इस मानसून में सुदर्शन फाकिर की यह लाइन बहुत मौजूं हैं। बरसात में शराब तो बरसने से रही पानी भी नहीं बरस रहा। सुदर्शन फाकिर के जीवन के बारे में मुझे रवीन्द्र कालिया के उपन्यास गालिब छूटी शराब से पहली बार जानकारी मिली। उन्होंने एक से एक बढिया गजल लिखी हैं। उनमें से कुछ गजलों को आपने सुना जरुर होगा क्योंकि बहुप्रसिद्ध गजलें हैं। लेकिन कम लोग जानते होंगे कि उन्हें सुदर्शन फाकिर ने लिखा है। जैसे कि वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी, आदमी आदमी को क्या देगा, शेख जी थोडा पीकर आइए, ढल गया आफताब ऐ साकी ..... हर गजल बेमिसाल है। सारी गजलें कविता कोश में पढी जा सकती हैं। उनकी लिखी हुई और बेगम अख्तर की गाई ठुमरी हमरी अटरिया पे आओ संवरिया, देखा देखी बलम होइ जाए आओ सजन हमरे द्वारे, सारा झगड़ा खतम होइ जाए भी बहुत प्रसिद्ध है।