे?
ऑफिस जाता पापा छे. रोटली बनाती मम्मा छे.
नखरा नु बहन छे, झगड़ा नु भाई छे.
पेपर पढ़ता दादा छे. पूजा करती बा छे."
"हाउस रे हाउस, नाइस नाइस हाउस.
हाउस माने केटला जना रहिए छे?
ऑफिस जाता पापा छे. रोटली बनाती मम्मा छे.
नखरा नु बहन छे, झगड़ा नु भाई छे.
पेपर पढ़ता दादा छे. पूजा करती बा छे."
वह गाना मुझे अच्छा लगा है. लेकिन यह सोचकर नहीं कहा कि
सुनाने लगेगी. उसे नींद आ गई थी. वह चुप हो गई और धीरे-धीरे नींद के आगोश में चली गई.
पवित्र वार्ता, सुंदर कविता.
ReplyDeleteबच्चों की प्यारी प्यारी बातें..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......पर जो भी उसे "ऑफिस जाता पापा छे. रोटली बनाती मम्मा छे..." सिखा रहा है, उससे जाह्न्वी को प्रभावित न होने दें तो अच्छा है :-)
ReplyDelete@Giribala कविता की यह लाइन लिखते समय मैंने इस पर गौर किया था :-)और यह भी सोचा था कि उसे इसकी जगह कुछ और लिखना था. लेकिन कविता बनाने वाला जिस परिवेश से आता है और हम जिसमें रहते हैं यह उसकी हकीकत भी है. हालॉंकि मम्मियॉं और भी बहुत कुछ करती हैं पर रोटियां जरुर ही बनाती हैं. आपकी बात पर मुझे पूरा ध्यान है.
Deleteआशा है जब तक बिटिया बढ़ी होगी "मम्मियॉं रोटियां जरुर ही बनाती हैं" की धारणा खतम हो जायेगी.
Deleteहकीकतें तो और भी हैं...जाति प्रथा और धार्मिक भेदभाव से सम्बंधित. उन पर कविता लिखकर मत सिखा देना :-)
इसे stereotype कहते है. यहाँ मेरे साथ के सभी हिन्दुस्तानी परिवारों में भी पति पत्नी रसोई में बराबर काम करते है, और रोटियां बनी बनाई दूकान से खरीदते हैं.
ye baate aur pal dono anmol hai .happy diwali sabhi ko
ReplyDelete