मैं इतने जोर से हाथ घुमाऊँगा
कि एक तमाचे के बराबर ऊर्जा मुक्त हो
तमाचा किसी को लगे भी न और
मुझे संतोष हो जाए कि मैंने
जोरदार विरोध प्रकट कर दिया
मैं प्रेम से पगी कविताऍं लिखूँगा
प्रेम से फारिग हो जाने से मिले
समय का सदुपयोग करुँगा
मैं किसी डे फे से के समर्थन या विरोध में
अपना मत प्रकट करुँगा भले
दस रुपए का एक गुलाब खरीदना
मेरी जेब को वाहियात लगता हो
क्योंकि मैं सिर्फ थोडे से मुफ्त को
ही अफोर्ड करने लायक हूँ, जैसे कि
ब्लॉगिंग मंच जिसकी
मुफ्तई विवादित असत्य है
(सनद रहे कि हैसियत सम्मानित मुफ्तखोरी
के सीधे समानुपाती होती)
और इसके लिए उन जगहों से आकर
जहॉं डे फे से मजाक और सामान्य ज्ञान
बढाने की चीज थी
ऐसी जगह आकर रहता हूँ जहॉं से
डे फे से का हल्ला सुनाई देता है
इसलिए मन के कोने में
कहीं यह महसूस करते हुए भी
कि यह सब हल्ला मेरे लिए कितना
अजनबी है
इसके सुर सुर में सुर मिलाऊँगा
क्या बात है!!! ऐसी डे फ़े से कविता लिखी है न कि अकविता होते हुए भी मैं इसे कविता मान लूंगी. लम्बे समय के बाद प्रकट हुए हैं, स्वागत है. बीच-बीच में इसी प्रकार हाथ घुमाते रहा कीजिये :) :)
ReplyDeleteपूरी ऊर्जा पटक कर गयी है आपकी कविता..
ReplyDeleteतमाचा किसी को लगे भी न और
ReplyDeleteमुझे संतोष हो जाए कि मैंने
जोरदार विरोध प्रकट कर दिया
sarvadhik prabhaavshali panktiyaN.
वाह! बहुत बढ़िया, रोचक !
ReplyDeleteThoda upar utho...
ReplyDeleteब्रेक के बाद उफान! डे फे से तो आते जाते रहते है. कवितायेँ रह जाती हैं.
ReplyDeleteमैं इतने जोर से हाथ घुमाऊँगा
ReplyDeleteकि एक तमाचे के बराबर ऊर्जा मुक्त हो
तमाचा किसी को लगे भी न और
मुझे संतोष हो जाए कि मैंने
जोरदार विरोध प्रकट कर दिया..
बाप रे..यह तो बढ़िया तरिका है विरोध करने का..अच्छा लगा !
बड़ी रचनात्मक ऊर्जा मुक्त हुई!
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