नए साल के पहले महीने का अंत करीब आ
चुका है. बस अंतिम सांसे गिन रहा है. साल 2013 का एक महीना खर्चा हो गया. समय एक ऐसी
पूँजी है जो अपने आप खर्च होती रहती है. हम उसके खर्च करने में कंजूसी नहीं कर
सकते न ही ज्यादा खर्च कर सकते. इसे किस तरह खर्च करना है यह काफी कुछ हमारे ऊपर
निर्भर करता है. लेकिन ठीक मुद्रा की तरह ही हम इसे पूरी स्वतंत्रता से इस्तेमाल
नहीं कर सकते.
सर्दी भी अपना पूरा जोर दिखाकर हॉंफने
सी लगी है. धीरे-धीरे थम रही है. अभी एक-दो बार अचानक ब्रेक लगाकर फिर थोड़ी दूर
चलेगी फिर धम्म से थम जाएगी.