कृष्ण कन्हैया भारत भूमि पर प्रेम के इजहार के इस वेलेंटाइन दिन को
देखकर मुस्कुरा रहे थे। रुक्मणी ने सोचा कि लगता है इन्हें अपने पुराने
दिन याद आ रहे हैं। कुहनी मारते हुए बोलीं, "क्या बात है जी बहुत
मुस्कुरा रहे हो?" लगता है तुम्हें अपनी राधा और गोपियों के साथ बिताए
हुए पुराने दिन याद आ रहे हैं। ये बेचारे तो साल में एक दिन का इंतजार
करते हैं। प्रेम का बाकायदा इजहार और अपनी हैसियत के अनुसार मैनेज करने के
लिए। तुमने तो हद कर रखी थी रोज ही रास रचाते रहते थे और वो भी कोई एक
नहीं पूरी गॉव की गोपियों के साथ। मैंने सुन रखा है राधा नाम की तुम्हारी
कोई खास थी।
रुक्मणी की बात सुनकर कृष्ण हँस पडे। बोले
रुक्मे ! मैं चाहे वेलेंटाइन के रूप में आऊं या कृष्ण के रूप में या
राधा या मीरा के रूप में मैं किसी भी रूप में आ सकता हूँ प्रेम की हवा
फैलाने। आज जब साजिश करके मेरे प्रेम के संदेश को बिल्कुल हवाई और अलौकिक
कर दिया था, इस देश में तो मैं वेलेंटाइन जी के बहाने घुस आया हूँ, अधिक
सांसारिक होकर। वैसे भी इस भारत देश की आदत हो गई है सेकंड हैंड चीजें
इस्तेमाल करने की। यहॉं लाख दहाड मारकर चिल्लाते रहो कोई सुनेगा नहीं एक
बार विदेशी समर्थन कर दें तो समझ लो कि हो गया काम ।