यह साल 2014 भारतवर्ष के लिए एक ऐतिहासिक महत्व का साल रहा है। मैं मानता हूँ कि भारत की आजादी के बाद कुछ ऐसी घटनाऍं हुई हैं जिसने भारत को जैसा आज हम देख रहे हैं वैसा बनाने में निर्णायक भूमिका अदा की हैं। उनमें से पहली घटना नेहरु का प्रधानमंत्री बनना थी, दूसरा अम्बेडकर का कानून मंत्री बनना, तीसरी विश्वनाथ प्रताप सिंह का मंडल कमीशन लागू करना, चौथी बाबरी मस्जिद का गिराया जाना और पांचवी 2014 में भारतीय जनता पार्टी का पूर्ण बहुमत से आकर मोदी का प्रधानमंत्री बनना थी। इन घटनाओं के महत्व पर मैं यहॉं विस्तार में नहीं जाना चाहता। सुधीजन इनके प्रभावों का आसानी से अनुमान लगा सकते हैं।
इस साल 2014 में जो हुआ वह पहले कभी नहीं हुआ था। क्रांग्रेस के अलावा कोई अकेली पार्टी पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई है। राजीव गांधी के बाद पहली बार कोई सरकार गठबंधन दलों के दबाव से मुक्त होकर काम कर सकती है। सबसे बड़ी बात एक ऐसी सत्ता को स्वतंत्र होकर काम करने का मौका मिल रहा है जिसके शीर्ष नेता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्कूल से आए हैं। अब जो संघर्ष हो रहा है वह है भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र और भारतीय सत्ता के स्कूल के एजेंडे का। कई घटनाऍं पहली बार सुनने में आई जैसे लव जिहाद जिसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिला है। भारत के कई शहरों में धर्म-परिवर्तन या घर वापसी। सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन सार्वजनिक अवकाशों में स्वच्छता दिवस और सुशासन दिवसक की डकैती भी पहली बार हो रही है। इस बार जैसा शिक्षक दिवस भी शिक्षकों ने पहले नहीं देखा होगा।
हमारे पड़ोस पाकिस्तान में बेरहमी की हद भी इसी साल पार हो गई जब साल के अंत में सौ से अधिक स्कूली बच्चों को तालिबान द्वारा मार दिया गया। फिर भी वह बाज नहीं आ रहा भस्मासुरों को पालने से। हम ऐसी सत्ताओं को झेलने पर विवश हैं जिनके अस्तित्व का आधार ही निषेध है। हम बस रोटी की आशा करते हैं उसके साथ क्या आ रहा है इसे देखने का विकल्प हमारे पास नहीं होता या हम उसे देखने नहीं चाहते।
व्यक्तिगत रुप से मेरी ब्लागिंग की दृष्टि से यह साल बिल्कुल शून्य रहा। इस साल मैंने एक पोस्ट भी नहीं पोस्ट की। ऐसा नहीं था कि कभी पोस्ट लिखने की सोची न हो लेकिन कभी लिखी नहीं गई। जो लिखे भी वे ड्राफ्ट ही रह गए। । जब साल बीत गया और ब्लॉग देखा तो लगा कि मेडेन ओवर नहीं जाना चाहिए।
अब सोचता हूँ कि ऐसे कई मुद्दे थे व्यक्तिगत और सामाजिक जिस पर मैं लिखना चाहता था पर आलस्य वश नहीं लिखा।
नववर्ष 2015 की हार्दिक शुभकामनाऍं। खासकर इस मनोकामना के साथ कि हम पतनशीलता की दौड़ में अव्वल आने की होड़ में शामिल नहीं होंगे और उसे निराश करेंगे।
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नेकी कर दरिया में डाल