बुरा न मानो होली है - मेरी बातें भोली हैं - सब अपने हमजोली हैं !
पहचान कौन ?
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बुरा न मानो होली है - मेरी बातें भोली हैं - सब अपने हमजोली हैं
मित्रों ! होली पर हमारी तरफ से आप सभी को अबीर का टीका और शुभिच्छाओं के बहुत सारे रंगों से सिर से पॉंव तक भिगोते हुए बोले रहे हैं - होली मुबारक ।
हमारे ध्यान में अपने सभी ब्लॉगर मित्र हैं जिनकी पोस्ट हम पढते टिपियाते है या सिर्फ पढते हैं ऐसे ही हमारे ब्लाग को पढने वाले टिपियाने वाले या सिर्फ पढने या सिर्फ टिपियाने वाले सभी मित्र हमारे ध्यान में हैं
मुद्दे की बात जो हम कहना चाह रहे हैं वह यह है कि हमें खेंद है कि सभी मित्रों के मोनालिसा संस्करण हम नहीं लगा पा रहे हैं । इसलिए बुरा न मानें । फिर भी यदि किसी मित्र ने विशेष इच्छा जाहिर की तो जरूर लगा देंगे ।
यह खुराफात हमारी नहीं http://www.photofunia.com की है ।
होली की शुभकामनाऍं इन शब्दों में व्यक्त करते हुए :
होली खेलने कोई 'दीवाली' / 'दीवाला' आए
कोई भी आए गोरी-काली /गोरा- काला आए
February 28, 2010
February 14, 2010
कृष्ण की धरती पर वेलेंटाइन आए
कृष्ण कन्हैया अपनी भारत भूमि पर प्रेम के इजहार के इस वेलेंटाइन दिन को देखकर मुस्कुरा रहे थे । कृष्ण की आदत है मुस्कुराने की मुस्कुराते ही रहते हैं । रुक्मणी ने सोचा कि लगता है इन्हें अपने पुराने दिन याद आ रहे हैं । कुहनी मारते हुए बोलीं कि क्या बात है जी, बहुत मुस्कुरा रहे हो ? लगता है तुम्हें अपनी राधा और गोपियों के साथ बिताए हुए पुराने दिन याद आ रहे हैं । ये बेचारे तो साल में एक दिन का इंतजार करते हैं । प्रेम का बाकायदा इजहार और अपनी हैसियत के अनुसार मैनेज करने के लिए । तुमने तो हद कर रखी थी रोज ही रास रचाते रहते थे और वो भी कोई एक नहीं पूरी गॉव की गोपियों के साथ । कुछ काम धाम तो था नहीं तुम्हारे पास । निठल्ले घूमते थे । यशोदा मैया ने खासा बिगाड रखा था तुम्हें । और मैंने सुन रखा है राधा नाम की तुम्हारी कोई खास थी ।
रुक्मणी की बात सुनकर कृष्ण इस बार ठहाका मारकर हँस पडे । बोले रुक्मे ! मैं चाहे वेलेंटाइन के रूप में आऊं या कृष्ण के रूप में या राधा या मीरा के रूप में मैं किसी भी रूप में आ सकता हूँ प्रेम की हवा फैलाने । आज जब साजिश करके मेरे प्रेम के संदेश को बिल्कुल हवाई और अलौकिक कर दिया था, इस देश में तो मैं वेलेंटाइन जी के बहाने घुस आया हूँ , अधिक सांसारिक होकर । वैसे भी इस भारत देश की आदत हो गई है सेकंड हैंड चीजें इस्तेमाल करने की । यहॉं लाख दहाड मारकर चिल्लाते रहो कोई सुनेगा नहीं एक बार विदेशी समर्थन कर दें तो समझ लो कि हो गया काम । विवेकानंद से लेकर गॉधी से होते हुए ओशो तक यह बात बार बार दोहरायी जाती रही ।
रुक्मणी ने कहा - "मुझे लगता है कि आप ठीक कह रहे हैं । क्योंकि इन आशिकों के रंग ढंग भी कुछ आप जैसे ही
लगते हैं ।"
इस बार कृष्ण चौंक गए बोले कि मैं समझा नहीं तुम क्या कहना चाहती हो । रुक्मणी बोलीं कि "जैसे आपने प्रेम तो राधा से किया था लेकिन उसे प्रेम तक ही रहने दिया । शादी तक आते आते आपके प्रेम का भूत उतर गया और यह नेक काम आप राधा जैसी ग्वालिन से न करके पूरी दुनियादारी का परिचय देते हुए हम जैसी राजे-महाराजे की लडकियों से किया । "
"मैं मजबूर था रुक्में ..." कृष्ण ने बेबसी जाहिर करते हुए कहा ।
"और आपकी यह बेबसी आज भी कायम है इस समाज में । हर वर्ष वेलेंटाइन डे चकाचौध की तरह आता है । महानगरों बडे शहरों और टीवी चैनलों मे कौंध की तरह छाता है । रात में पी हुई मदिरा की तरह सुबह हल्के सिरदर्द के साथ उतर जाता है । दूसरी तरफ प्रेम करने वालों युवाओं को पंचायतों द्वारा सरेआम फांसी , आगजनी या पीटपीटकर मौत के घाट उतार दिया जाता है।"
यह सुनकर कृष्ण को इस तरह की कई घटनाएँ याद आ गईं । मन में यह सोचकर उन्हें राहत महसूस हुई कि अच्छा हुआ कि मैं पहले ही यह सब करके फुर्सत हो लिया हूँ । नहीं तो आज के समय में ब्रज में वह सब करता तो पता नहीं क्या-क्या भुगतना पडता ।
रुक्मणी ने आगे कहा कि "फकीरचंद से लेकर अमीरचंद तक के घरों में शादियां बाकायदा प्रायोजित होती हैं । प्रेम अपनी जगह शादी अपनी जगह । प्रेम टाइम पास के लिए ठीक है । ज्यादा सेंटी होने का जमाना अब नहीं रहा ।
इस तरह हम पूरे व्यवहारिक लोग हैं । हमारे यहॉं शादियॉं कुंडलियॉं तय करती हैं । कुंडली पंडित तय करते हैं और मंगली लडकी की शादी के लिए मंगला लडका ढूँढना पडता है । लडके लडकी विदेश में पढते या नौकरी करते हैं और देश में आकर बाकायदा कुंडली मिलान करके शादी करते हैं ।"
इस तरह हम पूरे व्यवहारिक लोग हैं । हमारे यहॉं शादियॉं कुंडलियॉं तय करती हैं । कुंडली पंडित तय करते हैं और मंगली लडकी की शादी के लिए मंगला लडका ढूँढना पडता है । लडके लडकी विदेश में पढते या नौकरी करते हैं और देश में आकर बाकायदा कुंडली मिलान करके शादी करते हैं ।"
"तब तो बडी मुश्किल हो जायेगी या तो प्रेम भी कुंडली मिलाकर करो नहीं तो प्रेम विवाह तो असंभव हो जायेगा ।
क्योंकि प्रेम तो लोग बिना आगा पीछा देखे ही करने लगते हैं ।"
यही एक समानता है वेलेंटाइन डे मनाने वालों और इसका विराध करने वालों में कि शादी के मुद्दे पर दोनों एक हो जाते हैं ।
"गालिब के अंदाज में आप इसे ऐसा कह सकते हैं कि दिल के बहलाने को वेलेंटाइन मियॉं ये ख्याल अच्छा है ।
लेकिन जो वेलेंटाइन डे मना रहा है वह अभी बच्चा है । इसलिए चिंता नहीं है क्योंकि बच्चा है तो बडा होगा ही और
बडा होगा तो जरुरी समझ भी आ ही जायेगी । फिर वह कुंडली मिलाकर शादी करेगा और वेलेंटाइन की जरूरत ही नहीं पडेगी ।"
"रुक्मणी ! एक मिनट ! अभी तुमने कहा कि कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं । वेरी इंट्रेस्टिंग ! वे कौन लोग हैं ? क्या वे शकुनी मामा या जरासंध की पार्टी के लोग हैं । जरा मुझे इसका खुलासा करके बताओ । तुम्हें इन सब चीजों के बारे में काफी अद्यतन जानकारी रहती है । मुझे तो आजकल राजकाज से ही फुर्सत नहीं मिलती ।" कृष्ण ने जम्हाई लेते हुए कहा ।
नहीं मधुसूदन ! वे आपकी जानकारी की किसी भी पार्टी के नहीं हैं बल्कि शिव जी और बजरंगबली जी के नाम
बनाए गए नए दल और भारतीय संस्कृति के पहरुए होने का दावा करने वाले वाले दलों के लोग हैं ।
बनाए गए नए दल और भारतीय संस्कृति के पहरुए होने का दावा करने वाले वाले दलों के लोग हैं ।
"क्या इन लोगों को भोले शंकर और हनुमान जी का समर्थन प्राप्त है ?"
इस बात पर रुक्मणी को हँसी आ गई । समझाते हुए बोलीं कि यह तो सिर्फ उनके दलों के नाम है । आशीर्वाद या समर्थन प्राप्त होने से इसका कोई संबंध नहीं । जैसे कल कोई आपके नाम से या श्रीराम के नाम से दल बना सकता है । लेकिन इसका यह अर्थ तो नहीं कि इन सबके पीछे आपका हाथ है या समर्थन प्राप्त है ।
"अच्छा" तो इन लोगों का एजेंडा क्या है । कहीं ऐसा तो नहीं कि ये मेरे समर्थकों को शिव और हनुमान और उनके स्वामी राम के समर्थकों के खिलाफ भडका रहे हों ।
"प्रत्यक्षत: तो ऐसा नहीं लगता । लेकिन ऐसा है भी क्योंकि इन लोगों को शांतिप्रिय और प्रेम करने वाले लोग पसंद नहीं हैं । इन्हें ये कायर कहकर संबोधित करते हैं । इनका यह भी कहना है कि वेलेंटाइन डे मनाने वाले लडके-लडकियॉं कायर होते क्योंकि वे लोग अपना संगठन बनाकर इनके खिलाफ नहीं खडे होते । वेलेंटाइन डे मनाना भारतीय संस्कृति के खिलाफ है इसलिए ये लोग वेलेंटाइन डे के दिन प्रेमरत जोडों को बरामद करके उनकी आपस में राखी बँधवाकर , लगे हाथ उठक बैठक् लगवाकर भारतीय संस्कृति की रक्षा का महत कार्य पूरा करते हैं । लोकतंत्र को ये पसंद नहीं करते क्योंकि लोकतंत्र में कोई भी ऐरा-गैरा कुछ भी अनाप-शनाप बकता रहता है । इस तरह ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पसंद नहीं करते । इससे इन्हें अपने अस्त्तिव पर संकट नजर आने लगता है । क्योंकि इनके पास विकास की कोई योजना या दृष्टि नहीं होती ।"
"इनका अस्त्तित्व केवल नकार पर टिका हुआ होता है । शांति काल में ये अप्रासंगिक हो जाते हैं इसलिए अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए कोई न कोई शिगूफा छोडते रहते हैं ।"
"दूसरे धर्मों के समान सोच रखने वाले भाई लोग इस काम में इनकी मदद करते रहते हैं । इस तरह भाईचारे से भाई बेचारों तक का धंधा चलता रहता है ।"
"तो क्या मेरे नाम से अभी तक कोई ऐसा काम नहीं किया गया । "
कृष्ण ने उत्सुकतावश पूछा ।
"नहीं मुरलीधर । आपके नाम से प्रेम का भाव इतना चिपका हुआ है कि लोगों को मारपीट के लिए उत्तेजित नहीं कर पाता इसलिए आपके नाम से अभी कोई दल नहीं बनाया गया है । आज की भाषा में कहूँ तो आपका नाम अपील नहीं करता ऐसे कामों के लिए । बल्कि ऐसे कार्यों को चौपट करने वाला है । यद्यपि आपने पार्थ को युद्ध करने के लिए उकसाया था । लेकिन आपका वह काम भी आपको लवर ब्वाय के इमेज से बाहर नहीं निकाल सका ।"
इस पर कृष्ण प्रसन्न होते हुए बोले कि "चलो अच्छा हुआ कि मेरा नाम लेकर कोई वेलेंटाइन जी का विरोध नहीं कर सकता नहीं तो मुझे काफी अफसोस होता क्योंकि किसी भी प्रेम का संदेश देने वाले में मैं ही मौजूद होता हूँ ।"
तत्पश्चात चर्चा का समापने करते हुए श्रीकृष्ण ने निम्नलिखित पंक्तियॉं कहीं :
ब्रजवासियों ने ऐसे ऐसे गुल खिलाए
कृष्ण की धरती पर वेलेंटाइन आए
यह कहकर विश्व-मोहन ने ऑंख मूंद ली और वर-वंशिका पर एक सम्मोहक राग छेड दिया जो कि रात के सन्नाटे में अखिल ब्रहमांड में गुंजायमान होता हुआ जड-चेतन को मदमस्त करने लगा । रुक्मणी भी राधारमण की गोद में सिर रखकर इस मधुर मुरली की तान से अवश होती हुई वेलेंटाइन डे का आनंद उठाने लगीं । अस्तु ।
सुनिए और देखिए यह गीत । " नीरज" ने यदि सिर्फ गीत भी लिखा हो तो भी वे ..........
शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलाए जाए थोडी सी शराब
हो नशा जो तैयार, वो प्यार है .....
February 09, 2010
देखिए एक जादू .......खुद की रिस्क पर
१ विश्रांत हो जाइए और इस चित्र के बीच में बने हुए चार बिंदुओं को एकाग्रता से 30-40 सेकंड तक देखते रहिए ।
2 अब अपनी पास की की दीवाल या किसी चिकनी सतह (जो कि एक ही रंग की हो ) पर देखिए ।
3 आपको प्रकाश का एक गोला बनता हुआ दिखाई पडेगा ।
4 अब आप अपनी ऑंखें झपकाइये फिर सतह पर देखिए । आप एक तस्वीर को उभरती हुई पायेंगे ।
५ कोई दिख रहा है ? कौन दिख रहा है ?
अगली पोस्ट में इस तरह कुछ और भ्रम प्रस्तुत करुंगा ।
February 03, 2010
चलो, चुप हो जाऍं
चलो,
चुप हो जाऍं, कुछ दिनों के लिए
जैसे,
चुप हो जाते हैं दो अनन्य मित्र
सहनशीलता की आखिरी सीमा
आने से पहले ,
बिना एक-दूसरे को नुकसान पहुँचाए
करते रहते हैं, अपना काम
साझे मिशन के लिए
सदाशयता से ,
कभी मिल जाने के लिए
जैसे,
मॉं-बाप पूरे करते रहते हैं अपना कर्त्तव्य
औलादों को झगडते हुए या
बहकते हुए, देखकर भी
लगे रहते हैं घर की भलाई में
क्योंकि , शक्तिप्रदर्शन में तबाही घर की ही है
चाहे जीते कोई भी
जैसे,
चुप रह जाती है समझदार जनता
नेताओं के, मरने मारने के उकसावे पर भी
जलाये रखती है इंसानियत का चिराग
अपने दिलों में
जैसे,
असली देशप्रेमी कोशिश करता है
कि उसका गौरव उसके दूसरे भाई/बहन को
शर्मसार न कर सके
जैसे,
माली सींचता रहता है अपने पौधों को
खिलाता है नये-नये फूल
खूबसूरत बनाने के लिए बाग को,
बगैर दूसरे का बाग उजाडे
चलो,
मनोरंजन और काबिलियत दिखाने के,
कुछ और तरीके खोजें
स्थगित करें, तलवारबाजी , मुर्गेबाजी और मुक्केबाजी से
अपने ही दोस्तों को लहूलुहान करके
विजेता बनने की हिंसक चमक को
चलो,
ऐसी बातें न शुरू करें
जिसका अंत न कर सकें
और जो अगले संवाद की
संभावना को समाप्त कर दे
चलो,
थोडा कम होशियार बनना
स्वीकार कर लें
क्योंकि अगला भी
बुद्धिमान ही है, हमेशा !
चलो,
कुछ नेताओं की कुश्ती को
राष्ट्रीय टूर्नामेंट और
कुछ बाहुबलियों के झगडे को
गृहयु्द्ध मानने से इंकार कर दें
चलो,
फसादियों को निराश कर दें
और 'मनुष्य' के आगे-पीछे बिना कोई
शब्द लगाये उसे बचाये रखें
चलो,
जब कुछ नहीं कर सकते तो
तमाशबीनी बंद करें !
और अपना-अपना काम करें
हाँ ! मजे लेने वाले उतने ही
भागीदार हैं,
जितने की मजमा लगानेवाले
कम से कम इतने से मजे का
त्याग तो कर ही सकते हो मेरे दोस्त ।
यदि नहीं , तो फिर चुप रहने का कोई मूल्य नहीं ।
चुप हो जाऍं, कुछ दिनों के लिए
जैसे,
चुप हो जाते हैं दो अनन्य मित्र
सहनशीलता की आखिरी सीमा
आने से पहले ,
बिना एक-दूसरे को नुकसान पहुँचाए
करते रहते हैं, अपना काम
साझे मिशन के लिए
सदाशयता से ,
कभी मिल जाने के लिए
जैसे,
मॉं-बाप पूरे करते रहते हैं अपना कर्त्तव्य
औलादों को झगडते हुए या
बहकते हुए, देखकर भी
लगे रहते हैं घर की भलाई में
क्योंकि , शक्तिप्रदर्शन में तबाही घर की ही है
चाहे जीते कोई भी
जैसे,
चुप रह जाती है समझदार जनता
नेताओं के, मरने मारने के उकसावे पर भी
जलाये रखती है इंसानियत का चिराग
अपने दिलों में
जैसे,
असली देशप्रेमी कोशिश करता है
कि उसका गौरव उसके दूसरे भाई/बहन को
शर्मसार न कर सके
जैसे,
माली सींचता रहता है अपने पौधों को
खिलाता है नये-नये फूल
खूबसूरत बनाने के लिए बाग को,
बगैर दूसरे का बाग उजाडे
चलो,
मनोरंजन और काबिलियत दिखाने के,
कुछ और तरीके खोजें
स्थगित करें, तलवारबाजी , मुर्गेबाजी और मुक्केबाजी से
अपने ही दोस्तों को लहूलुहान करके
विजेता बनने की हिंसक चमक को
चलो,
ऐसी बातें न शुरू करें
जिसका अंत न कर सकें
और जो अगले संवाद की
संभावना को समाप्त कर दे
चलो,
थोडा कम होशियार बनना
स्वीकार कर लें
क्योंकि अगला भी
बुद्धिमान ही है, हमेशा !
चलो,
कुछ नेताओं की कुश्ती को
राष्ट्रीय टूर्नामेंट और
कुछ बाहुबलियों के झगडे को
गृहयु्द्ध मानने से इंकार कर दें
चलो,
फसादियों को निराश कर दें
और 'मनुष्य' के आगे-पीछे बिना कोई
शब्द लगाये उसे बचाये रखें
चलो,
जब कुछ नहीं कर सकते तो
तमाशबीनी बंद करें !
और अपना-अपना काम करें
हाँ ! मजे लेने वाले उतने ही
भागीदार हैं,
जितने की मजमा लगानेवाले
कम से कम इतने से मजे का
त्याग तो कर ही सकते हो मेरे दोस्त ।
यदि नहीं , तो फिर चुप रहने का कोई मूल्य नहीं ।
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