कल यह सोचकर फीफा विश्व कप का फाइनल देख लिए कि चलो आज भर की तो बात है, कौन सा रोज दुनिया के सार्वाधिक लोकप्रिय खेल के विश्व कप का फाइनल होना है। वरना तीन बजे तक बेफालतू में तभी जागा जा सकता है जब नींद न आ रही हो। वैसे भी फीफा में भारतीयों की हालत बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह होती है। मैच लंबा खिंच गया। अतिरिक्त समय में किसी तरह एक गोल होकर मामला क्लियर हुआ। हमें तो लग रहा था कि द्वंद्व युद्ध से फैसले की नौबत न आ जाए नहीं तो आधे घंटे और जागने पडेंगे। आक्टोपस की बैठकी सही निकली। पोपट गलत साबित हुआ।