एक कविता लिखने का मन करता है,
खेलते हुए बच्चों पर
अंकुरते हुए बीज पर,
अँधेरी रात के
अलग दिखते चमकीले तारे पर,
खिलती हुई कली पर
मुरझाते हुए फूल पर,
और भी बहुत कुछ ...
खेलते हुए बच्चों पर
अंकुरते हुए बीज पर,
अँधेरी रात के
अलग दिखते चमकीले तारे पर,
खिलती हुई कली पर
मुरझाते हुए फूल पर,
और भी बहुत कुछ ...
दिन भर के श्रम के बाद
रात को नींद से बोझिल पलकों पर,
सिर से भारी बोझ
उतरने के सुख पर ,
संघर्ष पर, पलायन
रात को नींद से बोझिल पलकों पर,
सिर से भारी बोझ
उतरने के सुख पर ,
संघर्ष पर, पलायन
किसी को उसकी औकात के पता चलने पर
जीवन पर, जीवन के थोड़े अंश पर,
और भी बहुत कुछ ...
पूरेपन की चाह और
हमेशा अपूर्णता के एहसास पर ,
आलस्य पर, कर्मठता पर
आलस्य पर, कर्मठता पर
उदासी पर खिलखिलाहट पर,
बागुड चरती हुई बकरी पर
चराने वाली लड़की की बेपरवाही पर
बागुड चरती हुई बकरी पर
चराने वाली लड़की की बेपरवाही पर
आत्मा पर , परमात्मा पर
साथ ही इन महान शब्दों की
अपने लिए निरर्थकता पर
और भी बहुत कुछ ...
मन की चंचलता अर्थात क्षणभंगुरता पर
उसकी क्वांटम छलांग और इंच इंच सरकने पर ,
मोती सी लिखावट पर
मोती से अक्षर लिखने की चाह और
गन्दी हस्तलिपि पर,
किसी कुरूप की ग्लानि पर
इसमें उसकी निर्दोषता पर
और अचानक इस बात पर ख़ुद के
सजग हो जाने पर,
मेरे साथ ही ऐसा क्यों की विवशता पर
इस दुनिया जहान पर,
ओस की बूंदों और कमल के पत्तों पर
व्यर्थ के गुरुर और उससे
पैदा हुए हास्यास्पद मनुष्य पर
और भी बहुत कुछ ...
बार-बार की हुई भूलों पर पछताने पर
क्यों ? का कारण न ढूंढ पाने
दूसरों को समझाने और ख़ुद न समझ पाने पर,बचपन के मासूम सवालों पर
सपनों पर , सपनों
के पूरा होने या न होने पर
और उम्र बढ़ने के साथ
उनके बदलते रहने पर,
बचपन के उत्साह पर
जवानी के जोश पर,
बेरोजगारी की दीनता
और रोजगार की यातना पर,
सपनों पर , सपनों
के पूरा होने या न होने पर
और उम्र बढ़ने के साथ
उनके बदलते रहने पर,
बचपन के उत्साह पर
जवानी के जोश पर,
बेरोजगारी की दीनता
और रोजगार की यातना पर,
विनम्रता, विनम्रता के एहसास
व्यवहारिकता और पाखण्ड पर,
साहस, दुस्साहस और दुनियादारी पर
और भी बहुत कुछ ...
सूरज, चाँद, सितारों पर
अंधेरे पर, दिए पर,
ब्रह्माण्ड की असीमता
इसके अन्तर की एकता
और प्रकृति के अद्वितीयता पर,
क्षितिज के आकर्षण पर
इन्द्रधनुष और किशोर मन पर,
निषेध के आमंत्रण और
मृगमरीचिका पर
सौन्दर्य, कोमलता, प्रेम और वात्सल्य के
नारी सुलभ होने पर,
रस्सी पर चलते हुए नट
और धरती पर चलते हुए आदमी पर ,
धारा प्रवाह प्रांजल भाषा और
बच्चे की तुतलाहट पर
और भी बहुत कुछ ...
aapki har ek rachnaaye behtarin hoti hai...aapne achhe aur saral sabdo dwara abhivyakti prastut ki hai.
ReplyDeleteAap to sundar hai hi aur use bhi sundar aap ka srijan. Kya kahun, sabd is nachiz ko dhokha de rahe hai. Ati sundar mitra.
ReplyDeleteBahut khoobsoorat likha hai.bahut gehri soch hai.....doosron ko samjhana aur khud ko na samajh pana.....bahut accha hai.
ReplyDeleteएक अच्छे भाव की सफल प्रस्तुति - सुन्दर
Deleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
आपको लोहड़ी हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
कल 13/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
इतने सब के बाद भी कितना कुछ बचा रहता है लिखने को ..बहुत सुन्दर ..प्रवाहमयी रचना
ReplyDelete